Anil Kumar filed a consumer case on 01 May 2023 against Dr. Rajendra Kumar etc. in the Barabanki Consumer Court. The case no is CC/78/2017 and the judgment uploaded on 04 May 2023.
जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, बाराबंकी।
परिवाद प्रस्तुत करने की तिथि 12.07.2017
अंतिम सुनवाई की तिथि 26.04.2023
निर्णय उद्घोषित किये जाने के तिथि 01.05.2023
परिवाद संख्याः 78/2017
अनिल कुमार सिंह उम्र लगभग 27 वर्ष पुत्र स्व0 रमेश चन्द्र निवासी बरवास थाना देवां, परगना-देवां, तहसील-नवाबगंज जनपद-बाराबंकी।
द्वारा-श्री विवेक श्रीवास्तव, अधिवक्ता
बनाम
1. डा0 राजेन्द्र कुमार पुत्र रामेश्वर निवासी उसरी थाना व परगना देवां तहसील नवाबगंज क्लीनिक ठाकुर द्वारा भयारा रोड
देवा जनपद-बाराबंकी।
2. चिकित्सा अधीक्षक हिन्द इन्स्टीटयूट आफ मेडिकल साईन्स एवम् रिसर्च सेन्टर सफेदाबाद जनपद-बाराबंकी।
द्वारा-श्री आफताब आलम अन्सारी, अधिवक्ता
समक्षः-
माननीय श्री संजय खरे, अध्यक्ष
माननीय श्रीमती मीना सिंह, सदस्य
माननीय श्री एस0 के0 त्रिपाठी, सदस्य
उपस्थितः परिवादी की ओर से -श्री विवेक श्रीवास्तव , एडवोकेट
विपक्षी सं0-2 की ओर से-श्री आफताब आलम अन्सारी, अधिवक्ता
द्वारा -संजय खरे, अध्यक्ष
निर्णय
परिवादी ने यह परिवाद, विपक्षीगण के विरूद्व अंतगर्त धारा-12 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 प्रस्तुत कर विपक्षीगण से परिवादी को रू0 3,75,000/-मय चौदह प्रतिशत ब्याज सहित तथा शारीरिक, मानसिक, उत्पीड़न हेतु रू0 1,00,000/-तथा वाद व्ययरू0 15,000/-दिलाये जाने तथा विपक्षी संख्या-02 के विरूद्व दंडात्मक कार्यवाही किये जाने का अनुतोष चाहा है।
परिवादी का संक्षेप में कहना है कि वह एक गरीब व्यक्ति है। उसने दिनांक 12.12.2016 को अपने छोटे भाई विपिन कुमार उर्फ बिक्की को शाम को 6.00 बजे घर पर अचानक सर व पेट में दर्द होने के कारण उल्टियाँ होने लगी तब परिवादी घबरा गया और अपने भाई को मारूति वैन में बैठाकर देवाँ पहुँचा और सी.एच.सी. पर डाक्टर उपलब्ध न होने के कारण बाराबंकी जाने की तैयारी करने लगा। विपक्षी संख्या-01 जो कि झोलाछाप डाक्टर था वह आया और कहने लगा कि मैं तुम्हारे भाई को ठीक कर दूँगा और कहीं ले जाने की जरूरत नहीं है। विपक्षी ने परिवादी के भाई को क्लीनिक ठाकुर द्वारा में ले जाकर बैठाया तथा इन्जेक्शन लगाया और दवा भी दिया और कहा कि मरीज गम्भीर है भर्ती करना पड़ेगा यह भी कहा कि पैसे की व्यवस्था कर लो, इलाज महंगा पड़ेगा। परिवादी किसी प्रकार रू0 10,000.00 की व्यवस्था कर विपक्षी संख्या-01 डाक्टर को दिया तो विपक्षी ने कहा अभी तुम्हे रू0 75,000.00 और जमा करने पड़ेगें। काफी मिन्नतें करने के बाद परिवादी ने खेत गिरवी रखकर डाक्टर को रू0 85,000.00 दिये तो इलाज शुरू किया परन्तु परिवादी के भाई की हालत निरन्तर बिगड़ती गई और उसकी पूरी पीठ पक गई। तब जबरन दिनांक 23.12.2016 को विपक्षी संख्या-02 के पास हिन्द अस्पताल सफेदाबाद, बाराबंकी ले गया जहाँ डाक्टरों ने बताया कि परिवादी के भाई को दवा रियक्शन कर गई है जिससे पीठ का आपरेशन करना पड़ेगा। हिन्द अस्पताल के डाक्टरों द्वारा परिवादी के भाई का इलाज चालू किया गया जिसके कारण उसके भाई की हालत और खराब हो गई। हिन्द अस्पताल के डाक्टर लापरवाही बरतते रहे और परिवादी से करीब