Uttar Pradesh

Azamgarh

CC/161/2015

NIRANJAN MAURYA - Complainant(s)

Versus

DR.RAJAN R. MAURYA - Opp.Party(s)

SRI PRAKASH RAI

12 Aug 2021

ORDER

 

जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग- आजमगढ़।

परिवाद संख्या 161 सन् 2015

प्रस्तुति दिनांक 31.08.2015

                                                                                              निर्णय दिनांक 12.08.2021

  1. निरंजन मौर्य उम्र तखo 23 साल पुत्र फूलचन्द मौर्य साकिन एकरामपुर, पोस्ट- इनामी, तहसील- सदर, जिला- आजमगढ़।
  2. पार्वती देवी उम्र तखo 56 साल पत्नी स्वo फूलचन्द मौर्य साकिन एकरामपुर, पोस्ट- चकइनामी, तहसील- सदर, जिला- आजमगढ़।      

     ....................................................................................परिवादीगण।

बनाम

     डॉo राजन आर मौर्य उम्र लगभग 40 साल पुत्र लामालुम हार्ट हाइजीन   हॉस्पिटल मोहल्ला बागेश्वर नगर (निकट रोडवेज) पोस्ट- सदर, शहर व      जिला- आजमगढ़।      

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उपस्थितिः- कृष्ण कुमार सिंह “अध्यक्ष” तथा गगन कुमार गुप्ता “सदस्य”

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कृष्ण कुमार सिंह “अध्यक्ष”

परिवादीगण ने अपने परिवाद पत्र में यह कहा है कि परिवादी संख्या 01 के पिता स्वo फूलचन्द मौर्य की तबीयत खराब हो गयी उन्हें सीने में दर्द व सास लेने में दिक्कत महसूस हुई। परिवादीगण व उसके परिवार के लोग स्वo फूलचन्द मौर्य को हार्ट हाइजिन हॉस्पिटल बागेश्वर नगर रोडवेज आजमगढ़ में ले जाकर भर्ती करवाए। परिवादीगण को यह जानकारी प्राप्त होने पर कि डॉo राजन आर मौर्य आजमगढ़ के हृदय, सास एवं मधुमेह के वरिष्ठ चिकित्सक हैं तथा काफी बड़ा नर्सिंग होम बनाए हैं इसलिए उनके यहाँ भर्ती करवाया तो विपक्षी ने कहा कि वह भर्ती कर रहे हैं सामान्य रोग है तथा वह बिल्कुल स्वस्थ कर देंगे। परिवादीगण को डॉo राजर आर मौर्य ने दिनांक 14.03.2015 की शाम को बताया कि परिवादी संख्या 01 के पिता को मात्र सांस लेने में दिक्कत थी और दवा से पूर्ण रूप से ठीक हो गये हैं और दिनांक 15.03.2015 को सुबह आकर लिवा जाएं, डिस्चार्ज कर दिया जाएगा। दिनांक 15.03.2015 को सुबह 8 बजे लगभग परिवादीगण हार्ट हाइजीन हॉस्पिटल गए तो वहाँ पर डाo राजर आर मौर्य के निर्देश पर उनकी नर्स ने परिवादी नं. 01 के पिता स्वo फूलचन्द मौर्य को एक इंजेक्शन लगाया और डाo राजन आर मौर्य ने परिवादी को डिस्चार्ज स्लिप दिया जबकि याची नं. 01 के पिता स्वo फूलचन्द मौर्य की उनके नर्सिंग होम मे ही मृत्यु हो गयी थी। परिवादी संख्या 01 डिस्चार्ज स्लिप पाकर अवाक रह गया जिसमें उन्होंने परिवादी नं. 01 के पिता को हायर सेन्टर रेफर करने की बात लिखी थी। डाo राजन आर मौर्य द्वारा परिवादी संख्या 01 के पिता का इलाज पूर्णतः लापरवाहीपूर्वक किया गया और उनके गलत डाइगोनेसिस व गलत दवाओं के कारण परिवादी संख्या 01 के पिता की मृत्यु हुई। परिवादीगण एवं परिवादीगण के परिवार तथा आसपास की जनता द्वारा विरोध प्रदर्शन एवं जमाववाड़ा होने पर पत्रकारों के पहुंचने पर स्थानीय पुलिस अधिकारियों के साथ पहूंच गयी और परिवादीगण के पिता के शव को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया गया तथा घटना की रिपोर्ट दिनांक 17.03.2015 को थाना कोतवाली में पंजीकृत कराया। परिवादीगण स्वयं सामान्य जन को उसी दिन ज्ञात हुआ कि डाo राजन आर मौर्य के पास कोई एलोपैथिक डाक्टर की डिग्री प्राप्त नहीं है न ही ये हृदय, मधुमेह, सांस के विशेषज्ञ हैं और सामान्य जन में यह प्रचारित करवाए हैं कि वह उपरोक्त रोगों के इलाज के विशेषज्ञ हैं तथा बड़े डाक्टर हैं और पी.जी.आई. लखनऊ से इस्तीफा देकर यहाँ नर्सिंग होम खोले हैं। विपक्षी ने परिवादी संख्या 01 के पिता की बीमारी की भी गलत सूचना परिवादीगण को दिया एवं परिवादी संख्या 01 के पिता की आवश्यक जाँच नहीं करवाई बल्कि यह बताते हुए कि सारे अंकों की विधिवत जाँच की गयी है, मात्र सांस का रोग है। परिवादीगण द्वारा जाँच के अभिलेख मांगे जाने पर विपक्षी द्वारा जाँच के अभिलेख देने से मना कर दिया गया। परिवादी संख्या 01 के पिता की मृत्यु विपक्षी द्वारा घोर लापरवाही एवं सावधानीपूर्वक जाँच न होने कारण हो गयी। अतः परिवादीगण को विपक्षी से लापरवाहीपूर्वक तथा धोखा देकर इलाज किए जाने से परिवादी संख्या 01 के पिता की मृत्यु होने कारण आर्थिक क्षति 10,00,000/- रुपया, परिवादी संख्या 02 के विधवा होने तथा बेसहारा होने व मानसिक आघात हेतु 7,00,000/- रुपया तथा इलाज के दौरान हुए व्यय के मद में 40,000/- रुपया कुल 17,40,000/- रुपया     

