जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम फैजाबाद ।
उपस्थित - (1) श्री चन्द्र पाल, अध्यक्ष
(2) श्रीमती माया देवी शाक्य, सदस्या
(3) श्री विष्णु उपाध्याय, सदस्य
परिवाद सं0-12/2010
शाहिदा बानो पत्नी राज मोहम्मद पुत्री श्री भग्गल निवासी ग्राम मगलसी परगना मगलसी तहसील सोहावल थाना रौनाही जनपद फैजाबाद ............परिवादिनी
बनाम
डाक्टर बी0पी0 सिंह अस्पताल सिद्दीक सर्जिकल सेन्टर खैरनपुर रूदौली जनपद फैजाबाद ........... विपक्षी
निर्णय दिनाॅंक 04.06.2015
निर्णय
उद्घोषित द्वारा: श्री चन्द्र पाल, अध्यक्ष
परिवादिनी ने यह परिवाद विपक्षी के विरूद्ध विपक्षी द्वारा किये गये इलाज के लापरवाही के सम्बन्ध में व शारीरिक उत्पीड़न हेतु क्षतिपूर्ति दिलाये जाने के सम्बन्ध में योजित किया है।
परिवादिनी का परिवाद संक्षेप में इस प्रकार है, कि परिवादिनी विपक्षी को मु0 100=00 शुल्क जमा करके दिखाया। विपक्षी द्वारा अल्ट््रासाउन्ड कराने की बात कही गयी। दि0 21.02.2009 को मु0 2,000=00 जमा कर अल्ट््रा साउन्ड कराया गया। अल्ट््रा साउन्ड देखने के बाद परिवादिनी को दि0 22.02.2009 को अस्पताल में भर्ती कर लिया
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गया। विपक्षी द्वारा अल्ट््रा साउन्ड की रिपोर्ट देखने के बाद परिवादिनी से कहा कि तुम्हारी पेशाब की थैली फट गयी है, तो परिवादिनी ने कहा कि मेरा पूर्व में डाक्टर द्वारा बच्चेदानी का आपरेशन किया गया था, जो अभी जल्द ही हुआ है। जिसका टाॅंका भी अभी नहीं सूखा है। चूॅंकि मुझे वहाॅ फायदा नहीं पहुॅंचा,, इसलिए आपको दिखा रही है। अगर आप इलाज कर सकते हैं तो बताये नहीं तो लखनऊ में दिखाऊॅं तो विपक्षी ने कहा कि तुम्हारा आपरेशन दोबारा करना होगा तभी ये ठीक होगा और मैं ठीक कर दूॅंगा। परिवादिनी ने विपक्षी की बात पर विश्वास कर आपरेशन की फीस मु0 40,000=00 कर्ज उधार लेकर जमा किया और दि0 24.02.2009 को विपक्षी द्वारा परिवादिनी का आपरेशन कर दिया गया तथा विपक्षी द्वारा किये गये आपरेशन में इतनी लापरवाही व असावधानी की गयी, कि परिवादिनी की पेशाब की समस्या जस की तस बनी रही और दि0 12.03.2009 को अस्पताल से डिस्चार्ज कर दिया। परिवादिनी को विपक्षी द्वारा किये गये आपरेशन से कोई लाभ नहीं हुआ तथा आपरेशन करने के बाद विपक्षी द्वारा प्रत्येक सप्ताह में बुलाकर दवा दी जाती रही और फीस की वसूली की जाती रही। परिवादिनी की तवियत और बिगड़ने लगी तथा पेशाब के साथ खून व मवाद भी आने लगा, तो परिवादिनी ने फिर विपक्षी को दिखाया और कहा कि किस तरह आपने आपरेशन किया है कि बीमारी ठीक नहीं हो रही है तो विपक्षी ने और गुमराह किया कि तुम्हारी आॅंते सब चिपक गयी है अब ये जीवन भर ऐसे ही रहेगा और दवा आजीवन चलेगी तथा दवा के बल पर जितना दिन चलेगी वही तुम्हारी किस्मत अब यह ठीक नहीं होगा। विपक्षी द्वारा यह कहने पर परिवादिनी को भारी मानसिक आघात पहुॅंचा। इस पर परिवादिनी लखऊ में डाक्टर पवार को दिखाया तथा काफी रूपया खर्चा हुआ और डा0 पवार ने पुनः आपरेशन किया, जिससे परिवादिनी को पूर्ण रूप से आराम मिला और वह अब स्वस्थ है।
