Uttar Pradesh

Azamgarh

CC/226/2008

AMBRISH KUMAR - Complainant(s)

Versus

EX.EN. - Opp.Party(s)

AMBRISH SRIVASTAVA

03 Jan 2019

ORDER

District Consumer Disputes Redressal Forum
Azamgarh(U.P.)
 
Complaint Case No. CC/226/2008
( Date of Filing : 01 Dec 2008 )
 
1. AMBRISH KUMAR
AZAMGARH
...........Complainant(s)
Versus
1. EX.EN.
AZAMGARH
............Opp.Party(s)
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. JUSTICE KRISHNA KUMAR SINGH PRESIDENT
 HON'BLE MR. RAM CHANDRA YADAV MEMBER
 
For the Complainant:
For the Opp. Party:
Dated : 03 Jan 2019
Final Order / Judgement

1

जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम- आजमगढ़।

परिवाद संख्या 226 सन् 2008

   प्रस्तुति दिनांक 01.12.2008

                                     निर्णय दिनांक  03.01.2019

अम्बरीस कुमार श्रीवास्तव उम्र लगभग 54 वर्ष पुत्र स्वo सूरत सहाय लाल, निवासी मुहल्ला- सदावर्ती, परगना- निजामाबाद, डाकघर व तहसील- सदर, शहर व जनपद- आजमगढ़।

......................................................................................परिवादी।

बनाम

  1. अधिशासी अभियन्ता विद्युत वितरण खण्ड प्रथम सिधारी, आजमगढ़।
  2. सहायक अभियन्ता नगर विद्युत वितरण उपखण्ड प्रथम हाइडिल कालोनी सिधारी, आजमगढ़।
  3. पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम द्वारा मेनेजिंग डाइरेक्टर पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम उoप्रo पॉवर कारपोरेशन लिo हाइडिल कालोनी भिखारीपुर, महुआडीह वाराणसी।
  4. उoप्रo पॉवर कारपोरेशन लिo जरिए चेयरमैन उoप्रo पॉवर कारपोरेशन लिo शक्ति भवन, लखनऊ।

..................................................................................विपक्षीगण।

उपस्थितिः- अध्यक्ष- कृष्ण कुमार सिंह, सदस्य- राम चन्द्र यादव

 

  •  

अध्यक्ष- “कृष्ण कुमार सिंह”-

परिवादी ने अपने परिवाद पत्र में यह कहा है कि विपक्षी संख्या 03 पूर्वांचल उoप्रo जिसके अन्तर्गत आजमगढ़ मण्डल में आता है। विद्युत वितरण हेतु एक मात्र लाइसेन्सी है और विपक्षी संख्या 02 व 03 उसके अधिकारी हैं। परिवादी ने अपने किराए के मकान में कनेक्शन लेने हेतु प्रार्थना दिया जो स्वीकार हुआ और 03.03.2000 को उसका मुo 161/- रुपये एस.एल.सी. के मद में मुo 300/- सिक्योरिटी के मद में मुo 300/- रुपये, लाइन खींचने के मद में 50/- रुपये कुल मुo 811/- रुपये रसीद संख्या 21/715637 द्वारा जमा किया और उसी दिन विद्युत सम्बन्ध प्राप्त करने हेतु घोषणापत्र तहरीर करके विपक्षी संख्या 02 के कार्यालय में जमा कर दिया। जब कनेक्शन लगाने हेतु उसने विभाग से सम्पर्क किया तो कहा गया कि मीटर मिलने के बाद कनेक्शन लगाया जाएगा। काफी प्रयास के बाद

2

दिनांक 29.11.2001 को विद्युत मीटर लगाया गया और उसी दिन उसके मकान में विद्युत की आपूर्ति कर दी गयी है और प्रथम बार दिनांक 24.01.2002 को एक विद्युत बिल संख्या 1102543 बाबत विद्युत उपभोग दिनांक 22.10.2001 से 22.12.2001 के मध्य मीटर संख्या एल.एफ.5962 दिखा कर मुo 6,614/- रुपये व 6,254/- रुपया बकाया दर्शाते हुए प्राप्त हुई। जबकि उसके परिसर में जो मीटर लगा था उसकी संख्या पी.197200/5.20 है। जब परिवादी ने अवर अभियन्ता को शिकायत किया तो उन्होंने कहा कि विद्युत बिल ठीक होने के पश्चात् उसके पास आएगी। उसी मीटर को दर्शाते हुए दूसरा बिल बाबत उपभोग 22.04.2002 से 22.06.2002 से मीटर रीडिंग 20 यूनिट दर्शाते हुए मुo 8,436/- रुपया व पिछला बकाया 7,910.81/- रुपया दिखाते हुए प्राप्त हुई। जिसे देखकर परिवादी को बड़ा आश्चर्य हुआ तो उसने विपक्षी संख्या 01 से मिलकर लिखित आपत्ति की तो उन्होंने आश्वासन दिया कि उसका बिल दुरुस्त कर दिया जाएगा, लेकिन उसका विद्युत बिल दुरुस्त नहीं किया गया। विवश होकर परिवादी दिनांक 07.1.2003, 23.10.2003, 22.08.2004, 16.05.2005 व 17.10.2007 को बार-बार विद्युत बिल को दुरूस्त करने हेतु प्रार्थना पत्र दिया। परिवादी को गलत बिल भेजी जा रही है और उसे डीमाण्ड नोटिस भेजी गयी, जिस पर उसने आपत्ति प्रस्तुत करते हुए विपक्षीगण के द्वारा माह अप्रैल 2000 से मार्च 2008 तक के भुगतान हेतु मुo 18,772/- रुपये भुगतान की रसीद पत्र दिया गया जो गलत है। विपक्षीगण ने 29.11.2001 को परिवादी के रेहायशी मकान में विद्युत मीटर लगाकर विद्युत की आपूर्ति किया। इसलिए 29.11.2001 के पूर्व उसके ऊपर कोई चार्ज नहीं बनता है। अतः विपक्षीगण को आदेशित किया जाए कि वे वास्तविक कनेक्शन देने के पूर्व का कोई बिल परिवादी से वसूल न करें। उन्हें यह भी आदेश दिया जाए कि वह विद्युत बिलों को दुरुस्त कर दें। विद्युत बिल दुरुस्त करने के पूर्व विपक्षीगण परिवादी से कीई वसूली न करें। विपक्षीगण को यह भी आदेशित किया जाए कि वह परिवादी द्वारा दिनांक 30.04.2009 को मकाल खाली करने के बाद किसी विद्युत बिल को देने के लिए बाध्य नहीं है। परिवादी द्वारा प्रलेखीय साक्ष्य में कागज संख्या 4/1 811/- रुपये का बिल, कागज संख्या 4/2 चेक मीटर लगाने हेतु दिया गया प्रार्थना पत्र, कागज संख्या 4/3 ता 4/8 विपक्षीगण को दिए गए प्रार्थना पत्र की कार्बन प्रति, कागज संख्या 4/9 डिमाण्ड नोटिस की छायाप्रति, कागज संख्या

