View 2091 Cases Against Courier
SHAMBHU DYAL filed a consumer case on 24 Feb 2015 against FAST FLIGHT COURIER LTD in the Churu Consumer Court. The case no is 170/2014 and the judgment uploaded on 18 May 2015.
प्रार्थी की ओर से श्री धन्नाराम सैनी अधिवक्ता उपस्थित। अप्रार्थी की ओर से श्री अभिषेक टावरी अधिवक्ता उपस्थित। प्रार्थी अधिवक्ता ने अपनी बहस में परिवाद के तथ्यों केा दौहराते हुए तर्क दिया कि प्रार्थी ने रक्षा बंधन की दिनांक 10.08.2014 के उत्सव के उपलक्ष में अपनी पत्नी की ओर से राखी का बोक्स चैन्नई डिलिवरी करने हेतु अप्रार्थी को दिनांक 31.07.2014 को दे दिया था जिस हेतु अप्रार्थी ने प्रार्थी से 150 रूपये शुल्क लिया था। अप्रार्थी ने प्रार्थी को राखीयां चैन्नई 3 दिवस में भेजने का आश्वासन दिया गया था। परन्तु प्रार्थी ने अपने रिश्तेदार से दिनांक 05.08.2014 को पता किया तो उनके द्वारा बताया गया कि राखीयां अभी तक प्राप्त नहीं हुई है जिस पर प्रार्थी अप्रार्थी के यहां बार-बार राखी पहुंचाने का निवेदन करता रहा। परन्तु अप्रार्थी प्रार्थी को झुठा आश्वासन देते रहे कि शीघ्र ही राखीयां चैन्नई पहुंचा दी जावेगी। परन्तु अप्रार्थी ने दिनांक 10.08.2014 तक राखी गनतव्य स्थान चैन्नई नहीं पहुंचाई। जिस कारण प्रार्थी, उसकी पत्नि, पिता व भाई की भावना को ठेस पहुंची। अप्रार्थी द्वारा प्रार्थी की राखीयां नहीं पहुंचा कर सेवादोष किया है। इसलिए प्रार्थी अधिवक्ता ने परिवाद स्वीकार करने का तर्क दिया है। अप्रार्थी अधिवक्ता ने प्रार्थी अधिवक्ता के तर्कों का विरोध किया और तर्क दिया कि प्रार्थी ने परिवाद मिथ्या व आधारहीन पेश किया है क्योंकि अप्रार्थी के द्वारा प्रार्थी की राखीयांे की डिलिवरी प्रार्थी द्वारा अंकित पते चैन्नई पर पहुंचा दी गयी। अप्रार्थी अधिवक्ता ने यह भी तर्क दिया कि प्रार्थी ने राखी वाले लिफाफे पर गलत पता अंकित किया था जिस कारण राखीयां वापस चूरू प्राप्त हुई जिसकी सूचना प्रार्थी को दी व प्रार्थी द्वारा सही पता लिखने पर पुनः बिना किसी शुल्क के मानवीय दृष्टीकोण अपनाते हुए चैन्नई डिलिवरी कर दी गयी। इस प्रकार अप्रार्थी का कोई सेवादोष नहीं है। अप्रार्थी अधिवक्ता ने यह भी तर्क दिया कि प्रार्थी ने प्रश्नगत डाक अप्रार्थी के यहां सौंपते समय यह नहीं बताया था कि प्रश्नगत डाक में राखीयां है। यदि प्रार्थी द्वारा डाक में राखीयां होने बाबत अप्रार्थी को बताया होता तो प्रार्थी से अतिरिक्त शुल्क वहन किया जाता। अप्रार्थी का कोई सेवादोष नहीं है। परिवाद खारिज करने का तर्क दिया।
प्रार्थी की ओर से परिवाद के समर्थन में स्वंय का शपथ-पत्र, कोरियर रसीद दस्तावेजी साक्ष्य के रूप में प्रस्तुत किया है। अप्रार्थी की ओर से राजीव शर्मा का शपथ-पत्र, पी.ओ.डी., फोटो प्रति डोक्स रन-शीट दस्तावेजी साक्ष्य के रूप में प्रस्तुत किया है। पक्षकारान की बहस सुनी गई। पत्रावली का ध्यान पूर्वक अवलोकन किया गया। उभय पक्षों के तर्कों पर मनन किया। मंच का निष्कर्ष निम्न प्रकार है।
वर्तमान प्रकरण में प्रार्थी द्वारा दिनांक 31.07.2011 को अप्रार्थी के यहां से चैन्नई हेतु डाक डिलिवर किया जाना, जिस हेतु प्रार्थी से 150 रूपये शुल्क लिया जाना स्वीकृत तथ्य है। विवादक बिन्दु केवल यह है कि अप्रार्थी ने प्रार्थी के द्वारा सौंपी गयी डाक को गन्तव्य स्थान चैन्नई नहीं पहुंचाया जो अप्रार्थी का सेवादोष है। अप्रार्थी अधिवक्ता ने अपनी बहस के समर्थन में इस मंच का ध्यान डोक्स रन-शीट दिनांक 06.08.2014 व पी.ओ.