एक लाख रूपये ले लिया जिसमे बेड चार्ज, दवा व इंजेक्शन का ही खर्च सम्मिलित था लेकिन परिवादी के भाई की हालत बिगड़ती गई। परिवादी अपने भाई को मरणासन्न हालत में जबरन विपक्षी संख्या-02 के अस्पताल से लेकर पूजा नर्सिंग होम लखनऊ गया, जहाँ पर डाक्टरों ने हिन्द अस्पताल के डाक्टरों विपक्षी संख्या-02 की लापरवाही बताया और तुरन्त आपरेशन किया। चूकि परिवादी के भाई की पीठ पूरी पक चुकी थी किसी प्रकार उसकी जान बच गई। इलाज अभी भी चल रहा है। विपक्षी संख्या-01 व 02 द्वारा की गई त्रुटियों के कारण परिवादी के भाई का रू0 3,35,000.00 व्यय हुआ तथा उसका मानसिक, आर्थिक एंव शारीरिक रूप से उत्पीड़न भी हुआ जिसके कारण परिवादी को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। अतः परिवादी ने यह परिवाद प्रस्तुत किया है। परिवादी ने परिवाद के कथनों के समर्थन में शपथपत्र प्रस्तुत किया है।
परिवादी ने सूची से कन्सेन्ट हाई रिस्क प्रपत्र, डिसचार्ज फार्म दिनांक 27.12.2016, आई.पी. स्टेटस बिल, दवा की रसीद रू0 555.0 रू0 310.00, रू0 1,20.00, रू0 5,00.00,रू0 1,000.00, रू0 150.00, रू0 305.00, रू0 80.00 तथा रू0 150.00 मूल रूप में दाखिल किया है।
विपक्षी संख्या-01 को पर्याप्त समय दिये जाने के बावजूद उन्होंने अपना जवाबदावा दाखिल नहीं किया अतः विपक्षी संख्या-01 के विरूद्व परिवाद दिनांक 17.11.2017 को एकपक्षीय रूप से अग्रसर हुआ।
विपक्षी संख्या-02 ने अपने जवाबदावा कहा है कि परिवादी का भाई विपिन गम्भीर हालत में अस्पताल लाया गया था जिसकी बीमारी की गम्भीरता के बारें में परिवादी को बता दिया गया था तथा इलाज के पूर्व हाई रिस्क कन्सेन्ट भी लिया गया। परिवादी के भाई को काफी तेज बुखार जाड़ा लगकर आ रहा था और उसे पीठ का घाव (सेल्यूलाइटिस) था। डा0 सी0 एस0 तिवारी जो एम0बी0बी0एस0 व एम0 डी0 मेडिसिन है तथा असिस्टेन्ट प्रोफेसर है उनके द्वारा परिवादी के भाई का इलाज किया गया। परिवादी के भाई को जब अस्पताल में इलाज के लिये लाया गया तो उसे मलेरिया होना, प्लेटलेट्स का कम होना व गुर्दे में संक्रमता होना अनुमानित किया गया और जाँच कराई गई। जाँचों में मलेरिया का न होना पाया गया जबकि उसे गुर्दे में संक्रमण पाया गया। परिवादी के भाई की लगातार जाँच कराई गई और उसका दवाओं से इलाज होता रहा। सेल्यूलाइटिस के बारे में सर्जरी विभाग के वरिष्ठ सर्जन डा0 वी0 के0 गोयल द्वारा राय ली गई। चूँकि दवाओं से मरीज ठीक हो सकता था लिहाजा उसका दवाओं से इलाज किया गया। मरीज के गुर्दे में संक्रमण था और डायलिसिस की जरूरत थी और (एच.बी.एस.ए.जी.) की जाँच पाजिटिव आई। चूँकि (एच.बी.एस.ए.जी.) ऐसा ब्लड संक्रमण है जो कि डायलिसिस होने पर दूसरे मरीज को संक्रमण हो सकता था और उसके लिए अलग मशीन की जरूरत होती है लिहाजा दिनांक 27.01.2016 को दोपहर 12.30 बजे ट्रामा सेंटर के0जी0एम0यू0 या राममनोहर लोहिया अस्पताल गोमती नगर, लखनऊ में भर्ती कराने की राय दी गई जिस पर मरीज के घर वाले मरीज को लेकर चले गये। चिकित्सा सेवा में कोई कमी नहीं की गई बल्कि मरीज का बेहतर से बेहतर इलाज किया गया। विपक्षी संख्या-02 को परेशान करने व प्रताड़ित करने व संस्थान की छवि धूमिल करने के उद्देश्य से यह परिवाद दायर किया है। परिवाद की धारा-02 और 03 में परिवादी ने स्वयं स्वीकार किया है कि उसने दिनांक 12.12.2016 से 