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जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम- आजमगढ़।
परिवाद संख्या 109 सन् 2006
प्रस्तुति दिनांक 25.07.2006
निर्णय दिनांक 12.10.2018
विजय प्रकाश सिंह पुत्र स्वo साहब सिंह उoलo 40 वर्ष निवासी मोo- सिधारी (कमिश्नरी के सामने) थाना- सिधारी, तहसील- सदर, जिला- आजमगढ़।...........................................................................याची।
बनाम
- डॉo एचoपीo सिंह, अस्थि चिकित्सा केन्द्र, ब्रम्हस्थान, जिला- आजमगढ़।....................................................................विपक्षी।
उपस्थितिः- अध्यक्ष- कृष्ण कुमार सिंह, सदस्य- राम चन्द्र यादव
अध्यक्ष- “कृष्ण कुमार सिंह”-
परिवादी ने अपने परिवाद पत्र में यह कहा है कि दिनांक 24.04.2006 को फिसल जाने के कारण उसका बाया हाथ टूट गया। वह इलाज हेतु विपक्षी से सम्पर्क किया। विपक्षी ने कहा कि सही इलाज के लिए रॉड डालना पड़ेगा। परिवादी ने कुल 15,000/- रुपया विपक्षी को फीस अदा किया। ऑपरेशन के बाद पुनः एक्स-रे विपक्षी के अस्पताल में हुआ। एक्स-रे को देखने के बाद उसका भांजा सुशील कुमार ने बताया कि रॉड डालकर कोई ऑपरेशन नहीं किया गया है और जब परिवादी ने विपक्षी से सम्पर्क किया तो उसने कहा कि रॉड डालने की कोई आवश्यकता नहीं थी। 45 दिन के बाद प्लास्टर काटा जाएगा। उसकी बातों पर विश्वास करके अपना इलाज कराता रहा है और बार-बार विपक्षी से शिकायत करता रहा। 45 दिन के बाद जब प्लास्टर काटा गया तो उसका जुड़ा नहीं था और टेढ़ा हो गया था। जब यह बात मैंने विपक्षी से बताया तो उसने कहा कि गलती हो गया है। यदि आप किसी अन्य डॉक्टर को दिखाना चाहते हैं तो उसका खर्चा स्वयं वहन करेंगे। इस प्रकार परिवादी घबरा गया। तो वह श्यामा हॉस्पिटल शिवपुर वाराणसी में डॉक्टर एoकेo राय से सम्पर्क किया तो उन्होंने बताया कि इसका पुनः ऑपरेशन करना पड़ेगा और उन्होंने उसका दुबारा ऑपरेशन कर दिया। खर्चा के सम्बन्ध में विपक्षी
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से कहा गया तो कहा कि वह उनके आवास पर आए। जब वह उनके आवास पर गया तो उन्होंने कहा कि भाग जाओ। विपक्षी से परिवादी का ठीक से ऑपरेशन नहीं किया। यह उसकी सेवा में कमी है। परिवादी पेशे से बीमा एजेन्ट है और उसकी मासिक आमदनी 40 से 50 हजार रुपया हो जाती है। गलत ऑपरेशन से उसका काफी नुकासान हुआ। अतः परिवादी को विपक्षी से 1,00,000/- रुपया क्षतिपूर्ति, मानसिक व शारीरिक उत्पीड़न के लिए 1,00,000/- रुपया, दुबारा ऑपरेशन में किए गए खर्च 20,000/- रुपया कुल 2,20,000/- रुपया दिलवाया जाए और वाद व्यय 5,000/- रुपया भी दिलवाया जाए। परिवादी ने परिवाद पत्र के समर्थन में शपथ पत्र प्रस्तुत किया है।
प्रलेखीय साक्ष्य में परिवादी अस्थि चिकित्सा केन्द्र ब्रम्हस्थान जारी पर्ची की फोटोप्रति, अस्थि चिकित्सा केन्द्र की बिल की छायाप्रति, डिस्चार्जेज समरी कार्ड की छायाप्रति, भर्ती रहने के दौरान समय-समय पर किए गए देख-भाल की छायाप्रति, श्यामा मेडिकल स्टोर की छायाप्रति कुल चार प्रतियों में डॉक्टर ए.के.राय द्वारा लिखा गया पर्चा, कागज संख्या 5/11 श्यामा हॉस्पिटल द्वारा जारी चार्जेज सर्टिफिकेट की छायाप्रति प्रस्तुत किया है।
