SHUKHCHEN YADAV filed a consumer case on 30 Apr 2013 against DR. VINOD NAVKAR in the Seoni Consumer Court. The case no is CC/24/2013 and the judgment uploaded on 26 Oct 2015.
जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोषण फोरम, सिवनी(म0प्र0)
प्रकरण क्रमांक -24-2013 प्रस्तुति दिनांक-02.01.2013
समक्ष :-
अध्यक्ष - रवि कुमार नायक
सदस्य - श्री वीरेन्द्र सिंह राजपूत,
(1) सुखचैन यादव, वल्द छुटटु यादव, उम्र
42 वर्श।
(2) अनोखी बार्इ यादव, धर्मपतिन सुखचैन
यादव, दोनों निवासी-डोरली छतरपुर
जनता नगर, सिवनी
(म0प्र0)।.............................................आवेदकगणपरिवादीगण।
:-विरूद्ध-:
डाक्टर विनोद नावकर,
विषेशज्ञ जनरल सर्जरी निवासी-
एवं क्लीनिक अषोक टाकीज के सामने
तहसील व जिला सिवनी
(म0प्र0)।.....................................................अनावेदकविपक्षी।
:-आदेश-:
(आज दिनांक- 30/04/2013 को पारित)
द्वारा-अध्यक्ष:-
(1) परिवादीगण ने यह परिवाद, उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम की धारा 12 के तहत, अनावेदक द्वारा, परिवादीगण के पुत्र-सोनू यादव के इलाज व षल्य को उपेक्षापूर्ण होना बताते हुये, हर्जाना दिलाने के अनुतोश हेतु पेष किया है।
(2) यह स्वीकृत तथ्य है कि-अनावेदक जिला चिकित्सालय, सिवनी में पदस्थ सर्जिकल विषेशज्ञ है। यह भी स्वीकृत तथ्य है कि- दिनांक-15 अक्टूबर-2012 को परिवादीगण के पुत्र-सोनू यादव को अनावेदक के अषोक टाकिज सिथत सिवनी के क्लीनिक में इलाज के लिए लाया गया था, जिसके बांयें गाल में सूजन और दर्द की षिकायत थी। यह भी विवादित नहीं कि-अनावेदक ने अपनी क्लीनिक में परिवादी के पुत्र के बांयें गाल पर चीरा लगाकर मवाद निकाल दिया था और मलहम-पटटी किया था और इलाज के लिए दवा दिया था। यह भी विवादित नहीं कि-अगले दिन दिनांक-16 अक्टूबर-2012 को उक्त मरीज को उलिटयां आने की षिकायत बताये जाने पर, अनावेदक ने दवा लिख दिया था और षासकीय जिला चिकित्सालय, सिवनी में भर्ती होने की सलाह दी थी, तो परिवादीगण ने उक्त मरीज को उसी दिन जिला चिकित्सालय, सिवनी में भर्ती किया था, जिसका जिला चिकित्सालय में 17 अक्टूबर-2012 तारिख तक इलाज हुआ, दिनांक-17 और 18 अक्टूबर-2012 को परिवादीगण ने अपने पुत्र को मेडिकल कालेज, नागपुर में भर्ती कराया, उसी दिन दोपहर 2:00 बजे इलाज के दौरान उसकी मृत्यु हो गर्इ।
(3) स्वीकृत तथ्यों के अलावा, परिवाद का सार यह है कि- दिनांक-15.10.2012 को परिवादीगण के पुत्र-सोनू को अनावेदक के क्लीनिक में इलाज के लिए ले जाने पर, 800-रूपये फीस अनावेदक ने प्राप्त किया था और खून, पेषाब की जांच व एक्सरे किया व अन्य कोर्इ परीक्षण किये बिना तत्काल गाल में चीरा लगा दिया और मलहम पटटी कर घर पहुंचा दिया, जो कि-सोनू को घर ले जाने के बाद, उसने दिनांक-16.10.2012 को आंख में न दिखने की षिकायत की, तो पुन: उसे अनावेदक की क्लीनिक में लेकर आये, जहां 150-रूपये अनावेदक ने फीस लिया और उल्टी की षिकायत व दोनों आंखों में न दिखने की षिकायत बताये जाने पर, जिला चिकित्सालय, सिवनी में भर्ती करने की सलाह दी, जो कि-जिला चिकित्सालय, सिवनी