Uttar Pradesh

StateCommission

C/2014/114

Akhand Pratap Singh - Complainant(s)

Versus

Fortis Hospital - Opp.Party(s)

Shuchita Singh

23 Mar 2022

ORDER

STATE CONSUMER DISPUTES REDRESSAL COMMISSION, UP
C-1 Vikrant Khand 1 (Near Shaheed Path), Gomti Nagar Lucknow-226010
 
First Appeal No. C/2014/114
( Date of Filing : 22 Aug 2014 )
(Arisen out of Order Dated in Case No. of District State Commission)
 
1. Akhand Pratap Singh
Allahabad
...........Appellant(s)
Versus
1. Fortis Hospital
Noida
...........Respondent(s)
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. Vikas Saxena PRESIDING MEMBER
 HON'BLE MRS. DR. ABHA GUPTA MEMBER
 
PRESENT:
 
Dated : 23 Mar 2022
Final Order / Judgement

 

सुरक्षित

 

राज्‍य उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0 लखनऊ

 

परिवाद संख्‍या 114 सन 2014

श्री अखण्‍ड प्रताप सिंह पुत्र डा0 राजबहादुर सिंह निवासी 15/6-ए, एल0आई0जी0 कालोनी, गोविन्‍दपुर इलाहाबाद एवं एक अन्‍य ।

    .......परिवादीगण

-बनाम-

फोर्टिस हास्पिटल बी-22, सेक्‍टर-62, नोएडा उत्‍तर प्रदेश एवं चार अन्‍य ।

 .........विपक्षीगण

समक्ष:-

मा0, श्री विकास सक्‍सेना, सदस्‍य ।

मा0 , डा0 आभा गुप्‍ता, सदस्‍य ।

 

परिवादी की ओर से विद्वान अधिवक्‍ता              - सुश्री सुचिता सिंह।  

विपक्षी संख्‍या 1,2 व 3 की ओर से विद्वान अधिवक्‍ता - श्री सुशील कुमार शर्मा।

विपक्षी संख्‍या 4 व 5 की ओर से विद्वान अधिवक्‍ता   - श्री मनोज कुमार गुप्‍ता 

दिनांक:-26-04-2022

 

मा0  सदस्‍य डा0 आभा गुप्‍ता   द्वारा उद्घोषित

 

परिवादी संख्‍या 02 द्वारा यह परिवाद अपने पति परिवादी संख्‍या 01, जो गुर्दे का रोगी है, के इलाज एवं गुर्दा प्रत्‍यारोपड़ में विपक्षीगण द्वारा की गयी लापरवाही एवं सेवा में कमी के फलस्‍वरूप गुर्दे का आपरेशन असफल हो जाने एवं कई विषमताऐं उत्‍पन्‍न हो जाने के कारण पुन: गुर्दे के आपरेशन में होने वाला खर्च जिसका मैक्‍स हास्पिटल द्वारा स्‍टीमेट दिया गया है, मय ब्‍याज एवं क्षतिपूर्ति के दिलाए जाने हेतु प्रस्‍तुत किया है।

परिवादी का कथन है कि परिवादी संख्‍या 02, परिवादी संख्‍या 01 की पत्‍नी है। विपक्षी संख्‍या 01 फोर्टिस हास्पिटल है जो नोएडा में स्थित है। विपक्षी संख्‍या 3 व 5 ट्रांस्‍प्‍लाटेशन डाक्‍टर हैं। परिवादी संख्‍या 01 का कथन है कि वह वर्ष 2007 से किडनी  संक्रमण  से  पीडि़त  था।  दिनांक   17.02.2010   को   वह

 

