Uttar Pradesh

StateCommission

RP/88/2017

M/S Supertech Ltd - Complainant(s)

Versus

Dr. Naresh Kumar - Opp.Party(s)

I.P.S. Chaddha

23 Mar 2022

ORDER

STATE CONSUMER DISPUTES REDRESSAL COMMISSION, UP
C-1 Vikrant Khand 1 (Near Shaheed Path), Gomti Nagar Lucknow-226010
 
Revision Petition No. RP/88/2017
( Date of Filing : 16 Jun 2017 )
(Arisen out of Order Dated 20/04/2017 in Case No. c/214/2016 of District Mainpuri)
 
1. M/S Supertech Ltd
Lucknow
...........Appellant(s)
Versus
1. Dr. Naresh Kumar
Mainpuri
...........Respondent(s)
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. Vikas Saxena PRESIDING MEMBER
 HON'BLE MRS. DR. ABHA GUPTA MEMBER
 
PRESENT:
 
Dated : 23 Mar 2022
Final Order / Judgement

राज्‍य उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।

                                                      (सुरक्षित)

पुनरीक्षण सं0 :- 88/2017

(जिला उपभोक्‍ता आयोग, मैनपुरी द्वारा परिवाद सं0-214/2016 में पारित निर्णय/आदेश दिनांक 20/04/2017 के विरूद्ध)

 

M/S Supertech Limited, having its Registered Office at 1114-Hemkunt Chambers, 89-Nehru Place, New Delhi-110019 and having its Branch Office at The Lounge, Ground Floor, Eldeco Corporate Chamber-1, Vibhuti Khand, Gomti Nagar, Lucknow.

 

  1.                                                                           Revisionist

Versus

 

  1.  Dr. Narvesh Kumar, Son of Mr. Rajpal Singh, presently residing at Avas Vikas Colony, Mainpuri-205001.
  2.   M/S Helios Developers, having its Head Office at A-8, 2nd Floor, Sector 9, Gautam Budh Nagar, Noida-201301 and having its Regional Office at 608, 6th Floor, Ratan Square, New Burlington Chauraha, Vidhan Sabha Marg, Lucknow.  

           

  •        Opp. Parties    

समक्ष

  1. मा0 श्री विकास सक्‍सेना, सदस्‍य
  2. मा0 डा0 आभा गुप्‍ता,    सदस्‍य

उपस्थिति:

