Uttar Pradesh

Lucknow-I

CC/4/2014

TASNEEM FARHAT - Complainant(s)

Versus

DR.RATAN KUMAR SINGH - Opp.Party(s)

29 Aug 2022

ORDER

Heading1
Heading2
 
Complaint Case No. CC/4/2014
( Date of Filing : 06 Jan 2014 )
 
1. TASNEEM FARHAT
-
...........Complainant(s)
Versus
1. DR.RATAN KUMAR SINGH
-
............Opp.Party(s)
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. Neelkuntha Sahya PRESIDENT
 HON'BLE MS. sonia Singh MEMBER
  Ashok Kumar Singh MEMBER
 
PRESENT:
 
Dated : 29 Aug 2022
Final Order / Judgement

जिला उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष आयोग, प्रथम, लखनऊ।

परिवाद संख्‍या-04/2014

उपस्थित:-श्री नीलकंठ सहाय, अध्‍यक्ष।

                श्री अशोक कुमार सिंह, सदस्‍य।

                श्रीमती सोनिया सिंह, सदस्‍य।

परिवाद प्रस्‍तुत करने की दिनॉंक:-06.01.2014

परिवाद के निर्णय की दिनॉंक:-29.08.2022

तस्‍नीम फ़रहत, एडवोकेट आयु लगभग 26 वर्ष पुत्री श्री सैय्यद इशरत अली निवासिनी मकान नं0 53/16 (प्रथम तल) शुतुरखाना उदयगंज रोड, थाना हुसैनगंज, लखनऊ।

                                                   ..........परिवादिनी।

                            बनाम

 

1.   डॉ0 रतन कुमार सिंह मेसर्स सुरूचि डर्माटोलॉजी एवं एस0टी0डी0 क्‍लीनिक, नेता जी सुभाष चन्‍द्र बोस काम्‍पलेक्‍स, तुलसी दास मार्ग, चौक, लखनऊ 226003

 

2.   दि ओरिएन्‍टल इन्‍श्‍योरेंस कम्‍पनी लिमिटेड, मुख्‍य कार्यालय स्थित ए-25/37 आसिफ अली रोड नई दिल्‍ली 11002 द्वारा क्षेत्रीय प्रबन्‍धक व दि ओरिएन्‍टल इन्‍श्‍योरेंस कम्‍पनी लिमिटेड शाखा कार्यालय स्थित 134/135 साहू प्‍लाजा बिल्डिंग स्‍नेह नगर, आलमबाग लखनऊ द्वारा शाखा प्रबन्‍धक।

                                                    .........विपक्षीगण।

आदेश द्वारा-श्री नीलकंठ सहाय, अध्‍यक्ष।                       

                          निर्णय

1.   परिवादिनी ने प्रस्‍तुत परिवाद धारा-12 उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम 1986 के अन्‍तर्गत विपक्षीगण से की गयी असावधानी एवं त्रुटिपूर्ण दवायें देने के बाद किये गये व्‍यय के रूप में 20000.00 रूपये क्षति के रूप में, तथा 1,00,000.00 रूपये दस माह तक के व्‍यवसायिक क्षति, मानसिक तथा शारीरिक वेदना के रूप में 1,50,000.00 रूपये, परिवादिनी की सगाई टूटने के कारण हुई क्षति 50,000.00 रूपये दिलाये जाने की प्रार्थना के साथ प्रस्‍तुत किया है।

2.   संक्षेप में परिवाद के कथन इस प्रकार हैं कि परिवादिनी को माह नवम्‍बर 2012 में दोनों हाथों में छोटे छोट दाने निकलना शुरू हुए जिससे परेशान होकर परिवादिनी दिनॉंक 15 जनवरी 2013 को अपरान्‍ह 1.30 बजे सुभाष चन्‍द्र बोस चौक स्थित क्‍लीनिक पर इलाज के लिये गयी, जहॉं पर विपक्षी संख्‍या 01 द्वारा परिवादिनी से अपनी फीस 300.00 रूपये लेकर दवा का पर्चा लिख दिया गया और कहा गया कि इन दवाओं से आराम मिल जायेगा।

