MADHURI SINGH filed a consumer case on 23 Sep 2021 against DR. VIVEK PRAKASH in the Azamgarh Consumer Court. The case no is CC/78/2017 and the judgment uploaded on 01 Oct 2021.
जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग- आजमगढ़।
परिवाद संख्या 78 सन् 2017
प्रस्तुति दिनांक 18.04.2017
निर्णय दिनांक 23.09.2021
श्रीमती माधुरी सिंह पत्नी शिवकुमार सिंह निवासी हरिबंशपुर चक गोरया पोस्ट- सदर, जिला- आमजमगढ़.
......................................................................................परिवादिनी।
बनाम
उपस्थितिः- कृष्ण कुमार सिंह “अध्यक्ष” तथा गगन कुमार गुप्ता “सदस्य”
कृष्ण कुमार सिंह “अध्यक्ष”
परिवादिनी ने अपने परिवाद पत्र में यह कहा है कि वह दिनांक 04.01.2017 को अपने इलाज हेतु विपक्षी संख्या 01 को दिखाने उसके हॉस्पिटल विपक्षी संख्या 02 पर गयी और अपनी तकलीफ के बारे में विपक्षी संख्या 01 से बतायी तो विपक्षी संख्या 01 द्वारा अल्ट्रा साउण्ड कराकर बताया गया कि उसके पित्त की थैली में पथरी है, जिसका अविलम्ब ऑपरेशन कराना होगा। विपक्षी संख्या 01 की परामर्श को मानते हुए परिवादिनी ऑपरेशन हेतु तैयार हो गयी और ऑपरेशन का खर्च वगैरह 25,000/- रुपया जमा कराया गया और परिवादिनी का ऑपरेशन दिनांक 04.01.2017 को ही विपक्षी संख्या 01 द्वारा कर दिया गया। ऑपरेशन के बाद परिवादिनी को परेशानी हो रही थी जिसके बारे में विपक्षी संख्या 01 को बताया गया परन्तु विपक्षी संख्या 01 द्वारा याची की परेशानी को नजर अन्दाज करते हुए यह बताया गया कि ऑपरेशन के बाद इस तरह की परेशानी होना स्वाभाविक है धीरे-धीरे ठीक हो जाएगा। दवा वगैरह खाने के लिए सुझाव दिए। परिवादिनी द्वारा विपक्षी संख्या 01 की परामर्श का अक्षरशः पालन किया गया और जो दवा वगैरह लिखी गयी थी उसके सेवन करती रही। दिनांक 09.01.2017 को जब विपक्षी संख्या 01 द्वारा याची को हॉस्पिटल से डिस्चार्ज किया जा रहा था तो याची ने विपक्षी संख्या 01 को बताया कि डॉक्टर साहब अन्दर काफी जलन हो रही है तथा दर्द हो रही है परन्तु विपक्षी संख्या 01 द्वारा याची की परेशानी को नजर अन्दाज करते हुए दवा वगैरह देकर तथा अपने सारे खर्चे वगैरह 50,000/- रुपए लेकर डिस्चार्ज कर दिया गया और दिनांक 11.01.2017 को टाँका काटने हेतु बुलाया गया। दिनांक 11.01.2017 को जब परिवादिनी विपक्षी संख्या 02 के हॉस्पिटल पर गयी और विपक्षी संख्या 01 द्वारा उसे देखा गया और टाँका काटा गया तो याची द्वारा बताया गया कि डॉक्टर साहब जलन काफी हो रही है तो विपक्षी द्वारा यह कहते हुए कि धीरे-धीरे ठीक हो जाएगा दवा वगैरह खाती रहिए। दिनांक 13.01.2017 को आकर दिखा लीजिएगा। परिवादिनी विपक्षी संख्या 01 के ऊपर पूर्ण विश्वास व भरोसा करके उनकी बातों को मानती रही और उनके बुलाने पर दिनांक 13.01.2017 को दिखाने उनके हॉस्पिटल पर गयी और अपनी परेशानी बतायी तो विपक्षी द्वारा परेशानी को नजर अन्दाज करते हुए 4 दिन की दवा देकर छोड़ दिया गया और 17.01.2017 को देखने के लिए बुलाया गया। विपक्षी नं. 