Uttar Pradesh

Azamgarh

CC/171/2013

MANBHARAN DHOBI - Complainant(s)

Versus

DR.G.K.TRIPATHI - Opp.Party(s)

SHUBH KARAN SINGH

01 Nov 2018

ORDER

District Consumer Disputes Redressal Forum
Azamgarh(U.P.)
 
Complaint Case No. CC/171/2013
( Date of Filing : 19 Oct 2013 )
 
1. MANBHARAN DHOBI
AZAMGARH
...........Complainant(s)
Versus
1. DR.G.K.TRIPATHI
AZAMGARH
............Opp.Party(s)
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. JUSTICE KRISHNA KUMAR SINGH PRESIDENT
 HON'BLE MR. RAM CHANDRA YADAV MEMBER
 
For the Complainant:
For the Opp. Party:
Dated : 01 Nov 2018
Final Order / Judgement

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जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम- आजमगढ़।

परिवाद संख्या 171 सन् 2013

प्रस्तुति दिनांक 19.10.2013

                  निर्णय दिनांक 02.11.2018        

 

मनभरन धोबी पुत्र स्वo छबिराज ग्राम मठिया जप्ती माफी परगना अतरौलिया तहसील बूढ़नपुर जिला आजमगढ़।.......................................................याची।

बनाम

डॉक्टर जीoकेo त्रिपाठी प्रोo राजीव गांधी मेमोरियल हॉस्पिटल एण्ड रिसर्च सेण्टर हीरापट्टी आजमगढ़।................................................................विपक्षी।

     उपस्थितिः- कृष्ण कुमार सिंह “अध्यक्ष” तथा राम चन्द्र यादव “सदस्य”

निर्णय

कृष्ण कुमार सिंह “अध्यक्ष”-

     परिवादी ने अपने परिवाद पत्र में यह कहा है कि उसके पेशाब में कुछ दिक्कत हो रही है। अतः दिनांक 18.01.2012 को याची बस द्वारा आजमगढ़ सदर अस्पताल डॉक्टर को दिखाने विपक्षी के पास पहुंचा। अतः दिनांक 18.12.2013 को ही विपक्षी ने याची की तमाम जांच लिख दिया और याची के लीवर , पित्तासय, किडनी, तिल्ली, पैंक्रियाज, इन्टेस्टाइन व पेशाब की नली की जाँच अपने ही पैथालॉजी में कराया। उपरोक्त सभी जांच सामान्य पायी गयी, लेकिन प्रोस्टेट 44x40 एम.एम. बढ़ा हुआ पाया गया। विपक्षी ने परिवादी को सलाह दिया कि उसका ऑपरेशन करना पड़ेगा। इसमें 40-50 हजार रुपये खर्च होगा। याची ने इतने पैसे देने की असमर्थता जताई तो विपक्षी ने कहा कि याची के पास राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा का कार्ड विपक्षी को दे दिया और दिनांक 02.02.2012 को विपक्षी ने याची का ऑपरेशन कर दिया। ऑपरेशन करने के बाद विपक्षी ने परिवादी को 10 दिन तक अस्पताल में रखा और दिनांक 12.02.2012 को अपने अस्पताल से डिस्चार्ज कर दिया। वह छः दिन के बाद पुनः चेक कराने पहुंचा तो दिनांक 18.02.2012 को विपक्षी ने पुनः दवा लिखा। कई महीने दवा कराने के बाद भी परिवादी को कोई लाभ नहीं हुआ तो वह दिनांक 11.09.2012 को डॉक्टर प्रोo दलेला लखनऊ को दिखाने गया और उसका इलाज कराया, लेकिन एक महीने इलाज कराने के बाद भी कोई फायदा

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नहीं हुआ। परिवादी को काफी मानसिक, शारीरिक व आर्थिक कष्ट हुआ। अतः विपक्षी से 5,00,000/- रुपया क्षतिपूर्ति दिलवाया जाए और वाद खर्च भी दिलवाया जाए। परिवादी ने पुरिवाद पत्र के समर्थन में शपथ पत्र भी प्रस्तुत किया है।