23.12.2016 तक इलाज विपक्षी संख्या-01 के अस्पताल में कराया जिसे झोलाछाप डाक्टर कहता है। इतना जानते हुये कुल रू0 85,000.00 विपक्षी संख्या-01 के क्लीनिक में जमा करना कहता है। मरीज की हालत बिगड़ने पर उसने विपक्षी संख्या-02 के संस्थान में एडमिट करता है और अनुतोष (ब) में मात्र विपक्षी संख्या-02 के चिकित्सालय में शिक्षित डाक्टर न होने का आरोप लगाता है और दण्डामक कार्यवाही की माँग करता है। विपक्षी संख्या-02 का अस्पताल मेडिकल काउंसिल ऑफ इण्डिया से मान्यता प्राप्त संस्थान है और उक्त संस्थान में डिग्री होल्डर व प्रशिक्षित डाकटर है। मरीज या परिवादी या उसके तीमारदारों से एक लाख रूपया नहीं लिया गया। उक्त संस्थान चैरिटेबुल ट्रस्ट द्वारा संचालित है जिसमे एडमिशन चार्ज, बेड चार्ज, नर्सिंग फीस व डाक्टर फीस नहीं पड़ती है। मरीज का मात्र कुल रू0 3,170.00 जाँचों व आई0सी0यू0 बेड चार्ज में खर्चा हुआ। परिवादी को परिवाद प्रस्तुत करने का अधिकार नहीं है। परिवाद से मरीज की स्थिति स्पष्ट नहीं है लिहाजा परिवाद पोषणीय नहीं है। परिवाद से स्पष्ट है कि परिवाद में विधि एवं तथ्यों के जटिल प्रश्नों का निर्धारण किया जाना है जिसको निर्णीत करने का अधिकार मात्र सिविल न्यायालय को प्राप्त है। परिवाद स्वच्छ हाथों से नहीं योजित किया गया है। परिवाद सव्यय निरस्त करते हुये धारा-26 के अंतर्गत रू0 10,000.00 हर्जा विपक्षी परिवादी से प्राप्त करने की याचना किया है। विपक्षी संख्या-02 द्वारा जवाबदावा के समर्थन में शपथपत्र डा0 एस0एन0एस0 यादव, चिकित्सा अधीक्षक हिन्द इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साईन्स, सफेदाबाद जनपद-बाराबंकी का दाखिल किया गया है।
विपक्षी संख्या-02 द्वारा लिखित बहस भी दाखिल किया गया है।
परिवादी तथा विपक्षी संख्या-02 की बहस सुनी गई। पत्रावली पर उपलब्ध साक्ष्य का अवलोकन किया।
वर्तमान प्रकरण में परिवाद पत्र में अंकित तथ्यों के अनुसार परिवादी अनिल कुमार के छोटे भाई विपिन कुमार उर्फ विक्की को दिनांक 12.12.2016 को शाम 6 बजे अचानक घर पर पेट दर्द व सर दर्द होने व अचानक उल्टियां आने पर देवां सी. एच. सी. ले जाना, वहाँ डाक्टर उपलब्ध न होने और विपक्षी संख्या-01 झोला छाप डाक्टर (जैसा कि परिवाद पत्र में अंकित है) राजेन्द्र कुमार द्वारा इस बात का आश्वासन देना कि वह उसके भाई का इलाज करके ठीक कर देगा इस बात की गारन्टी ली, विपक्षी संख्या-01 के ‘‘क्लीनिक ठाकुर‘‘ में छोटे भाई को इलाज के लिये भर्ती कराना, और दिनांक 23.12.2016 तक विपक्षी संख्या-01 द्वारा इलाज किया जाना, इस बीच परिवादी के भाई की हालत निरन्तर बिगड़ना, पूरी पीठ पक जाना, खेत गिरवी रखकर विपक्षी संख्या-01 डाक्टर को रू0 85,000/-देकर इलाज कराना अंकित है। परिवादी के भाई की हालत बिगड़ने पर दिनांक 23.12.2016 को विपक्षी सं0-02 हिन्द अस्पताल सफेदाबाद, बाराबंकी में भर्ती कराना अंकित है।
दिनांक 23.12.2016 को विपक्षी संख्या-02 हिन्द अस्पताल में भर्ती कराने पर डाक्टर ने बताया कि दवा का रियेक्शन हो गया है, पीठ का आपरेशन कराना पडेग़ा। विपक्षी संख्या-02 के डाक्टर की लापरवाही के कारण परिवादी के भाई की हालत गंभीर हो गई। परिवादी से रू0 2,00,000/-ले लिया। परिवादी के भाई की हालत बिगड़ता देख, परिवादी अपने भाई को मरणासन्न हालत में विपक्षी संख्या-02 के अस्पताल से निकालकर पूजा नर्सिंग होम, लखनऊ ले गया जहां डाक्टरों ने विपक्षी संख्या-02 की लापरवाही बतायी, आपरेशन किया, किसी तरह जान बची। कुल रू0 3,35,000/-खर्च होना कहा है। विपक्षी संख्या-01 व 02 के द्वारा उपभोक्ता की सेवा में कमी किया जाना अंकित किया गया है।