3.   परिवादिनी ने विपक्षी संख्‍या 01 द्वारा लिखी गयी दवाओं को खाने से दो तीन दिन के बाद से उल्‍लटियॉं होनी शुरू हो गयी तथा पेट भी बहुत खराब हो गया जिससे परिवादिनी पुन: 19 जनवरी 2013 को विपक्षी संख्‍या 01 को दिखाने क्‍लीनिक पर गयी और अपना हाल बताया तथा दानों के बारे में भी बताया कि दाने दिन पर दिन बढ़ते जा रहे हैं और फूटने लगे हैं तथा फूटने पर छाले पड़ जाते है जिस पर विपक्षी संख्‍या 01 द्वारा बताया गया कि आपको “ सोरायसिस” नामक त्‍वचा की बीमारी है जिसकी दवा मैने आपको दी है जिसे खाती रहें धीरे-धीरे सब ठीक हो जायेगा।

4.   परिवादिनी निरन्‍तर दवाओं का सेवन करती रही तथा बीच-बीच में विपक्षी संख्‍या 01 को क्‍लीनिक पर दिखाती रही, परन्‍तु दाने ठीक होने के बजाए दिन पर दिन बढ़ते रहे और हाथ, पैर, पेट तथा चेहरे पर भी निकलना शुरू हो गये तथा जहां पर दाने फूटते थे वहॉं छाले पड़ जाते थे तथा सूखने पर काले दाग पड़ जाते थे। परिवादिनी के हाथ, पैर, पेट एवं चेहरे पर काले-काले स्‍पॉट निशान पड़ने से घबरा गयी तथा दिनॉंक 21 अगस्‍त 2013 को प्रात: 10.00 बजे अपनी मित्र पूनम पॉल अधिवक्‍ता को लेकर विपक्षी संख्‍या 01 के क्‍लीनिक पर गयी और पूरा हाल बताया तथा दानों को एवं काले पड़े निशानों को दिखाया। विपक्षी संख्‍या 01 द्वारा लिखी गयी दवाओं के पर्चे दिखाया। विपक्षी संख्‍या 01 ने उन पर्चों को अपने पास रख लिया तथा पहले लिखी दवाओं को काट कर दूसरा पर्चा लिखा गया तथा परिवादिनी से कहा गया कि पहले लिखी हुई दवाऍं काफी नुकसान पहुँचा चुकी है क्‍यों कि परिवादिनी को “सोरायसिस” की बीमारी नहीं हैं यह “लीचेन प्‍लेमेस” की बीमारी है।

5.   विपक्षी संख्‍या 01 द्वारा परिवादिनी को इतना डरा दिया गया कि तुम्‍हारा आखिरी समय आ गया है आपको खतरनाक बीमारी हो गयी है तथा आप भगवान से अपने लिये दुआ कीजिए और जितना हो सके अल्‍लाह को याद कीजिए। क्‍योंकि यह बीमारी ठीक होने वाली नहीं है। परिवादिनी ने विपक्षी संख्‍या 01 से पूछा की डॉक्‍टर साहब मेरी बीमारी ठीक हो जायेगी , तो विपक्षी संख्‍या 01 ने जवाब दिया कि आप एडवोकेट हैं तो क्‍या आप सारे मुकदमें जीती जाती हैं। इन सब बातों में उलझाकर विपक्षी संख्‍या 01 ने पुराने पर्चे अपने पास रख लिये तथा नया पर्चा लिखकर दिया जिसमें “लिचेन प्‍लेमेस” बीमारी की दवाईयॉं लिखी गयी। फिर परिवादिनी अपनी महिला मित्र के साथ घर वापस आ गयी। परिवादिनी को याद आया कि पुराने पर्चे डाक्‍टर के पास ही रह गये हैं तो परिवादिनी ने विपक्षी संख्‍या 01 को फोन करके बताया कि हम आपके पास पुराने पर्चे भूल गये हैं उनको संभाल कर रखियेगा हम अभी लेने आ रहे हैं। यह कहकर परिवादिनी अपनी महिला मित्र पूनम पॉल एडवोकेट बहनाई मो0 सरआन एडवोकेट के साथ तुरन्‍त विपक्षी संख्‍या 01 के क्‍लीनिक पर लगभग 12.15 बजे पहुची तो देखा कि क्‍लीनिक बंद करके घर जा चुके हैं जबकि विपक्षी संख्‍या 01 के बैठने का समय प्रात: 9.00 बजे से दोपहर 2.00 बजे तक है।

