राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
(मौखिक)
अपील संख्या-210/2019
एयरटेल कार्यालय/प्रबन्धक व दो अन्य
बनाम
डा0 राकेश कुमार जौहरी पुत्र श्री कृष्ण गोपाल जौहरी
समक्ष:-
माननीय न्यायमूर्ति श्री अशोक कुमार, अध्यक्ष।
अपीलार्थीगण की ओर से उपस्थित : श्री संजय मिश्रा के सहयोगी
श्री आर0के0 मिश्रा,
विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित : डा0 राकेश कुमार जौहरी,
स्वयं।
दिनांक: 12.07.2023
माननीय न्यायमूर्ति श्री अशोक कुमार, अध्यक्ष द्वारा उदघोषित
निर्णय
प्रस्तुत अपील अपीलार्थीगण द्वारा इस न्यायालय के सम्मुख जिला उपभोक्ता आयोग, द्वितीय, लखनऊ द्वारा परिवाद संख्या-93/2008 डा0 राकेश कुमार जौहरी बनाम एयरटेल कार्यालय/प्रबंधक एवं दो अन्य में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक 29.10.2013 के विरूद्ध प्रस्तुत की गयी है। प्रस्तुत अपील विगत लगभग 04 वर्ष से लम्बित है।
मेरे द्वारा अपीलार्थीगण की ओर से उपस्थित विद्वान अधिवक्ता श्री संजय मिश्रा के सहयोगी श्री आर0के0 मिश्रा एवं प्रत्यर्थी डा0 राकेश कुमार जौहरी को सुना गया तथा प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश तथा पत्रावली पर उपलब्ध समस्त प्रपत्रों का अवलोकन किया गया।
संक्षेप में वाद के तथ्य इस प्रकार हैं कि परिवादी, विपक्षी की दूरभाष व इन्टरनेट सेवाओं का धारक है, जिसका संयोजन सं0-0522-4029449 है। परिवादी द्वारा जिस समय संयोजन लिया गया उस समय विपक्षीगण के यहॉं दिनांक 13.03.2007 को पंजीकरण
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नि:शुल्क होने के कारण 500/-रू0 जमा किया गया, परन्तु बाद में विपक्षी द्वारा उसे अधिक बिल दिये जाने लगे। इस संबंध में परिवादी द्वारा विपक्षीगण से सम्पर्क किया गया, परन्तु विपक्षीगण द्वारा कोई ध्यान नहीं दिया गया।
परिवादी का कथन है कि परिवादी द्वारा विपक्षीगण द्वारा जारी कई बिल जमा किये गये, जिसके अनुसार परिवादी द्वारा विपक्षीगण के पास अधिक पैसा जमा किया गया, परन्तु विपक्षीगण द्वारा किसी बिल में कम अथवा किसी बिल में शून्य धनराशि दर्शायी गयी, जो कि विपक्षीगण द्वारा सेवा में कमी है।
परिवादी का कथन है कि विपक्षी द्वारा दिनांक 29.04.2007 को परिवादी को बिना सूचित किये हुए इन्टरनेट तथा आउटगोइंग काल बंद कर दी। इस संबंध में जब परिवादी द्वारा विपक्षी के कार्यालय में सम्पर्क किया गया, जहॉं पर विपक्षी के कर्मचारी द्वारा बताया गया कि आउट काल एवं इन्टरनेट सम्बन्धी सेवायें जल्द ही बहाल हो जायेगी तथा इस संबंध में कारण पूछने पर परिवादी को बताया गया कि बिल में दर्शायी गयी पंजीकरण शुल्क की राशि तथा उस पर कर का भुगतान नहीं किया गया है। परिवादी द्वारा विपक्षी के कर्मचारी को बताया गया कि जिस समय संयोजन लिया गया था उस समय पंजीकरण शून्य था। विपक्षी द्वारा दूरभाष की आउट काल सम्बन्धी सेवा दिनांक 30.04.2007 को सायं 5.30 पर बहाल कर दी गयी, परन्तु इन्टरनेट सेवा दिनांक 30.04.2007 तक बहाल न करने पर परिवादी द्वारा पुन: विपक्षी से शिकायत की गयी, तब विपक्षी के कर्मचारी हेमंत द्वारा उसे बताया गया कि दो घण्टे में इन्टरनेट सेवा चालू हो जायेगी, जो दिनांक 01.05.2007 को शुरू की गयी तथा बताया गया कि 500/-रू0 पंजीकरण शुल्क का सुधार दिनांक 08.05.2007 तक कर दिया जायेगा।
परिवादी का कथन है कि विपक्षी द्वारा दिनांक 02.05.2007 को परिवादी को बिना सूचित किये पुन: इन्टरनेट तथा आउटगोइंग
