राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
परिवाद संख्या-292/2018
(मौखिक)
1. श्रीमती अर्चना अग्रवाल पत्नी श्री विजेश मोहन, निवासी- फ्लैट नं0 टी-2/303, एल्डिको एटर्निया, सीतापुर रोड, लखनऊ।
2. श्री विजेश मोहन पुत्र श्री हरबंश लाल, निवासी- फ्लैट नं0 टी-2/303, एल्डिको एटर्निया, सीतापुर रोड, लखनऊ।
................परिवादीगण
बनाम
1. एल्डिको हाउसिंग एण्ड इण्डस्ट्रीज लि0, द्वारा चेयरमैन – कम – मैनेजिंग डायरेक्टर, रजिस्टर्ड आफिस 201 -212, II फ्लोर, प्लाट नं0 3, स्प्लेंडर फोरम, डिस्ट्रिक्ट सेंटर, जसोला नई दिल्ली-110025
2. एल्डिको हाउसिंग एण्ड इण्डस्ट्रीज लि0, द्वारा प्रोजेक्ट डायरेक्टर, लखनऊ आफिस 2nd फ्लोर, एल्डिको कार्पोरेट चैम्बर – I, (अपोजिट मण्डी परिषद), विभूति खण्ड, गोमती नगर, लखनऊ-226010 (यू0पी0)
...................विपक्षीगण
समक्ष:-
1. माननीय न्यायमूर्ति श्री अशोक कुमार, अध्यक्ष।
2. माननीय श्री राजेन्द्र सिंह, सदस्य।
परिवादीगण की ओर से उपस्थित : श्री विष्णु कुमार मिश्रा,
विद्वान अधिवक्ता।
विपक्षीगण की ओर से उपस्थित : श्री विकास अग्रवाल,
विद्वान अधिवक्ता।
दिनांक: 01.04.2022
माननीय श्री राजेन्द्र सिंह, सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
परिवादीगण की ओर से उपस्थित अधिवक्ता श्री विष्णु कुमार मिश्रा एवं विपक्षीगण की ओर से उपस्थित अधिवक्ता श्री विकास अग्रवाल को सुना तथा पत्रावली का परिशीलन किया।
परिवादीगण द्वारा यह परिवाद इस आशय का प्रस्तुत किया गया कि उन्होंने विपक्षीगण से सम्पर्क किया तब उन्हें बताया गया कि फ्लैट संख्या-303, टावर-2 एल्डिको अटर्निया अपार्टमेन्ट, सीतापुर रोड, लखनऊ में स्थित है, जो श्रीमती मंजू सक्सेना और सुश्री एकता सक्सेना के नाम
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से है और वे लोग इसे हस्तांतरित करना चाहते हैं। परिवादीगण ने उनसे बात की और फिर दिनांक 10.05.2011 को एक करार किया और विपक्षीगण से इस सम्बन्ध में अनुमति मांगी। इस सम्बन्ध में विपक्षीगण ने छूट देने के उपरान्त 2,85,000/-रू0 की मांग की। सभी औपचारिकतायें पूरी करने के उपरान्त दिनांक 08.08.2015 की टिप्पणी के साथ यह भवन परिवादीगण को हस्तांतरित कर दिया गया।
हमने उभय पक्ष के अधिवक्तागण को सुना तथा पत्रावली का परिशीलन किया।
इस पत्रावली पर परिवादीगण श्रीमती अर्चना अग्रवाल और श्री विजेश मोहन की ओर से विपक्षी कम्पनी को भेजे गये पत्र दिनांक 16.09.2016 की प्रति प्रस्तुत है, जिसमें परिवादीगण ने कहा है कि यदि कम्पनी उनके ऊपर बकाया 48,899/-रू0 के शुल्क को माफ कर देती है तब वे लोग भविष्य में उनके विरूद्ध किसी प्रकार की कार्यवाही, दीवानी अथवा फौजदारी, प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष अथवा किसी भी विधि के प्राविधान के अन्तर्गत प्रस्तुत नहीं करेंगे। विपक्षीगण की ओर से कहा गया और विपक्षीगण ने इस सम्बन्ध में अपना शपथ पत्र भी दिया कि उनके द्वारा यह शुल्क माफ कर दिया गया था इसके बावजूद वर्तमान परिवाद प्रस्तुत करना विधि विरूद्ध और जानबूझकर विपक्षीगण को परेशान करने के लिए है। विपक्षीगण ने प्रस्तुत साक्ष्य दिनांक 08.09.2021 की धारा-9 में स्पष्ट रूप से कहा है कि उनके द्वारा 48,899/-रू0 की धनराशि माफ कर दी गयी है और यह उनके विरूद्ध बकाये की धनराशि से घटा दिया गया है, जिसका भुगतान परिवादीगण ने कर भी दिया है। परिवादीगण के विद्वान अधिवक्ता इसका कोई उत्तर नहीं दे सके कि जब उन्होंने विपक्षी से उक्त धनराशि को माफ करने की याचना की और विपक्षी ने उस धनराशि को माफ कर दिया फिर उसके बावजूद भी उनके द्वारा यह परिवाद क्यों प्रस्तुत किया गया।
सम्पूर्ण तथ्यों को देखते हुए हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि यह न्यायिक प्रक्रिया का दुरूपयोग है और न्यायालय के कीमती समय को नष्ट करना है। ऐसी स्थिति में परिवाद इसी स्तर पर खारिज करने के
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साथ-साथ परिवादीगण पर 20,000/-रू0 का दण्डात्मक शुल्क लगाया जाना समीचीन है।
आदेश
परिवाद सव्यय निरस्त किया जाता है। परिवादीगण के ऊपर 20,000/-रू0 का हर्जाना न्यायिक प्रक्रिया का दुरूपयोग करने के लिए लगाया जाता है, जो वे ''आल यू0पी0 कन्ज्यूमर प्रोटेक्शन बार एसोसिएशन, लखनऊ'' के भारतीय स्टेट बैंक के एकाउण्ट नं0-10616665442 में जमा करें और जमा करने का प्रमाण पत्र 10 दिन के अन्दर इस न्यायालय के सम्मुख प्रस्तुत करें अन्यथा यह माना जायेगा कि आदेश का अनुपालन नहीं हुआ है और तदनुसार इस सम्बन्ध में अग्रेतर कार्यवाही सुनिश्चित की जायेगी।
आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय/आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।
(न्यायमूर्ति अशोक कुमार) (राजेन्द्र सिंह)
अध्यक्ष सदस्य
जितेन्द्र आशु0
कोर्ट नं0-1