परिवादी द्वारा अपने परिवाद पत्र के समर्थन में शपथ पत्र प्रस्तुत किया गया है।

प्रलेखीय साक्ष्य में परिवादी ने कागज संख्या 7/1ता7/4 प्रथम सूचना रिपोर्ट की छायाप्रति, कागज संख्या 7/5 हार्ट हाईजीन द्वारा दिए गए दवाओं के पर्चे की छायाप्रति, कागज संख्या 7/6, 7/7 दवाओं के चार्ट की छायाप्रति, कागज संख्या 7/8 बी.एच.टी. रिपोर्ट की छायाप्रति, कागज संख्या 7/9त7/14 अखबार में प्रकाशन की छायाप्रति, कागज संख्या 7/15ता7/17 पोस्ट मार्टम कि रिपोर्ट की छायाप्रति, कागज संख्या 7/18 हार्ट हाइजीन सेन्टर की डिस्चार्ज स्लिप की छायाप्रति, कागज संख्या 7/19व7/20 दवा सम्बन्धी प्रपत्र की छायिप्रति तथा कागज संख्या 7/21 बी.एच.टी. रिपोर्ट की छायाप्रति प्रस्तुत किया है।

कागज संख्या 12क विपक्षी द्वारा जवाबदावा प्रस्तुत किया गया है, जिसमें उसने परिवाद पत्र के कथनों से इन्कार किया है। अतिरिक्त कथन में उसने यह कहा है कि दावा झूठे आधार पर प्रस्तुत किया गया है। हार्ट हाईजीन हेल्थ केयर एण्ड सोशल साइन्स संस्थान मोहल्ला बागेश्वर नगर रोडवेज सोसाइटीज रजिस्ट्रेशन के अन्तर्गत एक पंजीकृत चैरिटेबुल संस्था है, जिसका नवीनकरण संख्या 1054/20.12.2013 है। इसलिए यहाँ पर कोई भी फीस नहीं ली जाती है और मरीजों को निःशुल्क दवा व इलाज किया जाता है। विपक्षी सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त संस्था महर्षि चरक आयुर्वेदिक एवं यूनानी मेडिकल कालेज हासिमपुरा देवबन्द सहारनपुर उoप्रo से चार वर्षीय कोर्स पूर्ण करके प्रमाण पत्र प्राप्त करने के उपरान्त उपचार हेतु अधिकृत किया गया हो जो सक्षम व समर्थ है। परिवादीगण ने विपक्षी से बिरादरी का रिश्ता जोड़कर कई बार फूलचन्द के इलाज हेतु याचना किए। पूर्ण जानकारी प्राप्त करने पर परिवादीगण ने बताया कि फूलचन्द का इलाज बनारस से काफी दिनों से चर रहा था और बनारस आने जाने व भर्ती में काफी खर्च होता है अतएव परिवादीगण बनारस की दवाए जो परिवादीगण के पास उपलब्ध थीं उन्हीं दवाओं से इलाज कराना चाहते थे। परिवादीगण के बार-बार याचना पर विपक्षी द्वारा कहा गया कि कहा गया कि फूलचन्द जी का बनारस से अच्छा इलाज चल रहा है, दवाएं भी उपयुक्त इस्तेमाल हो रही हैं, अतएव विपक्षी द्वारा बनारस से लाई गयी दवाओं से केवल निःशुल्क भर्ती व सेवा कर सकते थे जिस पर परिवादीगण ने सहमति व्यक्त किया और नियमानुसार निरंजन मौर्य द्वारा सहमति पत्र भी दिनांक 12.03.2015 को निष्पादित किया गया। परिवीदी की सहमति के आधार पर श्री फूलचन्द मौर्य की उपरोक्त सेवा संस्थान में दिनांक 12.03.2015 को निःशुल्क बेड देकर निःशुल्क सेवा की गयी। परिवादीगण ने स्वयं बनारस हास्पिटल से जहाँ से फूलचन्द का इलाज चल रहा था