// जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोषण फोरम, बिलासपुर छ.ग.//
प्रकरण क्रमांक CC/19/2009
प्रस्तुति दिनांक 29/01/2009
श्रीमती सरस्वती सोनी,
उम्र 35 साल, पति श्री नंद सोनी
साकिन बडी बाजार रतनपुर
तह. रतनपुर, जिला बिलासपुर छ.ग ......आवेदिका/परिवादी
विरूद्ध
डा. श्रीमती मधु सक्सेना,
चिकित्सा प्रभारी शासकीय औषधालय रतनपुर
तहसील रतनपुर,जिला बिलासपुर छ.ग. .........अनावेदक/विरोधीपक्षकार
आदेश
(आज दिनांक 15/04/2015 को पारित)
1. आवेदिका श्रीमती सरस्वती सोनी ने उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 की धारा 12 के अंतर्गत यह परिवाद अनावेदक चिकित्सक के विरूद्ध उपेक्षा एवं सेवा में कमी के आधार पर पेश किया है और अनावेदक चिकित्सक से चिकित्सकीय उपेक्षा के लिए 1,17,000/- रूपये प्रतिकर दिलाए जाने का निवेदन किया है ।
2. परिवाद के तथ्य संक्षेप में इस प्रकार है कि दिनांक 13/04/2006 आवेदिका के दाहिने घुटने में पीकू फॉल के दौरान सुई घुस गई, आवेदिका को उसके देवर गुरूदेव द्वारा शासकीय अस्पताल रतनपुर ले जाया गया, जहां पदस्थ अनावेदक चिकित्सक द्वारा आवेदिका के दाहिने घुटने में ढाई इंच का चीरा लगाकर सुई को निकालने का प्रयास किया गया, किंतु उसकी लापरवाही के कारण सुई घुटने के अंदर टूट गई, फलस्वरूप आवेदिका दूसरे दिन बिलासपुर आकर डाक्टर प्रकाश लाडीकर के यहां भर्ती हुई, जहां ऑपरेशन कर उसके घुटने से सुई का टुकडा निकाला गया । अत: यह अभिकथित करते हुए कि अनावेदक चिकित्सक द्वारा जबरन फीस वसूल कर उसके घुटने में चीरा लगाकर लापरवाहीपूर्वक निकालने के प्रयास में सुई उसके घुटने के अंदर टूट गयी, जिसके कारण उसे शारीरिक एवं मानसिक कष्ट हुआ, साथ ही डॉक्टर लाडीकर के यहां ईलाज में 15,000/. रूपये व्यय करना पडा, यह परिवाद पेश करते हुए अनावेदक चिकित्सक से वांछित अनुतोष दिलाए जाने का निवेदन किया गया है।
3. अनावेदक चिकित्सक जवाब पेश कर यह तो स्वीकार किया कि आवेदिका उसके पास शासकीय अस्पताल में ईलाज के लिए आई थी, किंतु इस बात से इंकार किया कि उसके द्वारा आवेदिका के घुटने से सुई निकालने का कोई प्रयास किया गया,बल्कि कहा गया है कि उसने केवल दर्द निवारक दवा देकर आवेदिका को बिलासपुर जाने की सलाह दिया था । आगे उसने आवेदिका से कोई फीस लेने से भी इंकार किया है तथा कहा है कि आवेदिका केवल पैसे वसूलने के लिए मनगढंत आधारों पर यह परिवाद पेश किया है जो निरस्त किये जाने योग्य है।
4. उभयपक्ष अधिवक्ता का तर्क सुन लिया गया है प्रकरण का अवलोकन किया गया।
5. क्या आवेदिका उपेक्षा एवं सेवा में कमी के आधार पर अनावेदक चिकित्सक से वांछित अनुतोष प्राप्त करने की अधिकारिणी है
सकारण निष्कर्ष
6. डॉक्टर प्रकाश लाडीकर के अस्पताल में आवेदिका के घुटने से ऑपरेशन कर सुई का टुकडा निकालने का तथ्य मामले में विवादित नहीं है
7. आवेदिका का कथन है कि डॉक्टर प्रकाश लाडीकर के अस्पताल में भरती होने के पूर्व वह रतनपुर शासकीय चिकित्सालय में अनावेदक चिकित्सक के पास गई थी, जो उसके घुटने में चीरा लगाकर लापरवाहीपूर्वक घुटने में धंसे सुई को निकालने का प्रयास किया जो टूट गया, फलस्वरूप उसे दूसरे दिन डॉक्टर प्रकाश लाडीकर के अस्पताल में भर्ती होना पडा, जहां ऑपरेशन कर उसके घुटने से सुई का टुकडा निकाला गया।
8. आवेदिका द्वारा प्रस्तुत दस्तावेजों से यह तो स्पष्ट होता है डॉक्टर प्रकाश लाडीकर के अस्पताल में ऑपरेशन के जरिये आवेदिका के घुटने में धंसे सुई के टुकडे को निकाला गया था, किंतु यह स्पष्ट नहीं हो पाता कि डॉक्टर प्रकाश लाडीकर के अस्पताल में ऑपरेशन के पूर्व अनावेदक चिकित्सक द्वारा ऑपरेशन कर लापरवाहीपूर्वक आवेदिका के घुटने से सुई निकालने का प्रयास किया गया था।
9. इसमें संदेह नहीं कि शासकीय अस्पताल में प्रदान की जाने वाली निशुल्क सेवा अधिनियम में परिभाषित सेवा के अंतर्गत नहीं आता, किंतु इसके विपरीत आवेदिका का कथन है कि अनावेदक चिकित्सक शासकीय अस्पताल में न केवल उसके घुटने का लापरवाहीपूर्वक ऑपरेशन कर धंसे सुई को निकालने का प्रयास किया, बल्कि कहा गया है कि अनावेदक चिकित्सक द्वारा शासकीय अस्पताल में निशुल्क सेवा देने के बजाय उससे जबरन 100/. रूपये फीस भी वसूल की गई, किंतु आवेदिका अपने इस कथन को साबित करने के लिए न तो फीस की कोई रसीद पेश कियाहै और न ही इस संबंध में अपने अलावा और किसी का शपथपत्र पेश किया है जबकि उसी के अनुसार, अनावेदक चिकित्सक को फीस भुगतान उसके देवर गुरूदेव द्वारा कियागया था, फलस्वरूप साक्ष्य के अभाव में यह प्रमाणित नहीं हो पाता कि आवेदिका द्वारा शासकीय अस्पताल में चिकित्सकीय सेवा प्राप्त करने के लिए अनावेदक चिकित्सक को फीस के रूप में प्रतिफल का भुगतान किया गया था । अत: इस आधार पर भी उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के अंतर्गत आवेदिका का परिवाद प्रचलन योग्य होना नहीं पाया जाता।
10. उपरोक्त कारणों से हम इस निष्कर्ष पर पहुंचते हैं कि आवेदिका अपना परिवाद प्रमाणित करने में असफल रही है । अत: उसका परिवाद निरस्त किया जाता है ।
11. उभयपक्ष अपना- अपना वादव्यय स्वयं वहन करेंगे
(अशोक कुमार पाठक) (प्रमोद वर्मा)
अध्यक्ष सदस्य