जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, प्रथम, लखनऊ।
परिवाद संख्या:- 988/2020
उपस्थित:-श्री नीलकंठ सहाय, अध्यक्ष।
श्रीमती सोनिया सिंह, सदस्य।
श्री कुमार राघवेन्द्र सिंह, सदस्य।
परिवाद प्रस्तुत करने की तारीख:-26.1.2020
परिवाद के निर्णय की तारीख:-31.05.2024
श्रीमती पूर्णिमा शर्मा, आयु लगभग 58 वर्ष, पत्नी श्री शेषमणि शर्मा, निवासिनी-647-एफ/50, सेक्टर-आई, शिव विहार कालोनी, जानकीपुरम, लखनऊ।
................परिवादिनी।
बनाम
1. इफ्को टोकियो जनरल इंश्योरेंस कम्पनी लिमिटेड, द्वारा निदेशक इफ्को सदन, C 1 सेंटर साकेत, न्यू देलही-110017 ।
2. प्रबन्धक, इफ्को टोकियो जनरल इंश्योरेंस कम्पनी लिमिटेड शाखा-8 गोखले मार्ग, लखनऊ। ..................विपक्षीगण।
परिवादी के अधिवक्ता का नाम:-श्री रोहित मिश्रा।
विपक्षी संख्या 01 व 02 के अधिवक्ता का नाम:-श्री गोविन्द चतुर्वेदी।
आदेश द्वारा-श्री नीलकंठ सहाय, अध्यक्ष।
निर्णय
1. परिवादी द्वारा प्रस्तुत परिवाद अन्तर्गत धारा-35 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम-2019 के अन्तर्गत इस आशय से प्रस्तुत किया गया है कि विपक्षीगण को तलब कर उनसे परिवादिनी को 2,00,000.00 रूपये बतौर मुआवजा दिलवाया जाए तथा मुकदमा व डिक्री धन पर परिवा दाखिल किये जाने की तिथि से भुगतान की तिथि तक 09 प्रतिशत वार्षिक ब्याज दिलाये जाने की प्रार्थना के साथ प्रस्तुत किया गया है।
2. संक्षेप में परिवाद के कथन इस प्रकार हैं कि परिवादिनी ने मोटर साइकिल संख्या यूपी0 32 एच.सी. 6004, इंजन संख्या-2001698 चेचिस संख्या-ई-01691(टी0वी0एस0 अपाचे आर0टी0आर0-200) का बीमा विपक्षी से करवाया था, जिसका पालिसी नम्बर-एम.1156109 है, उक्त बीमे की वैधता अवधि दिनॉंक 24.06.2018 से 23.06.2019 तक थी।
3. उक्त वैधता अवधि समाप्त होने के पूर्व ही दिनॉंक-04.10.2018 को परिवादिनी का उक्त वाहन चोरी हो गया। चोरी की जानकारी प्राप्त होते ही पुलिस को 100 नम्बर पर डायल कर सूचना दी गयी। एफ0आई0आर0 दिनॉंक 06.10.2018 को दर्ज हुई। चोरी की घटना वेब मॉल में सिनेमा देखने की दौरान हुई। परिवादिनी का उक्त वाहन निर्धारित पार्किंग स्थल पर शुल्क दे कर खड़ा किया गया था। वाहन चोरी की घटना की प्रथम सूचना रिपोर्ट परिवादिनी के पुत्र यशमणि शर्मा द्वारा थाना विभूतिखण्ड लखनऊ में दी गयी तहरीर के आधार पर घटना के दो दिन बाद दर्ज की गयी।
4. प्रथम सूचना के आधार पर स्थानीय पुलिस द्वारा अपराध संख्या 651/2018 अन्तर्गत धारा-379 आई0पी0सी0 राज्य बनाम अज्ञात दर्ज कर लिया तथा विवेचना के उपरान्त अंतिम आख्या संख्या 01 दिनॉंक 25.12.2018 माननीय न्यायालय श्रीमान मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट लखनऊ में दाखिल कर दी। माननीय न्यायालय ने थाना विभूतिखण्ड, लखनऊ द्वारा दाखिल अंतिम आख्या प्राप्त होने के बाद मामले को प्रकीर्णवाद संख्या 2776/2016 के रूप में दर्ज किया तथा आदेश दिनॉंकित 27.05.2019 के द्वारा अंतिम आख्या स्वीकार कर ली गयी।
