Uttar Pradesh

StateCommission

A/120/2017

Umesh Kumar - Complainant(s)

Versus

Ex. Enginneer Vidyut Viteran Khand - Opp.Party(s)

Dinesh Kumar Shukla & R.K. Mishra

29 Oct 2020

ORDER

STATE CONSUMER DISPUTES REDRESSAL COMMISSION, UP
C-1 Vikrant Khand 1 (Near Shaheed Path), Gomti Nagar Lucknow-226010
 
First Appeal No. A/120/2017
( Date of Filing : 16 Jan 2017 )
(Arisen out of Order Dated 20/10/2016 in Case No. C/113/2006 of District Hardoi)
 
1. Umesh Kumar
Hardoi
...........Appellant(s)
Versus
1. Ex. Enginneer Vidyut Viteran Khand
Hardoi
...........Respondent(s)
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. JUSTICE AKHTAR HUSAIN KHAN PRESIDENT
 HON'BLE MR. Gobardhan Yadav MEMBER
 HON'BLE MR. Vikas Saxena JUDICIAL MEMBER
 
PRESENT:
 
Dated : 29 Oct 2020
Final Order / Judgement

राज्‍य उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।

सुरक्षित

अपील संख्‍या-120/2017

(जिला उपभोक्‍ता फोरम, हरदोई द्वारा परिवाद संख्‍या 113/2006 में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक 20.10.2016 के विरूद्ध)

 

उमेश कुमार पुत्र स्‍व0 श्री सूरज प्रसाद निवासी ग्राम-मोहल्‍ला सरामुल्‍लागंज कस्‍बा व पोस्‍ट साण्‍डी तहसील बिलग्राम, जिला हरदोई।

                                            ......अपीलार्थी/परिवादी

बनाम्

एक्‍जीक्‍यूटिव इंजीनियर इलेक्ट्रिकसिटी डिस्‍ट्रीब्‍यूशन/सप्‍लाई

डिवीजन फर्स्‍ट हरदोई।                        ..............प्रत्‍यर्थी/विपक्षी

समक्ष:-

1. मा0 न्‍यायमूर्ति श्री अख्‍तर हुसैन खान, अध्‍यक्ष।

2. मा0 श्री गोवर्धन यादव, सदस्‍य।

3. मा0 श्री विकास सक्‍सेना, सदस्‍य।

अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : श्री आर0के0 मिश्रा, विद्वान अधिवक्‍ता।

प्रत्‍यर्थी की ओर से उपस्थित   : श्री इसार हुसैन, विद्वान अधिवक्‍ता।

दिनांक 26.11.2020

मा0 श्री विकास सक्‍सेना, सदस्‍य द्वारा उदघोषित

निर्णय

1.   यह अपील जिला उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष फोरम हरदोई द्वारा परिवाद संख्‍या 113/2006 में पारित निर्णय दिनांकित 20.10.2016 से व्‍यथित होकर योजित की गई है, जिसके माध्‍यम से वादी उपभोक्‍ता का परिवाद निरस्‍त कर दिया गया है।

2.   मामले के तथ्‍य संक्षेप में इस प्रकार है कि परिवादी ने उपरोक्‍त परिवाद इन कथनों के आधार पर योजित किया गया है कि परिवादी का एक विद्युत कनेक्‍शन संख्‍या 018226 बुक संख्‍या 5123 था, जिसमें समय से बिल की प्राप्ति न होने के कारण बकाया बढ़ गया। तदोपरांत दि. 31.05.04 को विद्युतकर्मी तसरफ खान व अहमद आदि ने परिवादी का विद्युत कनेक्‍शन विच्‍छेदित करके उसका मीटर व केबिल उतार लिया और परिवादी

-2-

के अनुरोध करने के बावजूद इस तथ्‍य को लिखित में नहीं दिया कि उसका कनेक्‍शन विच्‍छेदित कर दिया गया है। परिवादी का आरोप है कि विद्युत विच्‍छेदन की ति‍थि 31.05.2004 के उपरांत भी उसे विद्युत बकाया बिल भेजा जा रहा है, जबकि वह विच्‍छेदन की ति‍थि तक का बिल किश्‍तों में जमा करने को तैयार हैं। परिवाद के माध्‍यम से प्रार्थना की गई कि उसके विद्युत संयोजन को विच्‍छेदित किए जाने को विभागीय अभिलेखों में दर्ज किया जाए और विच्‍छेदन की तिथि तक के बकाए विद्युत बिल में जमानत की धनराशि समायोजित करते हुए शेष बकाया राशि समान किश्‍तों में जमा कराने के आदेश दिए जाएं।

