Rajasthan

Nagaur

CC/297/2015

Shubhashchand - Complainant(s)

Versus

Dream India School - Opp.Party(s)

Sh Babulal Bhadu

15 Jun 2016

ORDER

Heading1
Heading2
 
Complaint Case No. CC/297/2015
 
1. Shubhashchand
Bus Stand
Nagaur
Rajasthan
...........Complainant(s)
Versus
1. Dream India School
Bassi Mohalla
NAGAUR
Rajasthan
............Opp.Party(s)
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. JUSTICE Shri Ishwardas Jaipal PRESIDENT
 HON'BLE MR. Balveer KhuKhudiya MEMBER
 HON'BLE MRS. Rajlaxmi Achrya MEMBER
 
For the Complainant:Sh Babulal Bhadu, Advocate
For the Opp. Party:
ORDER

जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष मंच, नागौर

 

परिवाद सं. 297/2015

 

सुभाशचन्द सर्वा पुत्र श्री रामाकिषन, जाति-दर्जी, निवासी-पुराना बस स्टेण्ड, डेह रोड, नागौर, जिला- नागौर (राज.)।                                                                                                                                                                                                                                            -परिवादी     

बनाम

 

1.            प्रबंधक, ड्रिम इण्डिया स्कूल, अजमेरी गेट के अन्दर, बस्सी मौहल्ला, नागौर, तहसील व जिला-नागौर (राज.)।   

               

                                                     -अप्रार्थी    

 

समक्षः

1.            श्री ईष्वर जयपाल, अध्यक्ष।

2.            श्रीमती राजलक्ष्मी आचार्य, सदस्या।

3.            श्री बलवीर खुडखुडिया, सदस्य।

 

उपस्थितः

1.            श्री बाबूलाल भादू, अधिवक्ता, वास्ते प्रार्थी।

2.            श्री मो. आरिफ, अधिवक्ता, वास्ते अप्रार्थी।

 

    अंतर्गत धारा 12 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम ,1986

 

                          आ  दे  ष           दिनांक 15.06.2016

 

 

1.            यह परिवाद अन्तर्गत धारा 12 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 संक्षिप्ततः इन सुसंगत तथ्यों के साथ प्रस्तुत किया गया कि परिवादी ने अप्रार्थी स्कूल के प्रचार-प्रसार से प्रभावित होकर दिनांक 08.06.2015 को अपने पुत्र हिमांषु का प्रवेष द्वितीय कक्षा में करवाया। इसी के साथ अप्रार्थी ने परिवादी से समय-समय पर अलग-अलग रसीदों के जरिये 9,094/- रूपये प्राप्त किये। जो असल रसीदें परिवादी के पास सुरक्षित है। अप्रार्थी ने  कथित स्कूल में प्रवेष के समय जैसा प्रचार-प्रसार किया व अध्यापन की व्यवस्थाएं एवं सुविधाएं बताई, वैसी स्कूल में नहीं थी। जिससे परिवादी के बच्चे का पढाई का स्तर जो प्रवेष से पूर्व था, उससे ज्यादा कमजोर होने लग गया। जिस पर परिवादी ने स्कूल में जाकर पता किया तो मालूम पडा कि अप्रार्थी ने स्कूल में पढाई की व्यवस्थाएं बताई तथा जो प्रचार-प्रसार किया, वैसा वहां कुछ नहीं था। इस दौरान परिवादी को यह भी जानकारी हुई कि अप्रार्थी स्कूल को कोई सरकारी मान्यता भी नहीं है फिर भी मान्यता होना बताकर बच्चों के भविश्य के साथ खिलवाड किया जा रहा है। अप्रार्थी का उक्त कृत्य गैर कानूनी एवं अनफेयर ट्रेड प्रेक्टिस की तारीफ में आता है। इसके अलावा अप्रार्थी के यहां न तो बच्चों के पढने की उचित व्यवस्था है, न खेल का मैदान है, न ट्रेंड टीचर है, न अन्य व्यवस्थाएं हैं। इस बारे में परिवादी ने अप्रार्थी को ओलमा दिया तो अप्रार्थी ने जल्द सुधार का आष्वासन दिया और स्कूल को मान्यता होने का झूठा कथन करता रहा, लेकिन स्कूल की व्यवस्था में कोई सुधार नहीं हुआ बल्कि उतरोतर व्यवस्थाएं बिगडती गई। ऐसे में परिवादी को मजबूरन अपने बच्चे का अन्य स्कूल में एडमिषन कराना पडा। इस तरह अप्रार्थी ने छल कपट, धोखाधडी, मिथ्या घोशणा एवं गलत प्रचार-प्रसार से उसे प्रभावित कर उसके बच्चे का बिना मान्यता के ही स्कूल में प्रवेष करा लिया और उसका षैक्षिक स्तर को कमजोर कर दिया और उससे फीस के रूपये भी ले लिये। अप्रार्थी ने बच्चे को अन्यत्र प्रवेष के बावजूद जमा फीस वापस नहीं की। जिस पर उसे नोटिस भी दिया गया। इस तरह अप्रार्थी की मनमर्जी से उसे भारी नुकसान उठाना पडा। अप्रार्थी का यह सम्पूर्ण कृत्य अनफेयर ट्रेड प्रेक्टिस की तारीफ में आता है। अतः परिवादी को अप्रार्थी से फीस राषि 9,094/- रूपये मय ब्याज दिलाये जावे। साथ ही अप्रार्थी के उपेक्षापूर्ण व गैर कानूनी कृत्य से परिवादी को हुई मानसिक, षारीरिक क्षति के रूप में 50,000/- रूपयेे एवं परिवाद व्यय के 10,000/- रूपये दिलाये जावें।

