राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
सुरक्षित
परिवाद सं0-१६२/२०१४
Ms. POOJA BHATT H.No.-5/881, Viram Khand, Gomti Nagar, Lucknow-226010, Uttar Pradesh.
................... Complainants.
Vs.
1. Eldeco Housing And Industries Ltd., Registered Office at shop No. 16, Eldeco Station 1 Site No 1 Sector 12, Faridabad Haryana 121007.
2. Corporate Office Eldeco Housing And Industrial Ltd., 2nd Floor Eldeco Corporate Chamber, Vibhuti Khand (Opposite Mandi Parishad) Gomti Nagar, Lucknow 226010.
3. Mr. Pankaj Bajaj, Managing Director Eldeco Housing And Industrial Ltd., R/O A-2, GREATER KAILASH, PART-I, New Delhi, 110048, Delhi, INDIA.
.................... Opposite Parties.
समक्ष:-
१.मा0 श्री उदय शंकर अवस्थी, पीठासीन सदस्य ।
२.मा0 श्री गोवर्द्धन यादव, सदस्य।
परिवादिनी की ओर से उपस्थित :- श्री लल्ला चौहान विद्वान अधिवक्ता।
विपक्षीगण की ओर से उपस्थित :- श्री विकास अग्रवाल विद्वान अधिवक्ता।
दिनांक : ०३-०४-२०१९.
मा0 श्री उदय शंकर अवस्थी, पीठासीन सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
प्रस्तुत परिवाद, परिवादिनी ने विपक्षीगण के विरूद्ध प्रश्नगत सम्पत्ति का कब्जा दिए जाने अथवा जमा की गई धनराशि मय ब्याज वापस दिलाये जाने तथा क्षतिपूर्ति की अदायगी हेतु योजित किया है।
संक्षेप में तथ्य इस प्रकार हैं कि परिवादिनी के कथनानुसार परिवादिनी ने विपक्षीगण की कारपोरेट टावर आइटम नं0-२०४ में द्वितीय तल पर आफिस स्थान क्षेत्रफल १०८८ वर्गफीट मूल्य ४६,७८,७००/- रू० में बुक कराया था। परिवादिनी ने ०१.०० लाख रू० रजिस्ट्रेशन फीस तथा सर्विस टैक्स के रूप में आईसीआईसीआई बैंक के
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चेक द्वारा जमा की थी। परिवादिनी यह आफिस स्थान अपने जीविकोपार्जन हेतु क्रय कर रही थी। विपक्षी द्वारा यह सूचित किया गया कि यह आफिस स्थान विपक्षीगण द्वारा मासिक किराये पर उठा दिया जायेगा जो परिवादिनी की जीविकोपार्जन का श्रोत होगा। विपक्षी के इस कथन पर विश्वास करते हुए परिवादिनी द्वारा उपरोक्त आफिस स्थान क्रय किया गया। परिवादिनी ने विपक्षीगण से कई बार अनुरोध किया कि उसे शेष धनराशि के विषय में सूचित किया जाय जिससे परिवादिनी प्रश्नगत सम्पत्ति का कब्जा प्राप्त कर सके किन्तु विपक्षीगण द्वारा कोई सूचना परिवादिनी को प्राप्त नहीं कराई गई। दिनांक २३-०१-२०१३ को परिवादिनी को एक ई-मेल प्राप्त हुआ जिसका उत्तर परिवादिनी द्वारा दिया गया तथा शेष धनराशि की जानकारी मांगी गई किन्तु परिवादिनी को कोई उत्तर नहीं दिया गया। परिवादिनी को १०,९९,०३८.