3.   विद्वान जिला उपभोक्‍ता फोरम हरदोई ने दोनों पक्षों को सुनवाई का अवसर देने के उपरांत परिवादी का परिवाद इस आधार पर निरस्‍त किया कि स्‍थायी रूप से विद्युत कनेक्‍शन विच्‍छेदित करने की प्रक्रिया पूर्ण नहीं हुई है, इसलिए यह स्‍पष्‍ट नहीं है कि परिवादी का विद्युत कनेक्‍शन का विच्‍छेदन स्‍थायी रूप से हुआ है। विद्वान जिला फोरम ने यह माना कि परिवादी ने स्‍वच्‍छ हृदय से परिवाद प्रस्‍तुत नहीं किया है और विद्युत देय देने में उसके द्वारा व्‍यतिक्रम हुआ है। इन आधारों पर परिवादी का परिवाद निरस्‍त किया गया।

4.   उपरोक्‍त आदेश व निर्णय से व्‍यथित होकर परिवादी द्वारा यह अपील इन आधारों पर प्रस्‍तुत की गई है कि प्रश्‍नगत निर्णय व आदेश तथ्‍य व उपलब्‍ध अभिलेखीय साक्ष्‍य के विरूद्ध पारित किया गया है। अपीलकर्ता/परिवादी ने विपक्षी को शपथपत्र के माध्‍यम से पंजीकृत डाक से इस तथ्‍य की सूचना दी थी कि उसका विद्युत विच्‍छेदन कर दिया गया है और केबिल व विद्युत मीटर विद्युतकर्मी द्वारा उतार दिया गया है। विपक्षी

-3-

द्वारा अवैध रूप से विद्युत बिल कनेक्‍शन विच्‍छेदन के उपरांत भेजे जा रहे हैं। यदि परिवादी को विद्युत कनेक्‍शन प्रदान किया जाता है तो वह समय से बिल की अदायगी करने को तैयार है इन आधारों पर प्रश्‍नगत आदेश आक्षेपित करते हुए अपील प्रस्‍तुत की गई है।

5.   प्रत्‍यर्थी ने अपील के विरूद्ध यह आपत्ति दी है कि परिवादी के कथनानुसार किसी तसरफ खान या अहमद ने अपीलकर्ता का विद्युत कनेक्‍शन विच्‍छेदन नहीं किया है एवं न दोनों व्‍यक्तियों ने अपने कथन से इस तथ्‍य को साबित किया है कि उन्‍होंने इस प्रकार का कोई विच्‍छेदन नहीं किया है। परिवादी की कार्यवाही चलते हुए लगभग 10 वर्ष हो गए हैं एवं परिवादी इसका लाभ उठाते हुए मीटर के बिना विद्युत का उपभोग कर रहा है। परिवादी पर विद्युत की अत्‍यधिक धनराशि बकाया है, किंतु वह यथा संभव बचते हुए विद्युत का उपभोग करना चाह रहा है, जिसके कारण यह परिवाद एवं अपील प्रस्‍तुत की गई। इन आधारों पर अपील निरस्‍त किए जाने की प्रार्थना की गई।

6.   अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्‍ता श्री आर0के0 मिश्रा एवं प्रत्‍यर्थी के विद्वान अधिवक्‍ता श्री इसार हुसैन के तर्क सुने गए। इन आधारों पर पीठ के निष्‍कर्ष इस प्रकार से हैं:-

     विद्वान जिला उपभोक्‍ता प्रतितोष फोरम हरदोई ने अपीलार्थी का परिवाद इन आधारों पर निरस्‍त किया है कि परिवादी ने विद्युतकर्मी तसरफ खान व अहमद द्वारा दि. 31.05.2004 को परिवादी का विद्युत कनेक्‍शन काट देने के तथ्‍य का उल्‍लेख किया है, किंतु विपक्षी की ओर से तसरफ लाइनमैन द्वारा दि. 18.01.2007 को अवर अभियंता, विद्युत गृह(साण्‍डी) को लिखे गए पत्र से स्‍पष्‍ट होता है कि परिवादी उमश कुमार का विद्युत

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कनेक्‍शन न तो उन्‍होंने काटा है और न ही मीटर व केबिल उतारा है। परिवादी की शिकायत गलत है, उसका कनेक्‍शन चालू है।