 

2.            अप्रार्थी द्वारा अपने विद्यालय में परिवादी के पुत्र को प्रवेष देना तथा परिवादी द्वारा कुल 7,400/- रूपये फीस जमा कराने के तथ्य को स्वीकार करते हुए बताया है कि अप्रार्थी के स्कूल का संचालन रजिस्ट्रर्ड सोसायटी ड्रिम इण्डिया फाउंडेषन सोसायटी के तहत किया जाता है एवं स्थानीय जिला षिक्षा अधिकारी के कार्यालय से षैक्षणिक सत्र 2015-16 से 2017-18 तक मान्यता प्राप्त कर रखी है एवं इस स्कूल का संचालन नो प्रोफिट नो लाॅस के नियम अनुसार किया जा रहा है। अप्रार्थी ने बताया है कि परिवादी ने दिनांक 08.06.2015 को केवल मात्र 1,000/- रूपये एडमिषन फीस जमा करवाकर अपने पुत्र का अस्थाई प्रवेष करवाया था एवं उसके पष्चात् संतुश्ट होकर लगभग दो माह बाद दिनांक 06.08.2015 को बकाया एडमिषन फीस एवं षिक्षण षुल्क जमा करवाया था। यह भी बताया गया है कि परिवादी का पुत्र प्रवेष के पष्चात् पन्द्रह दि नही स्कूल आया था तथा उसके बाद स्कूल नहीं आया। अप्रार्थी ने बताया है कि उनके स्कूल में सभी मूलभूत सुविधायें जैसे फर्नीचर, प्रक्षिषित स्टाफ व खेल आदि की सभी सुविधायें उपलब्ध है तथा इन्हीं मूलभूत सुविधाओं के आधार पर स्कूल को मान्यता प्राप्त हुई है। अप्रार्थी ने बताया है कि परिवादी द्वारा स्कूल प्रषासन से रूपयों की अनुचित मांग की गई जो मना करने पर अप्रार्थी स्कूल को बदनाम करने तथा नाजायज तंग परेषान करने के आषय से यह परिवाद पेष किया गया है, जो मय खर्चा खारिज किया जावे।

 

3.            दोनों पक्षों की ओर से अपने-अपने षपथ-पत्र एवं दस्तावेजात पेष किये गये।

 

4.            बहस अंतिम योग्य अधिवक्ता पक्षकारान सुनी गई। परिवादी की ओर से अपने परिवाद के समर्थन में स्वयं का षपथ-पत्र प्रस्तुत करने के साथ ही नोटिस प्रदर्ष 1, पोस्टल रसीद प्रदर्ष 2 व 3, फीस जमा कराने की रसीदें क्रमषः प्रदर्ष 4, 5 व 6 पेष किये गये हैं। परिवादी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क रहा है कि अप्रार्थी का स्कूल मान्यता प्राप्त नहीं होने के कारण एवं स्कूल में पढाई की उचित व्यवस्था नहीं होने के कारण परिवादी अपने पुत्र को स्कूल में नहीं पढा सका, ऐसी स्थिति में उसके द्वारा जमा करवाई गई फीस वापस दिलवाने के साथ ही मानसिक क्षति की पूर्ति हेतु परिवादी को 50,000/- रूपये दिलाये जावे।