5. परिवादिनी ने चोरी गए अपने वाहन से संबंधित बीमा दावा विपक्षी कम्पनी को वांछित सूचनाओं एवं अभिलेखों सहित दिनॉंक 11.10.2018 को प्रेषित कर दिया। विपक्षी संख्या 02 ने अपने पत्र दिनॉंकित 02.05.2019 के माध्यम से न्यायालय द्वारा स्वीकार की गयी अंतिम आख्या की प्रमाणित प्रति, एफ0आई0आर0 तथा आई0टी0जी0आई0 को विलंब से रिपोर्ट करने का स्पष्टीकरण मांगा जिसमें अनुक्रम में परिवादिनी ने अपने पत्र दिनॉंकित 03.06.2019 के माध्यम से माननीय न्यायालय सी0जे0एम0 लखनऊ द्वारा पुलिस की अंतिम आख्या को स्वीकार करने के आदेश दिनॉंक 27.05.2019 की सत्यापित प्रति तथा पुलिस द्वारा दाखिल अंतिम आख्या की माननीय न्यायालय द्वारा सत्यापित प्रति विपक्षी संख्या 02 को प्राप्त करा दी।
6. एफ0आई0आर0 में तथा बीमा दावे में विलंब के स्पष्टीकरण का प्रश्न है परिवादिनी ने अपने पत्र दिनॉंकित 17.06.2019 द्वारा अपना स्पष्टीकरण विपक्षी को प्रेषित कर दिया गया था। परिवादिनी द्वारा समस्त सूचनायें एवं अभिलेख प्राप्त कराने के बावजूद विपक्षीगण ने परिवादिनी के दावे का भुगतान करने के बजाए पुन: निम्नलिखित तीन दस्तावेज पत्र दिनॉंकित 05.08.2019 व 16.08.2019 द्वारा मॉंगे (1) पार्किंग स्लिप (2) सिनेमा के टिकट तथा (3) 100 नम्बर पर कॉल का विवरण।
7. परिवादिनी का कथन है कि समस्त वांछित सूचनाऍं एवं अभिलेख विपक्षी संख्या 02 को परिवादिनी के स्तर से दिनॉंक 03.06.2019 को प्राप्त कराए जा चुके हैं इसके बावजूद विपक्षीगण ने परिवादिनी के बीमा दावे का भुगतान नहीं किया गया है। बीमा विनियामक और विकास प्राधिकरण के दिशा-निर्देशों के अनुसार दावे का भुगतान निर्धारित 90 दिन की अवधि में न करते हुए विपक्षीगण ने परिवादिनी के प्रति सेवाओं में कमी की है। इस संदर्भ में विपक्षी को एक पंजीकृत नोटिस दिनॉंक 26.06.2020 को परिवादिनी की ओर से भेजा गया जो पोस्ट आफिस द्वारा बिना किसी टिप्पणी के वापस आ गया। पुन: एक पंजीकृत नोटिस दिनाँक 30.07.2020 को विपक्षी को भेजा गया परन्तु अभी तक विपक्षी ने परिवादिनी के बीमा दावे का भुगतान नहीं किया गया है।
8. विपक्षीगण ने उपस्थित होकर उत्तर पत्र प्रस्तुत किया तथा कथन किया कि मैनेजमेंट पार्टी को पक्षकार नहीं बनाया गया है। समस्त पत्रों को इनकार करते हुए यह कहा गया कि वाहन संख्या:- यूपी0 32 एच.सी. 6004 दिनॉंक 24.06.2018 से 23.06.2019 तक इन्श्योर्ड था। इन्श्योरेंस कम्पनी की डिक्लेयर वैल्यू 77,000.00 रूपये थी। दिनॉंक 04.02.2018 को चोरी हो गया। सर्वेयर द्वारा जॉंच करायी गयी और उन्होंने यह कहा कि वेब मॉल से चोरी होना बताया गया है, और पुलिस को 100 नम्बर पर सूचना दी गयी थी। कुछ दस्तावेज उनके द्वारा दिये गये थे। दिनॉंक 04.10.2018 को घटना हुई थी और सूचना दिनॉंक 11.10.2018 को दी गयी थी। प्रथम सूचना रिपोर्ट विलम्ब से दर्ज करायी गयी। माननीय न्यायालय की व्यवस्था के सापेक्ष में क्षेत्राधिकार नहीं है। परिवादिनी का परिवाद खारिज किये जाने योग्य है।