एस0जी0पी0जी0आई0 लखनऊ के नेफ्रोलाजी विभाग में भर्ती हुआ। डाक्‍टर द्वारा गुर्दे के फेलियर व काम न करने के कारण फिस्‍चुला के आपरेशन का परामर्श दिया गया। जिससे कि डायलिसिस हो सके। फिस्‍चुला के आपरेशन के दो हफ्ते बाद डायलिसिस शुरू किया गया और गुर्दे का शीघ्र प्रत्‍यारोपड़ कराने का परामर्श दिया गया। मरीज का ब्‍लड ग्रुप मरीज के माता पिता व रिश्‍तेदारों से न मिलने के कारण उनको डोनर के रूप में रिजेक्‍ट कर दिया गया और वर्ष 2011 तक गुर्दे का प्रत्‍यारापड़ नहीं किया जा सका। अन्‍त में मरीज के पारिवारिक मित्र लक्ष्‍मीदेवी द्वारा अपना गुर्दा दान की पहल की गयी जिसके संबंध में आवश्‍यक औपचारिकताऐं पूर्ण की गयीं। फोर्टिस हास्पिटल के डाक्‍टर द्वारा बताया गया कि अगर डोनर निकट का रिश्‍तेदार नहीं है तो गुर्दा प्रत्‍यारोपड़ की परमीशन नहीं दी जा सकती है। जिसके कारण परिवादी द्वारा स्‍टेट अथराइजेशन कमेटी के समक्ष गुर्दा प्रत्‍यारोपड़ के संबंध में प्रार्थना पत्र दिया गया  और कमेटी द्वारा दिनांक 03.07.2012 को गुर्दा प्रत्‍यारोपड़ के संबंध में लक्ष्‍मीदेवी को एन0ओ0सी0 दी गयी। फिर भी विपक्षी हास्पिटल द्वारा लक्ष्‍मी देवी को निकट का रिश्‍तेदार न पाते हुए रिजेक्‍ट कर दिया गया जिसके कारण मा0 उच्‍च न्‍यायालय में रिट संख्‍या 7817 एम-बी दाखिल की गयी जिसके संबंध में मा0 उच्‍च न्‍यायालय ने दिनांक 15.4.2012 को फोर्टिस हास्पिटल को गुर्दा प्रत्‍यारोपड़ हेतु आदेशित किया कि वह गुर्दे का प्रत्‍यारोपड़ करे। परिवादी का कथन है वांछित औपचारिकताऐं पूर्ण करने में 01 वर्ष का समय व्‍यतीत हो गया । विपक्षी द्वारा आवश्‍यक सर्जरी की एन0ओ0सी0 न देकर  सेवा में कमी की गयी है इसलिए वह सेवा में कमी के लिए जिम्‍मेदार है। उच्‍च न्‍यायालय के आदेश के बाद शिकायतकर्ता हास्पिटल गया तो उससे 5,72,500.00 रू0 आपरेशन के लिए जमा कराए गए। परिवादी डा0 अनंत से आपरेशन करवाना चाहता था लेकिन वह हा‍स्पिटल छोड़ कर चले गए थे तब परिवादी को दूसरे डाक्‍टर से आपरेशन करवाना पड़ा जिन्‍होने दिनांक 30.10.2013 को गुर्दे का प्रत्‍यारोपड़  किया। आपरेशन विपक्षी संख्‍या 03 के द्वारा किया गया तथा विपक्षी संख्‍या 4 व 5 द्वारा आपरेशन में सहायता की गयी। आपरेशन के दूसरे दिन दिनांक 31.10.2013 को जब मरीज को होश आया तब उसने पेट में दर्द दाहिने हाथ में फेश्‍चुला की शिकायत की। पेन किलर देने से भी जब कोई फायदा नहीं हुआ और दर्द असहनीय हो गया तब दर्द कन्‍ट्रोल करने के लिए एक मशीन लगायी गयी। इस तरह मरीज का फेश्‍चुला भी फेल हो गया और पेट दर्द के बारे में डाक्‍टर कोई जवाब नहीं दे सके।