में भर्ती करने पर, अनावेदक ने सरसरीतौर पर निरीक्षण कर, दो गोलियां लिख दीं और आंखों में न दिखने की षिकायत यथावत रहने के कारण, अनावेदक ने मौखिक-रूप से नागपुर में आंखों के विषेशज्ञ को दिखाने की सलाह दिया, जो कि-लगातार इलाज में उपेक्षा के कारण, परिवादीगण दिनांक-17.10.2012 को ही अपने पुत्र को उक्त इलाज हेतु नागपुर लेकर गये, जो कि-नागपुर मेडिकल कालेज में रात 12:00 बजे भर्ती कराये जाने पर दूसरे दिन उपचार के दौरान ब्रेन एबसेंस का आधार दर्षाकर, उसकी मृत्यु हो जाना डाक्टरों ने बताया, जो कि- अनावेदक द्वारा बिना पैथालाजी जांच के आपरेषन कर, अनेक जटिलतायें उत्पन्न कर दी थीं, जिसके कारण आवेदकगण का पुत्र निरन्तर गंभीर होता गया और अनावेदक के गलत आपरेषन करने के कारण, सेफटीसीमिया हो जाने से मेडीकल कालेज, नागपुर में उसकी मृत्यु हो गर्इ।
(4) परिवादीगण का पुत्र-सोनू यादव 22 बर्शीय होनहार बालक था ए.सी. हिन्दुस्तान कम्पनी कोटा (रजिस्थान) में फोरमेन के पद पर कार्यरत होकर, 14,000-रूपये मासिक आय प्राप्त करता था। फलत: मेडिकल रिवीजन के आधार पर हर्जाना चाहा गया है।
(5) अनावेदक के जवाब का सार यह है कि-सोनू यादव को जब दिनांक-15.10.2012 को इलाज के लिए लाया गया था, तो परिवादीगण ने बताया था कि-वह सूदूर कोटा (राजिस्थान) में अकेला रहकर काम करता है, वहां उसकी देखरेख करने वाला कोर्इ नहीं और उसके बांयें गाल में मवाद हो जाने से एक माह से अधिक अवधि से सूजन व दर्द है, इसलिए उसका मवाद निकलवाना चाहते थे, उक्त मरीज जहां कार्यरत था, वह न्यूकिलर पावर कार्पोरेषन आफ इणिडया लिमिटेड प्लांट था, जो कि-निर्देषित प्रक्रिया के अनुसार, मवाद वाले स्थान से सीरिंज से खींचकर अनावेदक ने जांच की, तत्पष्चात निर्धारित प्रक्रिया के अनुसार, उक्त स्थान से मवाद निकाल दिया था और परिवादीगण तथा मरीज को यह बता दिया था कि-मरीज के चेहरे में फेसीयल पाल्सी अर्थात चेहरे में डेढे़पन होने के लक्षण हैं और इंजेक्षन भी लगाया था, दवार्इयां और मलहम आदि लगाने की सलाह दी थी, जो कि-दिनांक-16.10.2012 को परिवादीगण ने अनावेदक के क्लीनिक में आकर केवल यह बताया था कि-मरीज को उलिटयां हो रही हैं, आंखों में न दिखने की कोर्इ षिकायत नहीं किया था, तो उसे जिला चिकित्सालय, सिवनी में भर्ती होने की सलाह दी गर्इ थी और दिनांक- 16.10.2012 को जांच कराये जाने पर, मरीज के सारे षारीरिक सिस्टम सामान्य पाये गये थे, जो कि-अनावेदक के हिदायत पर मरीज को एन्टीबायटिक इंजेक्षन व आवष्यक दवार्इयां दी गर्इं थीं। जबकि-जिला चिकित्सालय में भर्ती किये जाने के पष्चात दिनांक-17.10.2012 को मरीज ने यह षिकायत की थी कि-उसकी बांर्इं आंख में दिखार्इ नहीं दे रहा है और तब परिवादीगण ने दिनांक-17.10.2012 को मेडिकल कालेज, नागपुर में इलाज कराने व उपचार कराने के लिए जिला चिकित्सालय, सिवनी से छुटटी करा ली थी, उस समय तक सोनू यादव का षारीरिक लक्षण सामान्य था, जो कि-डिस्चार्ज कराये जाने के पूर्व तक उसका उपचार जारी रखा गया था, जो कि-नागपुर में मरीज के खून में इन्फेक्षन बताया गया और मेडिकल के प्रमाण-पत्र के अनुसार, मरीज के ब्रेन से दो