Uttar Pradesh

StateCommission

A/2006/19

Smt. Ishrat Anjum - Complainant(s)

Versus

Fatima Hospital - Opp.Party(s)

Hemraj Mishra

28 Oct 2024

ORDER

STATE CONSUMER DISPUTES REDRESSAL COMMISSION, UP
C-1 Vikrant Khand 1 (Near Shaheed Path), Gomti Nagar Lucknow-226010
 
First Appeal No. A/2006/19
( Date of Filing : 03 Jan 2006 )
(Arisen out of Order Dated in Case No. of District State Commission)
 
1. Smt. Ishrat Anjum
a
...........Appellant(s)
Versus
1. Fatima Hospital
a
...........Respondent(s)
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. SUSHIL KUMAR PRESIDING MEMBER
 HON'BLE MRS. SUDHA UPADHYAY MEMBER
 
PRESENT:
 
Dated : 28 Oct 2024
Final Order / Judgement

(मौखिक)

राज्‍य उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ

अपील संख्‍या-19/2006

Smt. Ishrat Anjum aged about 47 years

Versus

Superentendent, Fatima Hospital

समक्ष:-                                                            

1. माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्‍य।

2. माननीय श्रीमती सुधा उपाध्‍याय, सदस्‍य।

उपस्थिति:-

अपीलार्थी की ओर से उपस्थित: श्री हेमराज मिश्रा, विद्धान अधिवक्‍ता

प्रत्‍यर्थी की ओर से उपस्थित:- श्री विजय कुमार यादव, विद्धान अधिवक्‍ता

दिनांक :28.10.2024 

माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्‍य द्वारा उदघोषित

निर्णय

  1.           परिवाद संख्‍या-41/1999, श्रीमती इशरत अंजुम बनाम अधीक्षक फातिमा अस्‍पताल में विद्वान जिला आयोग, (प्रथम) लखनऊ द्वारा पारित प्रश्‍नगत निर्णय/आदेश दिनांक 28.12.2004 के विरूद्ध प्रस्‍तुत की गयी अपील पर दोनों पक्षकारों के विद्धान अधिवक्‍तागण के तर्क को सुना गया। प्रश्‍नगत निर्णय/आदेश एवं पत्रावली का अवलोकन किया गया।
  2.       जिला उपभोक्‍ता आयोग ने परिवाद इस आधार पर खारिज किया है कि विपक्षी अस्‍पताल के विरूद्ध किसी प्रकार की लापरवाही स्‍थापित नहीं है।
  3.       परिवाद के तथ्‍यों के अनुसार दिनांक 08.05.1997 परिवादिनी विपक्षी अस्‍तपाल में भर्ती हुई। दिनांक 10.05.1997 को एक बच्‍ची को जन्‍म दिया, किन्‍तु उसका प्‍लेसेन्‍टा नहीं गिरा, न ही विपक्षी द्वारा निकाला गया, जिस कारण रात्रि में परिवादिनीको काफी पीड़ा हुई और अत्‍यधिक रक्‍त स्राव होने लगा और उसके बाद बेहोशी का इंजेक्‍शन दिये बिना प्‍लेसेन्‍टा निकाला गया, जिसके कारण अत्‍यधिक पीड़ा हुई और हीमोग्‍लोबिन 8 प्रतिशत बताया गया, जिसके कारण परिवादिनी को धुंधला दिखाई देने लगा। परिवादिनी को दिनांक 13.05.1997 के स्‍थान पर 15.05.1997 को अस्‍पताल से छुट्टी दी गयी। दिनांक 16.05.1997 को परिवादिनी को बुखार हो गया तब डॉक्‍टर किरन लता बनर्जी को दिखाया गया, जिन्‍होंने टांकों में इन्‍फेक्‍शन की संभावना बतायी तथा यह भी बताया कि एक टांका पक गया है। परिवादिनी की बच्‍ची की उचित देखभाल न करने के कारण लाल चकत्‍ते दिखायी देने लगे थे। बच्‍ची को बुखार भी आया था, जिसे दवा देकर उतारा गया था। इसके बाद परिवादिनीका इलाज डॉक्‍टर किरन द्वारा शुरू किया गया और डॉक्‍टर माथुर द्वारा बच्‍ची को पॉलीकेयर में भर्ती किया गया और यह बताया गया कि बच्‍चीके जन्‍म के बाद एण्‍टीबायोटिक इंजेक्‍शन न देने के कारण ऐसा हुआ। दिनांक 20.05.1997 को पुन: पॉलीकेयर में भर्ती होना पड़ा। विपक्षी की लापरवाही के कारण यह कष्‍ट उठाने के लिए बाध्‍य होना पड़ा