9. परिवादिनी ने अपने कथानक के समर्थन में शपथ पत्र एवं दस्तावेजी साक्ष्य के रूप में क्लेम फार्म, रजिस्ट्रेशन प्रमाण पत्र, एफ0आई0आर0, ओरिजनल पालिसी, प्रीवियस पालिसी, ड्राईविंग लाइसेंस एवं अन्य दस्तावेजों की छायाप्रतियॉं दाखिल की गयी हैं। विपक्षीगण की ओर से भी शपथ पत्र दाखिल किया गया है।
10. आयोग द्वारा उभयपक्ष के विद्वान अधिवक्ता के तर्कों को सुना गया तथा पत्रावली का परिशीलन किया गया।
11. परिवादिनी द्वारा लिखित बहस दाखिल की गयी है। परिवाद पत्र को साबित करने का भार परिवादिनी के ऊपर है।
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अन्तर्गत क्षतिपूर्ति प्राप्त करने के लिये निम्नलिखित दो तथ्यों को साबित किया जाना आवश्यक है –
1-एक परिवादिनी उपभोक्ता हो।
2-विपक्षी द्वारा सेवा में कमी की गयी हो।
जहॉं तक परिवादिनी का उपभोक्ता होने के संबंध है परिवादिनी द्वारा यह कहा गया कि परिवादिनी के पास मोटर साइकिल थी जिसका इन्श्योंरेंस विपक्षी इन्श्योरेंस कम्पनी से कराया गया था और विपक्षी द्वारा उक्त को अपने उत्तर पत्र में स्वीकार किया गया कि इनका वाहन दिनॉंक 24.06.2018 से 23.06.2019 तक बीमित था । चॅूंकि इन्श्योरेंस कम्पनी द्वारा स्वीकार किया गया है तो साबित किये जाने की कोई आवश्यकता नहीं है। परिवादिनी विपक्षी की उपभोक्ता है।
विपक्षी द्वारा सेवा में कमी।
12. विपक्षी के अधिवक्ता द्वारा यह तर्क प्रस्तुत किया या कि मोटर साइकिल चॅूंकि जहॉं फिल्म देखने के दौरान चोरी हो गयी थी, अत: यह वेलमेन्ट केस है। जहॉं वेलमेंट का केस होता है वह विपक्षी बीमा कम्पनी को भुगतान करने का दायित्व नहीं है। इस परिप्रेक्ष्य में उन्होंने Taj Mahal Hotel Vr. United India Insurance Company Limited and others 2020 Supereme Court Cases 224 के आवेदन का संदर्भ दाखिल किया गया है। मैंने मा0 न्यायालय द्वारा पारित विधि व्यवस्था का ससम्मानपूर्वक अवलोकन किया। मा0 न्यायालय द्वारा यह कहा गया कि बेलमेंट के केस में होटल द्वारा गेस्ट के बीच में पाया जाता है तो होटल का दायित्व होगा।
13. परिवादिनी के अधिवक्ता द्वारा तर्क प्रस्तुत किया गया कि उक्त विधि व्यवस्था के अवलोकन से प्रकरण की परिस्थितियॉं भिन्न है इस परिप्रेक्ष्य में उन्होंने यह कहा कि यह बेलमेंट का केस होने के कारण होटल को जिम्मेदार माना गया है। जब यहॉं पर चोरी हुई बेलमेंट का केस नहीं है। वास्तव में उपरोक्त विधि-व्यवस्था इस प्रकरण में लागू है या नहीं के संबंध में बेलमेंट एवं चोरी में क्या अन्तर है जानना आवश्यक है। यह तथ्य विवाद का विषय नहीं है कि फिल्म देखने के दौरान मोटर साइकिल वेब माल से चोरी हो गयी और इनके द्वारा ताज महल के होटल में बेलमेंट पार्किंग का मामला है, जबकि परिवादी का मामला सेल्फ पार्किंग से संबंधित है।