6.   अगली सुबह यानी 22 अगस्‍त 2013 को प्रात: 9.00 बजे पूनम पाल एडवोकेट व बहनोई मो0 सरआन के साथ विपक्षी संख्‍या 01 का इन्‍तजार करने ली, तथा जब विपक्षी संख्‍या 01 नहीं आये तो उनके नौकर से पुराने पर्चे मांगे, नौकर विपक्षी संख्‍या 01 के केबिन में गया और केवल एक पर्चा 15 जनवरी 2013 का फटा हुआ था लाकर दिया जिसके कई टुकड़े हो चुके थे। बाकी पर्चे गायब थे। नौकर से पूछने पर बताया गया कि डॉ0 साहब पुराने पर्चे फाड़ देते हैं।  परिवादिनी ने नौकर से पूछा कि सारे पर्चे सबके फाड़ देते हैं तो नौकर ने कहा नहीं ऐसा तो नहीं है, पुराने पर्चे डॉ0 साहब नहीं फाड़ते हैं हो सकता है कि भूल से आपके पर्चे फट गये हों। यह सुनकर परिवादिनी क्‍लीनिक से वापस आ गयी।

7.   परिवादिनी अपनी बीमारी से परेशान होकर दिनॉंक 22.08.2013 को दूसरे डॉ0 बी0एन0 गुप्‍ता को दिखाया तथा विपक्षी संख्‍या 01 द्वारा लिखी गयी दवाइयों का पुराना फटा हुआ पर्चा भी दिखाया जो विपक्षी संख्‍या 01 द्वारा फाड़ दिया गया था। डॉ0 बी0एन0 गुप्‍ता ने कहा कि परिवादिनी को “लिचेन प्‍लेमेस蓲” बीमारी की जगह सोरायसिस की दवायें दे दी गयी जो कि काफी तेज दवाऍं हैं जिसके रियेक्‍शन के कारण परिवादिनी की तकलीफ बढ़ गयी है।

8.   परिवादिनी को विपक्षी संख्‍या 01 द्वारा इलाज से सेवा में त्रुटि के कारण हुई शारीरिक, मानसिक एवं आर्थिक क्षति के संबंध में विपक्षी संख्‍या 01 को दिनॉंक 17.09.2013 को नोटिस दी गयी थी, परन्‍तु विपक्षी संख्‍या 01 द्वारा नोटिस का कोई जवाब नहीं दिया गया। माह अगस्‍त 2012 में परिवादिनी की शादी अलीगढ़ से तय हुई थी तथा 07 नवम्‍बर 2012 को मंगनी (सगाई) भी हो गयी, चॅूकि अलीगढ़ का सफर काफी लम्‍बा था इसलिए परिवादिनी के परिजनों की ज्‍यादातर बातें टेलीफोन पर होती थी तथा सुसराल वालों का लखनऊ आना बहुत कम होता था। जब ससुराल वालों को परिवादिनी के दानों के बारे में पता चला तो वह समझे कि हल्‍के फुल्‍के दाने होगें वह जल्‍द ही ठीक हो जायेगें और बीमा ठीक होने का इन्‍तजार करने लगे, परन्‍तु जब उन्‍होंने देखा कि लगातार इलाज होने के बावजूद भी बीमारी बढ़ती ही चली जा रही है और हाथ, पैरों और चेहरे पर भी काले, निशान हो गये हैं तो ससुराल वालों ने दिनॉंक 27.11.2013 को शादी तोड़ दी जिसके कारण हुई क्षति के तारतम्‍य में विपक्षी संख्‍या 01 को पूरक नोटिस दिनॉंक 09.12.2013 को दी गयी, परन्‍तु विपक्षी संख्‍या 01 द्वारा नोटिस का अनुपालन नहीं किया गया। अत: न्‍यायालय के समक्ष उपरोक्‍त परिवाद संस्थित किया जा रहा है।

9.   विपक्षी संख्‍या 01 द्वारा उत्‍तर पत्र प्रस्‍तुत करते हुए कथन किया गया कि विपक्षी द्वारा सेवा में कोई कमी नहीं की गयी है। विपक्षी संख्‍या 01 सुयोग्‍य डर्माटोलाजिस्‍ट है। जैसा कि परिवादिनी का कथन है कि दिनॉंक 15.01.2013 और 21.08.2013 को उनके यहॉं इलाज हेतु गयी थी उसको स्‍वीकार नहीं किया। उक्‍त दस्‍तावेज फर्जी रूप से बनाये गये हैं। परिवादिनी को कभी भी उपभोक्‍ता नहीं माना जा सकता, क्‍योंकि उनके द्वारा कोई भी धनराशि अदा नहीं की गयी है, जिसके कारण परिवाद पत्र निरस्‍त किये जाने योग्‍य है। डॉ0 बी0एन0 गुप्‍ता की चिकित्‍सीय रिपोर्ट में यह कहीं भी नहीं लिखा है कि पूर्व में मेरे पर्चे का संदर्भ किया गया है कि यह डॉ0 रतन कुमार सिंह द्वारा दिये गये पूर्व में इलाज किया जा रहा था। मूल दस्‍तावेज होने के कारण पठनीय नहीं हैं। परिवादिनी द्वारा कभी भी उसके यहॉं इलाज कराने नहीं आयी।

