Chhattisgarh

Durg

CC/149/2013

Raghunath Yadav - Complainant(s)

Versus

DR. Praphull Jain - Opp.Party(s)

Mr. Mahendra Kumar

27 Feb 2015

ORDER

DISTRICT CONSUMER DISPUTES REDRESSAL FORUM, DURG (C.G.)
FINAL ORDER
 
Complaint Case No. CC/149/2013
 
1. Raghunath Yadav
Durg
Durg
Chhattisgarh
...........Complainant(s)
Versus
1. DR. Praphull Jain
Durg
Durg
Chhattisgarh
............Opp.Party(s)
 
BEFORE: 
 HON'BLE MRS. मैत्रेयी माथुर् PRESIDENT
 HON'BLE MRS. शुभा सिंह MEMBER
 
For the Complainant:Mr. Mahendra Kumar , Advocate
For the Opp. Party:
ORDER

                                                   प्रकरण क्र.सी.सी./13/149

                                                                                                   प्रस्तुती दिनाँक 27.02.2013

रघुनाथ यादव आ.स्व प्रहलाद यादव, निवासी-ग्राम-चिखली पो.जेवरा, सिरसा, तह. व जिला-दुर्ग (छ.ग.)           - - - -       परिवादी

विरूद्ध

डाॅ. श्री प्रफुल्ल जैन, शिशु रोग विशेषज्ञ, वर्धमान हाॅस्पिटल, राजेन्द्र पार्क चैक, दुर्ग (छ.ग.)                 - - - -      अनावेदक

आदेश

(आज दिनाँक 26 फरवरी 2015 को पारित)

श्रीमती मैत्रेयी माथुर-अध्यक्ष

                                परिवादी द्वारा अनावेदक से अपने पुत्र के लापरवाहीपूर्वक  किए गए ईलाज के फलस्वरूप क्षतिपूर्ति राशि 10,00,000रू., वाद मानसिक व आर्थिक क्षतिपूर्ति हेतु 20,000रू. व अन्य अनुतोष दिलाने हेतु यह परिवाद धारा-12 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के अंतर्गत प्रस्तुत किया है।

परिवाद-

                                (2) परिवादी का परिवाद संक्षेप में इस प्रकार है कि परिवादी के बच्चे का जन्म 13.10.2005 को हुआ था, जन्म लेने के पश्चात से परिवादी का पुत्र नहीं रो रहा था, जिसके कारण परिवादी द्वारा अपने पुत्र को अनावेदक डाॅ.प्रफुल्ल जैन के वर्धमान नर्सिंग होम, में एडमिट कराया गया था। परिवादी के पुत्र को वर्धमान नर्सिंग होम में ईलाज के दौरान 10 दिन रखा गया था एवं दिनांक 23.10.2005 को छुट्टी कर दी गई। परिवादी द्वारा अपने पुत्र को वर्धमान नर्सिंग होम से छुट्टी कराने के दो दिन बाद पता चला कि बच्चे का दायां पैर काला पड़ने लगा है, तब पुनः वर्धमान नर्सिग होम में दिनंाक 25.10.05 को डाॅ.प्रफुल्ल जैन को दिखाया गया तब अनावेदक डाॅक्टर ने नर्सिग होम में दिए गए डिस्चार्ज पेपर को रख लिया और कहा कि बच्चे का ईलाज यहां नहीं हो सकता, उसे शासकीय जिला चिकित्सालय में ले जाईए, तब बच्चे को शासकीय जिल चिकित्सालय, दुर्ग में भर्ती कराया गया था, जहाँ पर उसे चार दिन रखने के बाद भी बच्चे के पैर मे कोई सुधार नहीं आया, बल्कि पैर गलने लगा। उसके बाद उसे डाॅ.कोठारी, हड्डी रोग विशेषज्ञ, के अस्पताल में एडमिट कराया गया, जहां बच्चे का पैर गलने लग गया था, जिस कारण से उसके दांऐ पैर को काटना पड़ा। परिवादी, अनावेदक के पास क्षतिपूर्ति राशि एवं डिस्चार्ज पेपर मांगनें के लिए गया था, किंतु अनावेदक द्वारा न तो परिवादी को क्षतिपूर्ति राशि दिया और न ही भर्ती का डिस्चार्ज पेपर दिया गया, तब परिवादी द्वारा कलेक्टर दुर्ग को शिकायत की गई, कलेेक्टर द्वारा नियुक्त जांच अधिकारी द्वारा उक्त संबंध में अपनी रिपोर्ट दि.19.07.11 को जिलाधीश, दुर्ग के समक्ष प्रस्तुत की गई। इस प्रकार अनावेदक द्वारा परिवादी के पुत्र के ईलाज में लापरवाही कर सेवा मे कमी के लिए परिवादी को क्षतिपूर्ति राशि 10,00,000रू., वाद व्यय मानसिक एवं आर्थिक क्षतिपूर्ति राशि 20,000रू. व अन्य अनुतोष दिलाया जावे।

