RAMESH filed a consumer case on 27 May 2022 against DR.VIVEK PRAKASH RAI in the Azamgarh Consumer Court. The case no is CC/112/2016 and the judgment uploaded on 08 Jun 2022.
जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग- आजमगढ़।
परिवाद संख्या 112 सन् 2016
प्रस्तुति दिनांक 14.06.2016
निर्णय दिनांक 27.05.2022
रमेश पुत्र स्वo करिया साकिन- छपिया, थाना- रौनपार, तहसील- सगड़ी, जिला- आजमगढ़.
.........................................................................................परिवादी।
बनाम
उपस्थितिः- कृष्ण कुमार सिंह “अध्यक्ष” तथा गगन कुमार गुप्ता “सदस्य”
कृष्ण कुमार सिंह “अध्यक्ष”
याची ने अपने याचना पत्र में यह कहा है कि उसकी नाबालिग लड़की अनीता जिसकी उम्र लगभग 06 वर्ष थी, की तबियत अचानक बिगड़ गयी एवं व काफी रोने चिल्लाने लगी। परिवादी उसको दिनांक 31.03.2016 को ले जाकर विपक्षीगण के यहाँ दिखाया तो विपक्षी द्वारा बताया गया कि उसकी आंत में रुकावट पैदा हो गयी है। इसको भर्ती करना पड़ेगा और पहले दवा से ठीक करने की कोशिश करेंगे ठीक न होने पर आंत का आपरेशन करना पड़ेगा। परिवादी विपक्षी संख्या 01 की बात पर विश्वास करके अपनी लड़की को वहाँ भर्ती किया। दो दिन विपक्षी संख्या 01 दवारा दवा दी गयी लेकिन जब मरीज के हालत में अपेक्षित सुधार नहीं हुआ तो विपक्षी संख्या 01 ने कहा कि ऑपरेशन करना पड़ेगा। दिनांक 02.04.2016 को दिन में डेढ़ बजे विपक्षी द्वारा लड़की के आंत का ऑपरेशन किया गया। विपक्षीगण द्वारा ऑपरेशन करके लैट्रिन निकालने के लिए एक वैकल्पिक रास्ता बना दिया गया। डॉक्टर द्वारा यह भी बताया गया कि दो से ढाई माह बाद जब आंत का ऑपरेशन ठीक हो जाएगा तो वैकल्पिक द्वार को दुबारा ऑपरेशन करके आंत से मिला दिया जाएगा। लैट्रिन पहले की तरह सामान्य रूप से होने लगेगी। याची अपनी पुत्री को लकर विपक्षीगण के हॉस्पिटल में 16 दिन तक रहा। दिनांक 15.04.2016 को विपक्षीगण द्वारा उसके मरीज को यह कहते हुए डिस्चार्ज किया गया कि दवा बराबर चलती रहेगी। हर पन्द्रह दिन बाद मरीज को लाकर यहाँ चेक कराना पड़ेगा। जिससे यह जानकारी होती रहे कि घाव ठीक हो रही है कि नहीं। याची अपनी लड़की को लेकर घर चला गया एवं विपक्षीगण के निर्देशानुसार प्रत्येक 15-16 दिन बाद उसे लाकर विपक्षीगण से चेक कराता रहा। ऑपरेशन के बाद जब दो माह का समय व्यतीत हो गया एवं मरीज काफी रोने चिल्लाने और अपना लैट्रिन करने लगी। हालत बिगड़ने लगी तो दिनांक 02.06.2016 को याची मरीज को लेकर विपक्षीगण के यहाँ गया और सारी बात बतायी तो विपक्षीगण ने पर्चा लेकर मरीज की घाव को देखा और पर्चे पर कुछ लिखे तथा कहे कि इसे लेकर बनारस जाओ, अब मैं दुबारा ऑपरेशन नहीं करूंगा। याची द्वारा कहा गया कि आप द्वारा दिए गए सुझाव के मुताबिक याची द्वारा बराबर मरीज को दिखाया गया एवं