10.  परिवादिनी 10 वर्ष से प्रेक्टिस करती है, उन्‍हें अपने अधिकार का कोई ज्ञान नहीं है, क्‍योंक विधिक नोटिस नहीं भेजा गया है। जिस डॉ0 से बाद में संपर्क किया गया है उसने कहीं भी इस तथ्‍य का उल्‍लेख नहीं किया है कि उनके द्वारा पूर्व डॉ0 द्वारा नेग्‍लीजेंस किया गया।

11.   विपक्षी संख्‍या 02 द्वारा उत्‍तर पत्र प्रस्‍तुत करते हुए परिवाद के कथनों से इनकार किया तथा कथन किया कि परिवादिनी का यह परिवाद विपक्षी बीमा कम्‍पनी पर दुर्भावना सहित व विपक्षी बीमा कम्‍पनी पर असम्‍यक दबाव बनाने के उद्देश्‍य से प्रस्‍तुत किया गया है, तथा उसके द्वारा त्रुटियुक्‍त सेवा देने का कोई भी आरोप नहीं लगाया गया है। बादहू पुन: एक और लिखित कथन दाखिल किया गया जिसमें विपक्षी द्वारा पुन: अपने उत्‍तरपत्र में कहा गया कि विपक्षी संख्‍या 01 डॉ0 रतन कुमार सिंह ने विपक्षी संख्‍या 02 से प्रोफेशनल पालिसी की है यह पूर्णतया असत्‍य है। विपक्षी बीमा कम्‍पनी का कोई भी सीधा दायित्‍व नहीं है, तथा प्रथमत: चिकित्‍सक महोदय के द्वारा अगर कोई सेवा में कमी है तो वह उन्‍हें भुगतान करना है। उसके बाद उन्‍हें बीमा कम्‍पनी से भुगतान की गयी धनराशि प्राप्‍त करना है।

12.  विपक्षी संख्‍या 01 व 02 के द्वारा दिये गये उत्‍तर पर परिवादिनी ने प्रति उत्‍तर दाखिल करते हुए उनके कथनों से इनकार किया तथा यह कहा कि परिवादिनी अपने कथनों के तथ्‍यों को दोहराती है और उसके साथ गलत इलाज किया गया जिससे उसको मानसिक अशान्ति हुई और बाद में इसी डॉक्‍टर द्वारा सही रोग का प्रिस्‍क्रिप्‍शन जारी किया गया जिस बात की पुष्टि दूसरे डॉक्‍टर गुप्‍ता ने की है।

13.  परिवादिनी द्वारा अपने परिवाद के समर्थन में जो प्रिस्‍क्रिप्‍शन तथा डॉ0 रतन

कुमार सिंह एवं डॉ0 बी0एन0 गुप्‍ता के द्वारा किये गये इलाज के पर्चे एवं नोटिस, फोटोग्राफ आदि दाखिल किया है, जिसकी फोटोकापी एवं मूल दस्‍तावेज भी दाखिल किये गये हैं। विपक्षी द्वारा मौखिक साक्ष्‍य के रूप में स्‍वयं को परिचित कराया गया है तथा साक्ष्‍य दाखिल किया गया है।

14.  मैने उभयपक्ष के विद्वान अधिवक्‍ता के तर्कों को सुना तथा पत्रावली का परिशीलन किया गया।

15.  परिवादिनी का कथानक है कि परिवादिनी के हाथ में नवम्‍बर 2012 में दोनों हाथों में छोटे छोटे दाने निकलना शुरू हुए जिससे परिशान होकर परिवादिनी 15 जनवरी, 2013 को डेढ़ बजे सुभाष चन्‍द्र बोस चौक स्थित क्‍लीनिक पर इलाज कराने गयी थी, जिससे 300.00 रूपये फीस लेकर दवा का पर्चा लिख दिया गया और कहा गया कि इन दवाओं से आराम मिल जायेगा। उक्‍त दवाईयॉं खाने के बाद परिवादिनी को तीन दिन बाद उल्‍लटियॉं होनी शुरू हो गयी तथा पेट भी बहुत खराब हो गया, जिससे परिवादिनी पुन: 19 जनवरी, 2013 को विपक्षी संख्‍या 01 को दिखाने गयी और अपना हाल बताया कि दाने दिन पर दिन बढ़ते जा रही हैं। फूटते हैं और फूटने के बाद छाले पड़ जाते हैं। डॉ0 ने यह कहा कि आपको सोरायसिस हो गयी है। धीरे धीरे ठीक हो जायेगें। परिवादिनी के हाथ पैर, तथा पेट पर काले धब्‍बे पड़ने परिवादिनी घबड़ा गयी। परिवादिनी अपनी मित्र को लेकर विपक्षी संख्‍या 01 के क्‍लीनिक पर गयी तो उन्‍होंने पहले लिखी दवाओं को काट दिया और पर्चा अपने पास रख लिया तथा परिवादिनी को पहले की दवाओं से काफी नुकसान हुआ, क्‍योंकि परिवादिनी को बीमारी थी।