तरफा मवाद निकाला गया था, जो कि-उक्त प्रक्रिया में भी ''कारडियो रेस्पेटरी अरेस्ट होना संभव है, जो कि-उक्त मरीज लगभग एक माह से अधिक अवधि के पैरोटार्इ डार्इटिस एवं ब्रेन एबसेज से पीडि़त था और बिना उचित उपचार के लापरवाहीपूर्वक जीवन व्यतीत कर रहा था और दिनांक-15.10.2012 को जब इलाज के लिये लाया गया, तब वह बांयें गाल में मवाद, सूजन और दर्द से ग्रसित था और चेहरे पर टेढ़ेपन के लक्षण भी थे, जो कि- चिकित्सकीय विषेशज्ञों के अनुसार, इस प्रकार के मवाद को तुरंत निकाला जाना चाहिए, ताकि उसका फैलाव न हो, इसलिए आवष्यक अहतयात बरतने के पष्चात, अनावेदक ने स्थापित चिकित्सकीय निर्देषों के अनुसार उपचार किया था व दिनांक-17.10.2012 को इलाज के दौरान जब मरीज द्वारा बांर्इ आंख में रोषनी की कमी की षिकायत की गर्इ, तो परिवादी की सहमति से मरीज को जांच व उपचार हेतु मेडिकल कालेज, नागपुर रिफर किया गया और संभवत: इलाज के लिए मेडिकल कालेज, नागपुर ले जाने के लिए विलम्ब की गंभीर लापरवाही के फलस्वरूप, पैरोटिड एबसेस का फैलाव भीतर-भीतर अनियन्त्रित हो गया। जबकि-अनावेदक ने अपने चिकित्सकीय ज्ञान और अनुभव के अनुसार, आवष्यक सुरक्षात्मक उपायों को अपनाकर चिकित्सकीय निर्देषों के अनुरूप पूरी सदभावना से मरीज के हित में उसे लाभ पहुंचाने हेतु अपने कत्र्तव्यों का पूरी निश्ठा से निर्वहन किया है। पेष परिवाद निरस्त किये जाने योग्य है।
(6) मामले में निम्न विचारणीय प्रष्न यह हैं कि:-
(अ) क्या अनावेदक द्वारा, सोनू यादव के प्रति
चिकित्सकीय उपेक्षा बरती गर्इ, जिसके फलस्वरूप
मरीज को हानि हुर्इ?
(ब) सहायता एवं व्यय?
-:सकारण निष्कर्ष:-
विचारणीय प्रष्न क्रमांक-(अ) :-
(7) परिवादीगण का उक्त पुत्र एस.सी. हिन्दुस्तान कम्पनी कोटा (राजस्थान) में फोरमेन के रूप में कार्यरत रहा है, यह अनावेदक द्वारा भी विवादित नहीं किया गया है और परिवादी-पक्ष की ओर से इस संबंध में प्रदर्ष सी-8 का गेटपास की जो प्रति पेष की गर्इ है, वह अमित यादव के नाम का है, जो कि-मेसर्स एच.सी.सी. लिमिटेड की ठेकेदार की संस्था में कार्यरत रहा है और इस संबंध में जो प्रदर्ष सी- 5 की प्राथमिक प्रमाण-पत्र परीक्षा की अंकसूची पेष की गर्इ है वह भी अमित कुमार के नाम की है, जो कि-प्रदर्ष सी-5 की अंकसूची में जो जन्मतिथि दर्षार्इ गर्इ है, उसके बाबद परिवादिया का जच्चा-बच्चा रक्षा कार्ड सी-4 की प्रति पेष की गर्इ है, जिसमें षिषु का नाम सोनू उल्लेख है, लेकिन उसमें दर्षार्इ गर्इ जन्मतिथि के तारिख, महिना व वर्श के अंकों में अपलेखन के द्वारा सुधार होना दर्षित है। जबकि-प्रदर्ष सी-6 और सी-7 के मृत्यु प्रमाण-पत्र व प्रदर्ष सी-2 व सी-3 के इलाज अभिलेख में कहीं भी मरीजमृतक का नाम अमित यादव नाम रहना उल्लेख नहीं, बलिक सोनू यादव का ही नाम उल्लेख है।