परिवाद पत्र में विपक्षीजन से रू0 3,75,000/-मय ब्याज दिलाये जाने, रू0 1,00,000/-शारीरिक व मानसिक उत्पीड़न हेतु बतौर क्षतिपूर्ति दिलाये जाने तथा विपक्षी संख्या-02 के अस्पताल में शिक्षित डाक्टर न होने के कारण व्यवसाय करने के आधार पर विपक्षी संख्या-02 के विरूद्व दंडात्मक कार्यवाही करने और खर्च मुकदमा दिलाये जाने की याचना की गई है।
परिवाद पत्र के पैरा-6 में अंकित है कि परिवादी दावे के साथ मेडिकल के सारे साक्ष्य प्रस्तुत कर रहा है। यह परिवाद दिनांक 12.06.2017 को संस्थित किया गया। परन्तु परिवादी द्वारा अपने छोटे भाई की चिकित्सा का कोई भी अभिलेखीय साक्ष्य परिवाद दायर करने से लेकर पूरे विचारण की अवधि में प्रस्तुत नहीं किया गया।
विपक्षी संख्या-01 डा0 राजेन्द्र कुमार प्रशिक्षित चिकित्सक नहीं है या उसने चिकित्सा शिक्षा प्राप्त नहीं की है और विपक्षी संख्या-01 बिना चिकित्सक की डिग्री के व्यवसाय कर रहे है, यह बिन्दु परिवादी को ही सिद्व करना है। वर्तमान प्रकरण में विपक्षी संख्या-01 पर तामीला पर्याप्त माना गया परन्तु विपक्षी संख्या-01 की ओर से कोई भी उपस्थित नहीं है। विपक्षी संख्या-01 की तरफ से कोई वादोत्तर या साक्ष्य आदि भी प्रस्तुत नहीं किया गया। विपक्षी संख्या-01 के द्वारा दिनांक 12.12.2016 से लेकर दिनांक 23.12.2016 तक परिवादी के छोटे भाई का इलाज किये जाने का भी कोई अभिलेखीय साक्ष्य पत्रावली पर नहीं है। परिवादी को जब यह मालूम था कि विपक्षी संख्या-01 प्रशिक्षित चिकित्सक नहीं है तो परिवादी अपने छोटे भाई को इलाज हेतु विपक्षी संख्या-01 के पास क्यों ले गया, इसका कोई युक्ति युक्त आधार परिवाद पत्र या मौखिक साक्ष्य में परिवादी या उसके साक्षियों द्वारा स्पष्ट नहीं किया गया है। विपक्षी संख्या-01 द्वारा चिकित्सीय परामर्श में परिवादी के छोटे भाई का किस बीमारी का, किस प्रकार से इलाज किया गया, इसका भी कोई पुष्टि कारक अभिलेखीय साक्ष्य या मौखिक साक्ष्य अथवा चिकित्सीय विवरण नहीं है। विपक्षी संख्या-01 द्वारा परिवादी के भाई के इलाज के दौरान किस रोग की क्या दवाईयाँ दी गई, इसका भी कोई पुष्टि कारक अभिलेखीय साक्ष्य नहीं है। परिवादी द्वारा विपक्षी संख्या-01 के प्रशिक्षित चिकित्सक न होने के सम्बन्ध में या अवैधानिक तरीके से डाक्टर क्लीनिक चलाने के संबंध में जिला चिकित्सा अधिकारी या जिला चिकित्सा अधीक्षक या किसी थाने में शिकायत किये जाने का भी कोई अभिलेखीय साक्ष्य नहीं है। अतः विपक्षी संख्या-01 द्वारा परिवादी के छोटे भाई र्का इलाज किये जाने का कोई अभिलेखीय साक्ष्य नहीं है।