उसी डाक्टर के पर्चा की दवाएं खुद लाए थे जिसको सेवा संस्थान में समय-समय पर मरीज की दी जाती रही थी। श्री फूलचन्द को श्वांस और दमा सम्बन्धी बीमारी थी जो सेवा संस्थान में उनके द्वारा लाई गयी दवाओं से आराम हो रहा था और समय-समय पर नेबुलाइजर भी दिया जाता रहा, जिससे मरीज को काफी आराम हो गया था। दिनांक 15.03.2015 को श्री फूलचन्द के स्वास्थ्य में बेहतर सुधार होने पर परिवादीगण को सलाह दी गयी कि वह बनारस में या किसी हायर सेण्टर पर और बेहतर इलाज करा सकते हैं अतएव परिवादीगण के याचना पर श्री फूलचन्द मौर्य को सेवा संस्थान से दिनांक 15.03.2015 को ही डिस्चार्ज कर दिया गया था। परिवादीगण श्री फूलचन्द मौर्य को डिस्चार्ज कराकर घर ले गए। कब और किन परिस्थियों में किस कारण से और किस स्थान पर उनकी मृत्यु हुई इसका कोई संज्ञान  विपक्षी को नहीं है। परिवादीगण का यह कथन है कि श्री फूलचन्द मौर्य की मृत्यु विपक्षी के सेवा संस्थान में हुई थी बिल्कुल सरासर गलत व झूठ तथा मनगढ़न्त है। क्योंकि परिवीदगण स्वयं डिस्चार्ज स्लिप लेकर अपने मरीज फूलचन्द मौर्य को डिस्चार्ज कराकर अच्छे माहौल में अपने घर ले जाने को कहकर ले गए थे। विपक्षी के सेवा संस्थान में दिनांक 15.03.2015 को डिस्चार्ज के समय या इसके पूर्व किसी प्रकार का कोई इंजेक्शन फूलचन्द मौर्य को नहीं लगाया गया था और न ही इसकी कोई आवश्यकता ही थी। फूलचन्द मौर्य के साथ घटित किसी भी घटना के लिए परिवादीगण स्वयं उत्तरदायी हैं। विपक्षी के निःशुल्क सेवा संस्थान में याचीगण को न तो कोई दवा बेची गयी और न ही कोई दवा अलग से दी गयी। केवल याचीगण द्वारा लायी गयी बनारस के पूर्व के डाक्टर की दवाओं को समय-समय पर दिया गया था। विपक्षी द्वारा फूलचन्द मौर्य के इलाज में किसी प्रकार की कमी नहीं किया गया। याचिका के साथ दाखिल तथाकथित पर्ची विपक्षी द्वारा नहीं दिया गया और उस पर विपक्षी का हस्ताक्षर भी नहीं है। विपक्षी द्वारा फूलचन्द मौर्य के निःशुल्क सेवा में किसी भी प्रकार से उपेक्षा नहीं की गयी, केवल दबाव डालने व नाजायज धन वसूलने की नियत से याचना पत्र प्रस्तुत किया गया है। अतएव याचका पोषणीय नहीं है। अतः खारिज किया जाए।

विपक्षी द्वारा अपने जवाबदावा के समर्थन में शपथ पत्र प्रस्तुत किया गया है।

विपक्षी द्वारा प्रलेखीय साक्ष्य में कागज संख्या 15ग सोसाइटी के नवीकरण का प्रमाण पत्र की छायाप्रति, कागज संख्या 15/2 पंजीकरण हेतु प्रस्तुत आवेदन पत्र की छायाप्रति, कागज संक्या 15/3 सहमति पत्र की छायाप्रति, कागज संख्या 23/2 प्रथम सूचना रिपोर्ट की छायाप्रति, कागज संख्या 23/4 सहमति पत्र की मूल प्रति तथा कागज संख्या 25 सी.एम.ओ. आजमगढ़ की जाँच आख्या प्रस्तुत किया गया है।