01 के बुलाने के मुताबिक दिनांक 17.01.2017 को याची विपक्षी संख्या 01 को दिखाने गयी और उस दिन याची की हालत काफी खराब थी उसके द्वारा बार-बार कहा गया कि डॉक्टर साहब यदि आपके समझ में नहीं आ रहा है तो आप जवाब दे दीजिए मैं किसी दूसरी जगह अपना इलाज करवा लूं क्योंकि ऑपरेशन के बाद भी परेशानी बनी हुई है। विपक्षी द्वारा याची को समझाया गया कि ठीक हो रहा है। कुछ दिन और लगेगा। परिवादिनी की तकलीफ बढ़ने लगी र उसकी स्थिति बेहद खराब हो गयी तो 19.01.2017 को विपक्षी संख्या 01 के पास दिखाने गयी और विपक्षी संख्या 01 द्वारा उसकी स्थिति खराब देखकर पी.जी.आई. लखनऊ के लिए रेफर कर दिया गया और दिनांक 09.01.2017 के बाद फीस व दवा वगैरह के मद में याची से 25,000/- रुपया वसूल लिया गया। विपक्षी संख्या 01 द्वार याची का इलाज काफी असावधानीपूर्वक किया गया जिससे याची को काफी शारीरिक, मानसिक व आर्थिक आघात हुआ। विपक्षी संख्या 01 द्वारा रेफर करने के बाद जब याची पी.जी.आई. लखनऊ गयी तो डॉक्टरों द्वारा चेक करने के बाद बताया गया कि ऑपरेशन गलत कर दिया गया है और दवा वगैरह भी समुचित नहीं दी गयी। पी.जी.आई. लखनऊ के डॉक्टरों द्वारा याची का इलाज शुरू किया गया, जिसमें पचासों हजार रुपया खर्च हुआ और अभी भी इलाज जारी है। अतः परिवादिनी को विपक्षी से 3,20,000/- रुपए दिलाया जाए।
परिवादिनी द्वारा अपने परिवाद पत्र के समर्थन में शपथ पत्र प्रस्तुत किया गया है।
प्रलेखीय साक्ष्य में परिवादिनी द्वारा कागज संख्या 6/1 नोटिस की छायाप्रति, कागज संख्या 6/2 डिस्चार्ज कार्ड की छायाप्रति, कागज संख्या 6/3 ता 6/13 संजय गांधी पोस्ट ग्रेजुएट इन्स्टीच्यूट ऑफ मेडिकल साइंस को पेमेन्ट रसीदों की छायाप्रति, कागज संख्या 6/14व15 कुमार पैथोलॉजी के रिपोर्ट की छायाप्रति, कागज संख्या 6/16ता6/26 विद्या फार्मेसी के कैश मेमो रसीद की छायाप्रति, कागज संख्या 36/1 विद्या हॉस्पिटल द्वारा जारी डिस्चार्ज कार्ड की मूल प्रति, कागज संख्या 36/2व36/3 कुमार पैथोलॉजी की रिपोर्ट की छायाप्रति, कागज संख्या 36/4 ऑपरेशन नोट की छायाप्रति, कागज संख्या 36/5 इशाक् मेडिकल सेन्टर का पर्चा, कागज संख्या 15/1 व 15/2 संजय गांधी पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस के पर्चे की छायाप्रति, कागज संख्या 17/3 संजय गांधी पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस का डिस्चार्ज समरी की छायाप्रति तथा कागज संख्या 17/4 ता 17/7 अल्ट्रासाउण्ड की छायाप्रति प्रस्तुत किया गया है।