परिवादी का कथन है कि आपरेशन के बाद उसके यूरिन का आउटपुट बंद हो गया और क्रिएटनीन बढ़ गया और मरीज की हालत नार्मल नहीं रही और मरीज को तीन हफ्ते तक डायलसिस पर रखा गया और डाक्‍टर आश्‍वासन देते रहे कि गुर्दा प्रत्‍यारोपड़ ठीक हुआ है और गुर्दा जल्‍दी ही ठीक से कार्य करना प्रारम्‍भ कर देगा। परिवादी को दिनांक 10.11.2013 को डिस्‍चार्ज कर दिया गया। डिस्‍चार्ज  होने के बाद परिवादी को खून की उल्‍टी होने लगी और उसे फिर हास्पिटल में भर्ती करना पड़ा और मरीज की वायोप्‍सी रिपोर्ट में धमनियों में खून के थक्‍के  दिखायी दिए और मरीज को किए जा रहे इलाज से कोई सुधार नहीं हुआ।

दिनांक 02.11.2013 को यूरिन इतना कम हो गया कि मरीज का डाप्‍लर टेस्‍ट करना पड़ा जिसमें रीनल आट्ररीज में खून का प्रवाह नहीं पाया गया और मरीज को फिर से आपरेशन थिेएटर ले जाया गया और आपरेशन में छोटे ब्‍लडक्‍लांट्स (थ्रम्‍बस) इन्‍टरनल आट्ररीज में पाए गए और प्रत्‍यारोपित गुर्दे की वायोप्‍सी में एक्‍यूट ट्यूबलर नेक्रोसिस पायी गयी जिसका मतलब अपर्याप्‍त खून व आक्‍सीजन की सप्‍लाई न होने के कारण गुर्दे का क्षतिग्रस्‍त होना है । पुन: दिनांक 03.11.2013 को डाप्‍लर टेस्‍ट किया गया और उसमें भी खून का प्रवाह नहीं पाया गया और इसी प्रकार तीन दिन में तीन बार आपरेशन हुआ फिर भी विपक्षी संख्‍या 3 व 5 आरटरीज से खून के थक्‍के को हटा नहीं पाए और सर्जरी के बाद जो भी टेस्‍ट किए गए वह सामान्‍य नहीं पाए गए फिर भी विपक्षीगण यह कहते रहे कि प्रत्‍यारोपित गुर्दा कार्य करेगा और दिनांक 10.11.2013 को मरीज को हास्पिटल से डिस्‍चार्ज कर दिया गया । परिवादी विपक्षी डाक्‍टर के पास परामर्श व नियमित चेकअप के लिए मरीज को ले जाती रही। दिनांक 19.11.2013 को विपक्षी संख्‍या 02 ने पुन: परिवादी संख्‍या 01 को भर्ती करने के लिए कहा जिससे कि प्रत्‍यारोपित गुर्दे की वायप्‍सी की जा सके और दिनांक 20.11.2013 को डिस्‍चार्ज कर दिया। दिनांक 20.11.2013 को परिवादी संख्‍या 01 को फिर खून की उल्‍टी होना शुरू हो गयी जिसके कारण उसे पुन: भर्ती कराया गया और गुर्दे की वायप्‍सी की गयी जिसमें गुर्दे में कार्टिकल इन्‍फ्राक्‍ट पाया गया जिसका मतलब यह है कि प्रत्‍यारोपित गुर्दा पूरी तरह से क्षतिग्रस्‍त हो चुका था और डाक्‍टर द्वारा गुर्दे को निकालने का परामर्श दिया गया और मरीज को दिनांक 23.11.2013 को डिस्‍चार्ज कर दिया गया। शिकायतकर्ता का कथन है कि उसी की तरह एक अन्‍य मरीज राजवीर सिंह, जिसके गुर्दे का प्रत्‍यारोपड विपक्षी संख्‍या 03 द्वारा किया गया था की, नेफ्रेक्‍टमी के दौरान अन्‍दरूनी रक्‍तश्राव के कारण मृत्‍यु हो गयी जिसके कारण 10 लाख का बिल फोर्टिस हास्पिटल द्वारा माफ कर दिया गया और इसी तरह की शिकायत परिवादी की थी । जिससे उनकी सेवा में कमी की पुष्टि होती है। परिवादिनी का कहना है कि डाक्‍टर कोई संतोषजनक जबाब नहीं दे रहे थे और मरीज की स्थिति लगातार खराब होती जा रही थी इसलिए परिवादी संख्‍या 01 ने नेफ्रेक्‍टमी हेतु एस0जी0पी0जी0आई0 लखनऊ में जाने का निर्णय लिया और वहां दिनांक 27.11.2013 को भर्ती किया और वहां से दिनांक 30.11.2013 को डिस्‍चार्ज कर दिया गया और यह परामर्श दिया गया कि गुर्दे की शिराए आपरेशन के दौरान गलत तरीके से जोड़ दी गयी हैं इसलिए अब जो सर्जरी की जाएगी वह खतरनाक होगी और मरीज की जिन्‍दगी खतरे में रहेगी । अन्‍य कोई रास्‍ता न होने के कारण मरीज की जिन्‍दगी बचाने के लिए परिवादी संख्‍या 02 ने मैक्‍स सुपर स्‍पेशयलिटी हास्पिटल नई दिल्‍ली के डाक्‍टर अनंत कुमार जो गुर्दा प्रत्‍यारोपड़ के विशेषज्ञ डाक्‍टर हैं, से परामर्श लिया। उन्‍होंने तत्‍काल मरीज को भर्ती करने की आवश्‍यकता बताई और दिनांक 02.12.2013 को मरीज को भर्ती कर लिया । डा0 अनंत कुमार द्वारा प्रत्‍यारोपित गुर्दे को सर्जरी के द्वारा हटा दिया गया तथा फिश्‍चुला का आपरेशन किया गया । गुर्दे में खून का प्रवाह बिलकुल न होने से आपरेशन के बाद कई विषमताऐं उत्‍पन्‍न हो गयी। मैक्‍स हास्पिटल द्वारा 16 लाख 10 हजार का खर्चा मांगा गया जिससे कि परिवा‍दी संख्‍या 01 का अर्जेन्‍ट गुर्दा प्रत्‍यारोपड किया जा सके और इस बार परिवादी संख्‍या 01 की पत्‍नी ने निर्णय लिया कि वह गुर्दा दान करेगी लेकिन इलाज के दौरान अन्‍तत: दिनांक 04.12.2014 को मरीज की मृत्‍यु हो गयी। 