०३ रू० का मांग पत्र दिनांक २५-०२-२०१३ को प्राप्त हुआ जिससे परिवादिनी अचम्भित हुई। परिवादिनी को एक अन्य पत्र दिनांकित १०-०७-२०१४ प्राप्त हुआ जिसमें परिवादिनी द्वारा १५,७२,७६६/- देय बताया गया जिसमें से ३,३५,८८०/- रू० मेण्टीनेंस एण्ड फेसिलिटी चार्चेज के थे जबकि परिवादिनी द्वारा कब्जा प्राप्त न किए जाने के कारण उसे कोई फेसिलिटी प्रापत नहीं कराई गई थी तथा २२,३९२/- रू० दिनांक ०१-०४-२०१३ तक मन्थली चार्जेज के बताये गये थे। विपक्षीगण द्वारा अवैध रूप से रूपया विभिन्न मदों में बसूल किया जा रहा है। पत्र दिनांकित २५-०२-२०१३ से यह विदित होता है कि ४,४०४/- रू० मासिक मेण्टींनेस चार्जेज के बताये गये किन्तु पत्र दिनांकित १०-०७-२०१७ में ५,५०५/- रू० मासिक रिकरिंग मेण्टीनेंस चार्जेज के बताये गये। विपक्षीगण ९,९०९/- रू० एयर कण्डीशनिंग उपयोग चार्जेज के सम्बन्ध में मांग रहे हैं जबकि परिवादिनी को प्रश्नगत स्थान का कब्जा प्रदान नहीं किया गया है। विपक्षीगण ने अपने पत्र दिनांकित १०-०७-२०१४ में १,७६२/- रू० इन्फ्रास्ट्रक्चर चार्जेज के रूप में डी0जी0 के मांगे गये। परिवादिनी को पत्र दिनांकित ०६-०८-२०१४ द्वारा १,७८,७००/- रू० की छूट प्रदान की गई। क्योंकि परिवादिनी को कार पार्किंग की आवश्यकता नहीं थी, अत: कार पार्किंग के ०५.०० लाख रू० भी मांगी गई धनराशि में से घटाये गये। आबंटन पत्र दिनांकित ११-०७-२०१२ के अनुसार कुल
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४६,७८,७००/- रू० परिवाद की धारा-१२ में दिये गये विवरण के अनुसार परिवादिनी द्वारा अदा किये गये। शेष धनराशि इकरानामे के अनुसार दिनांक ३०-०९-२०१२ को भुगतान की जानी थी किन्तु विपक्षीगण तथा आईसीआईसीआई बैंक के मध्य मतभेद के कारण धनराशि के भुगतान में विलम्ब हुआ। विपक्षीगण द्वारा दिनांक ३०-०९-२०१२ से ब्याज की मांग न करके किसी अन्य तिथि से ब्याज मांगा जा रहा है। परिवादिनी द्वारा ४६,७८,७००/- रू० का पूरा भुगतान किया जा चुका है किन्तु फिर भी परिवादिनी को कब्जा प्रदान नहीं किया जा रहा है तथा अनधिकृत रूप से अत्यधिक धनराशि की मांग की जा रही है। परिवादिनी ने अपने पत्र दिनांकित ०६-०८-२०१४ द्वारा विपक्षीगण से अनुरोध किया कि कब्जा दिए जाने से पूर्व मांगे जा रहे रिकरिंग चार्जेज घटाये जायें किन्तु विपक्षीगण द्वारा ध्यान नहीं दिया गया। परिवादिनी को दिनांक १०-१०-२०१४ को एक पत्र इस आशय का प्राप्त हुआ कि ३,३०,४४४/- रू० देय है। साथ ही दिनांक १५-१०-२०१४ तक ५,४६,५९०/- रू० ब्याज के देय हैं। परिवादिनी को यह ज्ञात नहीं हो सका कि किस तिथि से ब्याज की गणना की गई है क्योंकि विपक्षीगण द्वारा यह स्पष्ट नहीं किया गया है। परिवादिनी ने अपने अधिवक्ता द्वारा विधिक नोटिस दिनांक ३०-१०-२०१४ को प्रेषित की किन्तु इस नोटिस का कोई उत्तर विपक्षीगण द्वारा प्रस्तुत नहीं किया गया। अत: प्रस्तुत परिवाद योजित किया गया।
