राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
सुरक्षित
अपील सं0-१४२५/२०१३
(जिला उपभोक्ता फोरम, प्रथम मुरादाबाद द्वारा परिवाद संख्या-२८२/२००५ में पारित निर्णय/आदेश दिनांक-२६/०४/२०१३ के विरूद्ध)
यूनियन आफ इंडिया द्वारा हेड पोस्ट आफिस जेल सिविल लाईन्स मुरादाबाद एवं अन्य।
.............अपीलार्थीगण.
बनाम
डा0 श्रीमती सरिता अग्रवाल पत्नी श्री विशन स्वरूप अग्रवाल निवासी एई-२९ राम गंगा विहार फेज-१ सिटी व जिला मुरादाबाद।
..............प्रत्यर्थीगण
समक्ष:-
- माननीय श्री राज कमल गुप्ता, पीठा0सदस्य।
- माननीय श्री महेश चन्द, सदस्य।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : डा0 उदय वीर सिंह विद्वान
अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित : श्री पीएस बाजपेयी विद्वान
अधिवक्ता ।
दिनांक: .25/01/2018
माननीय श्री महेश चन्द, सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
प्रस्तुत अपील जिला उपभोक्ता फोरम, प्रथम मुरादाबाद द्वारा परिवाद संख्या-२८२/२००५ में पारित निर्णय/आदेश दिनांक-२६/०४/२०१३ के विरूद्ध योजित की गयी है।
संक्षेप में विवाद के तथ्य इस प्रकार हैं कि प्रत्यर्थी/परिवादिनी ने दिनांक १८/०३/१९८८ को राष्ट्रीय बचत योजना (एनएसएस) के अन्तर्गत एक खाता खुलवाया था जिसका खाता सं0-००८५ था। प्रत्यर्थी/परिवादिनी द्वारा उक्त खाते में दिनांक २१/०३/१९८८ को रू0 ६५००/- की धनराशि जमा की गयी। इसके बाद समय-समय पर प्रत्यर्थी/परिवादिनी द्वारा अन्य धनराशि जमा की गयी और इस प्रकार कुल रू0 ३३५००/- की धनराशि जमा हुई। प्रत्यर्थी/परिवादिनी गोकुल दास गर्ल्स हिन्दू डिग्री कालेज मुरादाबाद में प्रवक्ता के पर पर कार्यरत थी। प्रत्यर्थी/परिवादिनी के अनुसार विपक्षी द्वारा उक्त बचत खाते में जमा धनराशि पर ब्याज भी अदा किया गया था । दिनांक २९/०१/२००१ को प्रत्यर्थी/परिवादिनी को आयकर कार्यालय से नोटिस प्राप्त हुआ जिसमें परिवादिनी से उक्त बचत खाते की परिपक्वता पर रू0 २६९५८/- की धनराशि प्राप्त होना कहा गया उस पर आयकर देयता भी बतायी गयी। इस नोटिस के प्राप्त होने पर उसे बहुत आश्यर्च हुआ और वह अपीलकर्ता/विपक्षी के कार्यालय में गयी जब पूछताछ की तो उसको बताया गया कि उक्त खाता बन्द हो चुका है और उसमें समस्त धनराशि निकाली जा चुकी है। इसके संबंध में प्रत्यर्थी/परिवादिनी द्वारा अपनी जमा धनराशि ब्याज सहित वापस प्राप्त करने के लिए अपीलकर्ता से अनुरोध किया गया। प्रत्यर्थी/परिवादिनी को अपीलकर्ता द्वारा अवगत कराया गया कि उक्त खाते में दिनांक २५/०४/१९९८ को कुल जमा धनराशि रू0 ८६९५३/- में से १७३९०/- की राशि आयकर के रूप में काट कर शेष धनराशि रू0 ६९५६३/- का नकद भुगतान किया जा चुका है और खाता बन्द कर दिया गया है। प्रत्यर्थी/परिवादिनी के अनुसार उसने न तो उक्त खाते को बन्द किया था और न ही उसमें से कोई धनराशि आहरित की थी। इसी संबंध में वह अपनी धनराशि प्राप्त करने के लिए निरंतर अपीलकर्ता से पत्राचार करती रही और अंत में दिनांक ०१/०९/२००५ को अपीलकर्ता के द्वारा परिवादिनी के उक्त खाते में जमा धनराशि का भुगतान करने से इनकार कर दिया गया। इसी से क्षुब्ध होकर यह परिवाद जिला मंच के समक्ष योजित किया गया।
