जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग- आजमगढ़।
परिवाद संख्या 30 सन् 2014
प्रस्तुति दिनांक 25.01.2014
निर्णय दिनांक 18.06.2021
घनश्याम राय पुत्र शिवशंकर राय, कालेज रोड लालगंज, आजमगढ़।
.........................................................................................परिवादी।
बनाम
डॉo हरिराम स्थान ए.ए.चिकित्सालय मेन रोड नरौली आजमगढ़ पेट्रोल पम्प से 100 मीटर पश्चिम दक्षिण पटरी पर जनपद आजमगढ़।
उपस्थितिः- कृष्ण कुमार सिंह “अध्यक्ष” तथा गगन कुमार गुप्ता “सदस्य”
कृष्ण कुमार सिंह “अध्यक्ष”
परिवादी ने अपने परिवाद पत्र में यह कहा है कि विपक्षी ने परिवादी के पिता शिवशंकर राय का इलाज 21.04.2013 से 20.10.2013 तक किया। विपक्षी डॉo हरिराम द्वारा परिवादी को यह बताया गया कि परिवादी के पिता शिवशंकर राय को टी.बी. है, लेकिन विपक्षी के इलाज से परिवादी के पिता की हालत में कोई सुधार नहीं हुआ, बल्कि उनकी हालत और अधिक खराब हो गयी। फलस्वरूप परिवादी द्वारा अपने पिता को उचित इलाज हेतु चेस्ट केयर क्लीनिक भोजूबीर वाराणसी में दिखाया गया वहाँ पर डॉo ऋतेन्धर मिश्र ने बताया कि परिवादी के पिता को टी.बी. नहीं है और न ही पहले थी बल्कि टी.बी. की दवा खिलाने की बजह से उनको हार्ट की शिकायत आयी। परिवादी के पिता को श्री बालाजी क्लीनिक डॉo अजय सिंह के यहाँ डॉo ऋतेन्धर मिश्र द्वारा हार्ट के इलाज हेतु रेफर कर दिया गया जहाँ पर पता चला कि डॉo हरिराम के द्वारा चलाई गयी दवा की वजह से हार्ट की परेशानी हुई है। परिवादी के पिता विपक्षी द्वारा बरती गयी डाक्टरी उपेक्षा की वजह से जीवन व मृत्यु से संघर्ष कर रहे थे तथा उन्हें अनेकों प्रकार से शारीरिक, मानसिक व आर्थिक कष्टों का सामना करना पड़ा जिसके लिए पूरी तरह से विपक्षी ही जिम्मेदार है। दिनांक 22.08.2015 को पिता याची की गलत दवा की प्रतिक्रिया के कारण उसके दुष्प्रभाव से किडनी प्रभावित हो चुकी थी, जिससे परिवादी के पिता की मृत्यु हो गयी। परिवादी ने विपक्षी को नोटिस रजिस्टर्ड डाक द्वारा भेजी लेकिन विपक्षी डॉo हरिराम द्वारा नोटिस लेने से इन्कार कर दिया गया। अतः परिवादी को विपक्षी से दवा इलाज व आने जाने में हुए व्यय के लिए 2,00,000/- रुपए, वर्तमान समय में चल रहे तथा भविष्य में होने वाले दवा इलाज में व्यय के लिए 3,00,000/- रुपए, मानसिक, शारीरिक,
आर्थिक कष्ट हेतु 2,00,000/- रुपए तथा पौष्टिक आहार हेतु क्षति 50,000/- रुपए कुल रुपए 7,50,000/- रुपए दिलवाया जाए।
परिवादी द्वारा अपने परिवाद पत्र के समर्थन में शपथ पत्र प्रस्तुत किया गया है।
प्रलेखीय साक्ष्य में परिवादी ने कागज संख्या 8/1 डॉo हरिराम द्वारा दवा इलाज के पर्चे की छायाप्रति दिनांकित 21.04.2013, कागज संख्या 8/2 व 8/3 डॉo हरिराम द्वारा दवा इलाज के पर्चे की छायाप्रति दिनांकित 21.07.2013, कागज संख्या 8/4 डॉo आर. मिश्रा के पर्चे की छायाप्रति, कागज संख्या 8/5 श्री बालाजी क्लीनिक के पर्चे की छायाप्रति, कागज संख्या 8/6 त्रिमूर्ति हॉस्पिटल की लैबोरेटोरी रिपोर्ट की छायाप्रति, कागज संख्या 8/7 त्रिमूर्ति हॉस्पिटल केस समरी एण्ड डिस्चार्ड एडवाइस की छायाप्रति, कागज संख्या 8/8 व 8/9 चेस्ट केयर क्लीनिक के डॉo ऋतेन्धर मिश्र के पर्चे की छायाप्रति प्रस्तुत किया गया है।