कागज संख्या 7क विपक्षीगण द्वारा जवाबदावा प्रस्तुत किया गया है, जिसमें उसने परिवाद पत्र के कथनों से इन्कार किया है। अतिरिक्त कथन में उसने यह कहा है कि विपक्षी पेसे से डॉक्टर है और ऑपरेशन करने की योग्यता रखता है। दिनांक 23.01.2017 को एक विधिक नोटिस असत्य अभिकथनों के साथ विपक्षी को प्रेषित किया गया था जिसका विपक्षी द्वारा दिनांक 01.03.2017 को जवाब दिया गया। दिनांक 03.01.2017 को माधुरी सिंह विपक्षी के अस्पताल में आयी उनके द्वारा पूर्व में कराए गए अल्ट्रासाउण्ड का परिशीलन कर जीoवीo स्टोन की सलाह दी गयी और दिनांक 04.01.2017 को शल्य चिकित्सा के द्वारा ओoटीo के जरिए सफलतापूर्वक ऑपरेशन किया गया और याची को दिनांक 09.01.2017 को अस्पताल से डिस्चार्ज कर दिया गया। याची का टाका दिनांक 11.01.2017 को काटा गया 6 दिन बाद याची दिनांक 17.01.2017 को अस्पताल आयी और टांके के जगह खुजलाहट की बात कही तो उसे ड्रेसिंग की सलाह अस्पताल द्वारा दी गयी, सब कुछ नार्मल रहा। समुचित शल्य चिकित्सा व इलाज के बाद अन्तिम रूप से याची का अल्ट्रासाउण्ड पश्चात् प्रक्रम पर कराया गया, जिसमें किसी भी प्रकार की कोई कमी परिलक्षित नहीं हुई। अन्त में याची शल्य चिकित्सा रोग रहित पूर्ण हुई। याची ने इलाज में 15,800/- रुपए खर्च किया। याची ने बिना किसी आधार के परिवाद प्रस्तुत किया है। याची ने परिवाद के पैरा 04 में 25,000/- रुपए लेने की बात झूठी कही गयी है और पैरा 07 में अनुचित ढंग से 50,000/- रुपए लेने की बात झूठी कही गयी है। परिवाद पत्र के पैरा 09 में याची ने झूठा अभिकथन करते हुए अस्पताल के रिकार्ड के प्रतिकूल तथ्य निरूपित किया है। दिनांक 17.01.2017 को कतई याची की तबीयत खराब नहीं थी। वाद पत्र के पैरा 09 में याची ने उक्त अस्पताल में आकर अपने किसी परिचित को पी.जी.आई. के सम्पर्क में रहने की बात कहकर और वहाँ जाने व अपनी सहूलियत के हिसाब से अपने पर्चे पर रेफर लिखने की याचना की, जिस पर विपक्षी ने याची के मनोदशा व उसकी इच्छा के अनुकूल उसे अन्य किसी अस्पताल में भी इलाज कराने हेतु पर्चे पर रेफर लिखा क्योंकि इससे विपक्षी के गुणवत्ता परक चिकित्सा के प्रतिकूल कोई तथ्य नहीं था और इस प्रकार याची ने पैरा 09 में पुनः झूठा फीस वसूलने की बात कही है। अतः उसे खारिज किया जाए।
विपक्षी द्वारा अपने जवाबदावा के समर्थन में शपथ पत्र प्रस्तुत किया गया है।
प्रलेखीय साक्ष्य में विपक्षी द्वारा कागज संख्या 9/1 विद्या हॉस्पिटल के पर्चे की छायाप्रति, कागज संख्या 9/2 अल्ट्रासाउण्ड होल एब्डोमेन रिपोर्ट की छायाप्रति तथा कागज संख्या 9/3 हॉस्पिटल पेमेन्ट रिसिप्ट की छायाप्रति प्रस्तुत किया गया है।
