Uttar Pradesh

StateCommission

A/2012/1283

Allahabad Bank - Complainant(s)

Versus

Faizabad Bar Association - Opp.Party(s)

Kamlesh Gupta

24 Feb 2022

ORDER

STATE CONSUMER DISPUTES REDRESSAL COMMISSION, UP
C-1 Vikrant Khand 1 (Near Shaheed Path), Gomti Nagar Lucknow-226010
 
First Appeal No. A/2012/1283
( Date of Filing : 13 Jun 2012 )
(Arisen out of Order Dated in Case No. of District State Commission)
 
1. Allahabad Bank
a
...........Appellant(s)
Versus
1. Faizabad Bar Association
a
...........Respondent(s)
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. Vikas Saxena PRESIDING MEMBER
 HON'BLE MRS. DR. ABHA GUPTA MEMBER
 
PRESENT:
 
Dated : 24 Feb 2022
Final Order / Judgement

(सुरक्षित)

राज्‍य उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।

                                                     

अपील सं0 :- 1283/2012

(जिला उपभोक्‍ता आयोग, फैजाबाद द्वारा परिवाद सं0- 101/2010 में     पारित निर्णय/आदेश दिनांक 14/05/2012 के विरूद्ध)

 

Allahabad Bank, through its Branch manager, Collectorate Branch, Court Compound, Lucknow Road, Distt. Faizabad U.P.

 

  •  

 

  •  

 

Faizabad Bar Association, Faizabad through its Secretary.

 

                                                                                     ……………Respondent  

समक्ष

  1. मा0 श्री विकास सक्‍सेना, सदस्‍य
  2. मा0 डा0 आभा गुप्‍ता,   सदस्‍य

उपस्थिति:

अपीलार्थी की ओर से विद्वान अधिवक्‍ता:-श्री कमलेश गुप्‍ता, एडवोकेट

प्रत्‍यर्थी की ओर से विद्वान अधिवक्‍ता:- श्री सतीश श्रीवास्‍तव, एडवोकेट 

दिनांक:-23.03.2022

माननीय श्री विकास सक्‍सेना, सदस्‍य द्वारा उदघोषित

निर्णय

  1.         जिला उपभोक्‍ता आयोग, फैजाबाद द्वारा परिवाद सं0- 101/2010, फैजाबाद बार एसोसिएशन बनाम इलाहाबाद बैंक व अन्‍य में पारित निर्णय/आदेश दिनांक 14/05/2012 के विरूद्ध यह अपील प्रस्‍तुत की गयी है
  2.         परिवादी द्वारा परिवाद इन आधारों पर प्रस्‍तुत किया गया कि परिवादी जिला मुख्‍यालय फैजाबाद में कार्यरत अधिवक्‍ताओं का एक संघ है, जिसका पंजीकरण सोसायटी रजिस्‍ट्रीकरण अधिनियम के अंतर्गत है। अपीलार्थी इलाहाबाद बैंक की शाखा अधिवक्‍ता संघ परिसर, कलेक्‍ट्रेट, फैजाबाद में परिवादी संस्‍था का खाता है, जिसमें परिवादी संस्‍था द्वारा समय-समय पर लेन-देन किया जाता है। परिवादी संस्‍था ने अपने सदस्‍यों के लाभ के लिए एक ‘’कन्‍या धन योजना’’ का खाता इलाहाबाद बैंक उपरोक्‍त की शाखा में खोला था, जिसका खाता सं0 3492 पुराना नम्‍बर तथा नया नम्‍बर 202321049342 है, इस खाते से संघ के पात्र सदस्‍यों पहले रूपये 11,000/- के अनुदान का भुगतान किया जाता रहा, कुछ समय पूर्व यह धनराशि घटाकर रूपये 5,100/- रूपये दी गयी। दिनांक 18.11.2009 को संघ के उपरोक्‍त खाते की पास बुक बैंक से इन्‍ट्री होकर आयी तो सम्‍बंधित लिपिक ने देखा कि दिनांक 20.10.2009 को रूपये 35,000/- तथा 23.10.2009 को रूपये 45,000/- निकाले गये हैं। उक्‍त धनराशि का चेक परिवादी संघ द्वारा निर्गत नहीं किये गये थे। संबंधित लिपिक द्वारा संघ के सचिव एवं अन्‍य पदाधिकारियों को सूचित किया, क्‍योंकि खातों का संचालन सचिव एवं कोषाध्‍यक्ष द्वारा संयुक्‍त रूप से किया जाता है। उपरोक्‍त जानकारी होने पर तुरंत अभिलेखों की जांच की गयी तो ज्ञान में आया कि सचिव व कोषाध्‍यक्ष के फर्जी हस्‍ताक्षर बनाकर एवं बियरर चेक के माध्‍यम से उपरोक्‍त धनराशि का भुगतान कर ली गयी है। अपीलार्थी बैंक की संबंधित शाखा को बताया गया कि उक्‍त भुगतान संघ की किसी पदाधिकारियों द्वारा नहीं किया गया है। बाद में चेक बुक देखने पर ज्ञात हुआ कि चेकबुक सं0 518181 व 518185 गायब मिली। इन्‍हीं चेकों के माध्‍यम से रूपये 35,000/- तथा 45,000/- कुल 80,000/- का भुगतान परिवादी के खातों से कर दिया गया। इस उपरोक्‍त चेकों पर संघ के सक्षम पदाधिकारियों के हस्‍ताक्षर नहीं थे, बल्कि हस्‍ताक्षर कूटरचित थे, सक्षम पदाधिकारियों के हस्‍ताक्षर बैंक में मौजूद नमूना हस्‍ताक्षरों से कतई मेल नहीं खाते हैं, जिसके बावजूद बैंक अधिकारियों व कर्मचारियों ने उक्‍त चेकों को बिना मिलान किये हुये पास कर दिया, संघ द्वारा संबंधित बैंक से धनराशि जमा करने के लिए कहा गया किन्‍तु उन्‍होंने इंकार कर दिया, जिससे व्‍यथित होकर यह परिवाद प्रस्‍तुत किया गया है।
  3.         परिवाद में विपक्षी बैंक ने अपना उत्‍तर पत्र प्रस्‍तुत किया तथा उसमें कहा गया कि उपरोक्‍त भुगतान बियरर चेक के माध्‍यम से लिये गये। बियरर चेक के मामले में चेक के धारक को धनराशि का भुगतान करके बैंक का उत्‍तरदायित्‍व समाप्‍त हो जाता है। अत: उपरोक्‍त धनराशि देने के लिए बैंक बाध्‍य नहीं है न ही बैंक का कोई उत्‍तरदायित्‍व इस संबंध में बनता है। बैंक द्वारा अपनी सेवा में कमी नहीं की गयी है। इस संबंध में प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज करायी गयी है। परिवादी