RAM DULAREY RAI filed a consumer case on 27 May 2022 against DR.RAJMANI SHARMA in the Azamgarh Consumer Court. The case no is CC/190/2013 and the judgment uploaded on 14 Jun 2022.
जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग- आजमगढ़।
परिवाद संख्या 190 सन् 2013
प्रस्तुति दिनांक 30.11.2013
निर्णय दिनांक 27.05.2022
राम दुलारे राय आयु लगभग 30 वर्ष पुत्र श्री बोला राय निवासी ग्राम व पोस्ट- मित्तूपुर, तहसील- सदर, जिला- आजमगढ़।
.........................................................................................परिवादी।
बनाम
डॉo राजमणि शर्मा आयु लगभग 33 वर्ष पुत्र श्री बच्चेलाल शर्मा संचालक शानू चिल्ड्रेन अस्पताल, धरवारा रोड टैक्सी स्टैण्ड जहानागंज जनपद- आजमगढ़, मूल निवासी ग्राम- परसूपुर, पोस्ट- दौलताबाद, जिला- आजमगढ़।
उपस्थितिः- कृष्ण कुमार सिंह “अध्यक्ष” तथा गगन कुमार गुप्ता “सदस्य”
कृष्ण कुमार सिंह “अध्यक्ष”
परिवादी ने अपने परिवाद पत्र में यह कहा है कि उसकी बेटी बेबी श्रेया आयु लगभग 02 वर्ष 06 माह अचानक अस्वस्थ हो गयी, जिसे वह विपक्षी के अस्पताल में दिनांक 22 सितम्बर, 2012 को दिखाया। विपक्षी द्वारा बच्ची का इलाज शुरू कर खून की जाँच कराने के लिए पर्ची लिखी जिसे विष्णु एक्स-रे व पैथालॉजी सेन्टर जहानागंज में कराया गया और रिपोर्ट विपक्षी डॉo राजमणि शर्मा को दिखायी गयी तो उन्होंने परिवादी के बेटी को अपने अस्पताल में भर्ती कर लिया। परिवादी के बेटी का इलाज दिनांक 22.09.2012 से 25.09.2012 तक विपक्षी के द्वारा किया जाता रहा, विपक्षी द्वारा जो भी शुल्क दवा का, अस्पताल का खर्चा व अपनी फीस के रूप में मांगा जाता रहा उसे परिवादी द्वारा समय समय पर जमा किया जाता रहा। दिनांक 25.09.2012 को परिवादी की बेटी के स्वास्थ्य में कोई सुधार न होकर हालत काफी नाजुक हो गयी तो डॉ राजमणि शर्मा, विपक्षी से कहा गया कि आप द्वारा जो दवा इलाज किया जा रहा है उससे कोई फायदा नहीं हो रहा है बल्कि तबियत और बिगड़ती जा रही है हम अपने मरीज को आजमगढ़ जिला अस्पताल ले जाना चाहते हैं, आप द्वारा जो दवा इलाज किया गया है उसकी पर्ची दे दीजिए और मरीज को रिफर कर दें। विपक्षी द्वारा अपने अस्पताल का बकाया भुगतान करने को कहा गया और पूर्ण भुगतान होने के उपरान्त विपक्षी डॉ आर.