Uttar Pradesh

StateCommission

A/2004/2006

M/S Sahara India - Complainant(s)

Versus

Dr. Ramesh Chandra - Opp.Party(s)

R K Gupta

21 Jul 2016

ORDER

STATE CONSUMER DISPUTES REDRESSAL COMMISSION, UP
C-1 Vikrant Khand 1 (Near Shaheed Path), Gomti Nagar Lucknow-226010
 
First Appeal No. A/2004/2006
(Arisen out of Order Dated in Case No. of District State Commission)
 
1. M/S Sahara India
a
...........Appellant(s)
Versus
1. Dr. Ramesh Chandra
a
...........Respondent(s)
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. Ram Charan Chaudhary PRESIDING MEMBER
 HON'BLE MR. Raj Kamal Gupta MEMBER
 
For the Appellant:
For the Respondent:
Dated : 21 Jul 2016
Final Order / Judgement

राज्‍य उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।

              अपील संख्‍या– 2006/2004            सुरक्षित

(जिला उपभोक्‍ता फोरम, लखनऊ प्रथम द्वारा परिवाद सं0 590/2001 में पारित निर्णय/आदेश दिनांकित 31-08-2004 के विरूद्ध)

मैं0 सहारा इंडिया कामर्शियल कारपोरेशन लि0 सहारा इंडिया भवन-1 कपूरथला काम्‍पलेक्‍स जिला लखनऊ द्वारा मैनेजिंग डायरेक्‍टर।

                                                        ..अपीलार्थी/विपक्षी

                              बनाम              

1-डाक्‍टर रमेश चन्‍द्रा पुत्र श्री मुन्‍नी लाल निवासी ई- 5248 सेक्‍टर-11 राजाजीपुरम, जिला- लखनऊ।                                                   ...प्रत्‍यर्थी/परिवादी

2-मेसर्स क्षितिज इण्‍टरप्राइजेज एवं उदय एसोसियेट शाप नम्‍बर-136 ग्राउण्‍ड फ्लोर सहारा शापिंग सेंटर फैजाबाद रोड़ इंदिरा नगर, जिला लखनऊ द्वारा प्रोपराइटर।

                                                          प्रत्‍यर्थी/विपक्षी

समक्ष:-                

माननीय श्री आर0सी0 चौधरी, पीठासीन सदस्‍य।

माननीय श्री राज कमल गुप्‍ता, सदस्‍य।

अपीलार्थी की ओर से उपस्थिति    : श्री आर0के0 गुप्‍ता, विद्वान अधिवक्‍ता।

प्रत्‍यर्थी की ओर से उपस्थिति      : श्री विकास अग्रवाल, विद्वान अधिवक्‍ता।

दिनांक-04/08/2016

माननीय श्री आर0सी0 चौधरी, पीठासीन सदस्‍य, द्वारा उद्घोषित

       निर्णय

      प्रस्‍तुत अपील जिला उपभोक्‍ता लखनऊ प्रथम द्वारा परिवाद सं0 590/2001 में पारित निर्णय/आदेश दिनांकित 31-08-2004 के विरूद्ध प्रस्‍तुत की गई है।

      संक्षेप में केस के तथ्‍य इस प्रकार से है कि परिवादी ने एक बने-बनाये मकान को अपने पक्ष में आवंटित करने हेतु विपक्षी सं0-2 को 63,673-00 रूपये दिया, जिसका आवंटन विपक्षी द्वारा दिनांक 4-01-2000 को पूर्व आवंटी श्री दिलीप कुमार जिनकी मकानसं0-10/1 बहार ए सहारा स्‍टेट जानकीपुरम में था, को श्री रमेश चन्‍द्र परिवादी के नाम कर दिया, जिसकी पूरी कीमत 7,79,298-00 रूपये थी। मकान के आवंटन के पूर्व भुगतान के लिये परिवादी ने वित्‍तीय संस्‍था से  बात की, जिसके लिए उसने विपक्षी से आवश्‍यक  दस्‍तावेजों की डिमाण्‍ड किया, लेकिन विपक्षी ने कागजात नहीं दिये, जिससे उसका उस वित्‍तीय संस्‍था में खर्च हुअ ा 4500-00 रूपये भी व्‍यर्थ हो गया, क्‍योंकि कागजात समय से न मिलने पर वित्‍तीय संस्‍था ने उसको लोन दने से इंकार कर दिया। इसके उपरान्‍त परिवादी ने अन्‍य वित्‍तीय संस्‍था पंजाब नेशनल बैंक आशियाना लखनऊ से पॉच लाख रूप्‍ये का लोन अपने पक्ष में स्‍वीकृत करवाया तथा दिनांक 24-11-2000 को परिवादी, विपक्षीगण एवं पंजाब नेशनल बैंक द्वारा प्रोविजनल एग्रीमेंट किया गया, जिसमें बैंक विपक्षीगण की मांग पर सीधे लोन देने को तैयार हो गया। परिवादी ने अपनी

