प्रकरण क्र.सी.सी./14/193
प्रस्तुती दिनाँक 28.06.2014
संजय कुमार आ.संतन साहू आयु-38 वर्ष लगभग, निवासी-क्वार्टर नं.03/एच, सड़क नं.38, सेक्टर-11, खुर्सीपार, भिलाई, तह. व जिला- दुर्ग (छ.ग.) - - - - परिवादी
विरूद्ध
कार्यपालन अभियंता, छ.त्र. गृह निर्माण मंडल, संभाग-दुर्ग, तह. व जिला-दुर्ग (छ.ग.)
- - - - अनावेदक
आदेश
(आज दिनाँक 30 मार्च 2015 को पारित)
श्रीमती मैत्रेयी माथुर-अध्यक्ष
परिवादी द्वारा अनावेदक से भवन का कब्जा/आधिपत्य दिलाए जाने, 08 माह के मकान किराये की राशि 40,000रू., मानसिक कष्ट हेतु 1,00,000रू., वाद व्यय व अन्य अनुतोष दिलाने हेतु यह परिवाद धारा-12 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के अंतर्गत प्रस्तुत किया है।
परिवाद-
(2) परिवादी का परिवाद संक्षेप में इस प्रकार है कि परिवादी के द्वारा अनावेदक की दीनदयाल आवास योजना अंतर्गत भवन क्र.एल.आई.जी.153 आबंटित हुआ, जिसकी कुल लागत 4,30,000रू. परिवादी के द्वारा विभिन्न किश्तों मंे जमा की गई, जिसका प्रमाण पत्र भी अनावेदक के द्वारा परिवादी को दिया गया। उक्त ीावन का पंजीयन परिवादी के पक्ष में निष्पादित करने के उपरांत दि.24.09.2013 को आधिपत्य आदेश जारी किया गया, किन्तु भवन आधिपत्य आदेश केवल अनावेदक के द्वारा विद्युत कनेंक्शन हेतु अनापत्ति प्रमाण पत्र जारी किया गया था, परंतु चार माह का समय व्यतीत हो जाने के बाद भी आधिपत्य नहीं सौंपा गया। परिवादी के द्वारा अनावेदक को इस बावत लिखित आवेदन किया गया, तत्पश्चात भी भवन पर आधिपत्य न मिलनें पर दिनांक 20.03.2014 को अपने अधिवक्ता के मार्फत विधिक नोटिस प्रेषित किया गया, जिसका अनावेदक ने कोई जवाब नहीं दिया। अनावेदक के द्वारा परिवादी के नाम पर उक्त आवासीय भवन को फ्री होल्ड करने का पंजीकृत बयनामा निष्पादित किया गया एवं अनापत्ति प्रमाण पत्र परिवादी के नाम पर जारी किया गया, किन्तु आज तक उक्त भवन के फ्री होल्ड होने के बावजूद भी आज तक परिवादी को उक्त भवन का कब्जा/आधिपत्य प्रदान नहीं किया गया है, जिसके कारण परिवादी को अन्य स्थान पर किराए के मकान में रहकर प्रतिमाह 5,000रू. अतिरिक्त वहन करना पड़ रहा है। परिवादी के द्वारा उक्त आवासीय भवन को क्रय करने हेतु बैंक से ऋण प्राप्त किया गया है, जिसकी प्रतिमाह किश्त परिवादी के द्वारा बैंक को अदा की जाती है। इस प्रकार अनावेदक के द्वारा परिवादी को भवन का आधिपत्य प्रदान न कर सेवा में कमी की गई है। अतः परिवादी को अनावेदक से भवन पर कब्जा दिलाया जावे साथ ही 08 माह के मकान किराए की राशि 40,000रू., मानसिक कष्ट हेतु 1,00,000रू. एवं अन्य अनुतोष दिलाया जावे।
जवाबदावाः-
(3) अनावेदक का जवाबदावा इस आशय का प्रस्तुत है कि परिवादी के द्वारा दि.14.06.2013 को उक्त भवन का पंजीयन करा लिया गया है। आबंटी द्वारा मकान का आधिपत्य चार माह का समय व्यतीत हो जाने के बाद भी आधिपत्य नहीं सौंपे जाने संबंधी आवेदन पत्र दि.20.01.14 को प्रस्तुत किया गया था। अनावेदक के द्वारा परिवादी को दूरभाष द्वारा 3-4 बार सूचना दी गई थी, किंतु परिवादी के द्वारा आज कल आऊँगा का आश्वासन देता रहा, किन्तु मण्डल कार्यालय उपस्थित होकर भवन पर आधिपत्य ग्रहण नहीं किया गया। अनावेदक के द्वारा परिवादी को आंबंटित भवन क्र.एल.आई.