एम. शर्मा द्वारा जाँच रिपोर्ट और जो दवा उनके द्वारा चलायी गयी थी उस दवा के पर्चे के ऊपर से अपना नाम, अस्पताल का नाम व डिग्री का हिस्सा फाड़कर परिवादी के भाई को दे दिया। विपक्षी के इस कार्य से परिवादी को संदेह हुआ लेकिन परिवादी के बेटी की हालत ठीक नहीं थी इसलिए वह अपनी बेटी को जिला अस्पताल आजमगढ़ लेकर गया। विपक्षी द्वारा दवा इलाज व अपने अस्पताल के शुल्क व अपनी फीस के रूप में कुल 18,500/- रुपए समय समय पर परिवादी से जमा कराया गया। परिवादी अपनी बेटी को दिनांक 25.09.2012 को समय लगभग 1.30 बजे दिन में जिला अस्पताल लेक पहुंचा इमरजेन्सी में भर्ती करने के पश्चात् बच्चों के विशेषज्ञ डॉक्टर आए उन्होंने पूर्व इलाज का पर्चा मांगा और पर्चा देखते ही डॉक्टर ने कहा कि रोग व जाँच रिपोर्ट के आधार पर कोई दवा इलाज नहीं हुआ है और रोड बिगड़ जाने के बाद आप लोग यहाँ आए हैं। इसके बाद उन्होंने इलाज शुरू किया परन्तु लगभग आधे घण्टे बाद ही परिवादी की बेटी मर गयी।
अतः विपक्षी से परिवादी को उसकी बेटी के हुए इलाज में खर्च मुo 18,500/- रुपए मय दिलाया जाए और परिवादी व उसके परिवार को जो उसकी बेटी की मृत्यु विपक्षी के गलत इलाज के कारण हुई उसकी क्षति के लिए मुo 2,00,000/- रुपए विपक्षी से परिवादी को दिलाया जाए।
परिवादी द्वारा अपने परिवाद पत्र के समर्थन में शपथ पत्र प्रस्तुत किया गया है।
प्रलेखीय साक्ष्य में परिवादी ने कागज संख्या 7/1 परिचय पत्र की छायाप्रति, कागज संख्या 7/2 न्यायालय सी.जे.एम. आजमगढ़ को शिकायत पत्र की छायाप्रति, कागज संख्या 7/3व4 प्रथम सूचना रिपोर्ट की छायाप्रति, कागज संख्या 7/5 डॉक्टर के दवा पर्चे की छायाप्रति, कागज संख्या 7/6 आर.एम. शर्मा द्वारा जारी किए गए पर्चे की छायाप्रति, कागज संख्या 7/7व8 विष्णु एक्स-रे एण्ड पैथालॉजी सेन्टर द्वारा जारी रिपोर्ट की छायाप्रति, कागज संख्या 7/9 शानू चिल्ड्रेन अस्पताल के डॉक्टर के पर्चे की छायाप्रति, कागज संख्या 7/10 सी.एम.ओ. से मांगा गया सूचना अधिकार पत्र की छायाप्रति, कागज संख्या 7/11 जाँच अधिकारी द्वारा सी.एम.ओ. आजमगढ़ को भेजी गयी रिपोर्ट की छायाप्रति तथा कागज संख्या 27/27 ता 27/30 दिनांक 15.02.2017 को विपक्षी के कार्य व इलाज सम्बन्धी फोटोग्राफ प्रस्तुत किया है।
कागज संख्या 13क² विपक्षी द्वारा जवाबदावा प्रस्तुत किया गया है, जिसमें उसने परिवाद पत्र के कथनों से इन्कार किया है। अतिरिक्त कथन में उसने यह कहा है कि विपक्षी का नाम राजमणि विश्वकर्मा है जिसका कोई अस्पताल या नर्सिंग होम जहानागंज में नहीं है और न तो शानू चिल्ड्रेन अस्पताल ही है। सारी घटना परिवाद पत्र काल्पनिक, फर्जी एवं मनगढ़न्त है तथा शत्रुता पर आधारित एवं सोची समझी सुनियोजित योजना है। विपक्षी राजमणि विश्वकर्मा मेडिकल कॉलेज इटौरा चण्डेश्वर से फिजियोथिरेपी में डिप्लोमा का कोर्स 02 वर्षीय जुलाई सन् 2011 से जुलाई 2013 में किया। किन्तु इस बीच कोई अस्पताल या नर्सिंग हो नहीं चलाया और न तो आज ही कोई नर्सिंग होम चलाता है। माह जून सन् 2012 में विपक्षी राजमणि अपने मित्र अरविन्द शर्मा पुत्र सोचन राम शर्मा