  4.         विपक्षी का कथन है कि चिकित्‍सा एवं प्रसव की प्रक्रिया में कोई लापरवाही नहीं बरती गयी। सामान्‍य प्रसव कराया गया। प्‍लेसेन्‍टा  के कुछ मेमरेन रहने के कारण सफाई की गयी, डीएलसी की गयी। लेबर रूम मे ले जाकर समुचित उपचार किया गया। प्रसव से पूर्व हीमोग्‍लोबिन 8.5 प्रतिशत था, जो प्रसव के बाद 8 प्रतिशत रह गया। जिला उपभोक्‍ता आयोग ने साक्ष्‍य के पश्‍चात यह निष्‍कर्ष दिया है कि विपक्षी अस्‍पताल के विरूद्ध किसी भी प्रकार की लापरवाही का तथ्‍य स्‍थापित नहीं है।
  5.        इस निर्णय एवं आदेश को इन आधारों पर चुनौती दी गयी है कि जिला उपभोक्‍ता आयोगने साक्ष्‍य के विपरीत निर्णय पारित किया है। परिवादिनी द्वारा अपना केस साबित किया गया है। प्रसव के समय भर्ती होते समय हीमोग्‍लाबिन 11.3 था, जबकि जिला उपभोक्‍ता आयोग ने इस तथ्‍य के विपरीत अपना निर्णय पारित किया है। अत: यह निर्णय/आदेश अपास्‍त होने योग्‍य है।
  6.           इस अपील के विनिश्‍चय के लिए एकमात्र विनिश्‍चायक बिन्‍दु यह उत्‍पन्‍न होता है कि क्‍या जिला उपभोक्‍ता आयोग ने पत्रावली पर उपलब्‍ध साक्ष्‍य के विपरीत अपना निर्णय पारित किया है और यथार्थ में प्रत्‍यर्थी अस्‍पताल द्वारा इलाज के दौरान लापरवाही का तथ्‍य स्‍थापित है? दस्‍तावेज सं0 40 के अवलोकन से ज्ञात होता है कि जिस हीमोग्‍लोबिन को 11.3 बताया गया है, वह जांच रिपोर्ट दिनांक 14.02.1997 पर आधारित है न कि प्रसव के लिए अस्‍पताल में भर्ती होने से पूर्व। अत: यह आधार निरर्थक है कि जिला उपभोक्‍ता आयोग ने हीमोग्‍लोबिन के संबंध में साक्ष्‍य के विपरीत निष्‍कर्ष दिया है। जिला उपभोक्‍ता आयोग ने अपने निर्णय में प्रसव से पूर्व हीमोग्‍लोबिन 8.5 मात्रा का उल्‍लेख किया है, जो प्रसव के बाद 8 प्रतिशत हुआ है। ऐसा होना पूर्णता स्‍वभाविक है क्‍योंकि स्‍वयं मरीज हीमोग्‍लोबिन की कमी का शिकार था, इसलिए प्रसव के बाद कमजोरी आना या कमजोरी के कारण पुन: इलाज कराने के लिए भर्ती होना पड़ा। अत: विपक्षी अस्‍तपाल की लापरवाही का तथ्‍य स्‍थापित नहीं है, इसलिए जिला उपभोक्‍ता आयोग द्वारा पारित निर्णय/आदेश में हस्‍तक्षेप करने का कोई आधार नहीं है। तदनुसार अपील खारिज होने योग्‍य है।

आदेश

          अपील खारिज की जाती है। जिला उपभोक्‍ता आयोग द्वारा पारित निर्णय/आदेश की पुष्टि की जाती है।

प्रस्‍तुत अपील में अपीलार्थी द्वारा यदि कोई धनराशि जमा की गई हो तो उक्‍त जमा धनराशि मय अर्जित ब्‍याज सहित संबंधित जिला उपभोक्‍ता  आयोग को यथाशीघ्र विधि के अनुसार निस्‍तारण हेतु प्रेषित की जाए।

    आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय एवं आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दे।

         

(सुधा उपाध्‍याय)(सुशील कुमार)

सदस्‍य सदस्‍य

 

 

      संदीप सिंह, आशु0 कोर्ट 2

  

 

 

 

 

 

 
 
[HON'BLE MR. SUSHIL KUMAR]
PRESIDING MEMBER
 
 
[HON'BLE MRS. SUDHA UPADHYAY]
MEMBER
 

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