     प्रलेखीय साक्ष्य में मेरी गोल्ड हॉस्पिटल का पर्चा कागज संख्या 7/1, राजीव गांधी मेमोरियल हॉस्पिटल एण्ड रिसर्च सेन्टर कागज संख्या 7/2, राजीव गांधी मेमोरियल हॉस्पिटल का पर्चा कागज संख्या 7/3, उसी अस्पताल का पर्चा 7/4, 7/5 अल्ट्रॉसाउण्ड, इन्वेस्टीगेशन की छायाप्रति 7/6, एस. पवार द्वारा लिखी गयी दवा की पर्ची 7/7, क्रिश्चियन सेवा संस्थान आजमगढ़ का पर्चा 7/8 व 7/9, डॉक्टर दलेला का पर्चा 7/10 प्रस्तुत किया है।

     कागज संख्या 16क/1 ता 16/3 विपक्षी द्वारा जवाबदावा प्रस्तुत किया गया है, जिसमें उसने परिवाद पत्र में किए अभिकथनों से इन्कार किया है। अतिरिक्त कथन में विपक्षी ने यह कहा है कि दिनांक 18.01.2012 को परिवादी ने विपक्षी को दिखाने आया था और उसने बताया कि उसके पास राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा कार्ड है। अतः मुफ्त में इलाज व ऑपरेशन की सुविधा प्रदान है। उसकी जाँच की गयी तो 44x40 एम.एम. प्रोस्टेट बढ़ा हुआ पाया गया। उसे दवा करने के लिए कहा गया और ठीक नहीं होगा तो ऑपरेशन किया गया। 02.02.2012 को विपक्षी ने उसे अपने अस्पताल में भर्ती किया और ऑपरेशन किया और दवा दिया। दिनांक 12.02.2012 को उसे छोड़ दिया गया और उसे क्या-क्या सावधानी बरतनी है यह उसे बताया गया। विपक्षी द्वारा कोई असावधानी या चूक नहीं की गयी है। विपक्षी ने चिकित्सक के रूप में अपने दायित्वों को बखूबी अंजाम दिया है। विपक्षी एक कुशल एम.बी.बी.एस. डॉक्टर है तथा उसका गायन्कोलॉजी में स्पेशलाईजेशन है। उक्त कार्य हेतु आवश्यक डिग्रियां हैं और उसके द्वारा एक चिकित्सक के दायित्वों का निर्वहन पूर्ण सावधानी व ध्यानपूर्वक किया जाता है। इस फोरम को परिवाद पत्र के विचारण का अधिकार नहीं है। परिवादी कोई भी अनुतोष पाने का अधिकृत नहीं है। अतः परिवाद खारिज किया जाए। विपक्षी द्वारा अपने कथनों के समर्थन में शपथ पत्र प्रस्तुत किया है और प्रलेखीय साक्ष्य में कागज संख्या 20/1 एम.बी.बी.एस. की डिग्री, कागज संख्या 20/2 एम.बी.बी.एस. डिग्री के समय

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वहां कौन-कौन से काम किया था, का पर्चा, कागज संख्या 20/3 मेडिकल रजिस्ट्रेशन सर्टिफिकेट की छायाप्रति, कागज संख्या 20/4 गायन्कोलॉजी में डिप्लोमा प्राप्त करने के प्रमाण पत्र की छायाप्रति, कागज संख्या 20/5 मेडिकल काउंसिल ऑफ इण्डिया द्वारा जारी प्रमाण पत्र प्रस्तुत किया गया है।

