उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
अपील संख्या– 220/2007 मौखिक
(जिला उपभोक्ता फोरम, ।। मुरादाबाद द्वारा परिवाद सं0- 260/2004 में पारित निर्णय/आदेश दिनांकित 11-10-2006 के विरूद्ध)
1-यूनियन आफ इंडिया द्वारा सेक्रेटरी मिनिस्टरी आफ कम्नीकेशन न्यू दिल्ली।
2- अधीक्षक, पोस्ट आफिस मुरादाबाद (नार्थ) मुरादाबाद। अपीलार्थीगण/विपक्षीगण
बनाम
दृगपाल पुत्र श्री चतुरी लाल, सहायक अध्यापक, नानक चन्द आर्दश इंटर कालेज, चंदौसी निवासी-15 श्याम नगर कालोनी सीकरी गेट, चंदौसी जिला- मुरादाबाद।
प्रत्यर्थी/परिवादी
समक्ष:-
माननीय श्री आर0सी0 चौधरी, पीठासीन सदस्य।
माननीय श्री गोवर्द्धन यादव, सदस्य।
अपीलकर्ता की ओर से उपस्थिति : डा0 उदय वीर सिंह, विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित : कोई नहीं।
दिनांक- 07-02-2017
माननीय श्री आर0सी0 चौधरी, सदस्य, द्वारा उद्घोषित
निर्णय
प्रस्तुत अपील जिला उपभोक्ता फोरम ।। मुरादाबाद द्वारा परिवाद सं0- 260/2004 में पारित निर्णय/आदेश दिनांकित 11-10-2006 के विरूद्ध प्रस्तुत की गई है, जिसमें जिला उपभोक्ता फोरम के द्वारा निम्न आदेश पारित किया गया है:-
परिवादी का परिवाद स्वीकार किया जाता है। विपक्षी को आदेशित किया जाता है कि विपक्षी एक माह के अन्दर मानसिक व आर्थिक क्षतिपूर्ति के रूप में 5000-00 रूपये, वालिया नर्सिगंहोम दिल्ली में जमा धनराशि 2880-00 रूपये, चेक क्लीयरेंस खर्च के 200-00 तथा 1000-00 रूपये परिवाद व्यय परिवादी को अदा करें। नियत अवधि में विपक्षी द्वारा समस्त धनराशि अदा न करने पर विपक्षी उक्त समस्त धनराशि इस आदेश की तिथि से अंतिम भुगतान की तिथि तक 12 प्रतिशत वार्षिक ब्याज सहित परिवादी को अदा करें।
संक्षेप में केस के तथ्य इस प्रकार से है कि परिवादी ने 500-00 रूप्ये प्रतिमाह किस्त का एक आर0डी0 खाता संख्या-21618 दिनांक 26-02-1999 को वर्ष की अवधि के लिए खुलवाया, जिसकी परिपक्वता तिथि 25-02-2004 था और परिपक्वता तिथि पर कुल अंकन 40,555-00 रूपये परिवादी को विपक्षी से प्राप्त करने का अधिकारी था। विपक्षी ने अन्य खाता धारकों से सुविधा शुल्क लेकर आर0डी0 का नकद भुगतान कर दिया और परिवादी द्वारा सुविधा शुल्क न देने पर परिपक्वता तिथि पर परिवादी को आर0 डी0 का भुगतान नहीं किया गया। परिवादी की पत्नी के आपरेशन हेतु परिवादी
(2)
को धन की आवश्यकता था और पत्नी के आपरेशन हेतु परिवादी ने 30,000-00 रूपये उधार लेकर दिनांक 01-03-2004 बुकिंग करा ली, क्योंकि फरवरी 2004 में परिवादी को उक्त आर0डी0 धनराशि मिल जाने की पूर्ण उम्मीद थी। दिनांक 26-02-2004 को परिवादी ने पोस्टमास्टर से अपने खाते की उक्त धनराशि को शीघ्र भुगतान करने हेतु कहा, लेकिन विपक्षी ने दिनांक 01-03-2004 को अपने आफिस के बजाये मुरादाबाद हेड पोस्ट आफिस द्वारा निर्गत चेक सं0-के-921958 अंकन 40555-00 रूपये जारी किया और चेक में जानबूझकर परिवादी का नाम दृगपाल के स्थान पर गलत नाम दुर्गपाल कर दिया। परिवादी को जल्दी थी, इसलिए बगैर ध्यान दिये परिवादी ने उक्त चेक अपने खाता पंजाब नेशनल बैंक में जमा किया, जो वाउन्स हुआ और दिनांक 15-03-2004 तक चेक का भुगतान नहीं हुआ। इस सम्बन्ध में परिवादी ने विपक्षी को एक नोटिस दिनांक 15-03-2004 को दिया, जिसका कोई माकूल जवाब विपक्षी ने नहीं दिया और धन के अभाव में परिवादी की पत्नी का आपरेशन नहीं हो सका और हास्पिटल द्वारा जमा एडवॉस धनराशि वापस करने से इंकार कर दिया गया और परिवादी की पत्नी असहनीय पीड़ा व रोग से रूबरू हो रही थी और परिवादी को एडवॉस मनी 30,000-00 रूपये का नुकसान हुआ और विपक्षी ने भुगतान करने में लापरवाही व उपेक्षा की है और चेक बाउंस होने पर 200-00 रूपये बैंक को देने पड़े।