जी.153, का मण्डल नियमानुसार दि.01.03.14 को फ्री होल्ड निष्पादन की कार्यवाही की गई, किंतु आबंटि के द्वारा स्वयं भवन का कब्जा प्राप्त करने की रूचि नहीं दिखाई गई। आबंटि मण्डल कार्यालय में उपस्थित होवे तो आधिपत्य दिये जाने की कार्यवाही 24 घण्टे में कर ली जायेगी। आवेदक के द्वारा अनावेदक से किराए में रहने हेतु किसी प्रकार का लिखित इकरार नामा प्रस्तुत नहीं किया गया गया है। अतः अनावेदक कार्यालय के नियमां के अधीन वांछित राशि पर ब्याज राशि देय नहीं होती है। अतः परिवादी के द्वारा प्रस्तुत परिवाद निरस्त किया जावे।
(4) उभयपक्ष के अभिकथनों के आधार पर प्रकरण मे निम्न विचारणीय प्रश्न उत्पन्न होते हैं, जिनके निष्कर्ष निम्नानुसार हैं:-
1. क्या परिवादी, अनावेदक से मकान किराये की राशि 40,000रू. प्राप्त करने का अधिकारी है? नहीं
2. क्या परिवादी, अनावेदक से मानसिक परेशानी के एवज में 1,00,000रू. प्राप्त करने का अधिकारी है? नहीं
3. अन्य सहायता एवं वाद व्यय? आदेशानुसार परिवाद खारिज
निष्कर्ष के आधार
(5) प्रकरण का अवलोकन कर सभी विचारणीय प्रश्नों का निराकरण एक साथ किया जा रहा है।
फोरम का निष्कर्षः-
(6) प्रकरण का अवलोकन करने पर हम यह पाते है कि अभिकथित भवन में सामानों की चोरी करने वाले के द्वारा ग्लास की तोड़फोड़ किये जाने के फलस्वरूप भवनों में केवल खिड़कियों के ग्लास लगाना शेष है। परिवादी को अभिकथित भवन का आधिपत्य सौंपे जाने हेतु फोन से तीन-चार बार सूचना दी गई थी, किन्तु परिवादी आज आऊँगा, कल आऊँगा कहकर अश्वासन देता रहा और स्वयं आज तक मण्डल कार्यालय में उपस्थित होकर अभिकथित भवन का आधिपत्य ग्रहण नहीं किया है। इस प्रकार परिवादी स्वयं ही भवन का कब्जा प्रापत करने में रूचि नहीं दिखाई है, यदि परिवादी मण्डल कार्यालय में उपस्थित होगा तो 24 घण्टे के अंदर आधिपत्य दिये जाने की कार्यवाही कर दी जायेगी। परिवादी ने कहीं भी यह सिद्ध नहीं किया है कि वह कब-कब आधिपत्य हेतु अनावेदक के कार्यालय गया, परिवादी द्वारा भेजी गई नोटिस के संबंध में अनावेदक का तर्क है कि मार्च महीना शासकीय वित्तीय वर्ष का अंतिम माह होता है तथा लगातार प्रशिक्षण एवं चुनाव में ड्यूटी होने के कारण कार्य प्रभावित हुआ है, इन तर्कों से असहमत होने का कोई कारण नहीं है।
(7) प्रकरण की परिस्थितियों से यही दृश्य स्थापित होता है कि अनावेदक का आधिपत्य देने संबंधी कार्य में बाधा परिवादी द्वारा अनावेदक के कार्यालय नहीं जाने से हुई, वहीं स्वाभाविक रूप से मार्च महीना वित्तीय वर्ष का अंतिम माह होता है और चुनाव ड्यूटी होने से इस प्रकार के कार्य प्रभावित होते हैं, इन परिस्थितियों में हम यह नहीं पाते हैं कि अनावेदक हाॅऊसिंग बोर्ड ने परिवादी को भवन का आधिपत्य देने में ऐसी कोई घोर सेवा में निम्नता की है, जिसके कारण परिवादी के परिवाद पत्र को स्वीकार किया जाये, फलस्वरूप हम अनावेदक को अभिकथित किराये की राशि अदा करने का जिम्मेदार नहीं पाते हैं।
(8) प्रस्तुत परिस्थितियों में हम अनावेदक द्वारा सेवा में निम्नता की स्थिति नहीं पाते हैं, फलस्वरूप परिवादी का दावा स्वीकार किये जाने का समुचित आधार नहीं पाते हैं और खारिज करते हैं।
(9) प्रकरण के तथ्य एवं परिस्थितियों को देखते हुए पक्षकार अपना-अपना वाद व्यय स्वयं वहन करेंगे।