संघ अपीलार्थी बैंक से क्षतिपूर्ति पाने का अधिकारी नहीं है। परिवादी की मांग पर अपीलार्थी बैंक द्वारा उन्‍हें 100 पन्‍नों की एक चेकबुक प्रदान की गयी थी और पदाधिकारियों एवं संघ की लापरवाही के कारण चेक सं0 1518181 एवं 1518185 किसी व्‍यक्ति द्वारा गायब कर दिये गये, उन चेकों पर पर संघ के पदाधिकारियों के हस्‍ताक्षर थे व मुहर लगी हुई थी। यह चेक एक व्‍यक्ति कृष्‍ण कुमार के नाम से निर्गत थे। बैंक द्वारा जारी चेक बुक को सुरक्षित रखने का दायित्‍व परिवादी का है न कि बैंक का। बैंक ने उचित प्रकार से धनराशि की अदायगी की है। इस संबंध में प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज हो चुकी है तथा आपराधिक वाद का मामला दाण्डिक न्‍यायालय फैजाबाद में विचाराधीन है। अपीलार्थी को उपरोक्‍त चेकों की धनराशि का भुगतान का दोषी नहीं माना जा सकता है। बैंक को समाचार पत्र के माध्‍यम से दिनांक 23.06.2010 को यह पता चला कि उक्‍त        धनराशि के गबन के मामले में बार एसोसिएशन के नाम व कोषाध्‍यक्ष को रूपये 25,000-25,000/- 02 किश्‍तों में भुगतान किये जाने के आदेश दिये गये थे। इस संबंध में विपक्षी का कोई उत्‍तरदायित्‍व नहीं बनता है। इस आधार पर परिवाद निरस्‍त किये जाने की प्रार्थना की गयी है।
  4.         उभय पक्ष को सुनवाई का अवसर दिये जाने के उपरान्‍त परिवादी का परिवाद इस आधार पर आज्ञप्‍त किया गया है कि पत्रावली पर दाखिल प्रपत्र में विधि विज्ञान, प्रयोगशाला, महानगर, लखनऊ द्वारा हस्‍ताक्षर की जांच रिपोर्ट दिनांकित 22.01.2010 है, जिससे प्रमाणित है, चेक पर संघ के सक्षम अधिकारी के हस्‍ताक्षर नहीं है। विपक्षी बैंक ने मिलान करने का इस आधार पर परिवाद आज्ञप्‍त किया, जिससे व्‍यथित होकर यह अपील प्रस्‍तुत की गयी है।
  5.         अपील में मुख्‍य रूप से यह आधार लिये गये हैं परिवादी धारा           2 (i) (d)  उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम 1986 में परिभाषित शब्‍द उपभोक्‍ता की श्रेणी में नहीं आता है। प्रश्‍नगत खाते के संबंध में जारी चेकबुक को सुरक्षित रखने का उत्‍त्‍रदायित्‍व परिवादी संघ का था, जिससे इसका उत्‍तरदायित्‍व किसी व्‍यक्ति द्वारान किया जा सके। परिवादी की लापरवाही के कारण ही फर्जी तरीके से रूपये 75,000/- लापरवाही के कारण फर्जी तरीके से निकाले गये, जिसमें बैंक का कोई उत्‍तरदायित्‍व नहीं है, क्‍योंकि इस पर  हस्‍ताक्षरों के साथ-साथ संघ की मुहर भी लगी हुई थी। विद्धान जिला फोरम ने अधिवक्‍ता संघ फैजाबाद के दबाव के कारण यह निर्णय दिया है। सम्‍व्‍यवहार के संबंध में एक दाण्डिक वाद भी लम्बित है, जबकि इस उत्‍तरदायित्‍व का निर्णय न आ जाये बैंक को उत्‍तरदायित्‍व नहीं माना जा सकता है। इन आधारों पर यह अपील प्रस्‍तुत की गयी है।
  6.         अपीलार्थी के विद्धान अधिवक्‍ता श्री कमलेश गुप्‍ता तथा प्रत्‍यर्थी के विद्धान अधिवक्‍ता श्री सतीश श्रीवास्‍तव को विस्‍तृत रूप से सुना गया। पत्रावली पर उपलब्‍ध समस्‍त अभिलेख का अवलोकन किया। तत्‍पश्‍चात पीठ के निष्‍कर्ष निम्‍न प्रकार से हैं:-
  7.        प्रश्‍नगत निर्णय के अवलोकन से स्‍पष्‍ट होता है कि विद्धान जिला फोरम ने इस आधार पर परिवाद आज्ञप्‍त किया है कि पत्रावली पर दाखिल प्रपत्र एवं विधि विज्ञान, प्रयोगशाला, महानगर, लखनऊ पर जांच रिपोर्ट से प्रमाणित है कि प्रश्‍नगत जमा पर संघ के सक्षम पदाधिकारियों के हस्‍ताक्षर नहीं है। निर्णय में निम्‍नलिखित प्रकार से आया है:-