बहस के समय परिवादीगण की ओर से कोई उपस्थित नहीं आया। विपक्षी एवं उनके विद्वान अधिवक्ता उपस्थित आए। सुना तथा पत्रावली का अवलोकन किया। विपक्षी ने अपने जवाबदावा में यह कहा है कि उसका अस्पताल एक चैरिटेबुल संस्था है जहाँ इलाज के लिए कोई भी पैसा या फीस नहीं लिया जाता है। परिवादी ने भी अपने परिवाद पत्र में कहीं भी यह नहीं लिखा है कि विपक्षी द्वारा उसके पिता के इलाज में कोई धनराशि या कोई अन्य शुल्क ली गयी थी। चूंकि परिवादी द्वारा उसके पिता के इलाज में विपक्षी के यहाँ कोई भी धनराशि नहीं दी गयी थी, इसलिए “उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 की धारा-2(ओ)” के अनुसार परिवादी को विपक्षी का उपभोक्ता नहीं माना जा सकता है।

कागज संख्या 7/18 के अवलोकन से यह स्पष्ट हो रहा है कि परिवादी संख्या 01 के पिता को दिनांक 15.03.2015 को विपक्षी के यहाँ से डिस्चार्ज कर दिया गया था। इस डिस्टार्ज प्रमाण पत्र में जैसा कि परिवादी ने कथन किया है कि उसके पिता की मृत्यु विपक्षी के यहाँ हो गयी है इसका कोई भी विवरण नहीं दिया गया है न तो इस सन्दर्भ में कोई साक्ष्य परिवादी ने पत्रावली में प्रस्तुत किया है। पोस्ट मार्टम रिपोर्ट कागज संख्या 7/15ता7/17 में मृत्यु के कारण के कॉलम में यह लिखा है कि ‘काज ऑफ डेथ कुड नाट असर्टेन’ बिसरा रखा गया, लेकिन पत्रावली में बिसरा रिपोर्ट मंगाई गई अथवा नहीं इस बारे में परिवादी ने कोई भी साक्ष्य प्रस्तुत नहीं किया है। पत्रावली के अवलोकन से भी यह स्पष्ट हो रहा है कि अभी तक मृतक फूलचन्द मौर्य की बिसरा रिपोर्ट नहीं आ पायी है। अतः यह कमीशन फूलचन्द मौर्य के मृत्यु के कारण के विषय में कोई भी अभिमत नहीं दे सकता है। सहमति पत्र कागज संख्या 15/3 में भी इस बात का कहीं भी कोई उल्लेख नहीं किया गया है कि विपक्षी द्वारा परिवादीगण से इलाज हेतु कोई धनराशि ली गयी है। विपक्षी द्वारा “बोर्ड ऑफ इण्डियन मेडिसीन, उत्तर प्रदेश” का शासनादेश भी पत्रावली में प्रस्तुत किया है जिसमें यह लिखा हुआ है कि आयुर्वेदिक या युनानी डॉक्टर इलाज में वही लाभ लेंगे जो कि एलोपैथिक डॉक्टर लेता है शासनादेश में इस बात का उल्लेख किया गया है कि आयुर्वेदिक या युनानी डॉक्टर को सल्फा ड्रग या स्ट्रेप्टोमाईसिन की दवा उपयोग करने से मना किया गया है। इस प्रकार विपक्षी ने “बोर्ड ऑफ इण्डियन मेडिसीन, उत्तर प्रदेश” के शासनादेश के अनुक्रम में भी काम किया है। उपरोक्त विवेचनाओं से हम इस मत के हैं कि परिवाद अस्वीकार किए जाने योग्य है।

आदेश

                                                               परिवाद पत्र खारिज किया जाता है। पत्रावली दाखिल दफ्तर हो।

 

 

 

 

                                                                          गगन कुमार गुप्ता                कृष्ण कुमार सिंह  

                                                       (सदस्य)                            (अध्यक्ष)

 

           दिनांक 12.08.2021

                                                यह निर्णय आज दिनांकित व हस्ताक्षरित करके खुले न्यायालय में सुनाया गया।

 

 

                                            गगन कुमार गुप्ता                  कृष्ण कुमार सिंह

                                                              (सदस्य)                             (अध्यक्ष)

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