Uttar Pradesh

Ghazipur

CC/98/2013

Dudhnath Ram - Complainant(s)

Versus

Executive Engineer Nalkup Prakhand- Second - Opp.Party(s)

Shri Janardan Sharma

11 Sep 2015

ORDER

DISTRICT CONSUMER DISPUTES REDRESSAL FORUM GHAZIPUR
COLLECTORATE COMPOUND, DISTRICT- GHAZIPUR
 
Complaint Case No. CC/98/2013
 
1. Dudhnath Ram
S/O Late Shri Rama Ram, Village- Ramrepur, Post- Saidpur, Pargana & Tehsil- Saidpur, District- Ghazipur. Present Add- Village- Garthauli, Post- Paharpurkala,Pargana & Tehsil- Saidpur,District-Ghazipur
...........Complainant(s)
Versus
1. Executive Engineer Nalkup Prakhand- Second
Ghazipur
2. Treasury Officer
Treasury
Ghazipur
............Opp.Party(s)
 
BEFORE: 
 JUDGES HONOURABLE MR Ram Prakash Verma PRESIDENT
 HON'BLE MRS. Paramsheela MEMBER
 
For the Complainant:Shri Janardan Sharma, Advocate
For the Opp. Party: Shri Shankar Singh Yadav, Shri Bhrigunath Singh Yadav, Advocate
ORDER

परिवादी ने यह परिवाद इस आशय से योजित किया है कि  विपक्षी सं01 को निर्देश दिया जाय कि वह एरियर की धनराशि 163079/- का भुगतान वर्ष 2010 से भुगतान की तिथि तक 18% वार्षिक ब्‍याज सहित करेपरिवादी ने यह भी चाहा है कि मानसिक आघात तथा वाद व्‍यय के लिए परिवादी को रू0 2000/-  भी विपक्षी से दिलाये जायॅ।

          परिवाद पत्र के अनुसार परिवादी का संक्षेप में कथन इस प्रकार है कि परिवादी नलकूप विभाग में अवर अभियन्‍ता पद का वेतन पाते हुए दिनांक 01-02-2008 को सेवानिवृत्‍त हुआ था। पत्र दिनांकित 28-08-2010 द्वारा दिनांक 01-06-99 से 01-04-2007 तक वेतन वृद्धि का एरियर परिवादी को प्रदान किया गया था। उक्‍त पत्र के क्रम में परिवादी ने विपक्षी से एरियर का भुगतान करने का अनुरोध किया तो उसे बताया गया कि भुगतान के लिए बीजक विपक्षी सं02 को भेज दिया गया है। वहॉ से पास होने के उपरांत परिवादी को भुगतान कर दिया जायेगा। परिवादी को बार-बार दैाड़ाने के बावजूद, विपक्षी सं01 ने वर्ष2010 तथा 2011 में एरियर का भुगतान नहीं किया तथा परिवादी को यह भी बताया कि बजट के अभाव में एरियर का भुगतान नहीं हो पा रहा है। द्वितीय आदेश दिनांकित 10-10-2012 के बावजूद विपक्षी सं01 ने परिवादी के एरियर का भुगतान नहीं किया। सूचना का अधिकार अधिनियम के अधीन सूचना मॉंगने पर विपक्षी सं01 ने सूचित किया कि परिवादी का एरियर रूपये 163079/- का बना है। विपक्षी सं02 ने सूचना का अधिकार अधिनियम के अधीन सूचना मॉंगने पर सूचित किया कि प्री ऑडिट होने के कारण कोषागार द्वारा बीजक प्राप्‍त नहीं किया गया। परिवादी को उसके सेवानिवृत्ति के समय ही समस्‍त एरियर का भुगतान कर दिया जाना चाहिए था। विपक्षी सं01 द्वारा दिनांक 24-12-2012 को विपक्षी सं0 02 को बीजक भेज देने मात्र से विपक्षी सं01 अपने दायित्‍व  से बच नहीं सकता।  विपक्षी सं01 द्वारा  दूषित भावना से सेवा में कमी की गयी है। यदि परिवादी को एरियर का भुगतान वर्ष 2010 में कर दिया गया होता तो वह धनराशि बैंक में  जमा होने की दशा में परिवादी को काफी धन ब्‍याज के रूप में मिलता, इसलिए एरियर की धनराशि पर परिवादी 18% वार्षिक की दर से ब्‍याज पाने का अधिकारी है। विपक्षी सं01 ने दिनांक 15-04-2013 को एरियर का भुगतान करने से मना कर दिया अत: परिवाद योजित किया गया है। परिवादी की ओर से यह भी कहा गया है कि विपक्षी सं01 द्वारा उसे हैरान व परेशान किया गया है और उसके एरियर का भुगतान न किये जाने के कारण उसे उक्‍त धनराशि 18% बयाज के साथ भुगतान किया जाना चाहिए।