वर्तमान प्रकरण में परिवादी द्वारा विपक्षी संख्या-01 के यहाँ किये गये इलाज तथा विपक्षी संख्या-02 द्वारा किये गये इलाज का कोई अभिलेखीय साक्ष्य दाखिल नहीं किया गया है परन्तु विपक्षी संख्या-02 ने अपने जवाबदावें के साथ परिवादी के छोटे भाई के इलाज से सम्बन्धित अभिलेख दाखिल किये है जिसके डिसचार्ज फार्म की प्रति में लाये गये मरीज का नाम विपिन उम्र-15 वर्ष, पुरूष को दिनांक 23.12.2016 को बुखार, ठंडक, उल्टी तथा दाहिनी ओर पीठ पर सेल्यूलाइटिस व फफोले होना अंकित है जिसका ईलाज दिनांक 27.12.2016 तक विपक्षी संख्या-02 के अस्पताल में किया जाना और दिनांक 27.12.2016 को बीमार विपिन को लखनऊ मेडिकल कालेज (के.जी.एम.सी.) राम मनोहर लोहिया अस्पताल सन्दर्भित किया जाना अंकित है। विपक्षी संख्या-02 ने परिवादी से उसके छोटे भाई विपिन का इलाज करने के लिये (Consent For High risk) उद्घोषणा हस्ताक्षारित कराने के पश्चात् इलाज प्रारम्भ किया गया है। इलाज की गंभीरता व परिणाम के संबंध में परिवादी से सहमति ली गई है। विपक्षी संख्या-02 अस्पताल में हुये खर्च का बिल रू0 3,170/-की प्रति भी दाखिल की गई है। विपक्षी संख्या-02 के अस्पताल में विपिन के विभिन्न परीक्षणों तथा उसके संबंध में लिये गये शुल्क की रसीदें विपक्षी संख्या-02 ने आई. सी. यू, एक्स-रे आदि की रसीद दाखिल की है। विपक्षी संख्या-02 के अस्पताल में परिवादी के छोटे भाई का इलाज दिनांक 23.12.2016 से 27.12.2016 दापहर 12.30 बजे तक होना विपक्षी संख्या-02 को स्वीकृत तथ्य है। वर्तमान प्रकरण जवाबदावा विपक्षी संख्या-02 अस्पताल के चिकित्सा अधीक्षक डाॅ0 एस0 एन0 यादव द्वारा हस्ताक्षरित दाखिल किया गया है। साक्ष्य में विपक्षी संख्या-02 की ओर से डा0 एस0 एन0 यादव तथा डाॅ0 सी0 एस0 तिवारी का साक्ष्य शपथपत्र तथा अतिरिक्त साक्ष्य शपथपत्र दाखिल है। परिवादी द्वारा विपक्षी संख्या-02 के अस्पताल में परिवादी के छोटे भाई विपिन के इलाज के संबंध में कोई भी अभिलेखीय साक्ष्य प्रस्तुत नहीं किया गया है। विपक्षी संख्या-02 के जवाबदावें के धारा-12 में अंकित है कि परिवादी का भाई जब अस्पताल लाया गया तो उसे मलेरिया होना, प्लेटलेट्स का कम होना व गुर्दे में संक्रमण होने का अनुमान किया गया जिसके आधार पर विपक्षी संख्या-02अस्पताल में जांच कराई गई। जांच से मलेरिया होने की पुष्टि नहीं हुई। गुर्दे में संक्रमण पाया गया। पीठ पर सेलूलाइटिस के सम्बन्ध में सर्जरी विभाग के वरिष्ठ सर्जन डॉ0 वी0 के0 गोयल की भी राय ली गई थी। मरीज के गुर्दे में संक्रमण था। डायलिसिस की आवश्यकता थी। एच0 बी0 एस0 ए0 जी0 की जांच पाजिटिव आई थी जिसके सम्बन्ध में डायलिसिस मशीन उपलब्ध न होने के कारण परिवादी के छोटे भाई को दिनांक 27.12.2016 को दिन में 12.30 बजे ट्रामा सेन्टर (के.जी.एम.यू.) राम मनोहर लोहिया अस्पताल गोमतीनगर भर्ती कराने की सलाह दी गई। उसके पश्चात परिवादी के छोटे भाई विपिन को घर वाले कहां ले गये, इसकी कोई जानकारी विपक्षी संख्या-02 को नहीं है। परिवाद पत्र की धारा-3, 4 में परिवादी के छोटे भाई का इलाज विपक्षी संख्या-01 से कराने का तथ्य अंकित किया गया है। विपक्षी संख्या-02 ने अपने जवाबदावे में परिवाद पत्र के धारा-3 व 4 के तथ्य को जानकारी न होना अंकित किया है। इसी प्रकार विपक्षी संख्या-02 द्वारा जवाबदावें के साथ प्रस्तुत अभिलेखीय साक्ष्य में प्रस्तुत हिन्द अस्पताल के डिसचार्ज फार्म की प्रति में भी परिवादी के भाई का पूर्व में इलाज कहां हुआ या किसी के रिफरेन्स पर विपक्षी संख्या-02 के अस्पताल में दाखिल होने का कोई उल्लेख नहीं है जिससे यह सिद्व होता है कि परिवादी ने अपने छोटे भाई को विपक्षी संख्या-02 के अस्पताल में भर्ती कराते समय विपक्षी संख्या-01 से दिनांक 12.12.2016 से 23.12.2016 तक इलाज कराने की कोई