परिवादिनी ने विपक्षी द्वारा आपरेशन में की गयी लापरवाही एवं सेवा में कमी के लिए किडनी ट्रांसप्‍लांट सर्जरी एवं दवा आदि के मद में हुआ खर्चा एवं वाद खर्च के लिए यह परिवाद योजित किया।

परिवादिनी ने अपने कथन के समर्थन में साक्ष्‍य एवं शपथपत्र प्रस्‍तुत किए।

विपक्षी संख्‍या 04 की ओर से अपना जबावदावा प्रस्‍तुत कर उल्लिखित किया कि उसके द्वारा दिनांक 30.09.2013 को हास्पिटल छोड़ दिया था, अत: उसकी कोई जबावदेही नहीं बनती है।

विपक्षी संख्‍या 1,2,व 3 की ओर से वादोत्‍तर प्रस्‍तुत कर उल्लिखित किया गया   

विपक्षी संख्‍या 1,2,व 3 की ओर से वादोत्‍तर प्रस्‍तुत कर उल्लिखित किया गया  कि परिवादी यह सिद्ध करने में सफल नहीं रहा है कि किस प्रकार से सेवा में कमी की गयी या चिकित्‍सा में अनदेखी की गयी। परिवादी द्वारा जो भी कहा गया है वह आधारहीन है जिसकी पुष्टि मेडिकल रिकार्ड व लिटरेचर से की जा सकती है। यह भी कहा गया कि मरीज को उच्‍च श्रेणी की चिकित्‍सा प्रदान की गयी और जब परिवादी ने विपक्षी संख्‍या 02 डा0 अनंत कुमार से परामर्श लिया तो उन्‍हें स्‍पष्‍ट रूप से बता दिया गया कि वह किसी फैमिली मेम्‍बर को डोनर के रूप में लाऐं। परिवादी का यह भी कहना गलत है कि फोर्टिस हास्पिटल की अथराइजेशन कमेटी ने दिनांक 26.07.2012 को परिवादी के प्रार्थना पत्र को गलत रूप से निरस्‍त कर दिया क्‍योंकि पर्याप्‍त जांच एवं अभिलेखों के परीक्षण करने के उपरांत कमेटी इस नतीजे पर पहुंची थी कि परिवादी एवं डोनर के बीच का रिश्‍ता ठीक से पता नहीं चल पाया जिसे कि डोनर के रूप में स्‍वीकार किया जा सके। यह भी कहना गलत है कि राज्‍य स्‍तरीय अथराइजेशन कमेटी द्वारा अनुमति दिए जाने के बावजूद फोर्टिस हास्पिटल अथराइजेशन कमेटी द्वारा जानबूझ कर आपरेशन की अनुमति नहीं दी गयी । अनुमति कानून के अनुसार डी0ओ0 नम्‍बर एस-12011-1-2013-एमएस (पीटी) दिनांक 01.11.2011 भारत सरकार स्‍वास्‍थ एवं परिवार कल्‍याण मंत्रालय द्वारा जारी किया गया था जिसके अनुसार जिस हास्पिटल में ट्रांसप्‍लाटेशन किया जाना हो उस हास्पिटल द्वारा अनुमति देने से पूर्व परीक्षण किया जाना अनुमन्‍य है। यह भी कहा गया कि जैसे ही मरीज के द्वारा प्रत्‍यारोपड़ कराने की सहमति दी गयी। सभी आवश्‍यक परीक्षण एवं प्रक्रिया दिनांक 27.09.2013 से प्रारम्‍भ कर दी गयी थी। सारे परीक्षण एवं रिपोर्ट प्राप्‍त होने पर मरीज व डोनर को गुर्दा प्रत्‍यारोपड़ हेतु दिनांक 