(8) उक्त मरीज-सोनू यादव को जब दिनांक-15 अक्टूबर- 2012 को अनावेदक के निवास के क्लीनिक में लाया गया, तब उसके बांयें गाल में सूजन, लालिमा व आंषिक टेढ़ापन पाया गया था और उक्त सूजन व दर्द करीब एक माह पूर्व से ही होने की षिकायत की गर्इ थी, जो कि-पैरोटार्इ एबसेज (फोड़ा) होना प्रथम बार क्लीनिक परीक्षण में भी पाया था, यह परिवादी की ओर से पेष प्रदर्ष सी-2 के मरीज के पर्चे में भी उल्लेख है। जो कि-मरीज के उक्त फोड़े से मवाद निकाला गया और चीरा लगाकर मलहम-पटटी की गर्इ, यह स्वीकृत तथ्य है और प्रदर्ष सी-2 से भी दर्षित है और एंटीबायटिक इंजेक्षन व दवार्इयां भी चिकित्सक द्वारा लिखी गर्इं और उसी पर्चे पर पृश्ठ भाग में 16 अक्टूबर-2012 को किये गये क्लीनिकल परीक्षण के समय अमित को उलिटयां होने की षिकायत की जाना और उक्त बाबद दवार्इ लिखा जाना दर्षित है, क्योंकि उसी दिन मरीज को इनिदरा गाधी चिकित्सालय, सिवनी, सर्जिकल वार्ड में भर्ती किया जाना भी प्रदर्ष सी-3 से दर्षित है। और अनावेदक की ओर से पेष प्रदर्ष आर-1 के दिनांक-17.10.2012 के पर्चे की प्रति से यह दर्षित हे कि-बांर्इं आंख में दिखार्इ न देने की षिकायत पर, उक्त मरीज को दिनांक-17.10.2012 को जिला चिकित्सालय, सिवनी से मेडिकल कालेज, नागपुर के लिए अनावेदक द्वारा रिफर किया गया था और प्रदर्ष आर-4 के पैथालाजी फार्म से यह भी दर्षित है कि-दिनांक-16.10.2012 को अनावेदक ने मरीज को हीमोग्लोबिंग और ब्लैड षुगर का जांच बताया था और प्रदर्ष आर-4 के पृश्ठ भाग पर परीक्षण रिपोर्ट में जिला चिकित्सालय द्वारा जांच में हीमोग्लोबिंग की मात्रा 11 ग्राम और ब्लैड षुगर 110 एम.जी. होना पाया गया था।
(9) परिवादी-पक्ष की ओर से मेडिकल कालेज हासिपटल, नागपुर में हुये परीक्षण व इलाज के अभिलेख की कोर्इ प्रतियां पेष नहीं की गर्इ हैं, मात्र मेडिकल कालेज हासिपटल का सोनू यादव का मृत्यु प्रमाण-पत्र पेष किया गया है, उसमें भी यह उल्लेख है कि-मृतक के षरीर को उसके रिष्तेदारों को सौपा गया, क्योंकि वे मृतक का पोस्टमार्टम परीक्षण कराने के इच्छुक नहीं हैं, अर्थात मृत्यु के ठीक-ठीक कारण के संबंध में लाष का पोस्टमार्टम भी परिवादी-पक्ष के द्वारा नहीं कराया गया, जो कि-प्रदर्ष सी-6 के मृत्यु प्रमाण-पत्र से यह दर्षित है कि-दिनांक-18.10.2012 को ही सोनू को मेडिकल कालेज, नागपुर में भर्ती किया गया था, उसी दिन दोपहर 2:00 बजे उसकी इलाज के दौरान मृत्यु हो गर्इ थी। और मृत्यु का कारण, ''कारडियो रेस्पेटरी अरेस्ट दर्षाया गया है और बिमारी के रूप में एक्युट सप्रोटिव पैरोटार्इ डार्इटिसब्रेन एबसेजसेप्टीसिमियासीजरएस्पीरेषन दर्षाया गया है, जो कि-मात्र इतनी सामग्री ही तथ्यों के रूप में अभिलेख में उभयपक्ष से पेष हुर्इ हैं।
(10) अनावेदक-पक्ष की ओर से फारक्यूहरसन टैक्ट्रस बुक आफ आपरेटिव सर्जरी की किताब के 7वें संस्करण को पेष कर, उसके पृश्ठ क्रमांक-263 आपरेषन आन सेलीबरी ग्लैन्डस के टापिक में पैरोटिड ग्लैन्डस के बाबद ''इन्डीकेषन फार आपरेषन में वर्णित विशय पर ध्यान दिलाया गया है, जिसमें यह उल्लेख है कि-अगर पैरोटिड एबसेज का इन्फेक्षन एन्टीबायटिक दवाओं से षीघ्रता से समाप्त नहीं होता, तो बिना इंतजार किये सूजन के मुख्य भाग पर छोटा चीरा लगाकर मवाद बाहर निकाला जाना चाहिये, सफार्इ की जाना चाहिये, अन्यथा इस संबंध में विलम्ब के फलस्वरूप इन्फेक्षन गर्दन के गहरे उतक पर फैल सकता है और अनावेदक-पक्ष की ओर से मेडिकल कालेज, जबलपुर के एसोसियेट न्यूरो सर्जन डाक्टर बार्इ.आर.यादव की यह लिखित राय विषेशज्ञ के रूप में पेष की गर्इ है कि-एक्युट सप्रोटिव पैरोटिड एबसेज के संबंध में षीघ्रता से चीरा लगाकर इलाज किया जाना सर्जिकल प्रोटोकाल के तहत स्टैण्डर्ड सर्जिकल प्रेकिटस है और इस तरह का षल्य प्रक्रिया किया जाना स्वयं में किसी भी तरह बे्रन एबसेज और सेप्टीसीमिया होने का कारण नहीं हो सकता, बलिक यह ऐसी जटिलतायें उत्पन्न होने से बचाता है।
