जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष मंच, नागौर
परिवाद सं. 39/2015
हनुमानराम पुत्र श्री नानुराम, जाति-राईका, निवासी- ओडिट, तहसील-लाडनूं, जिला-नागौर (राज.)। -परिवादी
बनाम
1. म्ेे ज्ञंल ।नजव थ्पदंदबम च्अजण् स्पउपजमक जरिये प्रबन्ध निदेषक, पंजीकृत एवं मुख्य कार्यालयः- जी 1 एण्ड 2, न्यू मार्केट, खासा कोठी सर्किल, जयपुर-302006
2. म्ेे ज्ञंल ।नजव थ्पदंदबम च्अजण् स्पउपजमक शाखा कुचामन जरिये शाखा प्रबन्धक कार्यालय, बुडसू चैराहा, डीडवाना रोड, कुचामन सिटी, जिला-नागौर, (राज.)।
-अप्रार्थीगण
समक्षः
1. श्री बृजलाल मीणा, अध्यक्ष।
2. श्रीमती राजलक्ष्मी आचार्य, सदस्या।
3. श्री बलवीर खुडखुडिया, सदस्य।
उपस्थितः
1. श्री महेन्द्र कुमार जानू, अधिवक्ता, वास्ते प्रार्थी।
2. श्री दिनेश हेडा, अधिवक्ता वास्ते अप्रार्थी।
अंतर्गत धारा 12 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम ,1986
आ दे श दिनांक 03.11.2015
1. परिवाद-पत्र के तथ्य संक्षेप में इस प्रकार है कि परिवादी एक अनपढ मजदूर व्यक्ति है जो केवल हस्ताक्षर करना जानता है। अप्रार्थीगण एक प्राईवेट फाइनेंस कम्पनी है। परिवादी ने अप्रार्थीगण के यहां से अपना वाहन महेन्द्रा पिकअप RJ 21 GA 5066 फाईनेंस करवाया हुआ था। उक्त ऋण की कार्रवाई अप्रार्थीगण के एजेंट के मार्फत हुई। उन्होंने अनेक कागजों पर हस्ताक्षर करवाये। परिवादी से उक्त वाहन के असल कागजात लेकर ऋण उपलब्ध कराया। पंजीयन-पत्र पर हाईपोथिकशेन बाबत् इन्द्राज किया और सम्पूर्ण राशि चुकता करने पर एनओसी जारी करने के लिए कहा। परिवादी ने अप्रार्थी की समस्त ऋण राशि चुकता कर दी परन्तु एनओसी जारी नहीं की गई है।
परिवादी ने अप्रार्थीगण का कर्ज चुकाने के लिए अपनी कृषि भूमि बेच दी। अप्रार्थी एनओसी जारी नहीं कर रहे हैं, जिसके कारण परिवादी को उक्त वाहन जिसे परिवादी बेचना चाह रहा है, पडा-पडा खराब हो रहा है। जिसकी जिम्मेदारी अप्रार्थीगण की है यह अप्रार्थीगण का अनुचित व्यापार कृत्य है जो कि सेवा में कमी की श्रेणी में आता है।
2. अप्रार्थीगण का मुख्य रूप से यह कहना है कि उसका मुख्य कार्यालय जी 1 एवं 2, न्यू मार्केट, खासा कोठी सर्किल, जयपुर (राजस्थान) पर स्थित है। अप्रार्थी ने परिवादी के परिवाद-पत्र के अधिकांश कथनों को अस्वीकृत किया है और उसका कहना है कि अनुबन्ध के मुताबिक विवाद का निपटारा मध्यस्थ के द्वारा होना था। मंच का कोई श्रवण क्षेत्राधिकार नहीं है। माननीय उच्चतम न्यायालय ने न्यायिक दृष्टांत SB.P. & Co. V/S M/S Patel Engineering Ltd. & Oth. सिविल अपील संख्या 4168/2003 निर्णय दिनांक 26.10.2005 में सात जजों की बैंच ने यह सिद्धांत प्रतिपादित किया कि धारा 8 में परिभाष्ति न्यायालय के अन्तर्गत उपभोक्ता मंच भी शामिल है। इस प्रकार से धारा 8 माध्यस्थम एवं सुलह अधिनियम, 1996 के प्रावधान उपभोक्ता मंच पर भी लागू होते हैं। इस प्रकार से मामला पंच कार्रवाई से ही निस्तारण होने योग्य है। अप्रार्थी का यह भी कहना है कि पक्षकारों के बीच अनुबंध जयपुर में हुआ था, इसलिए नागौर में क्षेत्राधिकार नहीं है।
प्रश्नगत वाहन महेन्द्रा पिकअप काॅमर्शियल वाहन है। इस प्रकार से मंच द्वारा श्रवण क्षेत्राधिकार नहीं है। अप्रार्थी का यह भी कहना है कि मंच के क्षेत्राधिकार के लिए परिवादी को उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 की धारा 2 (1) (डी) की परिभाषा में आना आवश्यक है। यह प्रावधान ऐसी व्यक्ति पर लागू होता है जो किसी वस्तु या सेवाओं को पुनः विक्रय या किसी वाणिज्यिक प्रयोजन के लिए नहीं खरीदता हो। इसी प्रावधान के स्पष्टीकरण में वाणिज्यिक प्रयोजन में स्वरोजगार के साधनों द्वारा अपनी आजिविका का उपार्जन करने हेतु एक मात्र उद्देश्य के लिए क्रय की गई वस्तु सम्मिलित नहीं है। इस सम्बन्ध में माननीय राष्ट्रीय आयोग ने भी Meera Industries Vs. Modern Constructions ¼R.P. No. 1765 of 2007 decided on 22.5.09½ esa fuEu fof/kd izfriknuk dh gS%& In so far as purchase of goods, which is covered by section 2 ¼1½ ¼d½ ¼1½ is concerned, a person who purchases goods for commercial purpose is not a consumer. However, in so far as hire or availing of services is concerned, after amendment, which came into force on 15.3.2003, any person who avails of such services for any commercial purpose has been excluded from the ambit of service.