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4/10 बिल को सुधारने हेतु दिए गए प्रार्थना पत्र की छायाप्रति, कागज संख्या 4/13 ता 4/15 विद्युत बिल, कागज संख्या 7 फोरम में दिनांक 05.01.2010 को मकान खाली करने के सम्बन्ध में प्रार्थना पत्र, कागज संख्या 11 अधिशासी अभियन्ता को लिए गए पत्र की छायाप्रति, इसके अलावां पोस्ट ऑफिस की रसीद उसके पश्चात् परिवादी द्वारा शपथ पत्र भी प्रस्तुत किया गया है।

विपक्षीगण की ओर से 17क जवाबदावा प्रस्तुत किया गया है, जिसमें उन्होंने परिवाद पत्र के अभिकथनों से इन्कार किया है। अतिरिक्त कथन में विपक्षीगण ने कहा है कि परिवाद झूठा व आधारहीन है। परिवादी ने लाइट, फैन के लिए विद्युत कनेक्शन लिया। जिसकी संख्या 0641/571330 है। याची किराए वाले मकान में पहले से ही रह रहा था और उसमें विद्युत कनेक्शन था। जिसे लीगलाइज करने के लिए उसने प्रार्थना पत्र दिया और उसका कनेक्शन वैध कर दिया गया। परिवादी ने बिल के भुगतान के तरफ कोई ध्यान नहीं दिया और उसके ऊपर बिल बढ़ती रही। याची द्वारा बिल भुगतान न करने के कारण उसके ऊपर काफी बकाया हो गया है। याची रेहायशी मकान जिसमें विद्युत कनेक्शन दिया गया है उसका स्थाई विच्छेदन का प्रार्थना पत्र नहीं दे रहा है। उसे कभी झूठा आश्वासन नहीं दिया गया। अतः परिवाद खारिज किया जाए।

जवाबदावा के समर्थन में शपथ पत्र प्रस्तुत किया गया है।

परिवादी द्वारा लिखित बहस प्रस्तुत की गयी है, लेकिन बहस के समय परिवादी अनुपस्थित था और विपक्षी को सुना तथा पत्रावली का अवलोकन किया। परिवादी ने अपने परिवाद पत्र में यह कहा है कि उसके मकान में गलत मीटर संख्या एल.एफ.5962 लगाकर बिल वसूला जा रहा है। जबकि लगाए गए मीटर की संख्या पी.197200/5.20 है। पत्रावली के अवलोकन से यह स्पष्ट हो रहा है कि परिवादी ने इस बात का कोई सबूत प्रस्तुत नहीं किया है कि उसके मकान में गलत नम्बर का मीटर लगाया गया है। पत्रावली के अवलोकन से यह भी स्पष्ट है कि परिवादी बिल का भुगतान नहीं कर रहा था। परिवादी ने अपने अनुतोष में यह भी कहा है कि उसने मकान खाली कर दिया है। अतः उससे बिल वसूल न किया जाए, लेकिन जब तक कनेक्शन परिवादी के नाम से है तब तक उसका चार्ज देने का दायित्व परिवादी का ही है। उपरोक्त विवेचन से परिवाद खारिज किए जाने योग्य है।

4

आदेश

परिवाद खारिज किया जाता है। पत्रावली दाखिल दफ्तर हो।

 

 

 

राम चन्द्र यादव                कृष्ण  कुमार सिंह

                                                                       (सदस्य)                        (अध्यक्ष)

 

 
 
[HON'BLE MR. JUSTICE KRISHNA KUMAR SINGH]
PRESIDENT
 
[HON'BLE MR. RAM CHANDRA YADAV]
MEMBER

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