29.10.2013 को भर्ती किया गया और प्रत्‍यारोपड़ दिनांक 30.12.2013 को किया गया । आपरेशन के बाद मरीज द्वारा दर्द की शिकायत करने पर फिंटानिल इंजेक्‍शन मरीज को दी जा रही इन्‍फ्यूजन की बोतल में लगाकर लगातार 48 घण्‍टे तक दिया गया और उसके बाद  इन्‍जेक्‍शन ट्रामाडाल एवं पैरासीटामॉल दी गयी। मरीज को आपरेशन के पूर्व आपरेशन की प्रकिया एवं उससे होने वाले खतरे एवं आपरेशन के पश्‍चात प्रत्‍यारोपड़ का वहिष्‍कार एवं अनेस्‍थीसिया से संबंधित सभी प्रकार की विषमताओं के बारे में समझा दिया गया था और उन्‍होंने उस पर अपनी सहमति भी दी थी । आपरेशन के तत्‍काल बाद मरीज का यूरिन आउटपुट 9050  एम0एल0 व सीरम क्रिएटनीन 10.4 से गिरकर 4.9 हो गया था । इस प्रकार यूरिन आउटपुट बहुत अच्‍छा था । दिनांक 01.11.2013 को सीरम क्रिएटनीन 1;7 तक पहुंच गया और यूरिन आउटपुट 9980 एमएल तक पहुंच गया जिससे सर्जरी के बाद बहुत अच्‍छा परिणाम साबित होता है। दिनांक 31.10.2013 को डाप्‍लर टेस्‍ट किया गया उसमें प्रत्‍यारोपित गुर्दे में खून का प्रवाह अच्‍छा पाया गया जिसकी रिपोर्ट संलग्‍न है। किंतु दिनांक 02.11.2013 को यूरिन आउटपुट एकदम गिर  गया जिसके कारण तत्‍काल डाप्‍लर टेस्‍ट कराया गया जिसमें रीनल आट्ररी में थ्राम्‍बोसिस का अंदेशा पाया गया और परिवादी व उसकी पत्‍नी एवं रिश्‍तेदारों को उक्‍त विषमताओं के बारे में बताया गया । तत्पश्‍चात मरीज को आपरेशन थिएटर में शिफ्ट किया गया और वहां उसका पुन: आपरेशन किया गया जिससे खून के थक्‍के को हटाया जा सके और इसके लिए हिपैरिन इन्‍फ्यूशन स्‍टार्ट किया गया जिससे थक्‍के बनने बंद हो सकें। यह संदेह भी था कि मरीज को थक्‍का बनने की कोई प्रवृत्ति हो। तत्‍पश्‍चात सभी आवश्‍यक परीक्षण डाप्‍लर टेस्‍ट इत्‍यादि समय समय पर आवश्‍यकतानुसार किए गए और लगातार गिरते यूरिन आउटपुट के कारण होमोडायलिसिस स्‍टार्ट किया गया और दिनांक 10.11.2013 को आवश्‍यक दवाऐं एवं परामर्श देते हुए डिस्‍चार्ज कर दिया गया और नियमित रूप से ओ0पी0डी में चेकअप कराने के लिए कहा गया । मरीज के डिस्‍चार्ज के बाद भी हास्पिटल द्वारा डायलिसिस व खून की जांच कर उसकी स्थिति की लगातार जांच की जाती रही लेकिन कोई सुधार न होने पर दिनांक 19.11.2013 को मरीज को किडनी की वायप्‍सी के लिए भर्ती किया गया वायप्‍सी रिपोर्ट में गुर्दा पूर्ण रूप से क्षतिग्रस्‍त पाया गया इसलिए मरीज को ग्राफ्ट नेफ्रेक्‍टमी की सलाह दी गयी ।