विपक्षी ने परिवादिनी के परिवाद से इन्कार किया और अपने जवाबदावे में कहा है, कि परिवादिनी अपने सहयोगी डाक्टर व भाई मो0 जमील के साथ दि0 21.2.2009 को उत्तरदाता के पास सिद्दीक सर्जिकल सेन्टर पर आयी। परिवादिनी के मर्ज की निदान हेतु सिस्टोस्कोपी जाॅंच करवायी गयी, जिससे ज्ञात हुआ कि परिवादिनी का जो आपरेशन किसी अन्य सर्जिकल सेन्टर पर पूर्व में हुआ था वह आपरेशन सफल न होने के कारण लगभग 15 दिनों से गर्भाशय से पेशाब आ रहा था, जिसे बिना आपरेशन किये समुचित इलाज सम्भव नहीं था। इस पर विपक्षी ने परिवादिनी व उसके सहयोगी डाक्टर तथा भाई को आपरेशन के सम्बन्ध में सद्भाव पूर्वक पूरी-पूरी जानकारी दी
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गयी। जानकारी लेने के उपरान्त् आपरेशन कराने की तैयारी हेतु कागजात तैयार करवाकर आपरेशन व बेहोशी की सहमति पत्र भरवाकर परिवादिनी अपने घर चली गयी। परिवादिनी दूसरे दिन दि0 22.02.2009 को सिद्दीक सर्जिकल सेन्टर पर आयी और रोग निदान हेतु आपरेशन का अनुरोध किया, जिस पर परिवादिनी की भर्ती लेने के उपरान्त् सम्यक् जाॅंच व इलाज के बाद परिवादिनी व उसके भाई को आपरेशन की सफलता दर व सुझाव देने के उपरान्त् तैयार होने पर उनसे आपरेशन व बेहोशी सम्बन्धी सहमति पत्र दि0 24.02.2009 को भरवाने के उपरान्त् सफलता पूर्वक आपरेशन किया गया। परिवादिनी द्वारा दि0 24.02.2009 को मु0 5,000=00 जमा कराया गया। परिवादिनी को उपलब्ध करायी गयी दवायें मेडिकल स्टोर से विपक्षी द्वारा मॅंगायी गयी थी, जिसके सम्पूर्ण बिल मु0 12,200=00 था। परिवादिनी द्वारा विपक्षी के नर्सिंग होम में भर्ती रहने के दौरान कमरे का कोई शुल्क नहीं लिया गया। परिवादिनी जाते समय मु0 9,000=00 जमा किया। इस प्रकार परिवादिनी द्वारा दिये गये सम्पूर्ण मु0 14,000=00 में से मु0 2,000=00 बेहोशी डाक्टर को व मु0 500=00 असिस्टेन्ट को दिये गये तथा शेष बचे हुए मु0 11,500=00 में मु0 700=00 अपने पास से मिलाकर मेडिकल स्टोर का बिल दिया गया।
सूची 32ख से परिवादिनी ने 29 किता कागजात इलाज के सम्बन्ध में प्रेषित किये है तथा सूची सं0-10 से भी इलाज सम्बन्धी कागजात दाखिल किये हैं। परिवादिनी ने शपथीय साक्ष्य में सूची 19/1 से श्रीमती कुरैशा बानो का शपथ-पत्र, मोहम्मद जमील का शपथ-पत्र, अब्दुल हफीज खाॅं का शपथ-पत्र एवं अपना स्वयं का शपथ-पत्र प्रेषित किया है।
विपक्षी की ओर से सूची 33ख/2 से 13 किता कागजात क्वालीफिकेशन से सम्बन्धित प्रेषित किया गया है। विपक्षी ने शपथीय साक्ष्य में अपना स्वयं का शपथ-पत्र, विनय कुमार सिंह का शपथ-पत्र एवं डा0 राजनाथ वर्मा का शपथ-पत्र प्रेषित किया है।
मैं परिवादिनी के विद्वान अधिवक्ता तथा विपक्षी के विद्वान अधिवक्ता की बहस सुनी तथा पत्रावली का अवलोकन किया।
डाक्टर द्वारा किये गये इलाज के सम्बन्ध में जो डाक्टर द्वारा लापरवाही की जाती ह,ै उस लापरवाही के सम्बन्ध में विचार करने के विषय में सम्माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने डा0 लक्ष्मण बालकृष्ण जोशी बनाम त्रिम्बक बाबू गोड बोले ए.आई.आर.