स्वरोजगार के लिए वस्तु का उपयोग साक्ष्य का विषय है। इस तथ्य को सिद्ध करने का भार परिवादी पर है। मध्यप्रदेष स्टेट कमीशन, भोपाल पीठ द्वारा प्रथम अपील नम्बर 543/2009, उनवानी मैसर्स लक्ष्मी मोटर्स एवं अन्य बनाम पुरूजीत खरे ने 2 (1) (क) उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अन्तर्गत काॅमर्षियल पर्पज के लिए वाहन को ड्राइवर के माध्यम से चलाने वाला व्यक्ति उपभोक्ता की परिधि में नहीं आता। परिवादी ने कहीं भी परिवाद में नहीं बताया है कि वह स्वयं वाहन को संचालित करता है। इसलिए उक्त वाहन काॅमर्शियल उपयोग में आता है। इस प्रकार से मंच को श्रवण क्षेत्राधिकार नहीं है।
म्ंाच का क्षेत्राधिकार समरी नेचर का है। प्रस्तुत परिवाद में मुख्य विवाद हिसाब फेहमी पर आधारित है, जिसके सम्बन्ध में एकाउंट स्टेटमेंट और विस्तृत जांच की आवश्यकता होती है जो कि सिविल न्यायालय/आर्बिटेशन द्वारा ही तय किया जाता है।
अप्रार्थी का यह भी कहना है कि विवादित राशि की सम्पूर्ण अदायगी हो चुकी है परन्तु परिवादी ने रामेश्वरलाल पुत्र नानूराम, निवासी ग्राम-जतनपुरा, पोस्ट बैरीखुर्द, तहसील डीडवाना, जिला नागौर राजस्थान की जमानत दी थी, क्योंकि रामेश्वरलाल ने अप्रार्थी से महेन्द्रा पिकअप RJ 21 GA 5066 पर 34,000/- रूपये की वित्तिय सुविधा प्राप्त की थी परन्तु रामेश्वरलाल ने राशि का भुगतान नहीं किया। जब तक परिवादी, रामेश्वरलाल का ऋण नहीं चुका देता तब तक एनओसी प्राप्त नहीं कर सकता।
3. बहस उभय पक्षकारान सुनी गई। पत्रावली का ध्यानपूर्वक अध्ययन एवं मनन किया गया। जहां तक टेरीटोरियल ज्यूरिडिक्शन का सवाल है, अनुबंध जयपुर में हुआ है परन्तु अप्रार्थी की शाखा कुचामन में जो कि नागौर जिले में आता है। इसलिए इस मंच को क्षेत्राधिकार है।
यह भी निर्विवाद है कि परिवादी के द्वारा अपने वाहन पिकअप RJ 21 Ga 5066 का सम्पूर्ण ऋण अप्रार्थीगण को चुकता कर दिया गया है। इस प्रकार से इस मामले में हिसाब की कोई गलत फेहमी नहीं है।
जहां तक रामेश्वरलाल की गारंटी का प्रश्न है रामेश्वरलाल नाम के व्यक्ति की कोई गांरटी प्रस्तुत नहीं की है परन्तु वाहन संख्या RJ 37 GA 0574 के सम्बन्ध में अप्रार्थी ने परिवादी द्वारा गारंटी दिया जाना बताया है वह वाहन भी वाहन स्वामी ने अन्य व्यक्ति को विक्रय कर दिया। जिसका पंजीयन प्रमाण-पत्र में अंकन है। यदि अप्रार्थी के गारंटी ऋण का भुगतान नहीं होता तो अप्रार्थी के द्वारा एनओसी जारी नहीं होती और वाहन संख्या RJ 37 GA 0574 का ट्रांसफर नहीं होता। इस प्रकार से अप्रार्थी का यह कहना कि रामेष्वरलाल का परिवादी गारंटर है कहना सही नहीं है इसके अलावा वाहन संख्या त्श्र37 ळ। 0574 की जब एनओसी अप्रार्थी ने जारी कर दी है तो इसका साफ मतलब है कि ऋण चुकता होने पर ही एनओसी जारी होती है। ऐसी सूरत में जब परिवादी ने ऋण चुकता कर दिया और तथाकथित व्यक्ति रामेष्वर के गारंटर होने पर रामेष्वर RJ 37 GA 0574 पिकअप वाहन की एनओसी जारी कर दी गई। परिवादी की एनओसी को अप्रार्थी किसी भी प्रकार से जारी करने से नहीं रोक सकता।