विपक्षीगण द्वारा प्रतिवाद पत्र प्रस्तुत किया गया। विपक्षीगण के कथनानुसार असत्य कथनों के आधार पर परिवाद योजित किया गया है, अत: निरस्त किए जाने योग्य है। विपक्षीगण के कथनानुसार परिवादिनी के अनुरोध पर विपक्षीगण द्वारा प्रश्नगत कॉमर्शियल इकाई एल्डिको टावर स्थित गोमती नगर, लखनऊ में परिवादिनी के पक्ष में दिनांक २१-०४-२०१२ को बुक की गई तथा विपक्षीगण द्वारा फाइनल सर्टीफिकेट एण्ड एग्रीमेण्ट दिनांकित ११-०६-२०१२ जारी किया गया जिसमें पक्षकारों के मध्य शर्तों का उल्लेख किया गया। इस एग्रीमेण्ट में पक्षकारों द्वारा हस्ताक्षर किए गये। दिनांक २५-०२-२०१३ को परिवादिनी को फाइनल डिमाण्ड नोटिस जारी किया गया और इस नोटिस द्वारा परिवादिनी को सूचित किया गया कि प्रश्नगत यूनिट कब्जा प्रदान करने
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हेतु तैयार है तथा यह प्रार्थना की गई कि परिवादिनी डिमाण्ड नोटिस में दर्शित धनराशि दिनांक २०-०३-२०१३ से पूर्व जमा किया जाना सुनिश्चित करे। इस पत्र में देय धनराशि का विवरण दर्शित किया गया। यह मांग पत्र पक्षकारों के मध्य निष्पादित इकरारनामा दिनांकित ११-०६-२०१२ के अन्तर्गत जारी किया गया। विपक्षीगण का यह भी कथन है कि परिवादिनी की प्रार्थना पर विपक्षीगण द्वारा १,७८,७००/- रू० की छूट प्रदान की गई। इकरारनामा दिनांकित ११-०२-२०१२ की शर्तों के अनुररूप मांग पत्र भेजे जाने के बाबजूद परिवादिनी द्वारा देय धनराशि की अदायगी नहीं की गई तथा गलत तथ्यों के आधार पर नोटिस दिनांकित ३०-१०-२०१४ भेजी गई।
परिवादिनी की ओर से अपने कथन के समर्थन में अपना शपथ पत्र तथा परिवाद के साथ संलग्नक-ए लगायत संलग्नक-आई दाखिल किए गये।
विपक्षीगण की ओर से अपने कथन के समर्थन में श्री घन श्याम मिश्रा अधिकृत अधिकारी का शपथ पत्र प्रस्तुत किया गया तथा शपथ पत्र के साथ १२ संलग्नक दाखिल किए गये।
हमने परिवादिनी के विद्वान अधिवक्ता श्री लल्ला चौहान तथा विपीक्षीगण के विद्वान अधिवक्ता श्री विकास अग्रवाल के तर्क सुने तथा अभिलेखों का अवलोकन किया।
विपक्षीगण की ओर से यह तर्क प्रस्तुत किया गया कि प्रस्तुत प्रकरण में परिवादिनी के पक्ष में एक व्यावसायिक इकाई आबंटित की गई है और यह इकाई परिवादिनी ने लाभ अर्जित करने के उद्देश्य से क्रय की है। परिवादिनी एक निवेशक है तथा अपने व्यावसायिक उद्देश्य की पूर्ति हेतु उसके द्वारा बैंक से व्यावसायिक ऋण प्राप्त किया गया है।
परिवादिनी के विद्वान अधिवक्ता द्वारा यह तर्क प्रस्तुत किया गया कि परिवादिनी ने प्रश्नगत सम्पत्ति अपनी जीविकोपार्जन हेतु क्रय की है।
विपक्षीगण के विद्वान अधिवक्ता ने इस सन्दर्भ में परिवाद सं0-२०१/२०१५ आशीष आहूजा बनाम मै0 गोल्ड कॉज कन्स्ट्रक्शन्स प्रा0लि0 व ४ अन्य में मा0 राष्ट्रीय आयोग द्वारा दिये गये निर्णय दिनांकित १५-०४-२०१५ एवं मेजर विश्वानी पुरी कम्प्लीट