14. बेलमेंट पार्किंग ग्राहकों को होटल आदि में दी जाने वाली एक सुविधा है जिसमें होटल का एक कर्मचारी वाहन की चाबी लेकर उसे अपनी जिम्मेदारी पर पार्किंग करता है और एसी परिस्थिति में वाहन चोरी होने पर होटल अपनी जिम्मेदारी से नहीं बच सकता। बैलेट पार्किंग ताज महल सुप्रा के प्रकरण में था और परिवादी द्वारा सेल्फ पार्किंग वेब माल बेलमेंट पार्किंग से चोरी हुई थी। अत: उपरोक्त विधि व्यवस्था मामले के तथ्य एवं परिस्थिति भिन्न होने के कारण लागू नहीं हैं।
विपक्षी द्वारा Deepak Giri Vs SRM Motors Pvt. Ltd. & 2 Others का सन्दर्भ दाखिल किया गया है, मैंन विधि व्यवस्था का ससम्मानपूर्वक अवलोकन किया। उक्त विधि व्यवस्था प्रकरण के तथ्य भिन्न होने के कारण लागू नहीं है।
15. विपक्षी द्वारा न्यू इण्डिया इन्श्योरेंस कम्पनी लिमि0 बनाम देलही डेवलपमेंट अथारिटी (एआईआर) 298 का सन्दर्भ दाखिल किया गया। उपरोक्त विधि व्यवस्था का अवलोकन किया उसमें डेलही डेवलपमेंट अथारिटी के पार्किंग में जमा किया गया था उन्होंने वेलमेंट को माना। परन्तु यह विधि व्यवस्था इस प्रकरण में लागू नहीं है। वेलमेट के संबंध में ताजमहल सुप्रा का भी अवलोकन किया। इसी तथ्य को इसमें भी कहा गया है और वेब माल एक सिनेमा हाल है यह सेल्फ पार्किंग का मामला है। यह विधि व्यवस्था इस प्रकरण में लागू नहीं है
16. रेपुडिएशन के संबंध में यह कहा गया कि विलम्ब से सूचना दर्ज करायी गयी। दिनॉक 04.10.2018 को वाहन चोरी हुआ और एफ0आई0आर दर्ज कराने में दो दिन की देरी की गयी। घटना के तत्काल बाद 100 नम्बर पर सूचना दी गयी। इस कारण यह नहीं कहा जा सकता कि एफ0आई0आर0 में कोई देरी परिवादिनी की ओर से की गयी।
17. बीमाकर्ता को सात दिन में सूचना दिये जाने के संबंध में यह कहा गया कि यह युक्ति युक्त समय व्यतीत हुआ है परिवादिनी द्वारा एफ0आई0आर0 दिनॉंक 06.10.2018 को दर्ज करायी गयी। परिवादिनी द्वारा बार-बार थाने जाने पर प्रतिलिपि प्राप्त होने पर दिनॉंक 11/10/2019 को तत्काल प्रस्तुत कर दी गयी। अत: कोई भी विलम्ब नहीं है। यह एक सामान्य बात है कि मात्र दो-चार दिन के विलम्ब के आधार पर जहॉं पर पुलिस का इन्वाल्मेंट हो देरी होना स्वाभाविक है। बीमा क्लेम को रेपुडिएट नहीं किया जा सकता।
18. विपक्षी के विद्वान अधिवक्ता द्वारा कहा गया कि स्टैण्ड मालिक आवश्यक पक्षकार है। जहॉं तक स्टैण्ड प्रबंधन को पक्षकार बनाए जाने का प्रश्न है वह आवश्यक पक्षकार नहीं है तथा कोई भी दावा इस आधार पर खारिज नहीं किया जा सकता है कि किसी औपचारिक पक्षकार को दावे में नहीं जोड़ा गया है। OIR-09-CPC निम्नानुसार :-No suit shall be defeated by reasons of mis-joinder or non-joinder of parties and the court may in every deal with the matter in controversy so for as regards the rights and intrests of the parties actually before it:
Provided that nothing in this rule shall apply to non-joinder of necessary party.