(2)

मार्जिन मनी 2,30,000-00 रूपये दिनांक 31-12-2000 को पंजाब नेशनल बैंक आशियाना लखनऊ में जमा कर दी। इसके उपरान्‍त दिनांक 16-01-2001 को  विपक्षी ने परिवादी का आवंटन इस आधार पर निरस्‍त कर दिया कि उसके द्वारा दिये गये समय के अन्‍दर पेमेन्‍ट नहीं हुआ। परिवादी के अनुसार उसको विपक्षी द्वारा कोई भी विधिक नोटिस आवंटन रद्द करने हेतु नहीं भेजी गई थी। परिवादी के अनेको बार पत्र भेजे जाने के बावजूद विपक्षी द्वारा आवंटन उसके पक्ष में नहीं किया गया। अत: परिवादी ने फोरम में वाद दायर किया।

      जिला उपभोक्‍ता फोरम के समक्ष विपक्षी ने अपना प्रतिवाद पत्र दाखिल किया, जिसमें यह कथन किया गया है कि परिवादी ने प्रोविजनल एग्रीमेंट के हिसाब से दिये गये समय में मकान की धनराशि नहीं जमा की तथा परिवादी को रजिस्‍टर्ड नोटिस द्वारा रिमाण्‍डर भी भेजे गये, अत: विपक्षी अपनी कम्‍पनी की शर्तो के अनुसार एग्रीमेंट निरस्‍त करने में स्‍वतंत्र है, जो कि एप्‍लीकेशन फार्म में क्‍लाज (8) में अंकित है तथा 10 प्रतिशत की धनराशि पूर्व यूनिट की कीमत ले ली जायेगी। अत: विपक्षी परिावादी की जमा धनराशि वापस करने के लिए तैयार है। अत: परिवाद पत्र निरस्‍त होने योग्‍य है।

      इस सम्‍बन्‍ध में जिला उपभोक्‍ता फोरम के निर्णय/आदेश दिनांक 31-08-2004 का अवलोकन किया गया तथा अपीलार्थी की ओर से विद्वान अधिवक्‍ता श्री आर0के0 गुप्‍ता तथा प्रत्‍यर्थी की ओर से विद्वान अधिवक्‍ता श्री विकास अग्रवाल, की बहस सुनी गई तथा अपील आधार का अवलोकन किया गया।

      जिला उपभोक्‍ता फोरम के द्वारा निम्‍न आदेश पारित किया गया है:-

      “परिवाद पत्र विपक्षीगण के विरूद्ध स्‍वीकार किया जाता है। विपक्षीगण को एकल व संयुक्‍त रूप से आदेश किया जाता है कि इस आदेश की तिथि से 45 दिन के अन्‍दर परिवादी को भवन सं0-10/1 बहार ए सहारा स्‍टेट  जानकीपुरम, लखनऊ का कब्‍जा प्रदान करते हुए विक्रय विलेख परिवादी के पक्ष में पंजाब नेशनल बैंक से हुए अनुबन्‍ध के आधार पर आवंटित भवन के मूल्‍य की धनराशि प्राप्‍त करके निष्‍पादित करें। यदि ऐसा करने में विपक्षीगण असफल रहते है तो परिवादी को उसके द्वारा जमा की गई सम्‍पूर्ण धनराशि एवं त्रुटिपूर्ण सेवा हेतु दो लाख रूपये बतौर प्रतिकर एवं 2000-00 रूपये वाद व्‍यय की धनराशि भुगतान की जावे।”