7.   प्रत्‍यर्थी की ओर से स्‍पष्‍ट किया गया है कि यदि परिवादी को अपना कनेक्‍शन कटवाना है तो उसके लिए शुल्‍क देकर आवेदन करना होगा, किंतु उसके द्वारा ऐसा नहीं किया गया है तथा परिवाद व अपील के दौरान व विद्युत उपभोग कर रहा है। विद्वान उपभोक्‍ता फोरम ने प्रत्‍यर्थी की ओर से दिए गए साक्ष्‍य पर विश्‍वास करते हुए यह निष्‍कर्ष दिया है कि परिवादी स्‍वच्‍छ हाथों से फोरम के समक्ष नहीं आया है। यह निष्‍कर्ष प्रत्‍यर्थी की ओर से प्रस्‍तुत किए गए साक्ष्‍य पर आधारित है, जिसके विखंडन में अपीलार्थी की ओर से कोई साक्ष्‍य नहीं दिया गया है, अत: विद्वान जिला फोरम द्वारा दिए गए निष्‍कर्ष को खंडित किए जाने का प्रश्‍न नहीं होता है। इस संबंध में मा0 सर्वोच्‍च न्‍यायालय द्वारा पारित निर्णय श्रीमती राजबीर कौर तथा अन्‍य प्रति एस चोकेश्री एण्‍ड कंपनी प्रकाशित एआईआर 1988 सुप्रीम कोर्ट पृष्‍ठ 1845 उल्‍लेखनीय है जिसके प्रस्‍तर 17 में मा0 उच्‍चतम न्‍यायालय द्वारा यह दिया गया है कि अपीलीय न्‍यायालय की शक्तियों की सीमा यह है कि वह विचारण न्‍यायालय द्वारा दिए गए साक्ष्‍य के निष्‍कर्षों पर पुन: साक्ष्‍य का पुनर्वलोकन करते हुए निष्‍कर्षों को खंडित नहीं करेगी। जब तक विचार न्‍यायालय का निष्‍कर्ष दूषित न हो।

8.   मा0 सर्वोच्‍च न्‍यायालय द्वारा एक अन्‍य निर्णय एल0 माइकल तथा अन्‍य प्रति मेसर्स जौनस्‍टन पंप इंडिया लि0 प्रकाशित 1975 सुप्रीम कोर्ट पृष्‍ठ 661 में भी य‍ह निर्णीत किया गया है कि अपीलीय न्‍यायालय विचार न्‍यायालय के तथ्‍यों के निष्‍कर्ष को साधारणतया हस्‍तक्षेप नहीं करेगी। निर्ण में निम्‍नलिखित प्रकार से प्रतिपादित किया गया है:-

-5-

 This Court should not disturb the finding of fact recorded by the trial court on this point. It is true that this Court, in appeal, as a rule of practice, is loath to interfere with a finding of fact recorded by the trial Court. But if such a finding is based on no evidence, or is the result of a misreading of the material evidence, or is so unreasonable or grossly unjust that no reasonable person would judicially arrive at that conclusion, it is the duty of this Court to interfere and set matters right.

9.   उपरोक्‍त विवेचन के आधार पर विद्वान जिला उपभोक्‍ता फोरम द्वारा पारित निर्णय दिनांकित 20.10.2016 में कोई त्रुटि नहीं पाई जाती एवं विद्वान फोरम द्वारा दिया गया निष्‍कर्ष से विपरीत जाकर निर्णय व आदेश को खंडित किए जाने का कोई उचित आधार नहीं है। तदुसार अपील निरस्‍त किए जाने योग्‍य है।

आदेश

10.  प्रस्‍तुत अपील निरस्‍त की जाती है। जिला मंच द्वारा पारित प्रश्‍नगत निर्णय/आदेश की पुष्टि की जाती है।

     उभय पक्ष अपना-अपना अपीलीय वाद व्‍यय स्‍वयं वहन करेंगे।

     निर्णय की प्रतिलिपि पक्षकारों को नियमानुसार उपलब्‍ध कराई जाए।

 

 

  (न्‍यायमूर्ति अख्‍तर हुसैन खान)    (गोवर्धन यादव)    (विकास सक्‍सेना)                                                                                                                                                 अध्‍यक्ष                   सदस्‍य             सदस्‍य

राकेश, पी0ए0-2

  कोर्ट-1

 
 
[HON'BLE MR. JUSTICE AKHTAR HUSAIN KHAN]
PRESIDENT
 
 
[HON'BLE MR. Gobardhan Yadav]
MEMBER
 
 
[HON'BLE MR. Vikas Saxena]
JUDICIAL MEMBER
 

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