Mukut Bihari Mevada filed a consumer case on 30 Sep 2015 against Dr. Manmohan Mantri in the Kota Consumer Court. The case no is CC/28/2011 and the judgment uploaded on 12 Oct 2015.
मुकुट बिहारी मेवाडा बनाम डा. मोहन मंत्री एवं नेशनल इं. क. लि.
परिवाद संख्या 28/2011
30.9.2015
दानों पक्षों को सुना जा चुका ह,ै पत्रावली का अवलोकन किया गया।
प्रिवादी ने विपक्षीगण का संक्षेप में यह दोष बताया है कि दुर्घटना में चोट लगने के कारण वह 02.01.2010 को विपक्षी डा. मोहन मंत्री के निजी अस्पताल(आकांक्षा आॅर्थाेपेडिक सेंटर, कोटा) में भर्ती हुआ। विपक्षी ने चैक करके कूल्हे की हड्डी का फ्रेक्चर बताया, जिसका आॅपरेशन करने की सलाह दी एवं आॅपरेशन किया। उसे 07.01.2010 तक अस्पताल में भर्ती रखा। 19.01.10 को उसके टाॅके काटे कुछ एक्सरसाइज करने की सलाह दी। 10.02.10 को चैक करके बताया कि हड्डी जुड़ गयी है काफी सुधार है। परिवादी ने दर्द होने पर 21.02.10 को दिखाया तब दवाई लिख दी। बार-बार चैकअप के लिये बुलाया लेकिन उसके दर्द में कमी नहीं हुयी। दिनांक 04.05.2010 को विपक्षी चिकित्सक ने जाॅंच कर बताया कि हड्डी ठीक से नहीं जुडी है दुबारा आॅपरेशन करने की सलाह दी। इस पर परिवादी ने 08.05.10 को डाॅ. आर.पी. मीणा को दिखाया। 09.05.10 को डा. एन.के. गुप्ता को दिखाया जिन्होने बताया की गलत आॅपरेशन के कारण पैर मंे खून का संचार नहीं हो रहा है तुरन्त आॅपरेशन की आवश्यकता है। दिनांक 17.05.10 को डा. जसवंत सिंह को दिखाया, उन्होने बताया की आॅपरेशन वाले हिस्से में पस पड़ गया है समय पर पुनः आॅपरेशन नहीं हुआ तो जीवन को खतरा हो सकता है। अन्य विशेषज्ञ ने भी बताया कि स्थिति गंभीर हो गयी है आॅपरेशन होना है जो अहमदाबाद में कराओ। इस सलाह पर अहमदाबाद में डा. दीलीप पटेल को दिखाया, जिन्होने 07.06.2010 को आॅपरेशन किया एवं 16.06.2010 को डिस्चार्ज किया। तब से कोई तकलीफ नहीं है। विपक्षी चिकित्सक ने सही समय पर उचित इलाज नहीं किया धोखे में रखकर व विश्वास में लेकर रूटीन चैकअप के बहाने बार-बार बुलाते रह,े उसकी तकलीफ पर ध्यान नहीं दिया, इसी कारण परेशानी बढ़ी आगे इलाज कराने में काफी खर्चा, शारीरिक तकलीफ एवं मानसिक पीड़ा हुयी है।
विपक्षी चिकित्सक के जवाब का सार है कि वह अस्थि-रोग का विशेषज्ञ, योग्य, दक्ष एवं अनुभवी चिकित्सक है उसने परिवादी का कुशलता से सफल आॅपरेशन किया है, कोई लापरवाही नहीं की है। दर्द होने के कई कारण होते हैं। स्वयं रोगी की परिस्थिति व आॅपरेशन के उपरान्त उसके द्वारा सावधानी नहीं रखने से भी परेशानी होती है। रोगी की परिस्थिति उम्र चोट की प्रकृति आदि पर पुनः आॅपरेशन निर्भर होता है। हड्डी खिसकना, रक्त संचार प्रभावित होना, पस पड़ना या स्क्रू ढीला होना आदि चिकित्सक की लापरवाही के कारण नहीं होते हैं, अन्य अनेक
परिस्थितियों पर निर्भर करता है। उसने ग्रुप पोलिसी ले रखी है, उसके किसी भी दायित्व को वहन करने की जिम्मेदारी नेशनल इंश्योरंेस क. ने ले रखी है जो आवश्यक पक्षकार है।
परिवादी ने नेशनल इंश्योरेंस क. को भी पक्षकार बनाया। उसकी ओर से प्रस्तुत जवाब का सार है कि आकांक्षा आॅर्थोपेडिक सेंटर की कोई बीमा पोलिसी उनके द्वारा जारी नहीं की गयी है। पोलिसी, मेडिकल डिफेंस सोसायटी के पक्ष में जारी की गयी जिसमें विपक्षी चिकित्सक के अस्पताल में किया गया इलाज कवर नहीं होता है तथा उसके लिये विपक्षी बीमा कम्पनी उत्तरदायी नहीं है। परिवाद में विपक्षी कम्पनी का कोई दोष नहीं बताया है।
परिवादी ने साक्ष्य में अपने शपथ-पत्र के अलावा डाॅ. दिलीप पटेल के ईलाज से संबंधित दस्तावेज व विपक्षी चिकित्सक को प्रेषित लीगल नोटिस आदि की प्रति प्रस्तुत की है।
विपक्षी चिकित्सक ने साक्ष्य में अपने शपथ-पत्र के अलावा उसके अस्पताल में परिवादी के भर्ती, आॅपरेशन व इलाज से संबंधित दस्तावेज की प्रतियाॅं प्रस्तुत की हैं। विपक्षी बीमा कम्पनी ने प्रबंधक अजय शर्मा के शपथ-पत्र के अलावा पोलिसी की प्रति एवं मेडिकल डिफेन्स सोसायटी 2011-12 की सूची प्रस्तुत की है।