विपक्षी द्वारा कागज संख्या 21क जवाबदावा प्रस्तुत किया गया है, जिसमें उसने परिवाद पत्र के कथनों से इन्कार किया है। अतिरिक्त कथन में उसने यह कहा है कि डॉo हरिराम “मेडिकल कौंसिल ऑफ उत्तर प्रदेश लखनऊ” में पंजीकृत तथा प्राइवेट मेडिकल प्रैक्टिस करने हेतु अधिकृत है और विपक्षी मेडिकल शिक्षा की एमoबीoबीoएसo, एमoडीo की डिग्रीधारक है। विपक्षी एक फिजीशियन के रूप में प्राइवेट क्लीनिक मुहल्ला नरौली, शहर आजमगढ़ में खोलकर चिकित्सा सेवा करता है और विपक्षी प्रत्येक बुधवार एवं रविवार को कुछ समय के लिए लालगंज बाजार जिला आजमगढ़ में भी शुक्ला मेडिकल हाल जाकर अपनी चिकित्सा सेवा प्रदान करता है। परिवादी की ओर से परिवाद पत्र के समय दाखिल किए गए मेडिकल प्रेसक्रिप्सन के परचे जो इलाज कराने के समय ही मरीज शिवशंकर के पास है उस परचे के अनुसार मरीज शिवशंकर की उम्र 65 वर्ष थी। दिनांक 21.04.2013 को “शुक्ला मेडिकल हाल लालगंज” पर पहली बार चिकित्सा सेवा लेने हेतु दिखाने आया। मरीज शिवशंकर परिवादी के पिता हैं या नहीं इसकी जानकारी विपक्षी को नहीं थी। मरीज विपक्षी के यहाँ इलाज हेतु आने के पूर्व अन्य चिकित्सकों से टी.बी. का अधूरा इलाज कराया था एक माह पूर्व से अन्य डॉक्टर की टी.बी. की दवा खा रहा था यह तथ्य परिवादी ने विपक्षी से छिपाया था। मरीज सर्वप्रथम विपक्षी के पास आया तो मरीज को बलगम में खून आने लगा था और मरीज गंभीर हालत में था। विपक्षी द्वारा मरीज की पुरानी जाँचों व रिपोर्ट्स को देखा जो पूर्व में अन्य डॉक्टर द्वारा कराया गया था तथा उक्त का उल्लेख मरीज के पर्चे में किया उपरोक्त जाँच व रिपोर्ट्स तथा एक्स-रे के अनुसार मरीज के दोनों फेफड़े भर फैली हुई टी.बी. की बीमारी थी। फेफड़ों का जो हिस्सा था उसमें सांस की नलियों में सूजन तथा फेफड़ों में कुछ सिकुड़न थी। फेफड़ों की स्थिति काफी दयनीय थी। चूंकि मरीज पूर्व में किसी दूसरे डॉo से इलाज करा रहा था और टी.बी. के किटाणु होने की संभावना नहीं थी। विपक्षी ने दिनांक 21.04.2013 से टी.बी. की दवा जारी रखने की सलाह दी गयी और उसे एक सप्ताह बाद देखने के लिए बुलाया गया। एक सप्ताह बाद जब आया तो उसके सीने की स्थिति ठीक हो गयी थी। जिसका उल्लेख मरीज के पर्चे में लिखा है। मरीज का खून बन्द हो चुका था जिसका भी उल्लेख पर्चे में किया गया है और मरीज ठीक स्थिति में था। दवा जारी रखते हुए उसे एक सप्ताह बाद फिर बुलाया गया मरीज जब तीसरी बार विपक्षी को दिखाने के लिए दिनांक 05.05.2013 को आया तो वह पहले की अपेक्षा सुधार की स्थिति में था कोई परेशानी नहीं थी न तो उसने परेशानी की शिकायत किया। पर्चे में नो कम्प्लेन्ट लिखा गया। मरीज को लगातार आराम होता गया। मरीज मेडिकल स्टोर से दवा लेकर खाता रहा और उसकी स्थिति में सुधार होता गया। दिनांक 28.07.2013 तक विपक्षी नियमित रूप से आता रहा और उसकी बीमारी में लगातार सुधार होता रहा। दिनांक 28.07.2013 को विपक्षी ने पुनः मरीज के सीने का एक्सरे करवाया जिसमें पाया गया कि मरीज के पहले के एक्सरे की अपेक्षा काफी सुधार हो गया है। दिनांक 28.07.2013 के बाद मरीज शिवशंकर विपक्षी के पास आकर चेक-अप कराने में अनियमितता बरतना शुरू किया और वह मेडिकल हॉल से दवा लेकर खाता रहा। टी.