सुरक्षित
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0 लखनऊ
(जिला उपभोक्ता मंच, कानपुर नगर द्वारा परिवाद संख्या 435 सन 2000 में पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश दिनांक 09.08.2002 के विरूद्ध)
अपील संख्या 3071 सन 2002
मै0 एयर फ्रांस नई दिल्ली एवं अन्य
.......अपीलार्थी/प्रत्यर्थी
-बनाम-
डा0 राजकमल त्रिपाठी एवं अन्य
. .........प्रत्यर्थी/परिवादी
समक्ष:-
मा0 श्री राजेन्द्र सिंह, सदस्य ।
मा0 श्री सुशील कुमार, सदस्य।
अपीलार्थी की ओर से विद्वान अधिवक्ता - श्री अदील अहमद ।
प्रत्यर्थी की ओर से विद्वान अधिवक्ता - श्री आलोक श्रीवास्तव ।
दिनांक:- 05-04-2022
मा0 सदस्य श्री सुशील कुमार द्वारा उद्घोषित
निर्णय
उपभोक्ता परिवाद संख्या 435 सन 2000 डा0 राकमल त्रिपाठी बनाम मै0 एयर फ्रांस नई दिल्ली एवं अन्य में पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश दिनांक 09.08.2002 के विरूद्ध यह अपील प्रस्तुत की गयी है जिसके अन्तर्गत जिला उपभोक्ता मंच ने परिवाद स्वीकार करते हुए क्षतिपूर्ति के रूप में 01 लाख रू0 की धनराशि का भुगतान करने का आदेश दिया है।
परिवाद के तथ्यों के अनुसार परिवादीगण ने विपक्षी संख्या 01 से दिल्ली से डरहम (अमेरिका) की यात्रा हेतु 58783.00 रू0 का भुगतान करके दो टिकट क्रय किए थे। हवाई अडडे पर बुकिंग की पुष्टि नहीं हुयी। यात्रा न करने के कारण परिवादी को सेवायोजन में 15 दिन का विलम्ब हुआ। अगली टिकट दिनांक 15.12.1999 को निश्चित हुयी जिसके लिए कई बार दिल्ली आने जाने में असुविधा उठानी पड़ी और सेवा योजन में देरी के कारण आर्थिक क्षति हुयी, अत: क्षतिपूर्ति के लिए परिवाद योजित किया गया।
विपक्षी संख्या 1 व 2 का कथन है कि विपक्षी संख्या 03 के माध्यम से टिकट बुक कराए गए थे जो प्रतीक्षा सूची में थे। विपक्षी संख्या 03 उनके अधिकृत एजेण्ट नहीं हैं। परिवादीगण ने ओ0के0 टिकट नहीं कराया था।
दोनों पक्षो को सुनकर विचार करने के उपरांत जिला मंच द्वारा यह निष्कर्ष दिया गया कि टिकट की बुकिंग पर ओ0के0 स्टीकर लगाया गया था। तदनुसार विपक्षीगण उत्तरदायी है, जिसके क्रम में उपरोक्त वर्णित आदेश पारित किया गया।
इस निर्णय एवं आदेश को इन आधारों पर चुनौती दी गयी है कि जिला उपभोक्ता मंच द्वारा गलत निर्णय पारित किया गया है। अपीलार्थीगण द्वारा सेवा में कोई कमी नहीं की गयी है। धारा 86 सीपीसी का अनुपालन नहीं किया गया है क्योंकि अपीलार्थी एक को-आपरेटिव संस्था थे। इस बिन्दु पर भी विचार नहीं किया गया कि विपक्षी संख्या 03 उनके अधिकृत एजेण्ट नहीं है। केवल टिकट लेने मात्र से बोर्डिंग का अधिकार प्राप्त नहीं होता जब तक कि शीट कनफर्म न हो ।
दोनों पक्षों को सुना गया तथा निर्णय एवं आदेश का अवलोकन किया गया।
प्रस्तुत केस में अपीलार्थी की ओर से जो बहस की गयी है वह उन टिकटों के संबंध में की गयी जो कन्फर्म नहीं हुए। यथार्थ में टिकट कन्फर्म न होने से यात्री को बोर्डिंग का अधिकार प्राप्त नही होता है। परन्तु चूंकि प्रस्तुत केस में स्वयं विपक्षीगण ने स्वीकार किया है कि परिवादीगण को जो टिकट दी गयी थीं उन पर ओ0के0 का स्टीकर लगाया गया था, अत: यात्रीगण को पूर्ण आभाष था कि उन्हें कन्फर्म टिकट प्राप्त हुयी हैं और उन्हें यात्रा करने का अधिकार है। अत: निश्चित रूप से विपक्षीगण द्वारा सेवा में कमी की गयी है।
अपीलार्थीगण के विद्वान अधिवक्ता का यह तर्क है कि धारा 86 सीपीसी का अनुपालन नहीं किया गया है। धारा 86 सीपीसी केवल उस स्थिति में लागू होती है जब सिविल न्यायालय में सिविल प्रक्रिया का वाद प्रस्तुत किया जाता है। उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अन्तर्गत परिवाद प्रस्तुत करते समय धारा 86 सीपीसी के प्राविधान लागू नहीं होते।
अपीलार्थी द्वारा यह भी बहस की गयी है कि विपक्षी संख्या 03 उनके अधिकृत एजेण्ट नहीं है क्योंकि विपक्षी संख्या 03 की ओर से टिकट पर ओ0के0 का स्टीकर लगाया गया है। स्टीकर विपक्षी संख्या 03 के कार्यालय से क्रय किए गए थे इसलिए यह नहीं कहा जा सकता कि विपक्षी संख्या 03 उनके अधिकृत एजेण्ट नहीं हैं क्योंकि विपक्षी संख्या 03 द्वारा किए गए कार्य को उनके द्वारा स्वीकृति प्रदान की गयी है।
उपरोक्त विवेचना का निष्कर्ष यह है कि जिला मंच के निर्णय में हस्तक्षेप करने का कोई विधि-सम्मत आधार नहीं है और अपील खारिज होने योग्य है।
आदेश
अपील खारिज की जाती है।
उभय पक्ष अपना अपना व्यय स्वयं वहन करेगें।
आशुलिपिक/वैयक्तिक सहायक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।
(सुशील कुमार) (राजेन्द्र सिंह)
सदस्य सदस्य
निर्णय आज खुले न्यायालय में हस्ताक्षरित, दिनांकित होकर उद्घोषित किया गया ।
(सुशील कुमार) (राजेन्द्र सिंह)
सदस्य सदस्य
सुबोल श्रीवास्तव
पी0ए0(कोर्ट नं0-2)