उभय पक्षों के विद्वान अधिवक्ता को सुना तथा पत्रावली का अवलोकन किया। परिवादी के विद्वान अधिवक्ता ने अपने बहस में यह कहा कि विपक्षी संख्या 01 के पास याची के ऑपरेशन करने की कोई डिग्री हासिल नहीं थी। परिवादिनी द्वारा कागज संख्या 36/2 जो पर्चा दाखिल किया गया उसमें यह लिखा हुआ है कि डॉक्टर विवेक प्रकाश एम.एस. (जनरल सर्जरी) लिखा हुआ है, इस प्रकार विपक्षी संख्या 01 के पास जो डिग्री थी वह एम.एस. (जनरल सर्जरी) की डिग्री थी और परिवादी के विद्वान अधिवक्ता के इस तर्क में कोई बल नहीं है कि विपक्षी संख्या 01 के पास ऑपरेशन करने के लिए कोई डिग्री नहीं थी। विपक्षी संख्या 01 ने याची की लेप्रोस्कोपिक विधि से ऑपरेशन किया था। याची के विद्वान अधिवक्ता ने यह कहा कि विपक्षी संख्या 01 के पास लेप्रोस्कोपी के कोई डिग्री नहीं थी। उसके बावजूद भी उन्होंने ऑपरेशन किया। जब कोई विद्यार्थी एम.एस. में दाखिला लेता है और उसे पढ़ाया जाता है तो उसमें उसे लेप्रोस्कोपी के विषय में भी पढ़ाया जाता है। इस सन्दर्भ में यदि हम “मेडिकल कौंसिल ऑफ इण्डिया” के ‘गाइड लाइन फॉर कम्पिटेन्सी बेस्ड पोस्टग्रेजुएट ट्रेनिंग प्रोग्राम फॉर एम.एस. इन जनरल सर्जरी’ का अवलोकन करें तो इसके पैरा- ‘सी (ओ)’ में यह दिया हुआ है कि डॉक्टर को लेप्रोस्कोपी सर्जरी में ट्रेण्ड होना चाहिए जो कि उसके एम.एस. के कोर्स में यह खास तौर से बताया जाता है। इस सन्दर्भ में यदि हम “नेशनल एक्रीडिटेशन बोर्ड फॉर हॉस्पिटल एण्ड हेल्थ केयर प्रोवाइडर्स सर्टिफिकेशन विद्या हॉस्पिटल सिधारी आजमगढ़” का यदि अवलोकन करें तो इसमें क्लीनिकल सर्विसेज के कालम में जनरल सर्जरी (इन्क्यूडिंग लेप्रोस्कोपी सर्जरी) दिया गया है। इस प्रकार जनरल सर्जन के पास लेप्रोस्कोपी हेतु कोई अलग से सर्टिफिकेट या डिप्लोमा नहीं दिया जाता है और दोनों रूल के अवलोकन से स्पष्ट है कि लेप्रोस्कोपी सर्जरी के बारे में एम.एस. के कोर्स में पढ़ा दिया जाता है। लेप्रोस्कोपी की अलग से न कोई डिग्री होती है, न ही कोई डिप्लोमा होती है। इस सन्दर्भ में यदि हम न्याय निर्णय “मार्टिन एफ.डी. सूजा बनाम मोहम्मद इस्फाक 2009 सी.आई.जे. 352 सुप्रीम कोर्ट” का अवलोकन करें तो इस न्याय निर्णय में माo उच्चतम न्यायालय ने यह अभिधारित किया है कि यदि डॉक्टर के पास इलाज करने की योग्यता हो और उसके द्वारा इलाज के डायग्नोसिस में कोई अन्तर पड़ जाता है तो उसके लिए उसे उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता है। उपरोक्त विवेचन से हमारे विचार से परिवाद स्वीकार होने योग्य नहीं है।
आदेश
परिवाद पत्र खारिज किया जाता है। पत्रावली दाखिल दफ्तर हो।
गगन कुमार गुप्ता कृष्ण कुमार सिंह
(सदस्य) (अध्यक्ष)
दिनांक 23.09.2021
यह निर्णय आज दिनांकित व हस्ताक्षरित करके खुले न्यायालय में सुनाया गया।
गगन कुमार गुप्ता कृष्ण कुमार सिंह
(सदस्य) (अध्यक्ष)
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