      अपील आधार में कहा गया है कि माननीय फोरम ने परिवाद के तथ्‍यों पर सही प्रकार से अवलोकन नहीं किया। तथ्‍यों के अनुसार भवन संख्‍या 10/1 बहार –ए  श्रेणी- 2 सहारा स्‍टेट

(3)

 जानकीपुरम पूर्व में श्री दिलीप कुमार ए-30 निराला नगर लखनऊ को आवंटित था तथा उनकी प्रार्थना पर परिवादी को पत्र दिनांकित 4-2-2000 द्वारा ट्रॉसफर किया गया था। परिवादी को प्रोवीजनल आवंटन पत्र दिनांक 01-04-2000 जारी किया गया  था। भवन की कुल कीमत रूपया 7,79,298-00 भी, जो कि डिस्‍काउन्‍ट रूपया 24,102-00 के बाद थी अन्‍यथा भवन की कीमत रूपया 8,03,400-00 थी। परिवादी को बुकिंग एमाउन्‍ट रूपया 40,170-00 आवंटन धनराशि रूपया 1,20,510-00 तथा रूपया 40,170-00 की 14 किश्‍तें जमा करनी थी तथा अन्तिम किश्‍त रूपया 16,068-00 दिनांक 15-06-2001 तक जमा करनी थी। आवंटन पत्र में यह भी उल्‍लिखित था कि लगातार तीन किश्‍तें न अदा करने पर आवंटन अपने आप स्‍व्‍त: बिना किसी पूर्व सूचा के निरस्‍त हो जाना था तथा यह भी लिखा था कि प्रोवीजनल आवंटन पत्र है। फाइनल आवंटन धनराशि के प्राप्‍त होने के बाद जारी किया जायेगा। परिवादी ने उक्‍त भवन के विरूद्ध मात्र 63,673-00 रूपये जमा कराये थे तथा शेष धनराशि आवंटन पत्र के अनुसार जमा नहीं करायी थी। परिवादी ने पंजाब नेशनल बैंक से लोन के लिए आवेटन किया था। अत: इस सम्‍बन्‍ध में दिनांक 24-11-2000 को एक त्रिपक्षीय अनुबन्‍ध पत्र भी निष्‍पादित हुआ था, लेकिन इसके पश्‍चात भी परिवादी द्वारा अथवा बैंक द्वारा कोई धनराशि अपीलार्थी को अदा नहीं की गई तब विवश होकर अपीलार्थी को पत्र दिनांक 16-01-2001 द्वारा परिवादी को आवंटित भवन की बुकिंग को निरस्‍त करना पड़ा जो कि प्रोविजनल आवंटन पत्र के अनुसार था तथा भवन आवेदन पत्र  के साथ संलग्‍न नियम व शर्त की धारा-8 के अनुसार जमा धनराशि भवन की पूर्ण लागत अर्थात रूपया 7,79,298-00 का 10 प्रतिशत कटौती करते हुए जब्‍त कर ली गई। यह धनराशि 10 प्रतिशत से कम है। धनराशि जमा न करने के लिए परिवादी स्‍वयं उत्‍तरदायी है। परिवादी को वाद का कोई कारण उत्‍पन्‍न नहीं हुआ। उसने बिना किसी उचित आधार के असत्‍य कथन के आधार पर झूठा परिवाद दायर किया जो कि निरस्‍त होने योग्‍य था। माननीय फोरम ने इन सब तथ्‍यों पर ध्‍यान दिये बिना वाद को स्‍वीकार करके त्रुटिपूर्ण निर्णय दिया। माननीय फोरम ने इस तथ्‍य की ओर भी ध्‍यान नहीं दिया कि परिवादी ने रूपया 27,500-00 विपक्षी सं0-2 जो कि प्रापर्टी डीलर है तथा एक स्‍वतंत्र संस्‍था है, को अदा किया था, जिससे अपीलार्थी का कोई सम्‍बन्‍ध नहीं है। परिवादी ने भवन प्राप्‍त करने हेतु स्‍वयं विपक्षी सं0-2 से सम्‍पर्क किया तथा उसे सुविधा हेतु अपनी इच्‍छा से उक्‍त धनराशि अदा की, जिसकी कोई जिम्‍मेदारी अपीलार्थी की नहीं है। माननीय फोरम ने इस विन्‍दु की ओर ध्‍यान नहीं दिया कि त्रिपक्षीय

(4)