जवाबदावाः-

                                (3) अनावेदक के द्वारा जवाबदावा में परिवादी के समस्त अभिकथनों को अस्वीकार करते हुए कथन इस आशय का प्रस्तुत है कि परिवादी के द्वारा अपने बच्चे के जन्म के संबंध में प्रकरण मे कोई भी दस्तावेज प्रस्तुत नहीं किए गए है और ना ही अनावेदक के नर्सिग होम में राशि जमा करने की रसीद न्यायालय मे प्रस्तुत की गई है। परिवादी द्वारा अपने बच्चे को जिला चिकित्सालय दुर्ग में भर्ती के संबंध में कोई भी दस्तावेज न्यायालय में पेश नहीं किया गया है और न ही डाॅ.कोठारी हड्डी रो विशेषज्ञ प्रियंका काॅम्पलेक्स में भर्ती के सबंध में कोई मेडिकल व रसीद दस्तावेज न्यायालय मे प्रस्तुत किए गए हैं। परिवादी अपना दावा सिद्ध करने में असफल रहा है अतः दावा निरस्त किए जाने योग्य है। अतः पेश परिवाद सव्यय निरस्त किया जावे।

                                (4) उभयपक्ष के अभिकथनों के आधार पर प्रकरण मे निम्न विचारणीय प्रश्न उत्पन्न होते हैं, जिनके निष्कर्ष निम्नानुसार हैं:-

1.             क्या परिवादी, अनावेदक से क्षतिपूर्ति राशि 10,00,000रू. प्राप्त करने का अधिकारी है?          नहीं

2.             क्या परिवादी, अनावेदक से मानसिक एवं आर्थिक परेशानी के एवज में 20,000रू. प्राप्त करने का अधिकारी है?             नहीं

3.             अन्य सहायता एवं वाद व्यय?                                            आदेशानुसार परिवाद खारिज

 निष्कर्ष के आधार

                                (5) प्रकरण का अवलोकन कर सभी विचारणीय प्रश्नों का निराकरण एक साथ किया जा रहा है। 

फोरम का निष्कर्षः-

                                (6) परिवादी का अभिकथन है कि मरीज का जन्म 13.10.2005 को कल्याणी नर्सिंग होम में हुआ था, क्योंकि बच्चा रो नहीं रहा था, इसलिए उसी दिन उक्त बच्चे को अनावेदक के वर्धमान हाॅस्पिटल, गवली पारा, दुर्ग में एडमिट किया गया, जहाँ उसे 10 दिन इलाज के लिए रखा गया और दि.23.10.2005 को मरीज की छुट्टी कर दी गई।  डिस्चार्ज के दो दिन बाद मरीज का दांया पैर काला पड़ने लगा, तब दि.25.10.2005 को पुनः अनावेदक को दिखाया गया, जिसने नर्सिंग होम से दिये गये डिस्चार्ज पेपर को रख लिया और कह दिया कि यहां उसका इलाज नहीं हो सकता, शासकीय चिकित्सालय ले जाया जाये।