जिला उपभोक्ता फोरम के समक्ष प्रतिवादीगण उपस्थित आये और अपना प्रतिवाद पत्र दाखिल किया, जिसमें कहा गया है कि अन्य खाताधारको को कोई नकद भुगतान नहीं किया गया और चेक बुक उपलब्ध न होने के कारण नकद भुगतान किया गया। परिवादी के खाते की अवधि दिनांक 26-02-2004 को पूर्ण हुई और भुगतान हेतु दिनांक 27-02-2004 को पासबुक प्रस्तुत की गई, जिसके भुगतान के लिये चेक बनाने हेतु दिनांक 01-03-2004 को प्रधान डाकघर मुरादाबाद को प्रार्थना पत्र भेजा गया तथा खातेदार को 40,555-00 रूपये का चेक नं0-921958 के द्वारा भुगतान कर दिया गया और भुगतान करने में कोई देरी नहीं की गई और न ही परेशान ही किया गया है। परिवादी कोई अनुतोष पाने का अधिकारी नहीं है। नियमानुसार 20,000-00 रूपये या इससे अधिक का भुगतान चेक द्वारा ही किया जाता है। परिवादी का यह आरोप गलत है। परिवाद निरस्त होने योग्य है।
अपीलार्थी की ओर से विद्वान अधिवक्ता डा0 उदयवीर सिंह, उपस्थित है। यह पत्रावली माननीय राष्ट्रीय आयोग से रिमाण्ड होने के बाद दिनांक 03-02-2014 को पेश हुई थी और उसके बाद प्रत्यर्थी को नोटिस जारी की गई, जिसकी रसीद चस्पा है। आदेश पत्र दिनांक 07-11-2014 से स्पष्ट
(3)
है कि प्रत्यर्थी पर नोटिस की तामील मान ली गई है और दोनों पक्षों को एक और अवसर देते हुए उपस्थित होने के लिए तिथि नियत की गई, परन्तु प्रत्यर्थी की ओर से कोई उपस्थित नहीं आया। अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता को सुना गया तथा जिला उपभोक्ता फोरम के निर्णय/आदेश दिनांकित-11-10-2006 का अवलोकन किया गया।
अपील आधार में कहा गया है कि दिनांक 01-03-2004 को परिवादी के पक्ष में चेक से 40,555-00 रूपये का भुगतान किया गया और अपीलार्थी को कोई अधिकार प्राप्त नहीं था कि 19,999-00 रूपये से अधिक नकद रूप से देता, इसलिए चेक से 40,555-00 का भुगतान किया गया और अपील आधार के पैरा-6 में उस नियम को भी उद्धृत किया गया है, जिसके अर्न्तगत पोस्ट आफिस के नियम इनकम टैक्स एक्ट के सेक्सन 269-7 में दर्शाया गया है। जिला उपभोक्ता फोरम ने दोनों पक्षों को सुन करके यह निष्कर्ष दिया है कि परिवादी को विपक्षी ने समय से धनराशि का भुगतान नहीं किया और जानबूझकर विपक्षी ने परिवादी का नाम चेक में गलत अंकित कर दिया और परिवादी अपने पत्नी का आपरेशन नहीं करा सका और अस्पताल ने परिवादी द्वारा जमा एडवॉस रूपया वापस नहीं किया।
केस के तथ्यों परिस्थितियों को देखते हुए हम यह पाते हैं कि पोस्ट आफिस ने अपने नियमों के अर्न्तगत बंधे होने के कारण वह 20,000-00 रूपये से अधिक रकम को नकद देने में असफल होने के कारण चेक के माध्यम से धनराशि का भुगतान किया गया और इस प्रकार से हम यह पाते हैं कि विपक्षी के तरफ से कोई सेवाओं में कमी नहीं किया गया है और जिला उपभोक्ता फोरम ने जो निर्णय/आदेश पारित किया है, वह विधि सम्मत् नहीं है और निरस्त किये जाने योग्य है। अपीलकर्ता की अपील स्वीकार होने योग्य है।
आदेश
अपीलकर्ता की अपील स्वीकार की जाती है तथा जिला उपभोक्ता फोरम, ।। मुरादाबाद द्वारा परिवाद सं0- 260/2004 में पारित निर्णय/आदेश दिनांकित 11-10-2006 को निरस्त किया जाता है। उभय पक्ष अपीलीय व्यय अपना-अपना वहन करेंगे।
(आर0सी0 चौधरी) (गोवर्द्धन यादव)
पीठासीन सदस्य सदस्य
आर.सी.वर्मा, आशु. कोर्ट नं03