 

5.            उक्त के विपरित अप्रार्थी पक्ष की ओर से जवाब के समर्थन में षपथ-पत्र पेष करने के साथ ही मान्यता प्रमाण-पत्र प्रदर्ष ए 1 तथा षैक्षिणिक संस्था का पंजीयन प्रमाण-पत्र प्रदर्ष ए 2 पेष किये गये। अप्रार्थी के विद्वान अधिवक्ता का मुख्य तर्क यह रहा है कि परिवादी को मामला उपभोक्ता विवाद नहीं होने के कारण परिवाद खारिज किया जावे।

 

6.            पक्षकारान के विद्वान अधिवक्तागण द्वारा दिये गये तर्कों पर मनन कर पत्रावली पर उपलब्ध समस्त सामग्री का सावधानीपूर्वक अवलोकन किया गया। पत्रावली पर उपलब्ध प्रलेख प्रदर्ष ए 1 के आधार पर स्पश्ट है कि अप्रार्थी का स्कूल नियमानुसार मान्यता प्राप्त रहा है, जहां स्कूल हेतु आवष्यक सभी मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध रही है। परिवादी द्वारा ही प्रस्तुत फीस जमा कराने की रसीद प्रदर्ष 6 से स्पश्ट है कि परिवादी ने अपने पुत्र के प्रवेष हेतु 1,000/- रूपये की फीस दिनांक 08.06.2015 को जमा करवाई थी तथा बकाया फीस प्रदर्ष 4 एवं प्रदर्ष 5 अनुसार दिनांक 08.08.2015 को जमा करवाई थी। उपर्युक्त स्थिति से अप्रार्थी के जवाब की पुश्टि होते हुए स्पश्ट है कि परिवादी ने पहले अपने पुत्र का अस्थार्यी प्रवेष करवाया तथा बाद में संतुश्ट होकर ही दिनांक 06.08.2015 को बकाया फीस जमा करवाई थी। ऐसी स्थिति में यह नहीं माना जा सकता कि परिवादी ने मात्र अप्रार्थी के प्रचार-प्रसार से प्रभावित होकर अप्रार्थी के स्कूल मंे अपने पुत्र का प्रवेष करवाया हो।

 

7.            अप्रार्थी के विद्वान अधिवक्ता की मुख्य आपति यह रही है कि परिवादी एवं अप्रार्थी स्कूल के मध्य कोई उपभोक्ता विवाद नहीं रहा है क्योंकि इस मामले में परिवादी, अप्रार्थी का उपभोक्ता नहीं है। माननीय राश्ट्रीय आयोग द्वारा दिनांक 06.08.2012 को दिल्ली विष्वविद्यालय बनाम मोहम्मद ए.एम. अबलकरीम में पारित आदेष का अवलोकन करने के साथ ही सुसंगत विधि का अवलोकन किया गया। उपर्युक्त वर्णित दिल्ली विष्वविद्यालय वाले मामले में परिवादी ने पी.एच.डी. कोर्स हेतु विष्वविद्यालय में पंजीयन कराया था, जिसे बाद में विष्वविद्यालय ने किन्ही कारणों से निरस्त कर दिया तथा यह मामला राश्ट्रीय आयोग में आने पर माननीय राश्ट्रीय आयोग का मत रहा कि यह मामला उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 के तहत चलने योग्य नहीं है। माननीय राश्ट्रीय आयोग ने इस मामले को निर्णित करने हेतु मुख्य रूप से बिहार स्कूल एक्जामिनेषन बोर्ड बनाम सुरेष प्रसाद सिन्हा (2009) 8 एस.सी.सी. 483 वाले मामले का अवलम्ब लिया है, जिसमें माननीय उच्चतम् न्यायालय ने अभिनिर्धारित किया है कि