डी. कोपी रसीद दिनांक 31.07.2014 की ओर ध्यान दिलाया जिसका ध्यान पूर्वक अवलोकन किया गया। डोक्स रनशीट में अप्रार्थी के द्वारा दिनांक 06.08.2014 को प्राप्त होने वाली डाक के सम्बंध में प्रविष्टियां की गयी है। उक्त शीट में कुल 14 कोलम है। कोलम संख्या 10 में डाक संख्या आर.00200092205 त्मजनतद क्नम जव प्दबवउचसमजम ंकतमेे अंकित है व इसके आगे शम्भुदयाल के इंग्लिस में हस्ताक्षर है। 256090 टेलिफोन संख्या भी अंकित है। अप्रार्थी अधिवक्ता ने उक्त डोक्स रनशीट के आधार पर तर्क दिया कि उक्त शीट से स्पष्ट है कि प्रार्थी के द्वारा बुक करवायी गयी डाक पर पूर्ण पता नहीं होने के कारण डाक वापस चूरू आ गयी जिसकी सूचना प्रार्थी स्वंय का दी गयी। प्रार्थी ने डाक वापिस प्राप्ति हेतु अपने हस्ताक्षर व मोबाईल नम्बर भी अंकित किये है। इसी प्रकार अप्रार्थी अधिवक्ता के द्वारा प्रस्तुत पी.ओ.डी. काॅपी के अवलोकन के अनुसार उक्त काॅपी पर प्रश्नगत डाक की होम डिलिवरी अंकित करते हुए प्राप्त करने वाले व्यक्ति के रूप में सुनिता अग्रवाल के हस्ताक्षर है। अप्रार्थी अधिवक्ता ने उपरोक्त दस्तावेजों के आधार पर तर्क दिया कि प्रार्थी के द्वारा पूर्ण पता अंकन नहीं होने के कारण डाक पुनः चूरू कार्यालय में प्राप्त होने पर प्रार्थी को सूचना देकर प्रार्थी को पूर्ण पता अंकित करवाते हुए पुनः बिना शुल्क प्रार्थी द्वारा बताये गये सही पते पर भिजवा दी गयी। इसलिए अप्रार्थी का कोई सेवादोष नहीं है। परिवाद खारिज करने का तर्क दिया।
प्रार्थी अधिवक्ता ने अप्रार्थी अधिवक्ता के तर्कों का विरोध किया और तर्क दिया कि डाक अप्रार्थी के द्वारा चैन्नई नहीं भिजवायी गयी। प्रार्थी अधिवक्ता के उक्त तर्क विश्वसनीय प्रतीत नहीं होते क्येांकि अप्रार्थी के द्वारा प्रस्तुत डोक्स रनशीट व पी.ओ.डी. रसीद प्रस्तुत करने के पश्चात साबित करने का भार प्रार्थी पर था कि उसके द्वारा बुक करवायी गयी डाक गन्तव्य स्थान पर नहीं पहंुची। परन्तु प्रार्थी अधिवक्ता ने अपने तर्कों के सम्बंध में पत्रावली पर किसी भी प्रकार की कोई साक्ष्य या दस्तावेज प्रस्तुत नहीं किया। यहां तक कि प्रार्थी ने ऐसा कोई शपथ-पत्र भी प्रस्तुत नहीं किया कि अप्रार्थी द्वारा प्रस्तुत डोक्स रनशीट पर हस्ताक्षर और टेलीफोन नम्बर प्रार्थी के नहीं है व पी.ओ.डी. रसीद पर डाक प्राप्तकर्ता सुनीता अग्रवाल के साथ प्रार्थी का कोई पारिवारिक सम्बंध नहीं है तथा सुनीता के हस्ताक्षर भी अप्रार्थी द्वारा फर्जी व कुटरचित केवल परिवाद के जवाब को आधार देने हेतु अंकित किये है। इससे यही अवधारणा की जाती है कि डोक्स रनशीट पर प्रार्थी के व पी.ओ.डी. रसीद पर प्रार्थी के ही रिश्तेदार के हस्ताक्षर है। इसलिए प्रार्थी ने उपरोक्त हस्ताक्षरों के सम्बंध में खण्डन स्वरूप कोई शपथ-पत्र पत्रावली पर प्रस्तुत नहीं किया। इस प्रकार अप्रार्थी के द्वारा प्रस्तुत डोक्स रनशीट व पी.ओ.डी. रसीद से स्पष्ट है कि अप्रार्थी ने प्रार्थी की डाक को सुरक्षित गन्तव्य स्थान चैन्नई पहुंचा दिया था। फिर भी प्रार्थी ने मिथ्या आधारों पर अप्रार्थी के विरूद्ध लालच से वशीभूत होकर परिवाद पेश किया जिस कारण अप्रार्थी को बिना वजह अपना समय व धन व्यय कर अधिवक्ता नियुक्त करना पड़ा इसलिए मंच की राय में अप्रार्थी प्रार्थी से हर्जाना प्राप्त करने का अधिकारी है। वर्तमान प्रकरण में अप्रार्थी का कोई सेवादोष प्रतीत नहीं होता है। प्रार्थी का परिवाद अप्रार्थी के विरूद्ध मय हर्जाना खारिज किये जाने योग्य है।
अतः प्रार्थी का परिवाद अप्रार्थी के विरूद्ध धारा 26 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अन्तर्गत थ्तपअवसवने वत टमगंजपवने परिवाद पेश करने पर 1,000 रूपये कोस्ट पर खारिज किया जाता है। कोस्ट की राशि अप्रार्थी को प्रार्थी आदेश की दिनांक के 2 माह अन्दर-अन्दर अदा करेगा। पत्रावली फैसला शुमार होकर दाखिल दफ्तर हो।
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