Final Order / Judgement | (सुरक्षित) राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ। परिवाद सं0 :- 119/2013 Rajiv Agarwal, aged about 40 years, S/O late S.N. Agarwal, R/O BS-34. Blunt Square, Charbagh, Lucknow. - Complainant
Versus - Fatima Hospital, 35-C, Mahanagar , Lucknow. Through its Administrator.
- Dr. S.K. Singh, (Surgeon), Fatima Hospital, 35-C, Mahanagar, Lucknow.
- Dr. Abrar, (Anesthetics), Fatima Hospital, 35-C, Mahanagar, Lucknow.
- Opp. Parties
समक्ष - मा0 श्री सुशील कुमार, सदस्य
- मा0 श्रीमती सुधा उपाध्याय, सदस्य
उपस्थिति: परिवादी के विद्वान अधिवक्ता:- श्री विकास अग्रवाल विपक्षीगण के विद्वान अधिवक्ता:- श्री मनीष मेहरोत्रा दिनांक:-04.06.2024 माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य द्वारा उदघोषित निर्णय - यह परिवाद विपक्षीगण के विरूद्ध इलाज मे खर्च राशि अंकन 1,00,000/-रू0 18 प्रतिशत ब्याज के साथ वापसी के लिए, सेवा में कमी के मद में 45,00,000/-रू0 की क्षतिपूर्ति के लिए, दण्डात्मक क्षतिपूर्ति के मद में अंकन 10,00,000/-रू0 प्राप्ति के लिए, वात्सल्य हानि के लिए 40,00,000/-रू0 की क्षतिपूर्ति के लिए तथा परिवाद व्यय के मद में अंकन 50,000/-रू0 प्राप्त करने के लिए प्रस्तुत किया गया।
- परिवाद के तथ्यों के अनुसार जुलाई 2012 में मृतक प्रेमवती अग्रवाल के पेट में दर्द हुआ। पेट में दर्द होने पर डॉक्टर एन0पी0 गुलाटी को दिखाया गया, जिनको अल्ट्रासाउण्ड की सलाह दी गयी। दिनांक 05.07.2012 को अल्ट्रासाउण्ड कराने पर ज्ञात हुआ कि मृतका के गॉल ब्लेडर में स्टोन है। यह रिपोर्ट एनेक्जर सं0 1 है।
- गॉल ब्लेडर का स्टोन निकलवाने के लिए विपक्षी सं0 1 में दिनांक 08.08.2012 को सम्पर्क किया, जहां पर डॉक्टर ने कुछ पैथोलॉजिकल टेस्ट एवं अल्ट्रासोनोग्राफी करायी गयी, जिनमें सभी टेस्ट सामान्य पाये गये, परंतु अल्ट्रासोनोग्राफी रिपोर्ट के अनुसार गॉल स्टोन/कैलकुलस 22 एमएम पाये गये, यह रिपोर्ट एनेक्जर सं0 2 है। ओपेन सर्जरी के माध्यम से यह स्टोन निकालने की सलाह दी गयी, जबकि परिवादिनी द्वारा लेप्रोस्कॉपिक सर्जरी का अनुरोध किया गया, परंतु डॉक्टर एस0के0 सिंह द्वारा कहा गया कि ओपेन सर्जरी सुरक्षित है। दिनांक 16.08.2012 को सुबह 9:30 बजे मरीज को ऑपरेशन थियेटर में ले जाया गया, जहां से मरीज के चिल्लाने की आवाज सुनी गयी। इसके बाद किसी डॉक्टर द्वारा बताया गया कि मरीज को आई0सी0यू0 में शिफ्ट किया गया है। पैरा मेडिकल स्टाफ ने बताया कि एनेस्थिसिया की डोज डॉक्टर अबरार द्वारा कम दी गयी, जिसके कारण चीरा लगाने पर मरीज चिल्लाया। इसके बाद यह डोज ज्यादा दे दी गयी और यह डोज ज्यादा होने के कारण मरीज कोमा में चली गयी। दिनांक 16.08.2012 से दिनांक 01.09.2012 तक मरीज को आईसीयू में रखा गया। इसके बाद 7,000/-रू0 का बिल बनाते हुए मेडिकल कॉलेज लखनऊ की सलाह दी गयी, परंतु 7,000/-रू0 प्राप्त किये बिना इलाज से संबंधित दस्तावेज उपलब्ध नहीं कराये गये। दिनांक 01.09.2012 को मेडिकल कॉलेज के आईसीयू में भर्ती कराया गया। दिनांक 02.09.2012 को मरीज की मृत्यु हो गयी। इससे पूर्व फातिमा हॉस्पिटल में सेप्टिसीमिया होना बताया गया है। इस प्रकार विपक्षीगण द्वारा इलाज में गंभीर लापरवाही की गयी, इसलिए उपरोक्त वर्णित अनुतोष के साथ उपभोक्ता परिवाद प्रस्तुत किया गया।
- परिवाद के समर्थन में शपथ पत्र तथा इलाज से संबंधित दस्तावेज प्रस्तुत किये गये हैं।