बी. की किसी दवा से हृदय बीमारी पैदा नहीं होती है। मरीज शिवशंकर विपक्षी के यहाँ दिनांक 06.10.2013 को मरीज के सीने का तीसरी बार एक्स-रे करवाया, जिसमें मरीज के फेफड़े की टी.बी. में काफी आराम दिखाई पड़ा। उसके फेफड़े में सिकुड़न देखने को मिली जिसका उल्लेख मरीज के पर्चे में किया गया है। मरीज की लापरवाही से उसके फेफड़ों में सिकुड़न आयी थी। मरीज ने दिनांक 23.03.2013 से 23.10.2013 तक यानी पूरे सात माह तक टी.बी. की दवा खाया तथा ठीक हुआ और मरीज के सीने का सी.टी. स्कैन दिनांक 06.11.2013 को वाराणसी में हुआ। सी.टी. स्कैन के द्वारा मरीज के प्रारम्भिक बीमारी के बारे में कोई टिप्पणी नहीं की जा सकती और न ही रिपोर्ट में कोई टिप्पणी मरीज के सात माह पूर्व की बीमारी के विषय में किया गया है। सी.टी. स्कैन कराने के समय आयी रिपोर्ट के आधार पर मरीज के सात माह पूर्व स्थित टी.बी. की बीमारी से इन्कार नहीं किया गया। मरीज विपक्षी से सेवा लेने के लिए स्वतंत्र है। विपक्षी भरसक प्रयास करता है कि उसका मरीज ठीक हो जाए। परिवादी द्वारा विपक्षी को अनावश्यक रूप से जिम्मेदार ठहराया गया है।
विपक्षी द्वारा अपने जवाबदावा के समर्थन में शपथ पत्र प्रस्तुत किया गया है।
पत्रावली में पुकार कराए गयी। कोई उपस्थित नहीं आया। अतः पत्रावली का अवलोकन किया गया। विपक्षी ने अपने जवाबदावा में जिस-जिस कमेन्ट के विषय में वर्णन किया है वह कागज संख्या 8/1 व अन्य पर्चों में अंकित है। कागज संख्या 8/4 सी.टी.स्कैन रिपोर्ट की छायाप्रति है जिसमें टी.बी. का कोई वर्णन नहीं है, कागज संख्या 8/5 डॉo अजय सिंह का पर्चा है, कागज संख्या 8/6 लैबोरेटोरी रिपोर्ट है, कागज संख्या 8/7 त्रिमूर्ति हॉस्पिटल की जाँच की रिपोर्ट है, कागज संख्या 8/8 व 8/9 चेस्ट केयर क्लीनिक की रिपोर्ट है। सम्पूर्ण कागजात के अवलोकन से यह स्पष्ट हो रहा है कि विपक्षी ने जो भी इलाज किया है वह एक मानक के अनुसार किया है। विपक्षी के पास एम.डी. की डिग्री है। माo उच्चतम न्यायालय द्वारा पारित अभिनिर्णय के अनुसार यदि डॉo चिकित्सा हेतु पर्याप्त योग्यता रखता है और उसके रोग के असेसमेन्ट के बारे में कोई गलती हो भी जाती है तो उसे उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता है। जबकि विपक्षी ने मरीज शिवशंकर के इलाज में किसी भी प्रकार की कोई लापरवाही नहीं किया है। इस प्रकार परिवाद निरस्त होने योग्य है।
आदेश
परिवाद- पत्र खारिज किया जाता है। पत्रावली दाखिल दफ्तर हो।
गगन कुमार गुप्ता कृष्ण कुमार सिंह
(सदस्य) (अध्यक्ष)
दिनांक 18.06.2021
यह निर्णय आज दिनांकित व हस्ताक्षरित करके खुले न्यायालय में सुनाया गया।
गगन कुमार गुप्ता कृष्ण कुमार सिंह
(सदस्य) (अध्यक्ष)