  1. ‘The process of holding examinations, evaluating answer scripts, declaring results and issuing certificates are different stages of a single statutory non-commercial function. It is not possible to divide this function as partly statutory and partly administrative. When the Examination Board conducts an examination in discharge of its statutory function, it does not offer its “services” to any candidate. Nor does a student who participates in the examination conducted by the Board, hires or avils of any services from the Board for a consideration. On the other hand, a candidate who participates in the examination conducted by the Board, is a person who has undergone a course of study and who requests the Board to test him as to whether he has imbibed sufficient knowledge to be fit to be declared as having successfully completed the said course of education; and if so, determine his position or rank or competence vis- -vis other examinrrs. The process is not therefore availment of a service by a student, but participation in a general examination conducted by the Board to ascertain whether he is eligible and fit to be considered as having successfully completed the secondary education course. The examination fee paid by the student is not the consideration for availment of any service, but the charge paid for the privilege of participation in the examination. The Act does not intend to cover discharge of a statutory function of examining whether a candidate is fit to be declared as having successfully completed a course by passing the examination. The fact that in the course of conduct of the examination, or evaluation of answer-scripts, or furnishing of mark-sheets or certificates, there may be some negligence, omission or deficiency, does not convert the Board into a service-provider for a consideration, nor convert the examinee into a consumer who can make a complaint under the Act. The Board is not a service-provider and a student who takes an examination is not a consumer and consequently, complaint under the Act will not be maintainable against the Board.’

 

8.            इसी प्रकार माननीय उच्चतम् न्यायालय ने हाल ही में सिविल अपील नम्बर 697/14 इण्डियन इंस्टीट्यूट आॅफ बैंक एण्ड फाईनेंस बनाम मुकुल श्रीवास्तव में पारित निर्णय दिनांक 17.01.2014 में भी 2009 (8) एस.सी.सी. बिहार स्कूल एग्जामिनेषन बोर्ड बनाम सुरेष प्रसाद सिन्हा के साथ-साथ महर्शि दयानन्द यूनिवर्सिटी बनाम सुरजीत कौर 2010 (11) एस.सी.सी. 159 एवं जगमित्र सेन भगत बनाम डायरेक्टर हेल्थ सर्विसेज हरियाणा व अन्य 2013 (10) एस.सी.सी. 136 का उल्लेख करते हुए यह अभिनिर्धारित किया है कि परिस्थितियों को देखते हुए स्टूडेन्ट को उपभोक्ता नहीं माना जा सकता।

 

9.            माननीय न्यायालयों द्वारा उपर्युक्त न्याय निर्णयों में अभिनिर्धारित मत के परिप्रेक्ष्य में हस्तगत मामले का अवलोकन करें तो स्पश्ट है कि हस्तगत मामले के तथ्यों को देखते हुए परिवादी उपभोक्ता की परिभाशा में नहीं आता है तथा न ही अप्रार्थीगण इस मामले में सेवा प्रदाता ही रहे हैं। हस्तगत मामले में यह कहीं स्पश्ट नहीं है कि अप्रार्थी स्कूल में प्रषिक्षित होने के कारण परिवादी का पुत्र स्कूल में पढाई न कर पाया हो बल्कि मामले के तथ्यों अनुसार मात्र पन्द्रह दि नही परिवादी का पुत्र स्कूल में गया था तथा उसके बाद परिवादी द्वारा ही अपने पुत्र को स्कूल में नहीं भेजा गया। ऐसी स्थिति में स्पश्ट है कि परिवादी का मामला उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 के तहत जिला मंच में चलने योग्य न होने से खारिज किया जाना न्यायोचित होगा।

 

 

 

        आदेश

 

 

 

 

10.          परिणामतः परिवादी सुभाशचन्द्र सर्वा द्वारा प्रस्तुत परिवाद अन्तर्गत धारा-12, उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 विरूद्ध अप्रार्थीगण खारिज किया जाता है। खर्चा पक्षकारान अपना-अपना वहन करें।

 

11.          आदेष आज दिनांक 15.06.2016 को लिखाया जाकर खुले मंच में सुनाया गया।

 

 

 

 

।बलवीर खुडखुडिया।         ।ईष्वर जयपाल।          ।राजलक्ष्मी आचार्य।             सदस्य                      अध्यक्ष                       सदस्या

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 
 
[HON'BLE MR. JUSTICE Shri Ishwardas Jaipal]
PRESIDENT
 
[HON'BLE MR. Balveer KhuKhudiya]
MEMBER
 
[HON'BLE MRS. Rajlaxmi Achrya]
MEMBER

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