जानकारी नहीं दी। लगभग तीन दिन से अधिक समय तक विपक्षी संख्या-02 के अस्पताल में परिवादी का छोटा भाई विपिन भर्ती रहा। डिस्चार्ज फार्म के अवलोकन से विदित है कि जाँच करने पर मरीज विपिन का क्रेटेनिन 3.45 होना अंकित है जो सामान्य से अधिक होने के कारण गुर्दे में संक्रमण होने की पुष्टि करता है, जिससे यह पुष्ट होता है कि विपक्षी संख्या-02 द्वारा मरीज विपिन के गुर्दे के संक्रमण का निष्कर्ष व उसके संबंध में दिये गये परामर्श व दवा आदि सही है। मरीज विपिन को दिनांक 23.12.2016 को विपक्षी संख्या-02 के अस्पताल में भर्ती किये जाने के समय ही विपिन के पीठ के दाहिने भाग में सेलूलाइटिस व फफोले होना अंकित है। परिवादी का कथन है कि उसके छोटे भाई की पीठ पक गई थी। सेलूलाइटिस का अर्थ संक्रमण द्वारा संयोजी उतक का एक विस्तृत शोथ (A diffuse inflammation of the connective tissue due to infection) है। विपक्षी संख्या-02 अस्पताल के डिसचार्ज फार्म के विवरण से स्पष्ट है कि मरीज विपिन की पीठ पर सेलूलाइटिस और फफोले विपक्षी संख्या-02 के अस्पताल में भर्ती करने के समय ही थे जो विपक्षी संख्या-02 के इलाज से बढ़ गये हो, इसका कोई पुष्टि कारक साक्ष्य नहीं है। विपक्षी संख्या-02 ने स्पष्ट किया है कि मरीज विपिन का संक्रमण देखते हुये डायलिसिस की मशीन विपक्षी संख्या-02 के अस्पताल में उपलब्ध न होने के कारण उसे अन्य अस्पताल सन्दर्भित किया गया जिससे यह भी सिद्व होता है कि विपक्षी संख्या-02 ने मरीज विपिन को अपने अस्पताल में अनावश्यक रूप से इलाज हेतु नहीं रोका बल्कि भर्ती होने के समय ही विपक्षी संख्या-02 ने इलाज की लिखित सहमति परिवादी से लेते समय बीमारी की गंभीरता बताते हुये अस्पताल में भर्ती किया गया था।
उपरोक्त समस्त विवेचन से स्पष्ट है कि विपक्षी संख्या-01 के अशिक्षित डाक्टर के रूप में कार्य करने तथा विपक्षी संख्या-01 द्वारा परिवादी के छोटे भाई का दिनांक 12.12.2016 से 23.12.2016 तक इलाज करने का कोई पुष्टि कारक साक्ष्य नहीं है।
परिवादी ने परिवाद पत्र के अंत में यह स्पष्ट रूप से अंकित किया है कि विपक्षी संख्या-02 के चिकित्सालय में कोई शिक्षित डाक्टर न होने के कारण दंडात्मक कार्यवाही करने की याचना की गई है जबकि परिवादी अनिल कुमार ने अपने शपथपत्र दिनांकित 15.05.2018 के पैरा-3 में यह स्पष्ट रूप से अंकित किया है कि विपक्षी संख्या-02 के किसी भी डाक्टर को अशिक्षित चिकित्सक नहीं बताया है।
परिवाद पत्र में परिवादी का कथन है कि विपक्षी संख्या-01 को परिवादी के भाई के इलाज के लिये रू0 85,000/-का भुगतान करना अंकित किया गया है जिसके लिये परिवादी का कथन है कि उसने खेत गिरवी रखकर रू0 85,000/-का भुगतान किया। विपक्षी संख्या-01 को मरीज विपिन के इलाज हेतु रू0 85,000/-का भुगतान करना या परिवादी द्वारा भाई विपिन के इलाज हेतु अपना खेत गिरवी रखने का कोई भी पुष्टि कारक साक्ष्य नहीं है। परिवादी का यह भी कथन है कि विपक्षी संख्या-02 ने इलाज के लिये रू0 1,00,000/-ले लिया जबकि विपक्षी संख्या-02 ने अपने अस्पताल में विपिन का इलाज होने के खर्च रू0 3,170/-का जांच, आई. सी. यू. का परिवादी द्वारा जमा करने का बिल प्रस्तुत किया है। इसके अतिरिक्त कोई अन्य धनराशि का भुगतान परिवादी या उसके परिवार के सदस्य द्वारा किये जाने का कोई भी पुष्टि कारक साक्ष्य नहीं