(7) यह उल्लेख करना आवश्यक है कि परिवादी ने अनावेदक के पास चिकित्सा संबंधी कोई दस्तावेज प्रस्तुत नहीं किये हैं, परिवादी का तर्क है कि अनावेदक ने दि.25.10.05 को डिस्चार्ज पेपर रख लिये थे, परंतु परिवादी ने प्रकरण में वह दस्तावेज भी पेश नहीं किये है, जिसके अनुसार परिवादी ने जो शुल्क अभिकथित 10,000रू. इलाज का खर्चा पटाया था जो उसके बिल से संबंधित है।

(8) परिवादी का अभिकथिन है कि तब मरीज को शासकीय चिकित्सालय में भर्ती कराया गया, वहां चार दिन रखा गया, बच्चे के पैर में सुधार नहीं हुआ, पैर गलने लगा तब जिला चिकित्सालय से छुट्टी कराकर डाॅ.कोठारी, हड्डी रोग विशेषज्ञ, प्रियंका काॅपलेक्स में भर्ती कराया गया, जहां बच्चे का पैर गलने लगा था और उस कारण उसके दायें पैर को काटना पड़ा।  डाॅ.कोठारी के अस्पताल में 7 दिन रखा गया, जहां पर परिवादी को 10,000रू. खर्चा आया और वहां से फिर बच्चे को घर लाया गया, जहां बच्चे की स्थिति ठीक नहीं थी, बच्चा खाना नहीं खाता था, मात्र दूध पीता था, इस तरह उसका पूरा भविष्य खराब हो गया।

(9) परिवादी के उपरोक्त अभिकथन से यह स्पष्ट है कि बच्चे का इलाज पहले अनावेदक के अस्पताल में हुआ उसके पश्चात् शासकीय चिकित्सालय में हुआ, जहां वह चार दिन रहा, उसके पश्चात् डाॅ.कोठारी के अस्पताल में सात दिन इलाज चला, इन सब परिस्थितियों में चिकित्सकीय दस्तावेजों के अभाव में यह आंकलन करना उचित नहीं होगा कि मात्र अनावेदक के इलाज के कारण ही बच्चे के पैर में ऐसी स्थिति उत्पन्न हुई कि पैर काटने की नौबत आई, जैसा कि परिवादी का अपने परिवाद पत्र के चरण क्र.4 में अभिकथन है कि बच्चे को अनावेदक के अस्पताल से छुट्टी कराने के दो दिन बाद पता चला की पैर काला पड़ने लगा है तब वे अनावेदक के पास बच्चे को ले गये, परंतु उसके बाद अनावेदक के द्वारा इलाज नहीं किया गया, बल्कि अन्य जगह पर बच्चे का इलाज किया गया।  अतः यह नहीं माना जा सकता कि अनावेदक ने ऐसा इलाज किया कि बच्चे के पैर काटने की स्थिति आ गई।