अनुबन्‍ध दिनांक 24-11-2000 होने के पश्‍चात अपीलार्थी ने परिवादी को बुकिंग निरस्‍त करने के सम्‍बन्‍ध में कोई पत्र नहीं भेजा। यहॉ यह उल्‍लेखनीय है कि त्रिपक्षीय अनुबन्‍ध होने के पश्‍चात अपीलार्थी को कोई पत्र परिवादी को भेजने की आवश्‍यकता ही नहीं थी। परिवादीको प्रोवीजनल आवंटन में दिेये गये निर्देश के अनुसार धनराशि बैंक से लाकर अपीलार्थी को अदा करनी थी अथवा बैंक द्वारा अपीलार्थी को सीधे भुगतान किया जाना था। धनराशि प्राप्‍त न होने की स्थिति में हुई बुकिंग को निरस्‍त किया गया जो कि अपीलार्थी ने नियमानुसार किया है। माननीय फोरम ने इस विधिक विन्‍दु की ओर ध्‍यान नहीं दिया कि परिवादी की प्रार्थना के अनुसार परिवादी का वाद आर्थिक क्षेत्राधिकार की सीमा से बाधित था। परिवादी ने वाद पत्र के अनुतोष में भवन का कब्‍जा मांगा था। यहॉ यह उल्‍लेखनीय है कि भवन की कीमत रूपया 7,79,298-00 थी। इसके अतिरिक्‍त परिवादी ने अन्‍य लाभगत अनुतोष व रूपया 1,00,000-00 क्षतिपूर्ति की मांग की थी। परिवाद पत्र दिनांक 08-08-2001 का है जो कि उसी समय दायर किया गया। उस समय जिला फोरम का आर्थिक क्षेत्राधिकार रूपया 5,00,000-00 था। अत: वाद जिला फोरम के समक्ष पोषणीय न था। माननीय फोरम ने वाद का संज्ञान लेकर व सुनवाई  करके त्रुटि की है। उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम में 15-03-2002 को लागू संशोधन के द्वारा जिला फोरम का  आर्थिक क्षेत्राधिकार रूपया 20,00,000-00 हुआ। उक्‍त्‍ आधार पर माननीय फोरम ने विधि विरूद्ध रूप से भवन का कब्‍जा दिये जाने का आदेश गलत पारित किया है, जो कि भवन 7,79,298-00 रूपये का होने के कारण माननीय फोरम के आर्थिक क्षेत्राधिकार से बाहर है। यह भी कहा गया है कि माननीय फोरम ने जमा धनराशि रूपया 63,673-00 जो कि अपीलार्थी के पास भेजा है, को भवन न देने की स्थिति में अदा किये जाने का गलत आदेश पारित किया है जो कि अपीलार्थी की नियत व शर्तो की धारा-08 के विरूद्ध है। जिसके अनुसार भवन की बुकिंग निरस्‍त होने की दशा में भवन की धनराशि की 10 प्रतिशत कटौती के उपरान्‍त शेष धनराशि वापस की जायेगी। यह भी उल्‍लेख किया गया है कि भवन की कुल कीमत रूपया  7,79,298-00 थी, जिसका 10 प्रतिशत लगभग 78,000-00 होता है, जबकि परिवादी की जमा धनराशि इस धनराशि से कम है। अत: परिवादी को कोई धनराशि वापस किये जाने का कोई प्रश्‍न ही नहीं उठता है। परिवादी नियम व शर्तो  से बाध्‍य है। नियम व शर्तो को फोरम के समक्ष चुनौती नहीं दी जा सकती। अत: पारित आदेश अवैध व त्रुटिपूर्ण है। यह भी कहा गया है कि परिवादी को क्षतिपूर्ति के रूप में रूपया 2,00,000-00 दिलाये जाने का आदेश त्रुटिपूर्ण व

(5)

अवैध रूप से पारित किया गया है। जबकि परिवादी ने वाद पत्र में याचित अनुतोष की धारा-3 के अर्न्‍तगतकेवल 1,00,000-00 रूपये दिलाये जाने की मांग की थी। यह भी कहा गया है कि प्रतिकर की धनराशि दिलाये जाने का कोई आधार भी नहीं दिया गया है और न ही परिवादी की ओर से कोई साक्ष्‍य दिया गया है। यह भी कहा गया है कि माननीय फोरम ने बिना किसी उचित आधार के रूपया 2,000-00 वाद व्‍यय दिये जाने का गलत आदेश पारित किया है, जबक वाद प्रमाणित न था और न ही अपीलार्थी की कोई त्रुटि थी। वाद फोरम के समक्ष पोषणीय न था तथा निरस्‍त किये जाने योग्‍य था।