है। परिवादी के साक्ष्य शपथपत्र दिनांकित 15.05.2018 में अंकित है कि अस्पताल से भाई को निकालकर पूजा नर्सिंग होम में उपचार कराया जहाँ विपिन ठीक हुआ। पूजा नर्सिंग होम में रू0 2,30,000/-खर्च होने का अंकन किया गया है इस प्रकार परिवादी के कथनानुसार ही यदि कुल खर्च जोड़ा जाय तो रू0 85,000+1,00,000+2,30,000=4,15,000/-का कुल खर्च आंकलित होता है जबकि परिवादी ने अपने परिवाद पत्र के पैरा-7 में इलाज में कुल रू0 3,35,000/-व्यय होने का अंकन किया है। धारा-9 में रू0 3,75,000/-और अनुतोष प्रस्तर में रू0 3,75,000/-मय ब्याज दिलाये जाने की याचना है। परिवाद पत्र व साक्ष्य में बताये गये इस पूरे खर्च या धनराशि उधार लेने का कोई भी अभिलेखीय साक्ष्य परिवादी की ओर से प्रस्तुत नहीं किया गया। विपक्षी संख्या-02 द्वारा प्रस्तुत अभिलेखीय साक्ष्य से केवल परिवादी के विपक्षी संख्या-02 के अस्पताल में इलाज होने पर रू0 3,170/-खर्च होने की पुष्टि होती है। इस प्रकार परिवादी द्वारा बताई गई खर्च की धनराशि की भी पुष्टि परिवादी साक्ष्य से नहीं होती है।
विपक्षी संख्या-02 द्वारा सन्दर्भित विधि निर्णय इंडियन मेडिकल एसोसियेशन बनाम वी. पी. शान्था एवं अन्य ।।। (1995) सी पी जे 1(एस सी) के मामले में माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा चिकित्सक की लापरवाही व सेवा में कमी के सम्बन्ध में अवधारित किया है-
“The test to be applied to find out if the Doctor was negligent i.e. to see whether the Doctor has “exercised the ordinary skill of an ordinary competent man exercising that particular art”
जैकब मेथ्यूज बनाम स्टेट आफ पंजाब (2005) 6 एस सी सी 1 के पैरा-41 में विधि सिद्वान्त प्रतिपादित किया गया है-
“The practitioner must bring to his task a reasonable degree of skill & knowledge, and must exercise a responsible degree of care. Neither the very highest nor a very low degree of care and competence is what the law requires.”
कुसुम शर्मा बनाम बत्रा हास्पिटल एंड मेडिकल रिसर्च सेन्टर ए आई आर 2010 सुप्रीम कोर्ट 1050 के प्रस्तर-90 में जैकब मैथ्यूज (उपरोक्त) के निर्णय का उल्लेख करते हुये अंकित किया गया है कि धारा-3
“The standard to be applied for judging, whether the person charged has been negligent or not, would be that of an ordinary competent person exercising ordinary skill in the profession. It is not possible for every professional to possess the highest level of expertise or skills in that branch which he practices. A highly skilled professional may be possessed of better qualities, but that cannot be made the basis or the yardstick for judging the performance of the professional proceeded against on indictment of negligence.”
उपरोक्त निर्णयज विधियों के अवलोकन से विदित है कि किसी चिकित्सक द्वारा चिकित्सा किये जाने के सम्बन्ध में उपरोक्त मानक के अनुसार विवेचन किया जायेगा।
तरूण ठाकुर बनाम डा0 नोशीर एम श्राफ (मा0 राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग के निर्णय दिनांक 24.09.2002) में डाक्टर, मरीज के प्रति कर्तव्य निर्धारण में अंकित किया गया है कि चिकित्सक को यह निश्चित करना होता है-