(10) यदि हम एनेक्चर-4 का अवलोकन करें तो उक्त दस्तावेज डाॅ. मेश्राम द्वारा जारी प्रतिवेदन है, जिसमें यह उल्लेख है कि परिवादी को आहूत किया गया था, परंतु वह उपस्थित नहीं हुआ, अर्थात् परिवादी ने जब विधायक के मार्फत कलेक्टर, दुर्ग को शिकायत की और डाॅ.मेश्राम, कार्यालय मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी, दुर्ग द्वारा एनेक्चर-4 का प्रतिवेदन लिखा गया, उस समय तक परिवादी ने डाॅ.मेश्राम को भी कोई दस्तावेज उपलब्ध नहीं कराये ना ही दुर्ग जिला चिकित्सालय के दस्तावेज उपलब्ध कराये गये और न ही डाॅ.कोठरी से संबंधित दस्तावेज उपलब्ध कराये, परंतु एनेक्चर-4 से यह स्पष्ट होता है कि अनावेदक ने उन्हें दिये गये बयान में यह उल्लेख किया है कि अनावेदक ने अक्टूबर 2005 में कल्याणी नर्सिंग होम में बच्चे को रखा था और बच्चा एनेक्चर-4 में उल्लेखित बीमारियों से पीड़ित था और बच्चे की गंभीर स्थिति को देखते हुए जिला चिकित्सालय या अन्य हायर सेंटर में भर्ती की सलाह दी थी, उक्त प्रतिवेदन में कहीं भी यह उल्लेखित नहीं है कि अनावेदक डाॅ.प्रफुल्ल जैन के गलत इलाज के कारण ही बच्चे के पैर में ऐसी समस्या आई कि पैर को काटना पड़ा।

(11) यद्यपि हम यह सहानभूति रखते हुए यह स्थिति पाते हैं कि एक छोटे से बच्चे के पैर को काटने की नौबत आई, परंतु उसमें पूरी त्रुटि डाॅ.प्रफुल्ल जैन की थी यह साक्ष्य के अभाव में अभिनिर्धारित किया जाना उचित नहीं होगा, क्योंकि जब 10 दिन अनावेदक के अस्पताल में बच्चा था, तब उसके पैर में खराबी नहीं थी, दो दिन डिस्चार्ज के बाद घर में रहा तब पैर में समस्या पाई गई, जिसके पश्चात् अनावेदक डाॅ.प्रफुल्ल जैन ने इलाज नहीं किया, बल्कि अन्य अस्पताल में बच्चे का इलाज हुआ है, अतः यह नहीं माना जा सकता कि अनावेदक डाॅ.प्रफुल्ल जैन ने ही बच्चे का लापरवाहीपूर्वक इलाज किया और उसी कारण बच्चे के पैर में समस्या आई।

(12) उपरोक्त स्थिति में एनेक्चर-4 तथा पल्टन साहू के शपथ पत्र से यह सिद्ध नहीं होता कि इलाज में अनावेदक द्वारा लापरवाही की गई है।  पल्टन साहू का शपथ पत्र इस आशय का है कि वह अपने पुत्र के पुत्र को अनावेदक अस्पताल में उसी दौरान एडमिट किया था, जब परिवादी का पुत्र भी एडमिट था।  उक्त पल्टन साहू ने अपने शपथ पत्र में लिखा है कि नीडिल को ठीक ढंग से नहीं लगाने के कारण बच्चे के पैर में सूजन आ गई और पैर काला पड़ा, जबकि परिवादी का कथन है कि उसका बच्चा 10 दिन अनावेदक के नर्सिंग होम में रहा और छुट्टी कराने के दो दिन बाद बच्चे का पैर काला पड़ने लगा।  इस प्रकार हम पाते हैं कि परिवादी के परिवाद पत्र के चरण क्र.4 और अभिकथित पल्टन साहू के शपथ पत्र में मूलतः विरोधाभास है और इस स्थिति में यह नहीं माना जा सकता कि अनावेदक डाॅ.प्रफुल्ल जैन ने बच्चे का गलत इलाज किया था यदि अस्पताल में ही बच्चे के पैर में सूजन आ जाती, पैर काला पड़ जाता, जैसा कि पल्टन साहू का शपथ पत्र है तो परिवादी बच्चे की हालत उसी समय डाॅक्टर को बताता ना की अस्पताल से छुट्टी करता और दो दिन तक शांत रहता।