विपक्षी की ओर से कागज संख्या 11/1 व 11/2 जवाबदावा प्रस्तुत किया गया है, जिसमें उसने परिवाद पत्र में किए गए कथनों को इन्कार किया है। विशेष कथनों में उसने यह कहा है कि दिनांक 23.04.2006 को परिवादी उसके यहां इलाज हेतु आया और दिनांक 24.04.2006 को विपक्षी ने पूरी सावधानी और निपुणता के साथ ऑपरेशन के बाद लूप वायरिंग व बोन क्राफ्ट के जरिए याची का इलाज किया और प्लास्टर लगाया। विपक्षी ने उसके हाथ में कोई रॉड नहीं लगाया था न तो इस सन्दर्भ में कोई पैसा लिया। ऑपरेशन के मद में उसने 15,000/- रुपया नहीं लिया। दिनांक 05.05.2006 को संतोषजनक व ठीक हालत में अस्पताल से मुक्त हुआ। परिवादी को 45 दिन तक प्लास्टर रहने के बाद व अन्य सावधानी बरतने के साथ
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ही दिखाने व कटवाने की राय दी गयी थी। शिकायत कर्ता 05.05.2006 के बाद विपक्षी के पास 45 दिन के बाद अपने टूटे हाथ को दिखाने के बाद प्लास्टर को कटवाने हेतु विपक्षी के पास नहीं आया। अतः उसका इसके विपरीत किया गया कथन गलत है। परिवादी का यह कहना है कि विपक्षी ने अपनी गलती स्वीकार कर उसे अन्य चिकित्सक से इलाज करने हेतु कहा था गलत है। बनारस में कराया गया इलाज व उसके सन्दर्भ में विपक्षी को कोई जानकारी नहीं है। विपक्षी एक अर्थो सर्जन है। उसे मात्र 3,000/- रुपया ऑपरेशन की फीस प्राप्त हुई थी। शिकायत कर्ता के आमदनी के विषय में उन्हें कोई जानकारी नहीं है। शिकायतकर्ता लालची है। अतः परिवाद खारिज किया जाए।
जवाबदावा के समर्थन में शपथ पत्र प्रस्तुत किया गया है।
उभयपक्षों ने अपनी लिखित बहस किया। उभयपक्षों के विद्वान अधिवक्ताओं को तर्कों को सुना तथा पत्रावली का अवलोकन किया। परिवादी द्वारा कागज संख्या 6/3 के रूप में जो डिस्चार्जेज समरी कार्ड की छायाप्रति प्रस्तुत की गयी है। उसमें यह लिखा हुआ है कि उसका इलाज लूप वायरिंग व बोन क्राफ्ट के जरिये किया गया है और उसके हाथ में विपक्षी ने रॉड नहीं डाला था। परिवादी 45 दिन बाद विपक्षी के यहाँ गया अथवा नहीं वहाँ अपना प्लास्टर कटवाया अथवा नहीं इस सन्दर्भ में उसके द्वारा कोई भी साक्ष्य प्रस्तुत नहीं किया गया है। विपक्षी की ओर से न्याय निर्णय कुशुम शर्मा बनाम हॉस्पिटल मेडिकल स्टोर AIR 2010 SC 1015 प्रस्तुत किया गया है। इस न्याय निर्णय में माननीय उच्चतम न्यायालय ने यह अभिधारित किया है कि ऑपरेशन करने वाले डॉक्टर के पास युक्ति प्रकार का क्वालिफिकेशन होना चाहिए। न तो उसको बहुत ज्यादा और न तो बहुत कम होनी चाहिए। विपक्षी की डिग्री एम.एस.अर्थो की है। इस सन्दर्भ में यदि हम एक अन्य न्याय निर्णय मॉर्टिन एफ.डी.सूजा वर्सेस मुहम्मद इस्फाक 2009 CIJ 352 SC का यदि अवलोकन करें तो इस न्याय निर्णय में माननीय उच्चतम न्यायालय ने यह
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अभिधारित किया है कि किसी डॉक्टर को केवल इस आधार पर दण्डित नहीं कर देना चाहिए कि अचानक उसके निर्णय लेने में कोई गलती हो गयी हो।
उपरोक्त विवेचन से मेरे विचार से विपक्षी ने अपना कार्य कुशलता से किया है और यह कार्य करने हेतु उसके पास ऐसी डिग्री भी प्राप्त थी। अतः विपक्षी को निग्लीजेन्स के लिए उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता। उपरोक्त विवेचन से मेरे विचार से परिवाद खारिज किए जाने योग्य है।
आदेश
परिवाद खारिज किया जाता है। पत्रावली दाखिल दफ्तर हो।
राम चन्द्र यादव कृष्ण कुमार सिंह
(सदस्य) (अध्यक्ष)