16.  विपक्षी संख्‍या 01 द्वारा अपनी आपत्ति में यह कहा गया कि परिवादिनी उसकी उपभोक्‍ता नहीं है, क्‍योंकि उपभोक्‍ता बनने के लिये यह आवश्‍यक है कि वह फीस की धनराशि जमा करे। परिवादिनीका इलाज नहीं किया।

17.  विचारणीय बिन्‍दु यह है कि क्‍या परिवादिनी विपक्षी संख्‍या 01 की उपभोक्‍ता है या नहीं।

18.  परिवादिनी का कथानक है कि 300.00 रूपये का पर्चा बनवाया था और उक्‍त पर्चा पत्रावली पर उपलब्‍ध नहीं है। इसकी पुष्टि उन्‍होंने अपने साक्ष्‍य शपथ पत्र में भी किया था।

19.  मैंने मूल दस्‍तावेजों का अवलोकन किया। मूल प्रिस्‍क्रिप्‍शन जो कि डॉ0 रतन कुमार सिंह का दाखिल किया है जिसमें 15 जनवरी, 2013 की तिथि अंकित की गयी गयी है, जैसा कि परिवादिनी का कथानक है। सामान्‍यत: कोई भी प्राइवेट चिकित्‍सक जो विपक्षी संख्‍या 01 है वह बिना फीस के कोई ईलाज नहीं करता है। कभी कभी यह भी देखा जाता है कि जब कोई व्‍यक्ति किसी प्राइवेट डॉक्‍टर से इलाज कराने के संबंध में उसके क्लिनिक पर जाता है और किसी विशेष परिस्थित के कारण डॉ0 उससे फीस नहीं लेता है तो पर्चे पर ‘एफ’ अंकित करता है अथवा फ्री लिख देता है। परन्‍तु इस पर्चे के अवलोकन में न तो कहीं एफ लिखा है और न ही फ्री लिखा है। जैसा कि परिवादिनी ने अपने साक्ष्‍य में यह तथ्‍य कहा कि उसने दिनॉंक 15 जनवरी, 2013 को 300.00 रूपये देकर नेताजी सुभाष बोस काम्‍पलेक्‍स में डॉ0 रतन कुमार सिंह के यहॉं इलाज कराने गयी थी के कथन पर निश्चित ही सरसरी तौर पर विचारणीय है, परन्‍तु जो तथ्‍य साक्ष्‍य के माध्‍यम से कहा जिसमें अगर उसमें किसी भी चीज की कोई शंका हो तो सरसरी तौर पर विचारण में भी जिरह की अनुमति है।

20.  विपक्षी चाहे तो किसी भी तथ्‍य में जिसका शपथ पत्र न्‍यायालय के समक्ष दिया है पर अगर वह असंतुष्‍ट है तो वह जिरह करने के लिये प्रतिवेदन पत्र दे सकता है और जिरह भी कर सकता है जिससे कि सत्‍यता लायी जा सके। जो  तथ्‍य पक्ष द्वारा अपने शपथ पत्र के माध्‍यम से दिये गये है और उस पर कोई भी प्रति परीक्षा नहीं की गयी है तो यह समझा जायेगा कि दूसरे पक्ष को स्‍वीकृत है। जैसा कि साक्ष्‍य के बाद उत्‍तर पत्र में विपक्षी संख्‍या 01 ने यह उल्लिखित किया कि कोई रसीद नहीं होने के कारण वह उसकी उपभोक्‍ता की श्रेणी में नहीं आती है। उसके बाद साक्ष्‍य का अवसर आया और साक्ष्‍य में भी इसी बात का उल्‍लेख किया और कहा कि 300.00 रूपये फीस देकर इलाज कराया गया था। इस पर जिरह नहीं की गयी तो यह समझा जायेगा कि उन्‍हें इस तथ्‍य की स्‍वीकृत है। अगर प्रिस्‍क्रिप्‍शन  विपक्षी संख्‍या 01 के नाम एवं दिनॉंक सहित दाखिल किया गया है जिसकी प्रतिलिपि विपक्षी को प्रदत्‍त करायी गयी है और उन्‍होंने अपने उत्‍तर पत्र में इस तथ्‍य का उल्‍लेख किया है कि विपक्षी ने कभी भी परिवादिनी का इलाज नहीं किया, क्‍यों वह दस्‍तावेज बनाये हुए है और मूल दस्‍तावेज नहीं होने के कारण यह साक्ष्‍य ग्राहय नहीं हैं।