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1999 एस.सी. 126 में कहा है कि कोई डाक्टर जो मरीज को सलाह देने और उपचार करने को तैयार होता है तो वह अन्तर्निहित रूप से निम्नलिखित वचन देता हैः-
1- उसके पास इस उद्देश्य के लिए कौशल और ज्ञान है।
डा0 वी.पी. सिंह ने परिवादिनी का इलाज किया और परिवादिनी के गर्भाशय से
पेशाब आ रहा था, जिसका बिना आपरेशन किये समुचित इलाज नहीं था। डा0 वी.पी. सिंह एम.बी.बी.एस. है। शल्य विज्ञान निष्णात (सामान्य शल्य चिकित्सा) का उनके पास सर्टीफिकेट है तथा एफ.एम.ए.एस. स्क्लि कोर्स प्रमाण-पत्र भी है। लोअर ट््रैक्ट इन्ड््रोलाॅजी ट््रेनिंग भी लिया हुआ है। जेम इन्डो सर्जरी ट््रेनिंग भी किये हुए है। इस प्रकार डा0 वी.पी. सिंह शल्य चिकित्सा में योग्यता प्राप्त डाक्टर है। इस बात का प्रतीक मुख्य चिकित्सा अधिकारी के मेडिकल बोर्ड की रिपोर्ट से भी इसकी पुष्टि होती है। इस प्रकार डा0 वी.पी. सिंह को आपरेशन करने में कौशल और ज्ञान में पूर्ण परिपक्व है।
2- यह निर्णय लेने में सतर्कता बरतना उसकी ड्यूटी है कि क्या उसे केस लेना चाहिए या नहीं।
डा0 वी.पी. सिंह ने परिवादिनी का आपरेशन करने के पूर्व इन्वेस्टीगेशन करवाया। इन्वेस्टीगेशन में अल्ट््रा साउन्ड रिपोर्ट, ब्लड रिपोर्ट आदि सभी जाॅंच कराने के उपरान्त् आपरेशन सहमति लेने के उपरान्त् परिवादिनी का आपरेशन किया। इस प्रकार विपक्षी अपने ज्ञान और कौशल के अनुसार सतर्कता बरतते हुए परिवादिनी का इलाज करना और उसे केस लेना उचित समझा और उसका सही इलाज किया।
3- यह निर्णय लेने में सतर्कता बरतना उसकी ड्यूटी है कि मरीज को क्या उपचार दिया जाय।
सतर्कता और मानक की डिग्री जब डाक्टर के पास है, तो उसे केस यथोचित दक्षता वाले चिकित्सक के मानक की कमी के विषय में कुछ नहीं कहा जा सकता है। यदि डाक्टर स्वीकृत पद्धति से मरीज का इलाज करता है। उचित सतर्कता के सम्बन्ध में यह कहा जायेगा, कि विज्ञान और प्रौद्योगिकी की प्रकृति के साथ परिवर्तन होता रहता है। बदलते हुए समय के अनुसार सभी विकासों की जानकारी डाक्टर रखे तथा अनुमोदित पद्धति से इलाज करे। डा0 वी.पी. सिंह ने अनुमोदित पद्धति से तथा आधुनिक बदलते हुए चिकित्सीय पद्धति को देखते हुए परिवादिनी का इलाज किया है। गर्भाशय से परिवादिनी के मूत्र व खून आना कहा गया है, जिसका इलाज विपक्षी ने किया। इलाज के दौरान परिवादिनी ने आपरेशन सम्बन्धी रिकार्ड, प्री आपरेटिव रिकार्ड,