आपने कहा था घाव ठीक होने पर दोबार ऑपरेशन करके वैकल्पिक लैट्रिन का रास्ता आंत से जोड़ दिया जाएगा। लैट्रिन सामान्य तरीके से होने लगेगी। मरीज ठीक हो जाएगा और आज आप इस तरह की बात कर रहे हैं। विपक्षीगण ने दोनों ऑपरेशन का पैसा मुo 1,50,000/- रुपया भी जमा करा लिया। मरीज ठीक नहीं हुआ। अब आप इलाज/ऑपरेशन करने में हीलाहवाली कर रहे हैं। मेरे पास पैसे भी नहीं है। गरीब आदमी हूँ। कहाँ लेकर जाऊँ। आपने मरीज को पूरा ठीक करने का जिम्मा लिया था। विपक्षीगण की घोर लापरवाही एवं उपेक्षापूर्वक दवा इलाज ऑपरेशन के कारण याची की पुत्री ठीक नहीं हुई तब याची ने विपक्षीगण से कहा कि आप मेरी बच्ची को ठीक कीजिए या मेरा पैसा वापस कर दीजिए। जबकि उन्होंने ऐसा नहीं किया। अतः विपक्षीगण से दवा इलाज ऑपरेशन में हुए खर्च हेतु मुo 1,50,000/- रुपए तथा भर्ती के दौरान अस्पताल में रहने खाने पीने घर आने जाने व अन्य व्यय के रूप में मुo 80,000/- रुपया तथा शारीरिक एवं मानसिक कष्ट हेतु मुo 70,000/- रुपया कुल 3,00,000/- रुपया याची को दिलाया जाए।
याची द्वारा अपने याचना पत्र के समर्थन में शपथ पत्र प्रस्तुत किया गया है।
प्रलेखीय साक्ष्य में याची ने कागज संख्या 8/1 विद्या हॉस्पिटल द्वारा जारी डिस्चार्ज सर्टिफिकेट की छायाप्रति, कागज संख्या 8/2 टेस्ट रिपोर्ट की छायाप्रति, कागज संख्या 8/3 पेमेन्ट रिसिप्ट की छायाप्रति, कागज संख्या 8/4 हॉस्पिटल बिल की छायाप्रति तथा कागज संख्या 8/5 ता 8/21 इलाज में हुए दवा खर्च रसीद की छायाप्रति प्रस्तुत किया है।
कागज संख्या 10क² विपक्षीगण द्वारा जवाबदावा प्रस्तुत किया गया है, जिसमें उन्होंने परिवाद पत्र के कथनों से इन्कार किया है। अतिरिक्त कथन में उन्होंने यह कहा है कि अनीता यादव विपक्षी के हॉस्पिटल में दिनांक 31.03.2016 को चिकित्सा के लिए अपने अभिभावक वादी मुकदमा के साथ आयी, जाँच व अन्य आवश्यक पड़ताल के बाद दिनांक 31.03.2016 को ही आंत में रुकावट पैदा होने के कारण ऑपरेशन व इलाज हेतु याची की सहमति लिखित तौर से ली गयी, सफलता पूर्वक ऑपरेशन हुआ और नियमानुसार जाँच पड़ताल व समुचित इलाज करते हुए उसे अस्पताल से डिस्चार्ज कर दिया गया। जाँच व चेक-अप के लिए नियमानुसार याची को निर्दिष्ट किया गया, लेकिन याची बिना उपयुक्त समय व्यतीत हुए अपरिपक्व अवस्था में ही दुबारा शारीरिक अवयव को समय पूर्व ही शरीर के भीतर व्यवस्थित करने का जिद् किए और मनमाना ढंग से याची ने कहा कि बाहर अंग ठीक नहीं लगता है। इसे अभी ऑपरेशन करके भीतर करो तुम लोग केवल पैसे के लिए यर परपंच करते हो। विपक्षीगण नियमानुसार इलाज करने की बात करते रहें, लेकन याची मुकदमा करने व देख लेने की धमकी देकर चला गया। विपक्षीगण ने बेहतर व सम्यक चिकित्सकीय सुविधा प्रदत्त की तथा नियमानुसार बना उपेक्षा के मरीज के रोग के अनुसार कार्य किया है। विपक्षीगण ने किसी