जिस राजवीर के बारे में परिवादी संख्‍या 02 द्वारा यह कहा गया है कि हास्पिटल की लापरवाही के कारण उसकी मृत्‍यु हुयी थी, इसलिए उसका बिल माफ कर दिया गया वह एक गुर्दे के अस्‍वीकार होने के कारण हुआ जो कि 10 से 15 प्रतिशत मरीजो में होता है। इस प्रकार मेडिकल सेवा में किसी प्रकार की लापरवाही विपक्षी द्वारा नहीं की गयी है।

हमने उभय पक्ष के विद्वान अधिवक्‍तागण के तर्को को सुना तथा पत्रावली पर उपलब्‍ध साक्ष्‍य एवं अभिलेखों का परिशीलन किया।

परिवादी ने अपने परिवाद पत्र में जो घटनाक्रम का उल्‍लेख किया है तथा जो विषमताऐं आपरेशन के बाद उत्‍पन्‍न हुयी उससे संबंधित परीक्षण आख्‍याओं का अवलोकन किया गया । परिवादी द्वारा दूसरे प्रत्‍यारोपड़ के लिए हास्पिटल के संबंधित डाक्‍टरों को उत्‍तरदायी मानते हुए क्षतिपूर्ति एवं व्‍यय की गयी धनराशि की मांग की जबकि वर्तमान स्थिति में परिवादी संख्‍या 01 की मृत्‍यु दिनांक 04.12.2014 को बीमारी के कारण हो चुकी है, ऐसी स्थिति में समस्‍त घटनाक्रम को देखते हुए दो बिन्‍दुओं की पुष्टि होती है। 