- विपक्षीगण द्वारा संयुक्त रूप से लिखित कथन प्रस्तुत किया गया तथा उल्लेख किया गया है कि उनके द्वारा किसी भी प्रकार की मेडिकल लापरवाही इलाज के दौरान नहीं बरती गयी। स्वयं रिपोर्ट से जाहिर होता है कि मरीज के गॉल ब्लेडर में 22 एमएम की कैलकुलस मौजूद थी। लीवर तथा गॉल ब्लेडर के बीच का गेप समाप्त हो चुका था, इसलिए ओपेन सर्जरी का विकल्प चुना गया था। प्रीऑपेरटिव प्रोटोकॉल का निर्वहन किया गया, इसलिए सभी टेस्ट कराये गये। इस प्रकृति के केस में लेप्रोस्कोपिक गॉल ब्लेडर सर्जरी उचित नहीं थी। सर्जरी के दौरान कोरोनली इवेंट के कारण सर्जरी रोकनी पड़ी। प्रेमवती अग्रवाल की आयु 65 वर्ष थी, जिनमें Mild Heptomegaly with fatty infilteration of liner, Chokelithia sis with irregular tweling of Galbladder & lost interface with heptic parenchyme and possible of Gaal Bladder Melinancy मौजूद थी। इस आधार पर भी ऑपरेशन स्थगित किया गया।
- पैरा 15 में एनेस्थिसिया से संबंधित डोज का उल्लेख निम्न प्रकार से से किया गया है:-
That it is pertinent to mention that induction of Anesthesia was done at 10.15 AM, pre induction oxygenation was done with face mask. Inj. Sodium pentathol 250 mg 2.5% IV was given till loss of eye lashes reflexes. (Normal dose 4 to 7 mg/Kg body weight) (this drug is used for the loss of consciousness). Inj. Suxamethonium 75 mg IV was given. (It is short acting muscle relaxant used for tracheal intubation, i.e. tube putting into the trachea to maintain the respiration in G.A.) Intubation was done with 7.5 mm cuffed endotracheal tube. Intubatin dose suxamethonium is 25-100 mg). - इसी के साथ साथ Fortwin 12 mg IV injection दिया गया। इसके बाद सर्जरी के लिए को अनुमति दी गयी। यह भी उल्लेख किया गया है कि Trachium 20 mg IV का इंजेक्शन भी दिया गया, जो Muscle relaxant के लिए आवश्यक थी, परंतु 10:55 एएम पर ही मरीज की पल्स कमजोर पड़ गयी तथा रेट भी धीमी हो गयी। ब्लड प्रेशर भी नीचे चला गया। यह क्रमश: 45 per mt तथा 80/60 हो गया, इसलिए Atropine Half Ampule 03 mg दिया गया और सुधार का इंतजार किया गया, परंतु संतोषजनक परिणाम नहीं रहा और पल्स अधिक कमजोर हो गयी, इसलिए मरीज को 100 प्रतिशत ऑक्सीजन पर रखा गया और इसके बाद 10:58 पर मरीज को कार्डियक अरेस्ट हुआ, जिसके लिए वांछित दवाई ऑपरेशन के लिए दिये गये। हर स्टेज पर मरीज को मेडिकल प्रोटोकॉल के अनुसार सेवाएं उपलब्ध करायी गयी। इलाज के दौरान किसी भी प्रकार की लापरवाही किसी भी स्तर पर कारित नहीं की गयी। लिखित कथन के साथ सम्पूर्ण इलाज से संबंधित दस्तावेज प्रस्तुत किये गये, जिनकी पुष्टि शपथ पत्र द्वारा की गयी तथा विपक्षी सं0 2 एवं 3 द्वारा अपना स्वतंत्र शपथ पत्र प्रस्तुत किया गया, इसलिए मेडिकल प्रोटोकॉल के अनुसार इलाज प्रदत्त करने का कथन किया गया।
- पक्षकारों के विद्धान अधिवक्ता को सुना तथा पत्रावली पर उपलब्ध साक्ष्य का अवलोकन किया गया।
- परिवादी के विद्धान अधिवक्ता ने लापरवाही का केवल एक तथ्य बहस के दौरान जाहिर किया और यह कि ऑपरेशन करने से पूर्व डॉक्टर अबरार द्वारा एनेस्थिसिया की पर्याप्त डोज नहीं दी गयी और सर्जन द्वारा पेट में चाकू का कट लगाया गया, जिसके कारण मरीज चिल्लायी और चिल्लाने के बाद पुन: दूसरी डोज दी गयी और यह डोज अत्यधिक थी, जिसके कारण मरीज कोमा में चली गयी और परिणामत: मरीज की मृत्यु कारित हो गयी, इसलिए विपक्षीगण द्वारा एकल एवं संयुक्त दायित्व के तहत क्षतिपूर्ति के लिए उत्तरदायी है।