     उभय पक्षों के विद्वान अधिवक्ताओं को सुना तथा पत्रावली का अवलोकन किया। परिवादी के विद्वान अधिवक्ता ने मंच के समय अपनी बात रखी। विपक्षी के विद्वान अधिवक्ता ने सर्वप्रथम यह तर्क प्रस्तुत किया कि परिवादी द्वारा परिवाद पत्र के समर्थन में, साक्ष्य के रूप में शपथ पत्र दाखिल नहीं किया गया है। उन्होंने यह भी कहा कि विपक्षी एक क्वालीफाइड डॉक्टर है और उसका उसका ऑपरेशन किया है। चूँकि विपक्षी ने यह स्वीकार किया है कि उसने ऑपरेशन किया है। अतः इसे सिद्ध करने हेतु परिवादी को कोई शपथ पत्र दाखिल करने की आवश्यकता नहीं है। जहां तक शपथ पत्र की बात है तो परिवादी ने परिवाद पत्र के साथ शपथ पत्र दाखिल किया है, जिसमें संक्षिप्त विवरण किया गया है। कहीं भी इस बात का प्रावधान नहीं है कि शपथ पत्र इतना लम्बा-चौड़ा होना चाहिए। अतः इस सन्दर्भ में विपक्षी के विद्वान अधिवक्ता द्वारा किया गया कथन संधार्य नहीं है। विपक्षी के विद्वान अधिवक्ता ने न्याय निर्णय “वी. किशन राव वर्सेस निखिल सुपर स्पेशिलिटी हॉस्पिटल एण्ड अन्य III (2010) CPJ 1 (SC) प्रस्तुत कर यह कहा है कि चूँकि मामला बहुत ही जटिल है अतः ऐसी स्थिति में परिवादी को विशेषज्ञ साक्षी की आख्या मंगानी चाहिए थी। इसी तरह की बात उसके द्वारा प्रस्तुत न्याय निर्णय में भी कहा गया है। लेकिन पत्रावली के अवलोकन तथा विपक्षी द्वारा की गयी स्वीकृति के आधार पर मैं इस मत का हूं कि यह मामला इतना जटिल नहीं है जिसमें विशेषज्ञ साक्षी की रिपोर्ट मंगाया जाना आवश्यक हो। अतः ऐसी स्थिति में विपक्षी के विद्वान अधिवक्ता द्वारा प्रस्तुत न्याय निर्णय का महत्व नहीं है। जहाँ तक विपक्षी का सन्दर्भ है तो वह एम.बी.बी.एस. डॉक्टर है और गायन्कोलॉजी में उसकी डिप्लोमा कर रखा है। चूँकि विपक्षी के पास एम.एस. की डिग्री नहीं है। अतः उसे ऑपरेशन करने का कोई अधिकार प्राप्त नहीं है। उसने जो डिप्लोमा लिया है उस डिप्लोमा से वह केवल बच्चा पैदा करा सकता है और इस तरह का गम्भीर ऑपरेशन करने का अधिकार उसे बिल्कुल

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हासिल नहीं है। इस सन्दर्भ में यदि एक अन्य न्याय निर्णय “कुशुम शर्मा एण्ड अन्य वर्सेस बत्रा हॉस्पिटल एण्ड मेडिकल रिसर्च सेण्टर (2010) III SCC 480” का अवलोकन करें तो इस न्याय निर्णय में माननीय उच्चतम न्यायालय ने यह अभिधारित किया है कि डॉक्टर के पास किसी विशेष कार्य करने की रीजनेबल डिग्री होनी चाहिए, लेकिन विपक्षी के पास ऑपरेशन करने का कोई डिग्री नहीं है।

     ऐसी स्थिति में मेरे विचार से परिवाद स्वीकार करने योग्य है।          

आदेश

परिवाद स्वीकार किया जाता है और विपक्षी को आदेशित किया जाता है कि वह परिवादी को मुo 5,00,000/- (पांच लाख) रुपये हर्जाने की रकम अन्दर 30 दिन अदा करें और वाद दाखिला की तिथि से अंतिम भुगतान की तिथि तक परिवादी को उपरोक्त राशि पर 09% ब्याज पाने के लिए अधिकृत होगा। विपक्षी परिवादी को मुo 10,000/- (दस हजार) रुपये वाद खर्च देने के लिए भी बाध्य है।

 

   

 

 

राम चन्द्र यादव                    कृष्ण कुमार सिंह

(सदस्य)                          (अध्यक्ष)

    

 

 

 
 
[HON'BLE MR. JUSTICE KRISHNA KUMAR SINGH]
PRESIDENT
 
[HON'BLE MR. RAM CHANDRA YADAV]
MEMBER

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