उक्त परिवाद का अपीलकर्ता/विपक्षी द्वारा प्रतिवाद किया गया और उक्त प्रतिवाद पत्र में अभिकथित अभिकथनों से इनकार किया गया। जिला मंच ने उभय पक्षों के द्वारा प्रस्तुत किए गए साक्ष्यों का परिशीलन करने उभय पक्षों के तर्कों को सुनने के बाद निम्नानुसार प्रश्नगत आदेश पारित किया-
‘’ वादिनी द्वारा योजित यह वाद इस रूप में स्वीकार किया जाता है कि वादिनी विपक्षी से धन अंकन ६९५६३/-(उन्हत्तर हजार पांच सौ तिरेसठ रूपये) व उक्त धनराशि पर २५/०४/१९९८ से वसूली तक ०९ प्रतिशत वार्षिक ब्याज पाने की पात्र है। इसके अतिरिक्त वाद व्यय व अन्य व्यय स्वरूप अंकन रू0 १००००/- तथा मानसिक शारीरिक आर्थिक संताप स्वरूप अंकन रू0 १००००/- भी विपक्षी से पाने की पात्र है। इस धनराशि का भुगतान निर्णय की तिथि से ०२ माह के अंदर संपन्न किया जाये। टीडीएस धन अंकन रू0 १७३९०/- सत्तरह तीन सौ नब्बे की वापसी/समायोजन के लिए आयकर विभाग में प्रत्यावेदन करने हेतु भी वादिनी स्वतंत्र है। ‘’
उक्त आदेश से क्षुब्ध होकर अपीलार्थी द्वारा यह अपील योजित की गयी है।
अपीलकर्ता की ओर से जो आधार लिए गए हैं उसमें कहा गया है कि विद्वान जिला मंच ने तथ्यों की अनदेखी करके प्रश्नगत आदेश पारित किया है। प्रश्नगत परिवाद कालातीत था और विद्वान जिला मंच ने उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम की धारा २४ए के प्राविधानों की अनदेखी की है। प्रत्यर्थी/परिवादिनी को प्रश्नगत खातेमें जमा धनराशि का भुगतान करके खाता बंद कर दिया गया था। प्रत्यर्थी/परिवादिनी को भुगतान मूल पासबुक प्रस्तुत करने पर किया गया था। प्रश्नगत प्रकरण धोंखाधड़ी से संबंधित है। अत: धोंखाधड़ी से संबंधित प्रकरण उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम की धारा १९८६ के अन्तर्गत चलने योग्य नहीं है।
अपील का प्रत्यर्थी/परिवादिनी द्वाराविरोध किया गया।
यह अपील विलंब से दाखिल कीगयी है। अपील में हुए विलंब को क्षमा किए जाने हेतु प्रार्थना पत्र मय शपथ दिया गया है। विलंब का दोष क्षमा करने के प्रार्थना पत्र पर प्रत्यर्थी/परिवादिनी आपत्ति भी दाखिल की गयीहै। अपील में हुए विलंब को क्षमा किए जाने हेतु जो कारण शपथ पत्र में दर्शाए गए हैं वह संतोषजनक हैं। अत: विलंब को क्षमा किया जाता है।
सुनवाई हेतु यह अपील पीठ के समक्ष प्रस्तुत हुई। अपीलकर्ता की ओर से विद्वान अधिवक्ता डा0 उदयवीर सिंह उपस्थित हैं। प्रत्यर्थी की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री पीएस बाजपेयी उपस्थित है। उभय पक्षों की बहस सुनी गयी। पत्रावली का परिशीलन किया गया।