21.  सरसरी तौर पर विचारण में फोटोकापी भी साक्ष्‍य के लिये उपयुक्‍त मानी जाती है। यद्यपि कि परिवादिनी द्वारा मूल दस्‍तावेज भी दाखिल किये गये हैं। अगर यह भी तथ्‍य मान लिया जाए कि इनके द्वारा इलाज नहीं किया गया था, जैसा कि उत्‍तर पत्र में कहा और यह उनके अस्‍पताल द्वारा निर्गत नहीं किया गया है या परिवादिनी को देखा नहीं गया है तब परिवादिनी ने सूचना विपक्षी को सम्‍मन के तहत भेजी और यह तथ्‍य संज्ञान में लाया कि आपके यहॉं मेरे द्वारा इलाज कराया गया है जिसके पर्चे नोटिस आदि लगाया गया तो अगर वह विपक्षी संख्‍या 01 द्वारा प्रिस्क्रिप्‍शन नहीं था तो उन्‍हें सर्वप्रथम जॉच के लिये प्रथम सूचना रिपोर्ट संबंधित थाने में करनी चाहिए थी कि कोई उनके प्रिस्क्रिप्‍शन का एवं उनके नाम का पर्चा लिख रहा है, परन्‍तु उनके द्वारा ऐसी कोई भी कार्यवाही नहीं की गयी।   जिससे कि यह तथ्‍य स्‍पष्‍ट रूप से सामने आ जाता कि वास्‍तव में यह पर्चा विपक्षी संख्‍या 01 का है। सामान्‍यत: यह भी देखा जाता है कि जब प्राइवेट चिकित्‍सक के पास व्‍यक्ति इलाज हेतु जाता है तो काउन्‍टर पर नाम एवं पता प्रिस्क्रिप्‍शन पर भरकर पैसा रजिस्‍टर पर इन्‍द्राज करके फाइल को प्रिस्क्रिप्‍शन के साथ डॉक्‍टर के चेम्‍बर में पहुँचा दिया जाता है और डॉक्‍टर के यहॉं पुकार करने पर मरीज सीधा इलाज करा लेता है। चॅूंकि व्‍यक्ति चिकित्‍सक के संदर्भ में इलाज कराने गया है तो फीस की रसीद बहुत मायने नहीं रखती और मात्र फीस की रसीद न होने से मेरे विचार से परिस्थितियों के तहत कोई प्रभाव नहीं पड़ता और परिवादिनी जैसा कि उसका कथानक है कि वह दिनॉंक 15 जनवरी, 2013 को इलाज के सिलसिले में विपक्षी संख्‍या 01 के यहॉं 300.00 रूपये फीस देकर इलाज कराया था इसकी पुष्टि होती है। अत: मेरी राय में परिवादिनी उपभोक्‍ता की श्रेणी में आती है।

22.  परिवादिनी का भी कथन है कि विपक्षी संख्‍या 01 द्वारा पीड़ी दी गयी और यह कहा गया कि अल्‍लाह को याद करिए तो मैने कहा कि डॉक्‍टर साहब मेरी बीमारी ठीक हो जायेगी। इन सब बातों में पर्चा अपने पास रख लिया। दूसरे पर्चे में बीमारी लिखकर दे दी। पुन: वह उसके क्‍लीनिक पर गयी तो डॉक्‍टर नहीं मिले तो उनके केबिन में 15 जनवरी का पर्चा जो कई टुकड़ो में था और कहा गया कि आपका पर्चा गायब हो गया है तो मैने पूछा कि क्‍या पर्चा फाड़ देते है तो उन्‍होंने कहा कि नहीं। 15 जनवरी के पर्चे को भी परिवादिनी ने लगाया है जो कि पर्चा फटा हुआ है और 15 जनवरी का विपक्षी संख्‍या 01 का है जिसमें विपक्षी द्वारा कलम से लिखी गयी दवाओं को काटा गया है और नंगी ऑंखों से देखने पर भी यह परिशीलन हो रहा है कि जो काटा गया है वह पीछे लिखे हुए पर्चे में पेन से ही होना परिलक्षित होता है। जबकि विपक्षी संख्‍या 01 द्वारा कहा गया कि उनके यहॉं कोई इलाज कराने ही नहीं आया। अत: विपक्षी  ने स्‍पष्‍ट तथ्‍य न्‍यायालय के समक्ष नहीं रखा है।