पुनरीक्षणकर्ता की ओर से विद्वान अधिवक्‍ता:-श्री आई0पी0एस0 चडढा

विपक्षीगण की ओर से विद्वान अधिवक्‍ता:- कोई नहीं ।

दिनांक:-

माननीय श्री विकास सक्‍सेना, सदस्‍य द्वारा उदघोषित

  •      
  1.        यह निगरानी अंतर्गत धारा 17 उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम 1986 जिला उपभोक्‍ता फोरम, मैनपुरी द्वारा परिवादी सं0 214/2016 डॉक्‍टर नर्वेश कुमार प्रति मेसर्स सुपरटेक लिमिटेड तथा अन्‍य में पारित आदेश दिनांकित 20.04.2017 से व्‍यथित होकर प्रस्‍तुत की गयी है।
  2.       मामले के तथ्‍य इस प्रकार हैं कि परिवादी ने एक परिवाद जिला उपभोक्‍ता फोरम, मैनपुरी में सेवा में कमी तथा अनुचित व्‍यापार पद्धति आक्षेपित करते हुए योजित किया कि परिवादी ने विपक्षी के सेक्‍टर 16बी ग्रेटर नोएडा के ईको विलेज के प्रोजेक्‍ट में निवेश किया था तथा परिवादी द्वारा प्री बुकिंग फार्म पर हस्‍ताक्षर करके प्रेषित किया। परिवादी को यह वादा किया गया था कि रूपये 3095/- प्रति स्‍क्‍वायर फीट के हिसाब से प्रश्‍नगत यूनिट का मूल्‍य लिया जायेगा तथा 10 प्रतिशत मूल्‍य की अदायगी के उपरान्‍त यूनिट कन्‍फर्म की जायेगी। परिवादी द्वारा रूपये 5,98,500/- आरटीजीएस वाइड चेक सं0 285287 के माध्‍यम से दिया गया। विपक्षी की ओर से क्षेत्राधिकार पर प्रश्‍न उठाया गया। अपीलकर्ता के अनुसार परिवाद मैनपुरी में लाया गया, जबकि अपीलकर्ता का ऑफिस गौतबुद्ध नगर, नोएडा  में स्थित है तथा दोनों पक्षों के मध्‍य पत्राचार नई दिल्‍ली तथा नोएडा से हुई। प्रश्‍नगत प्रोजेक्‍ट मैनपुरी में स्थित नहीं है। इसके वाद का कारण किसी प्रकार से मैनपुरी में उत्‍पन्‍न नहीं होता है। इस आधार पर प्राथमिक आपत्ति अपने वादोत्‍तर के माध्‍यम से पुनरीक्षणकर्ता ने उठायी, जिसमें यह निर्णीत किया गया कि जब अंत पत्रावली पर दोनो पक्षों के साक्ष्‍य पूर्ण न हो जायें तब तक पत्रावली का निस्‍तारण नहीं किया जा सकता। ऐसी स्थिति में प्रार्थना पत्र सं0 36 का निस्‍तारण परिवाद के निस्‍तारण के साथ किया जायेगा, जिससे व्‍यथित होकर यह निगरानी प्रस्‍तुत की गयी है।
  3.     निगरानी में मुख्‍य रूप से यह आधार लिये गये हैं कि धारा 11 उपभोक्‍ता अधिनियम 1986 के अनुसार परिवाद मैनपुरी में पोषणीय नहीं है और यह आरंभिक रूप से निरस्‍त हो जानी चाहिए थी। अपीलार्थी के प्राथमिक आपत्ति के माध्‍यम से वाद निस्‍तारण तुरंत ही हो जाना चाहिए था,  किन्‍तु विद्धान जिला उपभोक्‍ता फोरम ने वाद का निस्‍तारण नहीं किया है तथा क्षेत्राधिकार न होने के बावजूद वाद का निस्‍तारण करने की हठधर्मिता की है। अत: प्रश्‍नगत आदेश क्षेत्राधिकार से बाहर है, इस आधार पर  निगरानी प्रस्‍तुत की गयी है।
  4.       निगरानी दिनांक 30.06.2017 को योजित की गयी। प्रत्‍यर्थी सं0 2 पर नोटिस प्रेषित की गयी। प्रत्‍यर्थी की आख्‍या आयी अत: तामील पर्याप्‍त मानी गयी। प्रत्‍यर्थी सं0 1 के संबंध में कथन किया गया कि वे औपचारिक पक्षकार हैं। अत: दिनांक 23.03.2022 को निरीक्षणकर्ता के विद्धान अधिवक्‍ता श्री आई0पी0एस0 चड़ढा की बहस को सुना।
  5.      निगरानी के अवलोकन से स्‍पष्‍ट होता है कि निगरानीकर्ता द्वारा दिये गये प्रार्थना पत्र जिसमें विद्धान जिला उपभोक्‍ता फोरम मैनपुरी का क्षेत्राधिकार न होने के संबंध मे आवेदन किया गया था एवं इस आधार पर आरंभ में ही परिवाद निरस्‍त किये जाने की प्रार्थना की गयी थी, को वाद               के निस्‍तारण के साथ स्‍थगित करते हुए प्रश्‍नगत आदेश पारित किया गया है जो निम्‍नलिखित प्रकार से है:-
    • पक्षकारों को सुना। प्रस्‍तुत प्रकरण में विपक्षी सं0 2 का साक्ष्‍य दाखिल नहीं हुआ। ऐसी स्थिति में जब तक पत्रावली पर दोनों पक्षों का साक्ष्‍य पूर्ण न हो जाये तब तक पत्रावली का निस्‍तारण नहीं किया जा सकता। ऐसी स्थिति में विपक्षी सं0 1 के द्वारा प्रस्‍तुत प्रार्थना पत्र कागज सं0-36 का निस्‍तारण परिवाद के निस्‍तारण के समय किया जावेगा।

पत्रावली विपक्षी सं0 2 पर तामील/पक्षकारों के जवाब हेतु दिनांक 15.05.2017 को पेश हो।‘’