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सर्वेइंग टेक्नोलोजीज (प्रा.) लि0 व अन्य बनाम डी एल एफ यूनिवर्सल लि0, २०१५ एनसीजे ११ (एनसी) के मामले में मा0 राष्ट्रीय आयोग द्वारा दिये गये निर्णय दिनांकित १५-१२-२०१४ पर विश्वास व्यक्त किया।
उल्लेखनीय है कि उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम १९८६ की धारा-२(१)(घ) में उपभोक्ता को निम्नवत् परिभाषित किया गया है :-
‘’ २(१)(घ)(i)- ऐसे किसी प्रतिफल के लिए जिसका संदाय कर दिया गया है या वचन दिया गया है या भागत: संदाय किया गया और भागत: वचन दिया गया है,
या किसी आस्थगित संदाय की पद्धति के अधीन किसी माल का क्रय करता है, इसके अन्तर्गत ऐसे किसी व्यक्ति से भिन्न ऐसे माल का कोई प्रयोगकर्ता भी है ऐसे प्रतिफल के लिए जिसका संदाय किया गया है या वचन दिया गया है या भागत: संदाय किया गया है या भागत: वचन दिया गया है या आस्थगित संदाय की पद्धति के अधीन माल क्रय करता है जब ऐसा प्रयोग ऐसे व्यक्ति के अनुमोदन से किया जाता है, लेकिन इसके अन्तर्गत कोई ऐसा व्यक्ति नहीं है जो ऐसे माल को पुन: विक्रय या किसी वाणिज्यिक प्रयोजन के लिए अभिप्राप्त करता है।
‘’ २(१)(घ)(ii)- किसी ऐसे प्रतिफल के लिए जिसका संदाय किया गया है या वचन दिया गया है या भागत: संदाय और भागत: वचन दिया गया है, या किसी आस्थगित संदाय की पद्धति के अधीन सेवाओं को भाड़े पर लेता है या उपयोग करता है और इनके अन्तर्गत ऐसे किसी व्यक्ति से भिन्न ऐसी सेवाओं का कोई हिताधिकारी भी है, जो किसी प्रतिफल के लिए जिसका संदाय किया गया है और वचन दिया गया है और भागत: वचन दिया गया है या, किसी आस्थगित संदाय की पद्धति के अधीन सेवाओं को भाड़े पर लेता है या उपयोग करता है, जब ऐसी सेवाओं का उपयोग प्रथम वर्णित व्यक्ति के अनुमोदन से किया जाता है। लेकिन ऐसा कोई व्यक्ति सम्मिलित नहीं है जो इन सेवाओं का किसी वाणिज्यिक प्रयोजनार्थ उपभोग करता है। ‘’
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‘’ (स्पष्टीकरण – इस खण्ड के प्रयोजनों के लिए ‘’ वाणिज्यिक प्रयोजन ‘’ में किसी व्यक्ति द्वारा क्रय तथा प्रयोग किए माल का प्रयोग एवं उसके द्वारा स्वत: रोजगार के माध्यम से अपवर्ती रूप से अपनी आजीविका उपार्जन के प्रयोजनों के लिए उपयोग की गयी सेवाऍ सम्मिलित नहीं हैं। ) ‘’
इस परिभाषा के अनुसार प्रतिफल सहित किसी वस्तु का क्रेता अथवा प्रतिफल सहित प्राप्त की गई सेवाओं का क्रेता, उपभोक्ता माना जायेगा, किन्तु वाणिज्यिक प्रयोजन हेतु क्रय की गई वस्तु अथवा सेवा का क्रेता, उपभोक्ता नहीं माना जायेगा।
‘ वाणिज्यिक प्रयोजन ‘ को स्पष्टीकरण द्वारा स्पष्ट किया गया है कि क्रेता द्वारा स्वत: रोजगार के माध्यम से अपनी आजीविका उपार्जन के प्रयोजनों के लिए उपयोग की गई सेवाऐं वाणिज्यिक प्रयोजन में सम्मिलित नहीं मानी जायेगीं।