24.  विपक्षी के अधिवक्‍ता द्वारा अपनी बहस में यह कहा गया कि

Maharaja Agrasen Hospital Vs Rishabh Sharma (2020) 6 SCC 501  has defined Medical Negligence and Duty of Care as follows:- ‘’ 12.4 Medical Negligence and Duty of Care

12.4.1 Medical Negligence Comprises of the following constituents:

का संदर्भ दाखिल किया गया जिसमें उन्‍होनें मेडिकल नेग्‍लीजेंस की परिभाषा को दर्शाया है।

(1)     A legal duty to exercise due care on the part of the medical professional;

(2)     Failure to inform the patient of the risks involved;

(3)     The patient suffers damage as a consequence of the undisclosed risk by the medical professional;

(4)     If the risk had been disclosed, the patient would have avoided the injury;

(5)     Breach of the said duty would give rise to an actionable claim of negligence”.

इसका अभिप्राय यह है कि किसी भी डॉक्‍टर से या किसी भी व्‍यक्ति से एक निश्चित सुविधा किसी के प्रति कार्य करने के लिये ली जानी हो तब उस सुविधा में कोई त्रुटि होती है जिससे कि दूसरे पक्ष को हानि होती है तो वह निश्चित ही नेग्‍लीजेंस की परिभाषा में आयेगा।

25.  यह विचारणीय प्रश्‍न है कि जो पर्चे पर अंकित किया गया वह सोरायसिस psoriasis है जिसका उल्‍लेख बाद में जब एल0पी0 का पर्चा इनके द्वारा लिखा गया है तो कोई लम्‍बा समय नहीं बीता है, मात्र पॉंच-छ: माह का समय बीता है और स्किन रोग में समय ज्‍यादा लगता है।

26.  क्‍या वास्‍तव में सोरायसिस psoriasis डिजीज पर्चे पर लिखा गया है या कोई और बीमारी क्‍योंकि इन्‍ही डॉक्‍टर द्वारा बाद में लिचिन प्‍लेमेस लिख दिया गया है। यह बात स्‍पष्‍ट नहीं हो रही है कि प्रिस्क्रिप्‍शन में डॉक्‍टर द्वारा दिनॉंक 15.01.2013 को क्‍या लिखा है सिरोसिस जैसा कि परिवादिनी का कथानक है इन्‍होंने सिरोसिस लिखा है और जो दवाऍं लिखी हैं वह सोरायसिस में दी जाती हैं। यानी कि कैन्‍सर की बीमारी में दी जाती है।   

27.  क्‍या त्‍वचा रोग में अगर कैन्‍सर हो तो जैसा कि परिवादिनी समझ रही है कि वह कैन्‍सर की बीमारी बताया, में लागू नहीं होती है। मेरे विचार से जब यकृत में सिरोसिस Cirrhosis शब्‍द का उपयोग होता है जो बाद में चल कर कैन्‍सर में परिवर्तित हो जाता है। सोरायसिस) psoriasis बीमारी कैन्‍सर नहीं होती है। चॅूंकि बीमारी का नाम पठनीय नहीं है। जो कि अंग्रेजी अक्षर पी से शुरू होती है वह सियोरोसिस लिखा है।  दवाओं से भी यह अवधारणा निकाली जा सकती है कि यह क्‍या बीमारी थी।