 

          विपक्षी सं01 ने अपने लिखित कथन में यह स्‍वीकार किया है कि परिवादी क‍थित पद का वेतन पाते हुए दिनांक 01-02-2008 को सेवानिवृत्‍त हुआ था। विपक्षी सं01 की ओर से  यह भी स्‍वीकार किया गया है कि पत्र दिनांकित 28-08-2000 द्वारा परिवादी को दिनांक 01-06-99 से 01-04-2007 तक की  अवधि के लिए वेतन वृद्धि का एरियर देय था परिवादी द्वारा परिवाद पत्र में किये गये शेष कथनों को विपक्षी सं01 ने स्‍वीकार नहीं किया है। उसकी ओर से आगे कहा गया है कि परिवादी को कोई वाद कारण उत्‍पन्‍न नहीं हुआ है। परिवादी के वेतन वृद्धि एरियर का बीजक संख्‍या 5357 दिनांक 11-12-2012 को विपक्षी सं02 को भेजा गया था लेकिन आपत्ति लगाकर वापस कर दिया गया था। आपत्ति समाप्‍त करने के उपरांत  दिनांक 24-12-2012 को पुन: विपक्षी सं02 को बीजक भेजा गया लेकिन न तो इसे पास करके वापस भेजा गया, न ही लौटाया गया। परिवादी का यह कथन गलत है कि प्रश्‍नगत बीजक हरिवंश यादव द्वारा वापस विपक्षी सं01 को भेजा गया था। विपक्षी सं02 के पत्र दिनांकित 29-05-2013 के सन्‍दर्भ में पुन: बिल बनाकर विपक्षी सं02 को भेजा गया और दिनांक 15-06-2013 को ई-पेमेण्‍ट  के जरिये परिवादी के खाता संख्‍या 488702010009677 में एरियर की धनराशि भेज दी गयी । परिवादी को परेशान नहीं किया गया है। विपक्षी सं01 की ओर एरियर का अब कोई धनराशि बकाया नहीं है। परिवादी 18% की दर से ब्‍याज पाने का अधिकारी नहीं है। सरकारी कर्मचारी के वेतन तथा एरियर से सम्‍बन्धित विवाद को तय करने का क्षेत्राधिकार इस फोरम को नहीं है। परिवादी का परिवाद पोषणीय न होने के कारण खारिज होने योग्य है।

 

          विपक्षी सं01 व 2 को नोटिस भेजी गयी। विपक्षी सं01 ने अपना प्रतिवाद पत्र प्रस्‍तुत किया। विपक्षी सं02 ने कोई प्रतिवाद पत्र प्रस्‍तुत नहीं किया, उसकी ओर से सुनवाई की तिथि पर भी कोई उपस्थित नहीं आया। अत: उसके विरुद्ध एक पक्षीय सुनवाई की गयी।

 

          परिवादी ने अपने कथन के समर्थन में शपथ पत्र कागजसंख्‍या  24ग तथा अभिलेख कागज सं0 5गतथा 10ग प्रस्‍तुत करने के साथ ही लिखित बहस कागज सं0 28ग प्रस्‍तुत की गयी।          

 

          विपक्षी सं01 ने अपने कथन के समर्थन में अभिलेख कागज सं015ग, 19ग तथा 21ग प्रस्‍तुत करने के साथ ही लिखित हस 27ग पत्रावली पर प्रस्‍तुत किये हैं ।

          परिवादी के अधिवक्‍ता  की बहस सुनी गई।विपक्षी गण की ओर से बहस करने हेतु कोई उपस्थित नहीं हुआ।उपलब्‍ध साक्ष्‍य व लिखित बहस का परिशीलन किया गया।

          बहस के दौरान परिवादी की ओर से यह स्‍वीकार किया गया कि उसके एरियर की धनराशि रू0163079-00/- दिनांक 15-06-2013 को उसके खाते में जमा हो चुकी है। उक्‍त धनराशि परिवादी के खाते में जमा होने की  पुष्टि  पत्रावली पर उपलबध अभिलेख कागज संख्‍या 21ग तथा 15ग से भी होती है, ऐसी स्थिति में अब एरियर की धनराशि बकाया नहीं रह गई है। परिवादी का कहना है कि उसे अब वाद व्‍यय के अलावा दिनांक 28-08-2010 से एरियर की धनराशि जमा होने की दिनांक 15-06-2013 तक की अवधि के लिए रू0 163079-00/- पर 18% वार्षिक दर से ब्‍याज दिलाया जाय।

 