(11) इसके विपरीत परिवादी-पक्ष की ओर से ऐसा कोर्इ किसी विषेशज्ञ की राय या मेडिकल साहित्य अथवा साक्ष्य इस संबंध में पेष नहीं हुर्इ है कि-अनावेदक द्वारा गाल में चीरा लगाकर मवाद निकाल देने की प्रक्रिया अपनाने के फलस्वरूप ब्रेन एबसेज या सेप्टीसिमिया हो सकना संभव है।
(12) अनावेदक-पक्ष की ओर से न्यायदृश्टांत-2010 (भाग-1) एम.पी.एल.जे. 12 (एस.सी.) पोस्ट ग्रेज्युएट इंस्टीटयूट आफ मेडिकल एज्युकेषन एण्ड रिसर्च बनाम जसपाल सिंह व अन्य यह दर्षाने के लिए पेष हुआ है कि-व्यवसायिक उपेक्षा के अवधारण के लिए मानक, उस व्यवसाय में कौषल को प्रयोग लाने वाले साधारण व्यकित का है और अवधारण के मानक के लिए कोर्इ उच्च निपुणता अपेक्षित नहीं है।
(13) न्यायदृश्टांत-2000 (भाग-2) सी0पी0जे0 502 (म0प्र0 राज्य आयोग) अब्दुल्ला मोदीबाला व अन्य बनाम जी.डी.बिरला मैमोरियल हेल्थ सेन्टर व अन्य, 2000 (भाग-1) सी0पी0जे0 361 (माननीय राज्य आयोग) टी.एम.टी.चन्द्रा बनाम डाक्टर महेष व अन्य एवं 1997 (भाग-3) सी0पी0जे0 341 (केरला राज्य आयोग) पल्लातु ज्रोज व अन्य बनाम डाक्टर थानकम पुन्ननोस व अन्य, 2000 (भाग-3) सी0पी0जे0 91 (पषिचम बंगाल राज्य आयोग) प्रषांत कुमार चक्रवर्ती व अन्य विरूद्ध डाक्टर जहर देवनाथ व अन्य, 2000 (भाग-3) सी0पी0जे0 79 (पषिचम बंगाल राज्य आयोग) निर्मलनेन्दुपाल बनाम डाक्टर पी.के. बक्षी व अन्य पेष कर अनावेदक-पक्ष की ओर से यह तर्क किया गया है कि-जहां परिवादी-पक्ष द्वारा, अनावेदक के द्वारा की गर्इ कही जा रही उपेक्षा के कृत्य का विषिश्ट विवरण न दिया गया हो, अनावेदक को चिकित्सकीय उपेक्षा दर्षाने बाबद लगाये गये लांछन के संबंध में कोर्इ विषेशज्ञ की राय साक्ष्य या मेडिकल साहित्य पेष कर पाने में परिवादी असफल रहा हो और जहां चिकित्सक ने सर्जिकल प्रोटोकाल तथा मानक षल्य प्रक्रिया के अनुसार, सदभावनापूर्वक मरीज के हित में षल्य व इलाज किया हो, तो चिकित्सक को चिकित्सकीय उपेक्षा का दोशी नहीं माना जा सकता।
(14) आपरेषन के पष्चात सेप्टीसिमिया हो जाने से हुर्इ मृत्यु व क्षति के मामलों में आपरेषन के स्थान पर साफ-सफार्इ की कमी व आपरेषन के यंत्रों को कीटाणु रहित (स्ट्रालार्इज) न किये जाने के लांछन अकसर कल्पना के आधार पर भी लगा दिये जाते हैं, न्यायदृश्टांत-2013 (भाग-1) सी0पी0जे0 584 (राश्ट्रीय आयोग) बी. भवानी बनाम डाक्टर एस. षिवा सुभ्रमणियम वाले मामले में इस तरह के लांछन जो किसी स्वतंत्र या विष्वसनीय साक्ष्य के द्वारा प्रमाणित नहीं किये गये थे, तो ऐसे लांछन अस्वीकार किये गये, जो कि-उक्त मामले में यह पाया गया था कि-षल्य के दौरान परीक्षण व इलाज बाबद सावधानी बरता गया, जो कि-विषेशज्ञ की साक्ष्य से यह प्रमाणित पाया गया कि-षरीर में संक्रमण के पूर्व असितत्व के फलस्वरूप, सेप्टीसिमिया हुआ था और जहां चिकित्सक द्वारा अपने सर्वोत्तम व्यवसायिक निर्णय व चिकित्सकीय कौषल का प्रयोग षल्य करने में किया और आपरेषन के बाद भी आवष्यक सावधानी बरती गर्इ और आवष्यक पाये जाने पर मरीज को उच्च मेडिकल संस्थान के लिए रिफर भी किया गया, तो कोर्इ सेवा में कमी व चिकित्सकीय उपेक्षा अपनाया जाना नहीं पाया गया।