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की सुविधा को बन्द कर दिया। परिवादी द्वारा कई बार शिकायत करने के बावजूद दोनों सुविधायें बहाल नहीं की गयी, जिससे क्षुब्ध होकर परिवादी द्वारा विपक्षीगण के विरूद्ध परिवाद जिला उपभोक्ता आयोग के सम्मुख प्रस्तुत करते हुए वांछित अनुतोष की मांग की गयी।
विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग के सम्मुख विपक्षी नोटिस दिये जाने के बाद भी न तो उपस्थित हुए तथा न ही लिखित कथन दाखिल किया। अत: विपक्षी के विरूद्ध एकपक्षीय कार्यवाही किये जाने का आदेश पारित किया गया।
विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा परिवादी के अभिकथन एवं उपलब्ध साक्ष्यों/प्रपत्रों पर विचार करने के उपरान्त यह उल्लिखित किया गया कि परिवादी का कथन अखण्डनीय है तथा यह कि परिवादी द्वारा बार-बार विपक्षीगण से सम्पर्क किया गया, परन्तु विपक्षीगण द्वारा कोई ध्यान नहीं दिया गया, जिससे परिवादी को मानसिक व शारीरिक कष्ट पहुँचा। तदनुसार विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा परिवाद आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए निम्न आदेश पारित किया गया:-
''परिवादी का परिवाद आंशिक रुप से स्वीकार किया जाता है। विपक्षीगण को आदेशित किया जाता है कि वह संयुक्त एवं एकल रुप में इस निर्णय की प्रमाणित प्रतिलिपि प्राप्त होने के दो माह के अंदर परिवादी को दिये गये बिलों को ठीक करें एवं भविष्य में परिवादी को बगैर पूर्व सूचना दिये हुये उसका दूरभाष व इंटरनेट संयोजन की सुविधाओं को बंद न करें, इसके अतिरिक्त विपक्षीगण संयुक्त एवं एकल रुप में परिवादी को मानसिक क्लेश हेतु रू010,000/-(दस हजार) तथा रू0 2000/-(दो हजार), वाद व्यय अदा करगें, यदि विपक्षीगण उक्त निर्धारित अवधि के अंदर उक्त आदेश का अनुपालन नहीं करते है तो परिवादी को समस्त धनराशि पर उक्त तिथि से ता अदायेगी तक 12 (बारह) प्रतिशत वार्षिक ब्याज की दर के साथ अदा करना पड़ेगा।''
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उभय पक्ष के विद्वान अधिवक्तागण को सुनने तथा समस्त तथ्यों एवं परिस्थितियों को दृष्टिगत रखते हुए तथा जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश का परिशीलन व परीक्षण करने के उपरान्त मैं इस मत का हूँ कि विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा समस्त तथ्यों का सम्यक अवलोकन/परिशीलन व परीक्षण करने के उपरान्त विधि अनुसार निर्णय पारित किया गया,
परन्तु मेरे विचार से जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा जो आदेशित धनराशि पर 12 (बारह) प्रतिशत वार्षिक ब्याज की देयता निर्धारित की है, उसे न्यायहित में कम कर 09 (नौ) प्रतिशत वार्षिक ब्याज निर्धारित किया जाना उचित है।
तदनुसार प्रस्तुत अपील आंशिक रूप से स्वीकार की जाती है तथा जिला उपभोक्ता आयोग, द्वितीय, लखनऊ द्वारा परिवाद संख्या-93/2008 डा0 राकेश कुमार जौहरी बनाम एयरटेल कार्यालय/प्रबंधक एवं दो अन्य में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक 29.10.2013 को संशोधित करते हुए आदेशित धनराशि पर ब्याज की देयता 09 (नौ) प्रतिशत वार्षिक ब्याज निर्धारित की जाती है। जिला उपभोक्ता आयोग का शेष आदेश यथावत् रहेगा।
प्रस्तुत अपील में अपीलार्थीगण द्वारा यदि कोई धनराशि जमा की गयी हो तो उक्त जमा धनराशि अर्जित ब्याज सहित सम्बन्धित जिला उपभोक्ता आयोग को यथाशीघ्र विधि के अनुसार निस्तारण हेतु प्रेषित की जाए।
आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय/आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।
(न्यायमूर्ति अशोक कुमार)
अध्यक्ष
जितेन्द्र आशु0
कोर्ट नं0-1