निवासी ग्राम व पोस्ट- कोल्हूखोर, थाना- जहानागंज, आजमगढ़ के यहाँ बर्थडे में गया था और वहीं पर परिवादी से किसी मामूली बात पर तू-तू मैं-मैं हो गयी, किन्तु जाते समय परिवादी ने धमकी दिया था कि वह भूमिहार का बच्चा है इसका मुझसे बदला लेकर रहेगा और मुझे ऐसे किसी केस में देगा, जिससे मेरी जिन्दगी तबाह हो जाय। विपक्षी इस धमकी से मन ही मन भयभीत था और अपने कई मित्रों और अधिवक्ता बन्धुओं से भी इस बात को बताया तो लोगों ने कहा कि शान्त रहो कुछ भी करेगा तो थाना और कोर्ट में ही करेगा, तुम्हें भी सुनवाई का मौका मिलेगा। बिना तुम्हें सुने कोई आदेश तुम्हारे खिलाफ नहीं होगा। परिवादी का सारा परिवाद झूठा व कल्पनीय है, जो निरस्त होने योग्य है। अतः निरस्त किया जाए।
विपक्षी द्वारा अपने जवाबदावा के समर्थन में शपथ पत्र प्रस्तुत किया गया है।
बहस के दौरान पुकार कराए जाने पर उभय पक्षकारों के विद्वान अधिवक्ता उपस्थित आए तथा उभय पक्षकारों के विद्वान अधिवक्ताओं ने अपना-अपना बहस सुनाया व विपक्षी के विद्वान अधिवक्ता ने अपना लिखित बहस भी प्रस्तुत किया। पक्षकारों के विद्वान अधिवक्ताओं की बहस सुना तथा पत्रावली का अवलोकन किया। विपक्षी ने यह कहा कि वह कोई नर्सिंग होम अथवा कोई अस्पताल नहीं चलाता है वह फिजियोथिरैपी का डिग्री लिया है। अगर कागज संख्या 7/7व8 विष्णु एक्स-रे एण्ड पैथालॉजी सेन्टर द्वारा जारी रिपोर्ट का अवलोकन करें तो उसमें मरीज को डॉo आर.एम शर्मा ने ही वहाँ रिफर किया था। इस प्रकार डॉo आर.एम. शर्मा यह झूठ बोल रहे हैं कि वह नर्सिंग होम नहीं चलाते हैं। डॉo आर.एम. शर्मा के पास केवल फिजियोथिरैपी कि डिग्री है और कोई डिग्री नहीं है। अतः उनका कर्तव्य था कि बच्ची का इलाज नहीं करना चाहिए था। इससे स्पष्ट हो रहा है कि डॉo आर.एम. शर्मा ने बच्ची के इलाज में लापरवाही किए हैं। ऐसी स्थिति में हमारे विचार से परिवाद स्वीकार होने योग्य है।
आदेश
परिवाद स्वीकार किया जाता है। विपक्षी को आदेशित किया जाता है कि वह 18,500/-(रु.अट्ठारह हजार पांच सौ मात्र) अन्दर 30 दिन परिवाद दाखिला की तिथि से अन्तिम भुगतान की तिथि तक 09% वार्षिक ब्याज की दर से परिवादी को अदा करे साथ ही विपक्षी को यह भी आदेशित किया जाता है कि वह परिवादी को शारीरिक, मानसिक व आर्थिक क्षति हेतु मुo 2,00,000/- रुपए (रु.दो लाख मात्र) तथा वाद खर्च के रूप में मुo 5,000/- रुपए (रु.पांच हजार मात्र) भी अदा करे।
गगन कुमार गुप्ता कृष्ण कुमार सिंह
(सदस्य) (अध्यक्ष)
दिनांक 27.05.2022
यह निर्णय आज दिनांकित व हस्ताक्षरित करके खुले न्यायालय में सुनाया गया।
गगन कुमार गुप्ता कृष्ण कुमार सिंह
(सदस्य) (अध्यक्ष)
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