(15) अनावेदक-पक्ष की ओर से पेष न्यायदृश्टांत-2010 (भाग-3) एम0पी.एल.जे. 290 (एस.सी.) कुसुम षर्मा व अन्य बनाम बत्रा हासिपटल एण्ड मेडिकल रिसर्च सेन्टर व अन्य में वे सिद्धांत बताये गये हैं कि-कोर्इ मेडिकल प्रोफेषनल कब चिकित्सकीय उपेक्षा का दोशी माना जायेगा और उक्त सिद्धांतों को ही 2012 (भाग-4) सी0पी0जे0 18 (हरियाणा राज्य आयोग) डाक्टर अमरसिंह सिदधी बनाम अनुराधारानी व 2011 (भाग-4) सी0पी0जे0 288 (माननीय राश्ट्रीय आयोग) अन्य विभिन्न न्यायदृश्टांतों के मामले में अनुसरण किया गया है। तथा न्यायदृश्टांत- 2011 (भाग-4) सी0पी0जे0 236 (माननीय राश्ट्रीय आयोग) दसविन्दर सिंह विरूद्ध डाक्टर नीरज व अन्य में भी बालम वाले मामले में बताये परीक्षण को ही कसौटी माना गया है, तो उक्त संबंध में दर्षाये मानक व कसौटियों के आधार पर ही यह देखा जा सकता है कि- अनावेदक चिकित्सकीय उपेक्षा करने का दोशी है या नहीं।
(16) मेडिकल प्रोफेषनल व्यवसाय की प्रकृति को देखते हुये, एक डाक्टर से दूसरे डाक्टर तक व्यवसायिक कौषल अलग-अलग होता है और इलाज के एक से अधिक स्वीकार वैकलिपक तरीके उपलब्ध हैं और जब-तक डाक्टर अपने कत्र्तव्यों का अपनी बेहतर क्षमता अनुसार और युकितयुक्त सावधानी से निर्वहन करता है, तो चिकित्सकीय उपेक्षा कारित होना नहीं मानी जा सकती। और मात्र इस आधार पर कि-अन्य उपलब्ध तरीका चिकित्सक द्वारा नहीं अपनाया गया, वह असफलता के लिए जिम्मेदार नहीं होगा, यदि उसके द्वारा अपनाया गया तरीका चिकित्सकीय व्यवसाय में स्वीकार योग्य है और यदि वह ऐसा स्वीकार योग्य तरीका अपनाता है, तो उसके निर्णय के किसी त्रुटि के लिए उसे चिकित्सकीय उपेक्षा का दोशी नहीं ठहराया जा सकता। जो कि-व्यवसायिक उपेक्षा के अवधारण के लिए मानक, उस व्यवसाय में कौषल को प्रयोग में लाने वाले साधारण व्यकित का ही है और ऐसे मानक हेतु कोर्इ उससे अधिक उच्च निपुणता आपेक्षित नहीं।
(17) प्रस्तुत मामले में अनावेदक द्वारा, मरीज-सोनू यादव के षरीर के किसी अंदरूनी हिस्से का आपरेषन या षल्य क्रिया नहीं की गर्इ, जिसमें कोर्इ जोखिम का तत्व विदधमान होता, तो जहां अनावेदक को यह बताया गया था कि-मरीज के बांयें गाल में सूजन, लालिमा व दर्द लगभग एक माह से है और देखने से ही बांयें पैरोटिड ग्रंथि के इन्फेक्षन के कारण, गाल में मवाद होना क्लीनिकल परीक्षण में पाया गया, तो अनावेदक-पक्ष की ओर से पेष टेस्ट बुक आफ मेडिकल आपरेटिव सर्जरी में दर्षार्इ मेडिकल साहित्य से यही स्वीकार योग्य निदान का तरीका रहा होना दर्षित है कि-बिना अधिक इंतजार किये, उक्त मवाद को गाल की सतह में छोटा सा चीरा लगाकर डनेज कर दिया जावे, ताकि अंदर बढ़ रहे इन्फेक्षन को कन्ट्रोल किया जा