(13)  परिवादी के अभिकथन और पल्टन साहू के कथनानुसार दि.13.10.2005 को बच्चे को ग्लूकोज लगा, यदि अनावेदक ने पल्टन साहू के शपथ पत्र के आधार पर दि.13.10.2005 को ग्लूकोस के लिये ठीक ढंग से नीडिल नहीं लगायी तो समस्या दि.13.10.05 से ही शुरू हो जाती और जैसा कि अभिकथन है कि बच्चा 10 दिन तक अनावेदक के अस्पताल में भर्ती रहा, उन दस दिनों में समस्या और भी गंभीर हो जाती और परिवादी बच्चे को डिस्चार्ज कराता नहीं, जबकि परिवादी का तर्क है कि डिस्चार्ज के दो दिन तक बच्चे को घर में रखा गया, तब तक परिवादी ने बच्चे के पैर में समस्या पायी तर्क नहीं किया है। अतः यह नहीं माना जा सकता कि दि.13.10.2005 को नीडिल लगने से बारह दिन बाद कोई समस्या आ सकती थी।

(14) परिवादी ने ना ही अनावेदक के उपचार संबंधी दस्तोवज प्रस्तुत किये हैं न ही यह सिद्ध किया है कि उसने उपचार की राशि अनावेदक को अदा की तथा उस संबंध में उसके बिल प्रस्तुत क्यों नहीं किये? परिवादी ने अनावेदक की चिकित्सा संबंधी दस्तावेज हेतु प्रकरण में अनावेदक को नोटिस टू प्रोड्यूज़ डाक्यूमेंट संबंधी आवेदन भी नहीं दिया है।  एनेक्चर-4 से सिद्ध होता है कि बच्चे को और भी बीमारियां थी, परिवादी द्वारा विधायक के मार्फत कलेक्टर, दुर्ग को शिकायत की गई है, अतः यह नहीं माना जा सकता कि परिवादी इस बात से अनभिज्ञ था कि उसे अनावेदक से दस्तावेज प्राप्त करने हेतु अन्य विकल्प प्राप्त हैं।

(15) अनावेदक द्वारा आपत्ति ली गई है कि दावा समयावधि से बाधित है, क्योंकि अभिकथित इलाज सन् 2005 का है, जिसका परिवादी ने यह बचाव लिया है कि उसे दि.19.07.2011 को जांच अधिकारी द्वारा प्रतिवेदन के पश्चात् वाद कारण प्रस्तुत हुआ। परिवादी के इस तर्क से हम सहमत नहीं है, क्योंकि प्रशासनिक जांच का मुद्दा अलग है और इस अधिनियम के अंतर्गत समय सीमा का निर्धारण अलग बिन्दुओं के आधार पर किया जाता है। फलस्वरूप हम जहां एक ओर अनावेदक द्वारा लापरवाहीपूर्वक इलाज किये जाने का कृत्य नहीं पाते हैं, वहीं परिवादी का दावा समयावधि बाधित मानते है।

(16) फलस्वरूप हम अनावेदक के विरूद्ध इलाज में लापरवाही कर सेवा में निम्नता का अनावेदक को दोषी नहीं पाते हैं और दावा समयावधि बाधित होना पाते हुए दावा खारिज करते हैं।

(17) प्रकरण के तथ्य एवं परिस्थितियों को देखते हुए पक्षकार अपना-अपना वाद व्यय स्वयं वहन करेंगे।

 

 

 

 
 
[HON'BLE MRS. मैत्रेयी माथुर्]
PRESIDENT
 
[HON'BLE MRS. शुभा सिंह]
MEMBER

Consumer Court Lawyer

Best Law Firm for all your Consumer Court related cases.

Bhanu Pratap

Featured Recomended
Highly recommended!
5.0 (615)

Bhanu Pratap

Featured Recomended
Highly recommended!

Experties

Consumer Court | Cheque Bounce | Civil Cases | Criminal Cases | Matrimonial Disputes

Phone Number

7982270319

Dedicated team of best lawyers for all your legal queries. Our lawyers can help you for you Consumer Court related cases at very affordable fee.