हमने दोनों पक्षों की बहस सुनी पत्रावली देखी। विपक्षी बीमा कम्पनी को इसलिये पक्षकार बनाया गया है कि उसके द्वारा जारी की गयी पोलिसी के अनुसार विपक्षी चिकित्सक के किसी दायित्व को वहन करने का उत्तरदायित्व विपक्षी बीमा कम्पनी का ह,ै लेकिन पोलिसी की प्रति से यह स्पष्ट होता है कि मेडिकल डिफेन्स सोसायटी को संलग्न 164 चिकित्सकों की सूची के विवरण के अनुसार 17.03.2009 से 16.03.2010 की अवधि के लिये बीमीत किया गया हैै। लेकिन हमारे समक्ष सोसायटी के चिकित्सकों की उक्त अवधि की कोई सूची पेश नहीं की गयी है जो सूची प्रस्तुत की है वह 2011-12 की है। जबकि विवाद दिनांक 03.01.10 को डा. मोहन मंत्री द्वारा किये गये आॅपरेशन व उसके पश्चात इलाज एवं देख-रेख में लापरवाही से संबंधित है। इसलिये हम पाते हेैं कि विपक्षी बीमा कम्पनी के दायित्व उत्पन्न होने के संबंध में आवश्यक साक्ष्य प्रस्तुत नहीं की गयी है।
जहाॅं तक विपक्षी चिकित्सक मोहन मंत्री द्वारा आॅपरेशन एवं उसके पश्चात ईलाज एवं देख-रेख में लापरवाही किये जाने का प्रश्न है, इसके निर्धारण की कसौटी यह है कि क्या विपक्षी चिकित्सक हड्डी-रोग के ईलाज के लिये वांछित सामान्य स्तर का ज्ञान, अनुभव, योग्यता एवं दक्षता नहीं रखता था। एवं क्या उसने परिवादी के आॅपरेशन एंव उसके पश्चात् ईलाज या देख-रेख में सामान्य स्तर की वांछित सावधानी नहीं बरती हमारे समक्ष परिवादी ने उक्त दोनों बिन्दुओं की पुष्टि हेतु कोई साक्ष्य प्रस्तुत नहीं की है। विपक्षी चिकित्सक ने शपथ पर प्रकट किया है कि वह हड्डी-रोग विषय में एम.एस. किया हुआ है तथा पूरी तरह योग्य, दक्ष एवं कुशल चिकित्सक है। 26-27 वर्षों से हड्डी-रोग के संबंध में विशेषज्ञ सेवायें दे रहा हैं। विपक्षी की योग्यता,दक्षता, कुशलता, विशेषज्ञता एवं अनुभव को परिवादी ने चुनौती नहीं दी है न ही खण्डन किया है। इसी प्रकार विपक्षी चिकित्सक ने शपथ पर कहा है कि उसने परिवादी का आॅपरेशन पूरी कुशलता, सावधानी एवं दक्षता से किया, कोई लापरवाही या उपेक्षा नहीं की। पुनः आॅपरेशन की आवश्यकता मात्र को किसी चिकित्सक की लापरवाही नहीं माना जा सकता। पुनः आॅपरेशन की आवश्यकता अन्य कारणांे पर निर्भर करती है। परिवादी ने अन्य कई चिकित्सकों को दिखाना व अहमदाबाद में ईलाज कराना बताया है। लेकिन ऐसी कोई साक्ष्य प्रस्तुत नहीं की है कि किसी अन्य विशेषज्ञ-चिकित्सक ने उसके द्वारा परिवादी के किये गये आॅपरेशन में कोई कमी, लापरवाही या दोष बताया हो। परिवादी ने अहमदाबाद मेें भी अपनी मर्जी से उसके द्वारा किये गये आॅपरेशन के लगभग पाॅंच माह बाद अन्य आॅपरेशन कूल्हे के बदलवाने का कराया है।
परिवादी ने विपक्षी के द्वारा आॅपरेशन में लापरवाही करने या बाद में देख-रेख में लापरवाही करने के संबंध में लेस मात्र भी साक्ष्य प्रस्तुत नहीं की है परिवाद में जिन अन्य चिकित्सकों को दिखाना बताया है उनकी कोई राय, रिपोर्ट या शपथ-पत्र प्रस्तुत नहीं की गयी है। अहमदाबाद में जिस चिकित्सक से कूल्हे को बदलवाने का आॅपरेशन कराया, उसकी भी ऐसी कोई राय, रिपोर्ट या शपथ-पत्र प्रस्तुत नहीं किया गया है जिससे यह सिद्ध होना माना जावे कि दिनांक 03.01.10 को विपक्षी चिकित्सक द्वारा किये गये आॅपरेशन या उसके बाद के ईलाज में कोई कमी, लापरवाही या दोष किया गया हो।
उपरोक्त विवेचन के फलस्वरूप हम इस निष्कर्ष पर आते हैं कि परिवादी यह सिद्ध करने में विफल रहा है कि विपक्षी चिकित्सिक मोहन मंत्री ने उसके आॅपरेशन या उसके पश्चात् ईलाज एवं देख-रेख में कोई लापरवाही की, इसलिये परिवाद खारिज होने योग्य है। अतः परिवाद खारिज किया जाता है। आदेश खुले मंच में सुनाया गया। पत्रावली फैसल शुमार होकर रिकार्ड में जमा हो।
(हेमलता भार्गव) (महावीर तॅंवर) (भगवान दास)
सदस्य सदस्य अध्यक्ष
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