सके। तो यह अनावेदक द्वारा अपने सर्वोत्तम चिकित्सकीय कौषल के तहत सदभाविक-रूप से मरीज के हित में लिया गया एक ऐसा निर्णय था, जो कि-चिकित्सा व्यवसाय में स्वीकार योग्य तरीका है। और जहां मरीज के बांयें गाल में मवाद बाहर निकालने के लिए छोटा सा चीरा लगाया गया, गाल के उक्त स्थान पर कोर्इ सड़न या संक्रमण का फैलाव रहा हो, ऐसा परिवादी का मामला भी नहीं। और उक्त स्थान पर उचित रूप से मलहम-पटटी की जाती रही तथा अनावेदक द्वारा एन्टीबायटिक व अन्य दवायें भी मरीज को लेख की गर्इं, जो कि-ऐसी दवायें 15 तारिख को बाजार से खरीदी गर्इं और सेवन की गर्इं, यह परिवादी-पक्ष की ओर से प्रमाणित नहीं किया गया है।
(18) जो कि-अगले दिन 16 तारिख को जब अनावेदक को यह सूचित किया गया कि-मरीज को उलिटयां हुर्इ हैं, तो उसे जिला चिकित्सालय में भर्ती कर, उसके रक्त के हीमोग्लोबिंग टेस्ट कर व ब्लैड षुगर की भी जांच की गर्इ, जो सामान्य पाये गये, जो कि-पेष अभिलेख से यह प्रकट है कि-तब-तक किसी आंख में कम दिखार्इ देने की कोर्इ षिकायत मरीज-पक्ष की ओर से नहीं की गर्इ थी और बांर्इं आंख में कम दिखार्इ देने की षिकायत 17 अक्टूबर-2012 को जिला चिकित्सालय में जब पहली बार की गर्इ, तो अनावेदक द्वारा, मरीज को मेडिकल हासिपटल में बेहतर इलाज के लिए रिफर भी कर दिया गया।
(19) परिवादी-पक्ष की ओर से यह तर्क किया गया है कि- दिनांक-15.10.2012 को जब मरीज को प्रथम बार अनावेदक के पास लाया गया, तब खून व पेषाब की पैथालाजी जांच के बिना ही गाल का आपरेषन कर दिया गया, इसलिए अनावेदक का कृत्य उपेक्षापूर्ण है और गाल के आपरेषन के कारण ही इंफेक्षन ब्रेन तक फैला, पर तर्क में बताये ऐसे कारण हेतु कोर्इ आधार नहीं, जो कि-22 वर्शीय युवक के गाल की चमड़ी में अंदर का मवाद निकालने के लिए छोटा सा बाहरी चमड़ी की सतह पर षल्य, जो कि किया जाना हर हालत में आवष्यक था, उसके लिए कोर्इ पूर्व पैथालाजी परीक्षण होना आवष्यक रहे हों, ऐसा कोर्इ साक्ष्य, विषेशज्ञ की राय या कोर्इ चिकित्सा साहित्य परिवादी-पक्ष पेष नहीं कर सका है। मरीज की कोर्इ डायवटीज की हिस्ट्री भी रही हो, ऐसा भी कोर्इ परिवादी का मामला नहीं और जिला चिकित्सालय में हुये पैथालाजी परीक्षण में भी ब्लैड षुगर का लेबिल मानक से अधिक नहीं पाया गया।
(20) अनावेदक के द्वारा मरीज के बांयें गाल के अंदर फैले मवाद को ही डेनेज किया गया है, अनावेदक के उक्त कृत्य से कोर्इ भी हानि मरीज को हो सकना संभव नहीं। और उसके उक्त कृत्य के फलस्वरूप, पैरोटिड फोड़े का फैलाव अंदर मसितश्क की ओर हो सकना संभव नहीं था, जो कि-मरीज को जब लगभग एक माह से उसके बांयें गाल में सूजन व दर्द की षिकायत रही है, तो यह संभावना रही है कि-उक्त फोड़े का फैलाव अंदर मसितश्क की ओर हो गया हो, या मसितश्क के फोड़े का ही फैलाव पैरोटिड ग्रंथ की ओर हुआ हो, लेकिन उक्त सिथति में भी गाल के अंदर पैरोटिड फोड़े के फैलाव का मवाद निकाल देना ही बेहतर और सुरक्षित उपाय संक्रमण को नियंत्रण करने के लिए प्राथमिक उपाय के रूप में होता है, ऐसे में तब अनावेदक के द्वारा, इलाज की अपनार्इ गर्इ प्रक्रिया मेडिकल व्यवसाय में स्वीकार योग्य