जहां तक विवादित वाहन के वाणिज्यिक वाहन होने या उपयोग में लेने का प्रश्न है। इस सम्बन्ध में परिवादी ने सशपथ कथन किया है कि वह इस वाहन को स्वयं संचालित कर अपना जिविकोपार्जन करता है। अप्रार्थी ने ऐसा कोई दस्तावेज प्रस्तुत नहीं किया है और ना ही कोई साक्ष्य प्रस्तुत किया है कि परिवादी ने किसी ट्रांसपोर्ट कम्पनी में उक्त पिकअप को लगाया था या स्वयं नहीं चलाकर किसी अन्य ड्राइवर से उक्त वाहन को संचालित करवाता था। उक्त वाहन के वाणिज्यिक उपयोग में लेने का कोई सबूत प्रस्तुत नहीं किया है।
जहां तक आर्बिटेशन का मामला है इस मामले में कोई तात्विक विवाद ही शेष नहीं है, केवल एनओसी जारी करने का मामला है। यहां यह उल्लेख करना सुसंगत एवं उचित होगा कि परिवादी ने स्पष्ट रूप से सशपथ कथन किया है कि वह केवल हस्ताक्षर करना जानता है। जहां भी अप्रार्थी के कार्यालय में हस्ताक्षर करने का कहा गया उन समस्त दस्तावेजात पर हस्ताक्षर कर दिये। मूल रूप से वह यह जानता है कि ऋण लेने के सम्बन्ध में हस्ताक्षर हुए हैं। आर्बिटेशन के सम्बन्ध में उसे कोई जानकारी नहीं दी गई।
हमारी राय में अप्रार्थी की ओर से ऐसी कोई साक्ष्य पृथक से प्रस्तुत नहीं की गई है जो कि इस बात को इंगित करती हो कि परिवादी को आर्बिटेशन क्लोज के बारे में जानकारी दी गई हो एवं समझाया गया हो।
प्रार्थी की यह सदाशयता है कि उसने सारा ऋण चुका दिया। उसका कोई छल कपट प्रकट नहीं होता है। बडी-बडी वित्तिय कम्पनियां बडे-बडे कानूनी सलाहकार रखते हैं तथा लम्बा-चैडा फाॅरमेट तैयार करवा लेते हैं जिसकी जानकारी आम ऋणी को नहीं होती और उस कानूनी झाल में सामान्यतः भोले-भाले अनपढ ग्राहकों को सफर करना पडता है। जैसा कि इस मामले में भी प्रार्थी के साथ हुआ है। जब प्रार्थी ने सम्पूर्ण राशि अदा कर दी तो अब वह किस बात के लिए और कहां कहां तथा एनओसी के लिए भटकता फिरे, यह समझ से परे है। क्या वह अप्रार्थी के मुताबिक आर्बिटेशन में जाए या सिविल कोर्ट मेंघ्
हमारी राय में यह न्याय संगत नहीं है कि वह अनावश्यक रूप से न्याय के लिए दर-दर ठोकर खाये। मंच को वर्तमान विवाद में सम्पूर्ण क्षेत्राधिकार है। इस प्रकार से परिवादी अपना परिवाद-पत्र साबित करने में सफल रहा है। परिवादी का परिवाद अप्रार्थीगण के विरूद्ध निम्न प्रकार से स्वीकार किया जाता है तथा आदेश दिया जाता है किः-
आदेश
4. अप्रार्थीगण, परिवादी को उसके स्वामित्व के वाहन संख्या RJ 21 GA 5066 के पंजीयन प्रमाण-पत्र में हाईपोथिकेशन के इन्द्राज को हटाने के लिए फार्म नम्बर 35 व एनओसी अविलम्ब जारी करें। अप्रार्थीगण, परिवादी को मानसिक क्षतिपूर्ति के 10,000/- रूपये एवं 5000/- रूपये परिवाद-व्यय के भी अदा करें।
आदेश आज दिनांक 03.11.2015 को लिखाया जाकर खुले न्यायालय में सुनाया गया।
।बलवीर खुडखुडिया। ।बृजलाल मीणा। ।श्रीमती राजलक्ष्मी आचार्य।
सदस्य अध्यक्ष सदस्या