          विपक्षी सं01 की ओर से अपने उत्‍तर पत्र के प्रस्‍तर -15 में कहा गया हे कि यह परिवाद एक सरकारीकर्मचारी परिवादी ने अपने सेवा काल के एरियर के भुगतान के सम्‍बन्‍ध में योजित किया है। ऐसे विवाद का निर्णय करने का  क्षेत्राधिकार इस फोरम को नहीं है ओर इस फोरम के समक्ष यह परिवाद पोषणीय नहीं है उक्‍त प्रस्‍तर के कथन का  खण्‍डन परिवादी की ओर से किया गया है।

 

          उपभोक्‍ता फोरम के समक्ष  परिवाद उपभोक्‍ता द्वारा सेवा प्रदाता द्वारा सेवा में कमी की अथवा त्रुटि करने  की दशा में ही पोषणीय होता है। उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम 1986 की धारा-2(1)(डी) में शब्‍द उपभोक्‍ता को  परिभाषित किया गया है। सरकारी  सेवक सरकार को अपनी सेवाऍ प्रदान करता हे बदले में  सरकार उसे वेतन प्रदान करती है ऐसी दशा में  न तो सरकार को सवा  प्रदाता की श्रेणी में माना जा सकता है और न सरकारी  सेवक उसका उपभोक्‍ता  माना जा सकता है।

 

          सिविल अपील संख्‍या 7092/1996 स्‍टेट आफ उड़ीसा बनाम डिवीजनल मैनेजर एल.आई;सी. में मा0 उच्‍चतम न्‍यायालय ने प्रतिपादित किया है कि राजकीय सेवकों को उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम की परिधि से बाहर रखा गया है, वे किसी अन्‍य फोरम के समक्ष कार्यवाही करके समुचित अनुतोष प्राप्‍त  कर सकते हैं। ए आई आर 1996 एस सी 550 इण्डियन मेडिकल असोसिएशन बनाम वी.पी. शान्‍ता मामले में मा0 उच्‍चतम न्‍यायालय ने प्रतिपादित किया है कि राजकीय अस्‍पतालों में नि:शुलक सेवा प्रदान की जाती है इसलिए इन अस्‍पतालों में  चिकित्‍सा उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम की धारा-2(1)(ओ) में वर्णित ‘’सेवा’’ के अन्‍तर्गत नहीं आती है। रिवीजन याचिका संख्‍या 248/2011 प्रेम सिंह वर्मा बनाम द कैन्‍टोनमेंट इक्‍जीक्‍यूटिव अफसर निर्णय दिनांक 28-09-2011 में मा0 राष्‍ट्रीय आयोग ने प्रतिपादित किया है कि कर्मचारी अपने सेवायोजक का उपभोक्‍ता नहीं माना जा सकता है। उपरोक्‍त मामलों में प्रतिपादित सिद्धांत यहॉ सुसंगत है। विपक्षी सं01 परिवादी के सेवायोजक का प्रतिनिधि है इसलिए परिवादी को उसका उपभोक्‍ता नहीं माना जा सकता है। उपरोक्‍त मामलों में प्रतिपादित सिद्धांत को देखते हुएवेतन वृद्धि के एरियर का भुगतान उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम की धारा-2(1)(ओ) के अधीन ‘’सेवा’’ की श्रेणी में नहीं आता है। ऐसी स्थिति में परिवादी का यह कथन उचित नहीं है कि वह उपभोक्‍ता है ओर विपक्षी संख्‍या1 द्वारा सेवा में कमी अथवा त्रुटि की गई है।   

 

          उपरोक्‍त सम्‍पूर्ण विवेचन से प्रकट है कि परिवादी ने विपक्षी सं01 के माध्‍यम से अपने सेवायोजक राज्‍य सरकार से वेतन वृद्धि के एरियर की धनराशि पर ब्‍याज की की भी मॉंग की है। यह एरियर परिवादी के सेवा काल की अवधि से संबन्धित है। ऐसी स्थिति में सेवा काल की अवधि के लिए परिवादी को न तो उपभोक्‍ता माना जा सकता है ओर न राज्य सरकार को सेवा प्रदाता माना जा सकता है। इन परिस्थितियों में परिवादी का वांछित अनुतोष के लिए परिवाद पत्र पोषणीय न होने के कारण खारिज होने योगय है।

 

                        आदेश

          परिवादी का परिवाद खारिज किया जाता है। मामले  की परिस्थितियों में पक्ष अपना-अपना वाद व्‍यय स्‍वयं  वहन करेंगे।

          इस निर्णय की एक-एक प्रति पक्षकारों को नि:शुल्‍क दी जाय। निर्णय आज खुले न्‍यायालय में, हस्‍ताक्षरित, दिनांकित कर, उद्घोषित किया गया।

 
 
[JUDGES HONOURABLE MR Ram Prakash Verma]
PRESIDENT
 
[HON'BLE MRS. Paramsheela]
MEMBER

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