28.  प्रिस्क्रिप्‍शन में मेक्‍सेट 7.5 एमजी टेबलेट लिखी हुई है जिसका कि उपयोग रूमेटाइड आर्थराइटिस के इलाज में किया जाता है, और त्‍वचा में सोरायसिस psoriasis बीमारी में भी किया जाता है और जो दवा मैक्‍सेट 60 एमजी की लिखी गयी है इसका इस्‍तेमाल भी गठिया से संबंधित सोरायसिस psoriasis में होता है। जो कि उक्‍त दवा एक तरह की एस्‍टराइट है दूसरी दवा Histac 300 एमजी है जो एजर्ली से संबंधित दवा है। स्किन से संबंधित मेरे संज्ञान में जब कैंसर की संभावना रहती है तो सिरोसिस शब्‍द का इस्‍तेमाल नहीं किया जाता और डॉक्‍टर ने भी जो यहॉं सिरोसिस बीमारी न लिखकर साइरोसिस बीमारी लिखी है जिसका कि स्किन डिजीज में किया जाता है जिसका उद्देश्‍य फिलिंग सेल्‍स को भरना होता है। इस प्रकार डॉक्‍टर ने जो इनके प्रिस्क्रिप्‍शन में सोरायसिस लिखा है न कि सिरोसिस और सिरोसिस दवा स्किन के इस्‍तेमाल में दी जाती है जो दवा दी गयी है वह केवल डेड सेल्‍स को फिलिंग करने के लिय दी गयी है। परिवापदिनी द्वारा चर्म रोग से संबंधित इलाज कराने के लिये गयी थी और चर्मरोग का ही इलाज किया है और डॉक्‍टर ने कैन्‍सर से संबंधित कोई ईलाज नहीं किया है।

29.  चिकित्‍सक के द्वारा लिखी गयी दवा से परिवादिनी ने इलाज किया या नहीं, कोई भी बिल की रसीद नहीं लगायी है। क्‍योंकि खरीदी गयी दवा की कोई रसीद नहीं लगायी है कि दवा खरीदी या नहीं यह परिलक्षित नहीं होता है कि इलाज किया या नहीं।

30.  इस प्रकार जैसा कि परिवादिनी का कथानक है कि डॉक्‍टर ने कैन्‍सर बताया उसके बाद में लिचिन प्‍लेमेस लिख दिया और जिस कारण उसकी शादी नहीं हुई यह स्‍पष्‍ट इसमें साबित नहीं है। परिवादिनी के इलाज में डॉ0 रतन कुमार सिंह द्वारा कोई लापरवाही नहीं की गयी है।

31.  इन्‍श्‍योरेंस कम्‍पनी के विद्वान अधिवक्‍ता ने कहा कि विपक्षी का सीधा दायित्‍व भुगतान का नहीं है। इस परिप्रेक्ष्‍य में यह कहा कि सर्वप्रथम जो बीमा डॉ0 साहब ने कराया है बीमा पालिसी से वैध है। डॉ0 रतन कुमार सिंह का ओरियन्‍टल इन्‍श्‍योरेंस कम्‍पनी से दिनॉंक 19.11.2012 से 20.11.2013 तक बीमा था जो कि 10,00,000.00 रूपये तक था और प्रिस्क्रिप्‍श्‍न भी इसी के बीच में हुआ है। जैसा कि इन्‍श्‍योरेंस कम्‍पनी ने कहा कि बीमा की शर्तों के तहत सर्वप्रथम जो भी कमियॉं व त्रुटि हुई हैं वह डॉक्‍टर को देना है, बाद में वह उनसे ले सकते हैं। इस परिप्रेक्ष्‍य में इन्‍श्‍योरेंस कम्‍पनी की ओर से बाइलॉज दिया गया जिसमें धारा-8 में यह उल्लिखित किया गया है, उसके भी परिशीलन से विदित है कि इन्‍हें भुगतान करना है। अत: इस पालिसी के तहत विपक्षी संख्‍या 02 को यहॉं से भुगतान करने के लिये निर्देशित नहीं किया जा सकता।

 इस पालिसी के तहत विपक्षी संख्‍या 02 को यहॉं से भुगतान करने के लिये निर्देशित नहीं किया जा सकता। अत: परिवादिनी का परिवाद खारिज किये जाने योग्‍य है।

आदेश

     परिवादिनी का परिवाद खारिज किया जाता है।

 

      (सोनिया सिंह)     (अशोक कुमार सिंह )            (नीलकंठ सहाय)

          सदस्‍य              सदस्‍य                  अध्‍यक्ष

                             जिला उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष आयोग,   प्रथम,

                                             लखनऊ।   

आज यह आदेश/निर्णय हस्‍ताक्षरित कर खुले आयोग में उदघोषित किया गया।

                                   

   (सोनिया सिंह)     (अशोक कुमार सिंह)                (नीलकंठ सहाय)

         सदस्‍य              सदस्‍य                   अध्‍यक्ष

                             जिला उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष आयोग,   प्रथम,

                                              लखनऊ।

दिनॉंक:- 29.08.2022

 

      

 

 
 
[HON'BLE MR. Neelkuntha Sahya]
PRESIDENT
 
 
[HON'BLE MS. sonia Singh]
MEMBER
 
 
[ Ashok Kumar Singh]
MEMBER
 

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