भी तरह का उपेक्षा कारित नहीं किया और न ही ऑपरेशन के लिए 1,50,000/- रुपया जमा कराया। याचना पत्र के पैरा 06 में निर्दिष्ट अभिकथन वादी के मंशा को स्पष्ट करता है, जिसमें बच्ची को ठीक कर देने अथवा पैसे वापस कर देने का तथ्य उल्लिखित कर दिया गया है। याची स्वयं अपने मन से बिना विपक्षी के चिकित्सकीय इच्छा के तत्काल ठीक कर देने की कथित जिद् सम्पूर्ण मामले के स्पष्ट कर रहा है। वास्तव में जब शरीर का कोई भाग बाहर हो जाए तो मेंडिकोजाली में 08 सप्ताह के बाद ही उस समय मरीज की प्रायस्थिति के अनुसार उसे भीतर किया जा सकता है। यदि कम समय पर ऐसा किया जाय तो 88% कैजुवैल्टी की संभावना रहती है। विपक्षीगण द्वारा इलाज व ऑपरेशन में किसी भी प्रकार की कोई लापरवाही व सेवा में कमी नहीं की गयी है। अतः याचना पत्र निरस्त किया जाए।
विपक्षीगण द्वारा अपने जवाबदावा के समर्थन में शपथ पत्र प्रस्तुत किया गया है।
प्रलेखीय साक्ष्य में विपक्षीगण द्वारा कागज संख्या 12/1 एक्स-रे रिपोर्ट की छायाप्रति, कागज संख्या 12/2 अल्ट्रासाउण्ड रिपोर्ट की छायाप्रति, कागज संख्या 12/3 एडमिशन रिकॉर्ड की छायाप्रति, कागज संख्या 12/4 याची द्वारा डॉo को दी गयी स्वीकृति पत्र की छायाप्रति, कागज संख्या 12/5 ऑर्डरशीट की छायाप्रति, कागज संख्या 12/6 नर्सिंग ऑर्डर की छायाप्रति, कागज संख्या 12/7 डिस्चार्ज कॉर्ड की छायाप्रति, कागज संख्या 12/8 ब्लड बैंक रिपोर्ट की छायाप्रति, कागज संख्या 12/9 लूप इलियोस्टोमी मॉर्बिडिटी टाईमिंग ऑफ क्लोजर मैटर्स रिपोर्ट की छायाप्रति, कागज संख्या 12/10 विधिक नोटिस की छायाप्रति प्रस्तुत किया गया है।
बहस के दौरान पुकार कराए जाने पर उभय पक्षकारों के विद्वान अधिवक्ता उपस्थित आए तथा उभय पक्षकारों के विद्वान अधिवक्ताओं ने अपना-अपना बहस सुनाया। बहस सुना तथा पत्रावली का अवलोकन किया। कागज संख्या 8/1 के अवलोकन से यह स्पष्ट हो रहा है कि याची ने अपनी पुत्री को दिनांक 31.03.2016 को विपक्षी के यहाँ भर्ती किया था और दिनांक 15.04.2016 को उसको डिस्चार्ज किया गया। विपक्षी ने याची से कहा है कि 15-16 दिन बाद लड़की को दिखाते रहिए, ढाई माह बीत जाने के बाद ऑपरेशन किया जाएगा। इस पर्चे को देखने से यह स्पष्ट है कि दिनांक 14.05.2016 व दिनांक 02.06.2016 को याची डॉक्टर के पास उपस्थित हुआ। चूंकि डॉक्टर नियमानुसार काम कर रहे थे, जिसका प्रलेखीय साक्ष्य भी उन्होंने दिया है। ऐसी स्थिति में हमारे विचार से परिवाद स्वीकार होने योग्य नहीं है।
आदेश
परिवाद पत्र खारिज किया जाता है। पत्रावली दाखिल दफ्तर हो।
गगन कुमार गुप्ता कृष्ण कुमार सिंह
(सदस्य) (अध्यक्ष)
दिनांक 27.05.2022
यह निर्णय आज दिनांकित व हस्ताक्षरित करके खुले न्यायालय में सुनाया गया।
गगन कुमार गुप्ता कृष्ण कुमार सिंह
(सदस्य) (अध्यक्ष)
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