1. Duty care in deciding what treatment is to be given.
2. Duty to pay care in the administration of the treatment.
उपरोक्त में से किसी भी कर्तव्य के भंग होने की स्थिति में लापरवाही मानी जायेगी।
उपरोक्त निर्णयज विधि सिद्वान्तों के परिपेक्ष्य में वर्तमान प्रकरण का विवेचन किये जाने से स्पष्ट है कि परिवादी द्वारा अपने छोटे भाई विपिन का विपक्षी संख्या-01 तथा विपक्षी संख्या-02 द्वारा इलाज किये जाने से सम्बन्धित कोई भी अभिलेखीय साक्ष्य नहीं प्रस्तुत किया गया है। विपक्षी संख्या-02 द्वारा अपने अस्पताल में परिवादी के छोटे भाई विपिन का इलाज किये जाने के सम्बन्ध में जो अभिलेख जवाबदावे के साथ दाखिल किये गये है उन अभिलेखों में विपक्षी संख्या-02 के चिकित्सकों द्वारा किये गये इलाज में कोई लापरवाही होने या विपक्षी संख्या-02 द्वारा किये गये इलाज से परिवादी के भाई का रोग और बढ़ जाने या विपक्षी संख्या-02 के चिकित्सकों की कुशलता में कोई कमी होने के कारण इलाज में लापरवाही बरते जाने की पुष्टि नहीं होती है। परिवादी द्वारा अपने छोटे भाई के इलाज के खर्च के सम्बन्ध में भी कोई पुष्टि कारक अभिलेखीय साक्ष्य नहीं प्रस्तुत किया गया है। परिवादी द्वारा अपने परिवाद पत्र तथा साक्ष्य शपथपत्र में दिये गये खर्च के विवरण में गम्भीर विरोधाभास है। विपक्षी संख्या-02 के अस्पताल में कुल रू0 3,170/-मात्र खर्च होने की ही पुष्टि होती है।
उपरोक्त समस्त विवेचन से स्पष्ट है कि परिवादी के छोटे भाई विपिन का विपक्षीगण द्वारा किये गये इलाज में किसी प्रकार की लापरवाही की पुष्टि नहीं होती है।
विपक्षी संख्या-02 की ओर से यह तर्क लिया गया है कि वर्तमान प्रकरण में इलाज मरीज विपिन उर्फ विक्की का हुआ है और परिवाद उसके बड़े भाई अनिल कुमार द्वारा प्रस्तुत किया गया है। विपिन उर्फ विककी को न तो परिवादी बनाया गया है और न ही उसके द्वारा कोई साक्ष्य शपथपत्र ही दाखिल किया गया है। इस सम्बन्ध में विपक्षी संख्या-02 द्वारा प्रस्तुत अपने जवाबदावे के साथ अभिलेखीय साक्ष्य में मरीज विपिन की उम्र विपक्षी संख्या-02 के अस्पताल में इलाज के समय 15 वर्ष होना अंकित किया गया है। यह स्वीकृत तथ्य है कि विपक्षी संख्या-02 के अस्पताल में दिनांक 23.12.2016 से 27.12.2016 तक इलाज होना स्वीकृत तथ्य है। यदि उस समय मरीज विपिन की उम्र 15 वर्ष थी तो निश्चित रूप से दिनांक 12.07.2017 को वर्तमान परिवाद पत्र दाखिल करते समय भी मरीज विपिन की उम्र 18 वर्ष से कम होगी। ऐसी स्थिति में परिवाद संस्थित करते समय विपिन अवयस्क था। धारा-2 उपधारा-5 (VII) में परिवादी का अर्थ उपभोक्ता, उपभोक्ता के अवयस्क होने की स्थिति में उसके अभिभावक या विधिक संरक्षक अंकित है। जिससे स्पष्ट है कि अवयस्क उपभोक्ता की ओर से उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 2019 में परिवाद उस अवयस्क के अभिभावक व संरक्षक द्वारा प्रस्तुत किया जा सकता है। यद्यपि परिवादी ने वर्तमान परिवाद में परिवादी अवयस्क विपिन की ओर से बतौर संरक्षक या अभिभावक दाखिल करने का तथ्य अंकित नहीं किया है फिर भी चूँकि परिवादी मरीज विपिन का बड़ा भाई है ऐसी स्थिति में वर्तमान परिवाद विपिन की ओर से उसके संरक्षक भाई अनिल कुमार द्वारा दाखिल करना माना जायेगा। अतः इस बिन्दु पर विपक्षी संख्या-02 का तर्क बलहीन है।
उपरोक्त समस्त विवेचन के आधार पर निष्कर्ष निकलता है कि परिवादी के भाई विपिन के इलाज में विपक्षीगण द्वारा किसी प्रकार की लापरवाही बरते जाने और तद्नुसार सेवा में कमी किया जाना सिद्व नहीं होता है। अतः परिवाद उपरोक्त विवेचन के आलोक में निरस्त किये जाने योग्य है।
आदेश
परिवाद संख्या-78/2017 निरस्त किया जाता है।
(डॉ0 एस0 के0 त्रिपाठी) (मीना सिंह) (संजय खरे)
सदस्य सदस्य अध्यक्ष
यह निर्णय आज दिनांक को आयोग के अध्यक्ष एंव सदस्यो द्वारा खुले न्यायालय में उद्घोषित किया गया।
(डॉ0 एस0 के0 त्रिपाठी) (मीना सिंह) (संजय खरे)
सदस्य सदस्य अध्यक्ष
दिनांक 01.05.2023
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