विपक्षी बीमा कम्पनी है जो एक आवश्यक पक्षकार है। इन्ही को परिवादिनी ने दावे में पक्षकार बनाया है अत: परिवादिनी का दावा नान ज्वाइन्डर के आधार पर खारिज नहीं किया जा सकता है।
19 विपक्षी ने चोरी होना स्वीकार किया है, क्योंकि उसने उत्तर पत्र में इस तथ्य का उल्लेख किया है कि उसने इन्वेस्टीगेशन भी कराया था इसलिए इस बात की पुष्टि होती है कि चोरी हुई है, और रेपुडिएशन का आधार यह कहा है कि एफ0आई0आर0 दो दिन विलम्ब से दर्ज करायी गयी है और सात दिन बाद उन्होंने दाखिल किया है। परिवाद पत्र के अवलोकन से विदित है कि परिवादिनी ने जिस समय मोटर साइकिल की चोरी हुई वहॉं उसने जानकारी होने पर तत्काल 100 नम्बर पर सूचना दी थी तथा मोटर साइकिल तलाशने का प्रयास करना शुरू कर दिया और दो दिन बाद एफ0आई0आर0 हुई । सर्वोच्च न्यायालय द्वारा गुरशिंदर सिंह बनाम श्री राम जनरल इंश्योरेंस कम्पनी 2020 (II) एस.सी.सी.-612 में प्रतिपादित किया गया है:-
“We find that in Om Prakash (SUPRA) has rightly held that mere delay i intimating the insurance company about the theft of vehicle should not be a shelter to repudiate in insurance claim which has been otherwise proved to be genuine. अत: रेपुडिएशन उपयुक्त प्रतीत नहीं होता है।
20. विपक्षी के अधिवक्ता द्वारा यह भी कहा गया कि परिवादी का परिवाद न्यासभंग के कारण योजित हुआ, इसलिए उसका विपक्षी उत्तरदायित्व नहीं है। यह तथ्य सही है कि चोरी का उल्लेख किया गया है। जब कोई व्यक्ति किसी चोरी की गयी सम्पत्ति को किसी तृतीय पक्ष के इस्तेमाल करने के उद्देश्य से किसी तीसरे पक्ष को सुरक्षा करने की स्थिति से देता है तब वह न्यासभंग की श्रेणी में आयेगा और वह अपने लिये इस्तेमाल करेगा। परिवाद पत्र के कथानक के अनुसार यह न्यासभंग का मामला नहीं प्रतीत होता है। चॅूंकि इस सन्दर्भ में एफ0आई0आर0 लिखायी गयी है। मामला 406 आई0पी0सी0 के तहत न्यासभंग का यह प्रकरण नहीं है। परिवादी का वाहन वैलिड पार्किंग से चोरी नहीं हुआ है बल्कि सेल्फ पार्किंग से चोरी हुआ है ऐसा प्रतीत होता है कि वाहन की चोरी खुद स्टैण्ड वाले ने तृतीय पक्ष से कराया है। विपक्षी ने कोई भी ऐसा साक्ष्य प्रस्तुत नहीं किया है जिससे यह साबित हो सके कि उसने चोरी की या उसके द्वारा न्यासभंग किया गया है यह साबित नहीं होता है।
21. अत: यह प्रकरण न्यासभंग का नहीं होना पाया जाता है। अत: विपक्षी के विद्वान अधिवक्ता के तर्कों से सहमत नहीं हॅूं। अत: मेरे विचार से पार्किंग वाला व्यक्ति आवश्यक पक्षकार नहीं है। उपरोक्त सम्पूर्ण विवेचन के आधार पर परिलक्षित होता है कि विपक्षीगण द्वारा रेपुडिएशन करके सेवा में कमी की गयी है। अत: परिवादिनी के वाहन की आई0डी0वी0 की धनराशि रू0 77,000.00 प्राप्त करने की अधिकारी है। अत: परिवादिनी का परिवाद आंशिक रूप से स्वीकार किये जाने योग्य है।
आदेश
22. परिवादिनी का परिवाद आंशिक रूप से स्वीकार किया जाता है।
विपक्षीगण को निर्देशित किया जाता है कि वह मोटर साइकिल की आई.डी.वी. मूल्य के अनुसार मुबलिग:-77,000.00 (सतहत्तर हजार रूपया मात्र) मय 09 प्रतिशत वार्षिक ब्याज के साथ वाद दायर करने की तिथि से भुगतान की तिथि तक अदा करेंगे।
परिवादिनी को हुए मानसिक, शारीरिक एवं आर्थिक कष्ट के लिये मुबलिग 25,000.00 (पच्चीस हजार रूपया मात्र) एवं वाद व्यय के लिये मुबलिग 10,000.00 (दस हजार रूपया मात्र) भी भुगतान करेंगे। यदि निर्धारित अवधि में आदेश का अनुपालन नहीं किया जाता है तो उपरोक्त सम्पूर्ण धनराशि पर 12 प्रतिशत वार्षिक ब्याज भुगतेय होगा।
पत्रावली पर उपलब्ध समस्त प्रार्थना पत्र निस्तारित किये जाते हैं।
निर्णय/आदेश की प्रति नियमानुसार उपलब्ध करायी जाए।
(कुमार राघवेन्द्र सिंह) (सोनिया सिंह) (नीलकंठ सहाय)
सदस्य सदस्य अध्यक्ष
जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, प्रथम,
लखनऊ।
आज यह आदेश/निर्णय हस्ताक्षरित कर खुले आयोग में उदघोषित किया गया।
(कुमार राघवेन्द्र सिंह) (सोनिया सिंह) (नीलकंठ सहाय)
सदस्य सदस्य अध्यक्ष
जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, प्रथम,
लखनऊ।
दिनॉंक:- 31.05.2024