प्रक्रिया रही होना, न केवल अनावेदक की ओर से पेष विषेशज्ञ की राय है, बलिक मेडिकल साहित्य से भी स्वीकार योग्य प्रक्रिया रही है, तो अनावेदक के द्वारा कोर्इ चिकित्सकीय उपेक्षा किया जाना स्थापित नहीं होता है, जो कि-चिकित्सकीय व्यवसाय में ऐसी प्रक्रिया को अपनाना पड़ता है, जिसमें अधिक जोखिम का तत्व अंतरवलित होता है, लेकिन चिकित्सक यह र्इमानदारी से सदभाविक विष्वास करता है कि-मरीज के लिए सफलता का बेहतर चांस उपलब्ध होगा, जो कि-बीमारी की गंभीरता को देखते हुये, ऐसे चांस, मरीज को इलाज से मुक्त किये जाने बाबद यदि लिये जाते हैं, तो वे चिकित्सकीय उपेक्षा की श्रेणी में नहीं।
(21) प्रस्तुत मामले में मरीज के बांयें गाल के मवाद को डेनेज करने की प्रक्रिया में कोर्इ जोखिम का तत्व किसी भी तरह नहीं रहा है, बलिक यह हर तरह से मरीज की बेहतरी के लिए ही रहा है। और परिवादी-पक्ष यह स्थापित नहीं कर सका है कि-उक्त के फलस्वरूप मरीज को कोर्इ हानि हुर्इ या उक्त के फलस्वरूप ब्रेन एबसेस या सेप्टीसिनिया मरीज को हुआ, बलिक मसितश्क व षरीर के अंदरूनी भाग में संक्रमण के पूर्व असितत्व रहे होने के फलस्वरूप ही बाद में संक्रमण बढ़ने व फैलने की ही प्रबल संभावना स्पश्ट है।
(22) जो कि-मरीज-सोनू यादव की मेडिकल कालेज हासिपटल, नागपुर में मृत्यु हो जाने के पष्चात, स्वयं परिवादी-पक्ष द्वारा ही उसका पोस्टमार्टम कराने से इंकार कर दिया गया, मेडिकल कालेज में हुये इलाज में परीक्षण के अभिलेख भी परिवादी-पक्ष के द्वारा इस फोरम में उपलबध नहींकराया गया, जबकि-प्रदर्ष सी-6 के मेडिकल हासिपटल के मृत्यु प्रमाण-पत्र में जो ब्रेन एबसेस सीजर आपरेषन सेप्टीसिनिया और बार्इलेटरल एस्प्रेषन का उल्लेख है, जो कि-उनमें से कोर्इ भी मरीज के कारडियो रेस्पेटरी अरेस्ट का कारण हो सकता है, लेकिन ये सब लक्षण बाद के हैं, जो अनावेदक के चिकित्सकीय उपेक्षा के संबंध में विचारणीय नहीं और अनावेदक द्वारा किये गये इलाज के समय जो लक्षण 15 और 16 अक्टूबर-2012 को रहे हैं, उन्हें देखते हुये, अनावेदक द्वारा, परिवादी के प्रति कोर्इ चिकित्सकीय उपेक्षा बरता जाना स्थापित नहीं होता। और अनावेदक द्वारा किये गये इलाज के फलस्वरूप, कोर्इ बीमारी का फैलाव होना स्थापित नहीं पाया जाता है और तब अनावेदक ने परिवादीगण के पुत्र-सोनू यादव की इलाज में कोर्इ चिकित्सकीय उपेक्षा की, यह स्थापित नहीं पाया जाता है। तदानुसार विचारणीय प्रष्न क्रमांक-'अ को निश्कर्शित किया जाता है।
विचारणीय प्रष्न क्रमांक-(ब):-
(23) विचारणीय प्रष्न क्रमांक-'अ के निश्कर्श के आधार पर, परिवादी-पक्ष यह स्थापित नहीं कर सका है कि-अनावेदक ने परिवादीगण के पुत्र के इलाज में कोर्इ चिकित्सकीय उपेक्षा किया, इसलिए पेष परिवाद स्वीकार योग्य न होने से निरस्त किया जाता है। पक्षकार अपना-अपना कार्यवाही-व्यय वहन करेंगे।
मैं सहमत हूँ। मेरे द्वारा लिखवाया गया।
(श्री वीरेन्द्र सिंह राजपूत) (रवि कुमार नायक)
सदस्य अध्यक्ष
जिला उपभोक्ता विवाद जिला उपभोक्ता विवाद
प्रतितोषण फोरम,सिवनी प्रतितोषण फोरम,सिवनी
(म0प्र0) (म0प्र0)
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