(मौखिक)
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
अपील संख्या-489/2015
टाटा मोटर्स फाइनेन्स लिमिटेड, 84|/105, जुगुल भवन, अफीम कोठी, निकट कैलाश मोटर्स, जी.टी. रोड, कानपुर एण्ड स्टेट आफिस-5th फ्लोर, रतन स्क्वायर, विधान सभा मार्ग, लखनऊ, द्वारा मैनेजर।
अपीलार्थी/विपक्षी सं0-1
बनाम्
1. फईम पुत्र श्री कासिम, 126, प्रेम नगर, उरई, जिला जालौन।
2. बैंक आफ बड़ौदा, सावित्री प्लाजा, राजमार्ग, उरई, जिला जालौन, द्वारा मैनेजर।
3. शन्टी बन्टी आटोमोबाइल्स लि0, 1243/474 फजलगंज, कल्पी रोड, कानपुर, द्वारा मैनेजर।
प्रत्यर्थीगण/परिवादी/विपक्षी सं0-2 व 3
समक्ष:-
1. माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य।
2. माननीय श्री विकास सक्सेना, सदस्य।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : श्री राजेश चड्ढा।
प्रत्यर्थीगण की ओर से उपस्थित : कोई नहीं।
दिनांक: 31.10.2022
माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
1. परिवाद संख्या-174/2013, फईम बनाम टाटा मोटर्स फाइनेन्स लि0 तथा दो अन्य में विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग, जालौन स्थान उरई द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक 17.04.2014 के विरूद्ध यह अपील विपक्षी संख्या-1 की ओर से देरी से प्रस्तुत की गई है। अपील प्रस्तुत करने में हुई देरी को क्षमा किए जाने हेतु प्रस्तुत किए गए आवेदन में दिया गया स्पष्टीकरण पर्याप्त पाते हुए देरी माफ की जाती है।
2. प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश द्वारा विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग ने परिवाद अंशत: स्वीकार करते हुए विपक्षी संख्या-1 को आदेशित किया है कि परिवादी द्वारा अंकन 12,640/- रूपये प्रतिमाह की दर से किश्तों की अदायगी की जाएगी तथा दो किश्तों की राशि समायोजित की जाएगी।
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3. परिवाद के तथ्यों के अनुसार परिवादी ने एक टाटा 407 विपक्षी संख्या-3 से अंकन 5,27,000/- रूपये में खरीदा था। अंकन 3,48,600/- रूपये विपक्षी संख्या-1 से 3 वर्ष के लिए 5.1/2 प्रतिशत की दर से फाइनेन्स कराया था, जिसकी किश्तें अंकन 12,640/- रूपये थी, जिसका भुगतान विपक्षी संख्या-2 को परिवादी के खाता संख्या-10460100004430 से करना था। खाते की जांच करने पर ज्ञात हुआ कि 25 किश्तें अंकन 12,640/- रूपये की काटी गई। दिनांक 02.07.2013 एवं दिनांक 02.08.2013 को अंकन 20,377/- रूपये की किश्त निकाली गई, जबकि इस राशि का भुगतान परिवादी की अनुमति के बिना नहीं किया जाना चाहिए था, इसलिए इन दो किश्तों की राशि को समायोजित करने के लिए तथा अंकन 20,377/- रूपये की किश्त वसूल न की जाए, इस अनुतोष के साथ परिवाद प्रस्तुत किया गया, जो विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा स्वीकार कर लिया गया।
4. इस निर्णय एवं आदेश को इन आधारों पर चुनौती दी गई है कि विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग ने विधि विरूद्ध निर्णय एवं आदेश पारित किया है। प्रथम 25 किश्तों की राशि अंकन 12,640/- रूपये थी और इसके पश्चात शेष किश्तों की राशि अंकन 20,377/- रूपये थी, इसलिए 25 किश्ते समाप्त हो जाने के पश्चात वैधानिक रूप से अंकन 20,377/- रूपये की दो किश्तें काटी गई, इसलिए इसे अंकन 12,640/- रूपये की किश्त मानते हुए शेष राशि को समायोजित करने का आदेश अवैध है। इसी प्रकार अंकन 20,377/- रूपये के स्थान पर केवल 12,640/- रूपये की किश्त वसूल करने का आदेश भी अवैध है।
5. अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता श्री राजेश चड्ढा उपस्थित आए। प्रत्यर्थीगण की ओर से कोई उपस्थित नहीं है। प्रत्यर्थी संख्या-1 की ओर से आपत्ति एवं विद्वान अधिवक्ता श्री शिव प्रकाश गुप्ता का वकालतनामा पत्रावली पर मौजूद है, इससे स्पष्ट होता है कि उन पर तामील पर्याप्त है। प्रत्यर्थी संख्या-2 एवं 3 के विरूद्ध कोई अनुतोष नहीं दिलाया गया है। अत: केवल अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता को सुना गया तथा प्रश्नगत निर्णय/आदेश एवं पत्रावली का अवलोकन किया गया।
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6. पक्षकारों के मध्य निष्पादित ऋण संव्यवहार के करार की प्रति पत्रावली पर मौजूद है, जिसके अवलोकन से जाहिर होता है कि प्रथम 25 किश्तें अंकन 12,640/- रूपये देना तय हुआ था तथा 26 से लेकर 35 किश्त अंकन 20,377/- रूपये की थी, इसलिए बैंक द्वारा वैधानिक रूप से अंकन 20,377/- रूपये की कटौती परिवादी के खाते से करने के बाद विपक्षी संख्या-1 को अदा की गई है, जो विधि सम्मत है, इसलिए अंकन 12,640/- रूपये की किश्त मानते हुए अवशेष राशि को समायोजित करने का आदेश देने का कोई अवसर नहीं था। इसी प्रकार किश्त संख्या-26 लगायत 35 को अंकन 12,640/- रूपये की दर से वसूलने का आदेश देने का भी कोई अधिकार विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग में निहित नहीं था, क्योंकि किश्तों का भुगतान तथा उसकी राशि का निर्धारण दोनों पक्षकारों की आपसी सहमति से निष्पादित करार के अनुसार पूर्व में किया जा चुका था, इस करार में किसी प्रकार की अनुचित व्यापार प्रणाली अपनाए जाने का उल्लेख स्वंय परिवाद पत्र में नहीं है, इसलिए विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा तथ्यों एवं साक्ष्यों के विपरीत निर्णय एवं आदेश पारित किया गया है, जो अपास्त होने और अपील स्वीकार होने योग्य है।
आदेश
7. प्रस्तुत अपील स्वीकार की जाती है। विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक 17.04.2014 अपास्त किया जाता है तथा परिवाद खारिज किया जाता है।
उभय पक्ष अपना-अपना व्यय भार स्वंय वहन करेंगें।
आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दे।
(विकास सक्सेना) (सुशील कुमार)
सदस्य सदस्य
लक्ष्मन, आशु0,
कोर्ट-2