            ‘’पत्रावली पर दाखिल प्रपत्रों में विधि विज्ञान प्रयोगशाला, महानगर लखनऊ द्वारा दिनांक 22.01.2010 की हस्‍ताक्षर के जांच की रिपोर्ट से प्रमाणित है कि चेक पर संघ के सक्षम पदाधिकारी के हस्‍ताक्षर नहीं है। विपक्षी बैंक ने नमूना हस्‍ताक्षर से मिलान करने में भूल की है और गलत हस्‍ताक्षरित चेकों का भुगतान करके अपनी सेवा में कमी की है।‘’

  1.         निर्णय से स्‍पष्‍ट है कि विद्धान जिला फोरम के समक्ष विधि विज्ञान प्रयोगशाला, लखनऊ की रिपोर्ट प्रस्‍तुत की गयी, जिससे यह प्रमाणित हुआ कि प्रश्‍नगत चेकों पर सक्षम व्‍यक्तियों के हस्‍ताक्षर नहीं थे तथा चेकों पर हस्‍ताक्षर बैंक में उपलब्‍ध खाताधारक के रूप में संघ के सचिव व कोषाध्‍यक्ष के हस्‍ताक्षरों और चेक पर हस्‍ताक्षरों को भिन्‍न-भिन्‍न बताया गया है। अपील की पत्रावली मे संलग्‍नक-7 के रूप में इलाहाबाद बैंक में खाते पर हस्‍ताक्षर तथा संलग्‍नक-9 में प्रश्‍नगत चेकों पर हस्‍ताक्षरों के मिलान करने से भी देखने से यह हस्‍ताक्षर भिन्‍न प्रतीत होते हैं। विद्धान जिला फोरम ने उचित प्रकार से माननीय राष्‍ट्रीय आयोग द्वारा पारित निर्णय अब्‍दुल रज्‍जाक व अन्‍य प्रति साउथ इंडियन बैंक लिमिटेड III (2000)  CPJ PAGE 20 (N.C) पर आधारित करते हुए यह दिया है कि यदि बैंक द्वारा चेकों पर हस्‍ताक्षरों के मिलान उचित प्रकार से नहीं किये जा रहे हैं तथा बिना उचित प्रकार से मिलान करते हुए चेक की धनराशि बैंक द्वारा प्राप्‍त करा दी गयी है तो उसका उत्‍तरदायित्‍व बैंक पर ही बनता है।
  2.         उक्‍त निर्णय के तथ्‍य माननीय सर्वोच्‍च न्‍यायालय द्वारा पारित केनरा बैंक प्रति केनरा सेल्‍स कारपोरेशन तथा अन्‍य 1987 II S.C.R Page 1138 पर वह मिलता जुलता है। माननीय सर्वोच्‍च न्‍यायालय द्वारा इस निर्णय में यह निर्णीत किया है कि यदि बैंक द्वारा चेक के हस्‍ताक्षरों का मिलान उचित प्रकार से बैंक में उपलब्‍ध खातों से नहीं किया गया है तो चेक की धनराशि आहरित हो जाने का उत्‍तरदायित्‍व बैंक पर ही जायेगा।
  3.         माननीय राष्‍ट्रीय आयोग द्वारा उपरोक्‍त निर्णय को निर्णय एन0 वेकन्‍ना प्रति आंध्रा बैंक I 2006 CPJ PAGE 132 (N.C) मे भी अनुश्ररित किया गया। इस निर्णय में भी माननीय राष्‍ट्रीय आयोग द्वारा यह निर्णीत किया गया है कि यदि बैंक में उपलब्‍ध खाते पर हस्‍ताक्षर का मिलान चेकों के आहरण में चेकों पर उपलब्‍ध हस्‍ताक्षर में उचित प्रकार से नहीं किया गया है तो धनराशि आहरित हो जाने पर इसका उत्‍तरदायित्‍व संबंधित बैंक पर ही होगा।
  4.          एक अन्‍य निर्णय बसंत पार्वती सीएचएस लिमिटेड प्रति स्‍टेट बैंक ऑफ इंडिया प्रकाशित III (2014) CPJ page 367 (N.C) भी इस संबंध में उल्‍लेखनीय है। इस निर्णय में भी राष्‍ट्रीय आयोग द्वारा उपरोक्‍त निर्णयों के निष्‍कर्ष को दोहराया है, यदि बैंक में प्रस्‍तुत किये गये चेक पर उपलब्‍ध हस्‍ताक्षरों का मिलान करने में बैंक खाते में उपलब्‍ध हस्‍ताक्षरों से मिलान में त्रुटि हुई है तो चेक के कारण अनाधिकृत रूप से आहरित धनराशि का उत्‍तरदायित्‍व बैंक के ऊपर ही जाता है एवं बैंक इस धनराशि को देने का उत्‍तरदायित्‍व रखता है।
  5.        माननीय राष्‍ट्रीय आयोग एवं माननीय सर्वोच्‍च न्‍यायालय द्वारा उपरोक्‍त निर्णयों को दृष्टिगत करते हुए यह पीठ इस मत की है कि विद्धान जिला उपभोक्‍ता फोरम ने उचित प्रकार से चेकों पर उपलब्‍ध हस्‍ताक्षरों का मिलान बैंक मे उपलब्‍ध खातों पर उपलब्‍ध खातों के मिलान में बैंक द्वारा जो त्रुटि की गयी है। यह निष्‍कर्ष विशेषज्ञ रिपोर्ट विधि विज्ञान प्रयोगशाला, महानगर,लखनऊ की जांच आख्‍या से स्‍पष्‍ट है कि यह हस्‍ताक्षर परिवादी संघ के पदाधिकारियों के नहीं है। अत: निश्‍चय ही बैंक के स्‍तर से अपने खाताधारक के हस्‍ताक्षर को सुरक्षित हस्‍ताक्षर से मिलान करने में त्रुटि हुई है। इस प्रकार बैंक के स्‍तर पर सेवा में कमी हुई है। इसके लिए अपीलार्थी बैंक का उत्‍तरदायित्‍व है कि विद्धान जिला उपभोक्‍ता फोरम ने उचित प्रकार से परिवादी का परिवाद उक्‍त सेवा की त्रुटि मानते हुए आज्ञप्‍त किया है, निष्‍कर्ष एवं निर्णय में कोई त्रुटि व विसंगति प्रतीत नहीं होती है, जिसक आधार पर अपील के स्‍तर में निर्णय में हस्‍ताक्षर करने की आवश्‍यकता पड़े। निर्णय पुष्‍ट होने योग्‍य है एवं अपील निरस्‍त होने योग्‍य है।   

 

 

  •  

 

अपील निरस्‍त की जाती है। जिला उपभोक्‍ता आयोग द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश की पुष्टि की जाती है।

अपील में उभय पक्ष अपना वाद व्‍यय स्‍वयं वहन करेंगे।

              आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय/आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें। 

 

 

       (विकास सक्‍सेना)                       (डा0 आभा गुप्‍ता)

          सदस्‍य                                 सदस्‍य

 

         संदीप, आशु0 कोर्ट नं0-3

 

 

 

 

 

 
 
[HON'BLE MR. Vikas Saxena]
PRESIDING MEMBER
 
 
[HON'BLE MRS. DR. ABHA GUPTA]
MEMBER
 

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