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डायग्नोस तैयार किया। नर्स रिकार्ड सीट तैयार की गयी, जिसके अनुसार परिवादिनी का इलाज विपक्षी ने सही करने के उपरान्त् दि0 12.03.2009 को डिस्चार्ज समरी तैयार किया और डिस्चार्ज किया। डिस्चार्ज होने के समय एहतियात बरतने हेतु विपक्षी द्वारा सलाह दी गयी। परिवादिनी ने अपने परिवाद में यह आरोप लगाया है कि परिवादिनी की बीमारी जस की तस बनी रही। डा0 पवार को दिखाया। डा0 पवार ने पुनः आपरेशन किया। परिवादिनी ने डा0 पवार के आपरेशन के सम्बन्ध में कोई दस्तावेज प्रेषित नहीं किया, बल्कि चन्दन डायग्नोस्टिक सेन्टर की रिपोर्ट और इन्दू स्कैन की अल्ट््रा साउन्ड की रिपोर्ट के अनुसार परिवादिनी के सभी टेस्ट समान पाये गये। इस प्रकार परिवादिनी ने जो विपक्षी के ऊपर आरोप लगाये हैं कि सही इलाज नहीं किया है वह मेडिकल साक्ष्य से साबित नहीं होते है। मेडिकल बोर्ड की रिपोर्ट 31ख के अनुसार किसी भी आपरेशन में ज्ञात काम्पलीकेशन होना सर्जन की लापरवाही नहीं कही जा सकती। आपरेशन की सफलता दर लगभग 90 प्रतिशत है और बड़े आकार के फिस्चुला में यह और भी कम है अतः इस कारण फिसचुला दोबारा बन जाना/रिकरन्स होना सबसे सामान्य काम्पलीकेशन है। परिवादिनी आपरेशन से 15 दिन पूर्व दूसरे डाक्टर के यहाॅं आपरेशन कराया था। इसी कारण परिवादिनी को यह काम्पलीकेशन पैदा हुआ। विपक्षी द्वारा जो इलाज किया गया और दूसरी जगह जो परिवादिनी ने अपने को दिखाया विपक्षी के इलाज को गलत नहीं बताया है। अपने परिवाद में यह भी नहीं कहा कि उसे शारीरिक रूप से क्या नुकसान हुआ। इस प्रकार परिवादिनी द्वारा विपक्षी के ऊपर जो इलाज के लापरवाही के सम्बन्ध में आरोप लगाये गये हैं, वह विपक्षी के ऊपर सिद्ध नहीं है। इस प्रकार परिवादिनी के परिवाद में मैं बल नहीं पाता हूॅं। परिवादिनी का परिवाद खारिज किये जाने योग्य है।
आदेश
परिवादिनी का परिवाद खारिज किया जाता है।
(विष्णु उपाध्याय) (माया देवी शाक्य) ( चन्द्र पाल )
सदस्य सदस्या अध्यक्ष
निर्णय एवं आदेश आज दिनांक 04.06.2015 को खुले न्यायालय में हस्ताक्षरित एवं उद्घोषित किया गया।
(विष्णु उपाध्याय) (माया देवी शाक्य) ( चन्द्र पाल )
सदस्य सदस्या अध्यक्ष