- विपक्षीगण के विद्धान अधिवक्ता का कथन है कि सर्जरी के दौरान मरीज के शरीर में अचानक हाइपोटेंशन एवं ब्रेडी कार्डिया, कार्डियक अरेस्ट विकसित हो गया, जिसको नियंत्रित करने के लिए दवा दी गयी और सर्जरी रोक दी गयी। रोग के निदान मे मरीज द्वारा सुधार प्रकट नहीं किया गया। इस तथ्य की सम्पूर्ण जानकारी मरीज तथा उनके रिश्तेदारों को दी गयी थी। मेडिकल साहित्य के अनुसार अचानक कार्डियक अरेस्ट आना संभव है। आईसीयू के दौरान मरीज के शरीर के अंग स्टेबल रहे, परंतु अवचेतन अवस्था परिवर्तित होती रही, जिसके लिए न्यूरो फिजिशियन की सलाह ली गयी। पेट में जो टांके लगाये गये थे, वह 12वें दिन हटा दिये गये। घाव संतोषजनक रूप से भरा गया था। मरीज को के0जी0एम0यू0 के लिए रेफर किया गया, जिसके लिए स्वयं मरीज के रिश्तेदारों ने स्वीकृति प्रदान की थी, इसलिए विपक्षीगण के स्तर से इलाज में कोई लापरवाही नहीं बरती गयी। इलाज के दौरान कार्डियक अरेस्ट होने के कारण सर्जरी सम्पादित नहीं की जा सकी और मरीज ने इलाज का सही रेस्पोन्स नहीं दिया।
- पृष्ठ सं0 79 से 81 पर एनेस्थिसिया से पूर्व का रिकार्ड मौजूद है, जो लिखित कथन के साथ प्रस्तुत किये गये हैं। इन दस्तावेजों के अवलोकन से ऐसा जाहिर नहीं होता है कि एनेस्थिसिया के दो डोज डॉक्टर अबरार द्वारा दी गयी हो। मरीज के बीएचटी के अवलोकन से जाहिर होता है कि सर्जन के माध्यम में मरीज को कार्डियक अरेस्ट हुआ है, जिसको नियंत्रित करने के लिए इलाज प्रारंभ किया गया और डॉक्टर की संयुक्त सलाह के आधार पर सर्जरी को स्थगित किया गया। सर्जरी के दौरान कार्डियक अरेस्ट नामक बीमारी का उत्पन्न होना किसी भी डॉक्टर के नियंत्रण मे नहीं है। पत्रावली पर ऐसा कोई सबूत नहीं है कि जिससे यह जाहिर है कि डॉक्टर अबरार द्वारा एनेस्थिसिया की अधिक डोज दी गयी है, जिसके लिए मरीज कोमा में गयी हो, जबकि कार्डियक अरेस्ट आने तथा इसका इलाज मरीज को उपलब्ध कराने से संबंधित रिकार्ड पत्रावली पर मौजूद है। सर्जरी के दौरान जो चीरा लगाया गया था। 12 दिन बाद उसके टांके हटा दिये गये। घाव सहजता से भरा हुआ पाया गया। पत्रावली पर मौजूद दस्तावेज सं0 54 के अवलोकन से इस तथ्य की पुष्टि होती है, इसलिए गॉल ब्लेडर के स्टोन निकालने के लिए जो प्रक्रिया अपनायी गयी, उसमें किसी प्रकार की असावधानी या अनियमितता नहीं थी। इलाज के दौरान कार्डियक अरेस्ट आना किसी भी डॉक्टर के नियंत्रण से बाहर की स्थिति है, इसलिए इस दुर्घटना के कारण उत्पन्न परिस्थितियों के लिए विपक्षीगण को उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता। नजीर जैन बनाम मैसर्स सुपर स्पेशियलिटी हॉस्पिटल तथा अन्य में माननीय एनसीडीआरसी द्वारा यह निष्कर्ष दिया गया है कि जब डॉक्टर द्वारा एक उचित प्रक्रिया इलाज के लिए अपनायी जाती है जो मेडिकल साइंस में अनुज्ञेय है तब इस आधार पर डॉक्टर को उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता कि मरीज के साथ कोई दुर्घटना घटित हुई। डॉक्टर केवल उचित सावधानी के साथ अपना दायित्व पूर्ण कर सकते हैं। प्रस्तुत केस में भी जो स्थिति जाहिर होती है वह डॉक्टर के नियंत्रण से बाहर की है चूंकि ओपेन सर्जरी भी अनुज्ञेय है, इसलिए यह नहीं कहा जा सकता कि डॉक्टर द्वारा मेडिकल साइंस में ओपेन सर्जरी अनुज्ञेय न होते हुए भी गॉल ब्लेडर के स्टोन को निकालने के लिए ओपेन सर्जरी की गयी है, इसलिए विपक्षीगण के विरूद्ध किसी भी प्रकार की लापरवाही का कोई तथ्य साबित नहीं होता। क्षतिपूर्ति के संबंध में प्रस्तुत किया गया परिवाद खारिज होने योग्य है।
आदेश परिवाद खारिज किया जाता है। आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय एवं आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दे। (सुधा उपाध्याय)(सुशील कुमार) सदस्य सदस्य संदीप सिंह, आशु0 कोर्ट 3 | |