पत्रावली पर उपलब्ध अभिलेखों के परिशीलन से स्पष्ट होता है कि प्रश्नगत खाता सं0-००८५ राष्ट्रीय बचत योजना के अन्तर्गत प्रत्यर्थी/परिवादिनी ने डाकखाना सिविल लाईन्स मुरादाबाद में खुलवाया था जिसमें समय-समय पर धनराशि जमा की गयी थी। अपीलकर्ता के अनुसार उक्त खाते में जमा धनराशि प्रत्यर्थी/परिवादिनी के अधिकृत एजेंट सुशील कुमार ने आहरित की थी और उसने भुगतान प्राप्त करने के संबंध में पासबुक भी प्रेषित की थी जबकि प्रत्यर्थी/परिवादिनी के अनुसार सुशील कुमार उसका एजेंट नहीं था, बल्कि अपीलकर्ताका एजेंट था और अपीलकर्ता उसको कमीशन का भुगतान करता है। पत्रावली के अवलोकन से यह भी स्पष्ट है कि उक्त एजेंट सुशील कुमार के विरूद्ध धोंखा धड़ी के लिए प्रत्यर्थी/परिवादिनी ने एक रिपोर्ट पुलिस में भी दर्ज कराई थी जिसका एक फौजदारी वाद सक्षम न्यायालय में लंबित है। इस प्रकरण में यह देखना है कि क्या सुशील कुमार को वास्तव में प्रत्यर्थी/परिवादिनी ने अधिकृत किया था अथवा उसने फर्जी हस्ताक्षर करके स्वयं ही धनराशि आहरित कर ली और उक्त खाते में जमा धनराशि का गबन कर लिया। पत्रावली पर उपलब्ध अभिलेख से यह भी स्पष्ट है कि वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक मुरादाबाद द्वारा निदेशक विधि विज्ञान उ0प्र0 आगरा को सुशील कुमार तथा परिवादिनी के हस्ताक्षर भेजे गए थे और उनका वहां परीक्षण कराया गया था और परीक्षण में यह पाया गया कि आहरण के बाउचर पर परिवादिनी के हस्ताक्षर फर्जी किए गए हैं और फर्जी हस्ताक्ष्ार से परिवादिनी के खाते से धनराशि का आहरण किया गया है। फोरेंसिक साईंस लेब्रोटीज की आख्या यह यह स्पष्ट है कि परिवादिनी फर्जी हस्ताक्षर से धनराशि आहरित की गयी है। इसका अभिप्राय यह हुआ कि उक्त आहरण में डाकखाने के कर्मचारियों की मिलीभगत है और उनकी सहमति के बिनाउक्त धनराशि का आहरण संभव नहीं था। विद्वान जिला मंच ने अपने प्रश्नगत निर्णय में विस्तार से इस बिन्दु पर विवेचनाकी है और अवधारित किया है कि दिनांक २५/०४/१९९८ को परिवादिनी के खाते में कुल रू0 ८६९५३/- की धनराशि जमा थी जिसमें से १७३९०/- की धनराशि आयकर के रूप में काटी गयी और शेष धनराशि रू0 ६९५६३/- की धनराशि का भुगतान कूटरचना से प्राप्त कर लिया गया। यह भी अवधारित किया कि उक्त धनराशि का भुगतान परिवादिनी को प्राप्त नहीं हुआ जिसको प्राप्त करने के लिए अधिकारी है। विद्वान जिला मंच ने यह भी अवधारित किया है कि हस्तलेख विशेषज्ञ के परीक्षणसे यह सिद्ध हुआ कि जिस प्राधिकार पत्र के आधार पर विभाग ने सुशील कुमार को भुगतान किया वह उस पर परिवादिनी के वास्तविक हस्ताक्षर नहीं हैं और इस संबंध में कपट का आपराधिक प्रकरण फौजदारी न्यायालय में लंबित है । अपीलकर्ता की अपील में कोई बल नहीं है तथा प्रश्नगत आदेश में किसी हस्तक्षेप की कोई आवश्यकता नहीं है। तदनुसार अपील निरस्त किए जाने योग्य है।
आदेश
अपील निरस्त की जाती है।
उभयपक्ष अपना-अपना वाद व्यय स्वयं वहन करेंगे।
उभयपक्षों को इस निर्णय की प्रमाणित प्रतिलिपि नियमानुसार नि:शुल्क उपलब्ध कराई जाए।
(राज कमल गुप्ता) (महेश चन्द)
पीठा0सदस्य सदस्य
सत्येन्द्र, आशु0 कोर्ट नं0-५