प्रथम मरीज के हास्पिटल में सम्‍पर्क करने के पश्‍चात भी लगभग दो वर्ष का समय प्रत्‍यारोपड़ के लिए गुर्दे के उपलब्‍ध होने में लगा जिसका मुख्‍य कारण राज्‍य सरकार द्वारा प्रत्‍यारोपड़ की अनुमति दिए जाने के पश्‍चात भी हास्पिटल की अथराइजेशन कमेटी के द्वारा अनावश्‍यक रूप से उस डोनर को प्रत्‍यारोपड़ के लिए उपयुक्‍त न पाए पर अनुमति निरस्‍त कर दी गयी जिसकी वजह से परिवादी संख्‍या 02 को मा0 उच्‍च न्‍यायालय जाना पड़ा एवं मा0 उच्‍च न्‍यायालय के निर्देशों के पश्‍चात उसके द्वारा प्रत्‍यारोपड़ के संबंध में अग्रिम कार्यवाही की गयी । इस प्रकार समय पर प्रत्‍यारोपड़ की कार्यवाही सुनिश्चित न होने एवं विलम्‍ब होने के लिए हास्पिटल एवं उससे संबंधित डाक्‍टर्स का उत्‍तरदायित्‍व बनता है।

दूसरा सभी उपलब्‍ध सर्जिकल प्रक्रियाओं में प्रत्‍यारोपड़ के पश्‍चात होने वाली विषमताओं का ज्ञान होने के बावजूद उसको संज्ञान में रखते हुए स्थिति को नियंत्रण में किया जाना चाहिए था जिससे कि विषमता होने का अवसर कम होता परन्‍तु मात्र यह कहने से कि सर्जरी के बाद होने वाली विषमताओं के बारे में उसके रिश्‍तेदारों को समझा दिया गया था जिससे हास्पिटल एवं डाक्‍टर का उत्‍तरदायित्‍व कम नहीं हो जाता है। उनके द्वारा पूर्व से ही इस बात का ध्‍यान रखा जाना चाहिए था कि विषमता उत्‍पन्‍न होने पर उसका निदान क्‍या किया जा सकता। इस प्रकार लगातार बीमारी से जूझते हुए परिवादी संख्‍या 01 की मृत्‍यु दिनांक 04.12.2014 को हुयी। समय पर आपरेशन न होने के कारण परिवादी को उच्‍च न्‍यायालय जाना पड़ा जो विपक्षी की सेवा में कमी को परिलक्षित करता है। जिसके कारण परिवादी का परिवाद आंशिक रूप से स्‍वीकार किए जाने योग्‍य है।  

आदेश

परिवादी का परिवाद आंशिक रूप से स्‍वीकार किया जाता है तथा विपक्षीगण को आदेशित किया जाता है कि वह परिवादी को मानसिक क्‍लेश एवं क्षतिपूर्ति के रूप में 50,000.00 (पचास हजार) रू0 मय 06 (छह) प्रतिशत ब्‍याज सहित परिवाद दायरा के दिनांक से अदायगी तक दो माह के अन्‍दर अदा करें।

      परिवाद व्‍यय उभय पक्ष अपना अपना स्‍वयं वहन करेगें।

      इस निर्णय की प्रमाणित प्रति नियमानुसार पक्षकारों को उपलब्‍ध करायी जाए।

 

  (विकास सक्‍सेना)                                   (डा0 आभा गुप्‍ता)

          सदस्‍य                                              सदस्‍य 

 

सुबोल श्रीवास्‍तव

पी0ए0(कोर्ट नं0-3)

 

 

 

 
 
[HON'BLE MR. Vikas Saxena]
PRESIDING MEMBER
 
 
[HON'BLE MRS. DR. ABHA GUPTA]
MEMBER
 

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