यद्यिपि परिवादिनी ने परिवाद के अभिकथनों में प्रश्नगत सम्पत्ति अपनी जीविकोपार्जन हेतु क्रय करना अभिकथित किया है किन्तु मात्र परिवाद के अभिकथनों के आधार पर स्वत: यह प्रमाणित नहीं माना जा सकता कि वस्तुत: प्रश्नगत सम्पत्ति परिवादिनी ने अपनी जीविकोपार्जन हेतु क्रय की। परिवादिनी से यह अपेक्षित है कि परिवादिनी अपने इस कथन की पुष्टि में साक्ष्य प्रस्तुत करे।
जहॉं तक प्रस्तुत प्रकरण का प्रश्न है, यह तथ्य निर्विवाद है कि परिवादिनी द्वारा प्रश्नगत सम्पत्ति जिसे कॉमर्शियल टावर स्थित कार्यालय स्थान बताया गया है, क्रय की है तथा निर्विवाद रूप से परिवादिनी द्वारा कुल ४६,७८,७००/- रू० विपक्षीगण को भुगतान की गई है। परिवादिनी का यह भी कथन है कि इस प्रयोजन हेतु परिवादिनी ने आईसीआईसीआई बैंक से ऋण प्राप्त किया है। विपक्षीगण का यह कथन है कि परिवादिनी द्वारा व्यावसायिक ऋण प्राप्त किया गया है। स्वयं परिवादिनी ने परिवाद के अभिकथनों तथा अपने शपथ पत्र दिनांकित १०-०४-२०१६ में यह अभिकथित किया है कि विपक्षी द्वारा उसे आश्वस्त किया गया कि प्रश्नगत सम्पत्ति विपक्षी द्वारा मासिक किराए पर उठायी जायेगी जिससे उसे जीविकोपार्जन हेतु आय प्राप्त होगी। विपक्षीगण के इस कथन पर विश्वास करते हुए परिवादिनी द्वारा प्रश्नगत सम्पत्ति क्रय की गई। परिवादिनी द्वारा यह स्पष्ट नहीं किया गया है कि वर्तमान समय में परिवादिनी द्वारा
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कोई व्यवसाय किया जा रहा है अथवा नहीं। परिवादिनी द्वारा स्वयं को बेरोजगार होना और आय का कोई अन्य साधन उपलब्ध न होना अभिकथित नहीं किया गया है।
क्रय की गई सम्पत्ति की प्रकृति, निवेश की गई धनराशि की मात्रा, क्रय किए जाने के उद्देश्य के आलोक में हमारे विचार से परिवादिनी द्वारा प्रश्नगत व्यावसायिक स्थान वस्तुत: व्यावसायिक प्रयोजन एवं अतिरिक्त आय अर्जित करने के उद्देश्य से क्रय किया गया। परिवादिनी का यह कथन प्रमाणित न होने के कारण स्वीकार किए जाने योग्य नहीं है कि प्रश्नगत सम्पत्ति परिवादिनी ने अपनी जीविकोपार्जन हेतु क्रय की है। ऐसी परिस्थिति में परिवादिनी को उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम की धारा-२(१)(घ) के अन्तर्गत उपभोक्ता होना नहीं माना जा सकता। तद्नुसार हमारे विचार से प्रस्तुत परिवाद की सुनवाई का क्षेत्राधिकार इस आयोग को प्राप्त नहीं है। परिवाद तद्नुसार निरस्त किए जाने योग्य है।
आदेश
परिवाद निरस्त किया जाता है।
इस परिवाद का व्यय-भार उभय पक्ष अपना-अपना वहन करेंगे।
उभय पक्ष को इस निर्णय की प्रमाणित प्रति नियमानुसार उपलब्ध करायी जाय।
(उदय शंकर अवस्थी) (गोवर्द्धन यादव)
पीठासीन सदस्य सदस्य
प्रमोद कुमार,
वैय0सहा0ग्रेड-१,
कोर्ट-२.