      केस के तथ्‍यों परिस्थितियों में हम यह पाते हैं कि परिवादी ने इस केस में जो अनुतोष मांगा था, उसमें यह कहा था कि दिनांक 16-10-2001 के कैंसिलेशन पत्र को निरस्‍त किया जाय और प्रतिवादी को यह निर्देश दिया जाय कि मकान सं0-10/1 बहार ए सहारा स्‍टेट जानकीपुरम लखनऊ का कब्‍जा तुरन्‍त दें, लेकिन तथ्‍योंसे यह भी स्‍पष्‍ट है कि परिवादी के द्वारा मकान की कीमत अदा ही नहीं की गई और इस प्रकार से उसको इस पर कब्‍जा देने का निर्देश दिया जाना न्‍यायोचित नहीं था। परिवादी के द्वारा अपने परिवाद पत्र में विकल्‍प में यह मांगा गया है कि विकल्‍प में विपक्षीगण को आदेश दिया जाय कि वह परिवादी द्वारा जमा की गई रकम 63,673-00 रूपये तथा 27,500-00 कमीशन जो विपक्षी सं0-2 को अदा किया गया है। कुल मिलाकर 91,173-00 रूपये 24 प्रतिशत ब्‍याज के साथ वापस करें, जबकि इस सम्‍बन्‍ध में अपीलार्थी के तरफ से कहा गया है कि विपक्षी सं0-2 कमीशन एजेंट था और उसको दिया गया रकम अपीलार्थी देने के लिए उत्‍तरदायी नहीं है और परिवादी 63,673-00 के बारे में केवल मांग कर सकता है और यह भी कहा गया है कि उक्‍त रकम मकान की कीमत के 10 प्रतिशत से कम था, किश्‍तें अदा नहीं की गई। इसलिए परिवादी को प्रोवीजनल आवंटन में दिये गये निर्देशों के अनुसार धनराशि अदा न किये जाने के कारण आवंटन निरस्‍त कर दिया गया।

      केस के तथ्‍यों परिस्थितियों को देखते हुए एवं अपील आधार को देखते हुए तथा पक्षकारों को सुनने के उपरान्‍त हम यह पाते हैं कि परिवादी 63,6723-00 रूपये उसकी जमा करने की तिथि से अदायगी की तिथि तक 09 प्रतिशत ब्‍याज के साथ पाने का अधिकारी है। जिला उपभोक्‍ता फोरम के द्वारा जो दो लाख रूप्‍ये क्षतिपूर्ति विपक्षी पर लगाया गया है, उस रकम को 50,000-00 रूपये में परिवर्तित किया जाना उचित समझते है और इस प्रकार से अपीलकर्ता की अपील आंशिक रूप से स्‍वीकार होने योग्‍य है।

(6)

आदेश

      अपीलकर्ता की अपील आंशिक रूप से स्‍वीकार की जाती है। प्रत्‍यर्थी/परिवादी अपीलकर्ता से 63,673-00 रूपये तथा उक्‍त रकम को जमा किये जाने की तिथि से अदायगी की तिथि तक 09 प्रतिशत ब्‍याज भी पाने का हकदार है और 50,000-00 रूपये सेवाओं में कमी के कारण परिवादी अपीलकर्ता से पाने का हकदार है और वाद व्‍यय के रूप में 2,000-00 रूपये भी पाने का हकदार है, जैसा कि जिला उपभोक्‍ता फोरम ने आदेश किया था।

      उभय पक्ष अपना-अपना व्‍यय भार स्‍वयं वहन करेंगे।

 

   (आर0सी0 चौधरी)                                    ( राज कमल गुप्‍ता)

    पीठासीन सदस्‍य                                          सदस्‍य,

आर.सी.वर्मा, आशु.

 कोर्ट नं0-3

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 
 
[HON'BLE MR. Ram Charan Chaudhary]
PRESIDING MEMBER
 
[HON'BLE MR. Raj Kamal Gupta]
MEMBER

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