  1.        उक्‍त आदेश के अवलोकन से स्‍पष्‍ट होता है कि क्षेत्राधिकार होना अथवा न होने का बिन्‍दु वाद के अंतिम चरण पर निर्णीत किये जाने का आदेश ही पारित किया गया। यदि विद्धान जिला उपभोक्‍ता फोरम मैनपुरी को क्षेत्राधिकार द्वारा अपना क्षेत्राधिकार नहीं पाया जाता है तो इसी आधार पर वाद उस चरण पर भी निस्‍तारित हो सकता है। इस प्रकार प्रश्‍नगत आदेश से पक्षकारों के अधिकार अंतिम रूप से निस्‍तारित नहीं किये गये हैं। अत: यह आदेश मात्र अंतर्वर्तीय आदेश हैं एवं पक्षकारों के अधिकार अंतिम रूप से निस्‍तारित नहीं करता है क्‍योंकि क्षेत्राधिकार का पत्र तथा बिन्‍दु मात्र वाद के अंतिम चरण पर निस्‍तारित करने का आदेश दिया गया है।
  2.     इस संबंध में माननीय सर्वोच्‍च न्‍यायालय द्वारा पारित निर्णय सूर्य देव राय प्रति राम चन्‍द्र राय एआईआर 2003 एससी पृष्‍ठ 3044 का उल्‍लेख करना उचित होगा, जिसमें यह निर्णीत किया गया है कि अंतर्वर्तीय आदेश जो पक्षकारों के अधिकार अंतिम रूप से निस्‍तारित नहीं करती है उनके विरूद्ध पुनरीक्षण पोषणीय नहीं होता है। इस निर्णय को पुन: माननीय सर्वोच्‍च न्‍यायालय द्वारा निर्णय सेन्‍ट्रल बैंक ऑफ इण्डिया प्रति श्री गोकुल चन्‍द प्रकाशित एआईआर 1967 पृष्‍ठ 799 में भी दिया गया है, जिसमें यह निर्णीत किया गया है कि अंतर्वर्तीय आदेश के विरूद्ध पुनरीक्षण पोषणीय नहीं है।
  3.      माननीय सर्वोच्‍च न्‍यायालय द्वारा निर्णय गायत्री देवी प्रति शशिपाल सिंह एआईआर 2005 सुप्रीमकोर्ट पृष्‍ठ 342 में इस सिद्धांत को पुन: दोहराया गया एवं यह निर्णीत किया गया कि ऐसे अंतवर्तीय आदेश जो अंतिम रूप से पक्षकारों के अधिकार निस्‍तारित नहीं करते हैं उनके विरूद्ध पुनरीक्षण पोषणीय नहीं होता है।
  4.     माननीय सर्वोच्‍च न्‍यायालय के उपरोक्‍त निर्णयों को अनुश्ररित करते हुए यह पीठ इस मत की है कि प्रश्‍नगत आदेश के विरूद्ध निगरानी पोषणीय नहीं है। निगरानीकर्ता जिला उपभोक्‍ता फोरम के समक्ष परिवाद के अंतिम    चरण पर अपने तर्क एवं पक्ष रख सकते हैं एवं यदि जिला उपभोक्‍ता फोरम उस स्‍तर पर क्षेत्राधिकार का न होना पाता है तो उसी आधार पर भी वाद  का निस्‍तारण हो सकता है। उपरोक्‍त निष्‍कर्ष के आधार पर निगरानी पोषणीय न होने के कारण निरस्‍त किये जाने योग्‍य है।

 

  •  

 

निगरानी निरस्‍त की जाती है। उभय पक्ष जिला आयोग, मैनपुरी के समक्ष परिवाद में अग्रिम कार्यवाही हेतु दिनांक 24.05.2022 को उपस्थित हों।   

                  आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय/आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।

 

       (विकास सक्‍सेना)                         (डा0 आभा गुप्‍ता)

          सदस्‍य                                 सदस्‍य

 

         संदीप, आशु0 कोर्ट नं0-3

 

 

 

 

 
 
[HON'BLE MR. Vikas Saxena]
PRESIDING MEMBER
 
 
[HON'BLE MRS. DR. ABHA GUPTA]
MEMBER
 

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