Uttar Pradesh

StateCommission

A/3143/2017

Canara Bank - Complainant(s)

Versus

Dr. Lalmani Dubey - Opp.Party(s)

Sarvesh Kumar Sharma

26 Aug 2019

ORDER

STATE CONSUMER DISPUTES REDRESSAL COMMISSION, UP
C-1 Vikrant Khand 1 (Near Shaheed Path), Gomti Nagar Lucknow-226010
 
First Appeal No. A/3143/2017
( Date of Filing : 21 Nov 2017 )
(Arisen out of Order Dated 24/06/2017 in Case No. C/185/2015 of District Sultanpur)
 
1. Canara Bank
Varanasi
...........Appellant(s)
Versus
1. Dr. Lalmani Dubey
Sultanpur
...........Respondent(s)
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. JUSTICE AKHTAR HUSAIN KHAN PRESIDENT
 
For the Appellant:
For the Respondent:
Dated : 26 Aug 2019
Final Order / Judgement

राज्‍य उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।

(सुरक्षित)                                                                                  

अपील संख्‍या:-3143/2017

(जिला फोरम, सुलतानपुर द्धारा परिवाद सं0-185/2015 में पारित निर्णय/आदेश दिनांक 24.6.2017 के विरूद्ध)

1-    Canara Bank, Trade Center Makbulganj, 3rd Floor Varanasi, through its Branch Manager.

2-    Canara Bank, 112 G.C. Road Bangalore, Karnataka, through its President/Chairman.

                                              ........... Appellants/ Opp. Parties

Versus    

Dr. Lal Mani Dubey, S/o Bhagwan Dubey, Ghasipur Post Lohramau, Police Station Kotwali Dehat, District Sultanpur.

       …….. Respondent/ Complainant

 

समक्ष :-

मा0 न्‍यायमूर्ति श्री अख्‍तर हुसैन खान, अध्‍यक्ष 

अपीलार्थीगण के अधिवक्‍ता : श्री सर्वेश कुमार शर्मा

प्रत्‍यर्थी के अधिवक्‍ता      : श्री शिव प्रताप दि्ववेदी

दिनांक 27-01-2020

मा0 न्‍यायमूर्ति श्री अख्‍तर हुसैन खान, अध्‍यक्ष द्वारा उदघोषित

निर्णय   

परिवाद संख्‍या-185/2015 डॉ0 लालमणि दूबे बनाम शाखा प्रबन्‍धक केनरा बैंक ट्रेड सेंटर व दो अन्‍य में जिला फोरम, सुलतानपुर द्वारा पारित निर्णय और आदेश दिनांक 24.6.2017 के विरूद्ध यह अपील धारा-15 उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम, 1986 के अन्‍तर्गत राज्‍य आयोग के समक्ष प्रस्‍तुत की गई है।

आक्षेपित निर्णय और आदेश के द्वारा जिला फोरम ने परिवाद आंशिक रूप से स्‍वीकार करते हुए निम्‍न आदेश पारित किया है:-

-2-

“परिवादी का वाद विपक्षी के विरूद्ध आंशिक रूप से स्‍वीकार किया जाता है। विपक्षी को आदेशित किया जाता है कि वह परिवादी को निर्णय की तिथि से तीस दिन के अन्‍दर रू0 20,000.00 मय ब्‍याज 07 प्रतिशत वार्षिक साधारण ब्‍याज की दर से दिनांक 24.12.2013 से वास्‍तविक‍ अदायगी तक अदा करेगा। इसके अलावा मानसिक व आर्थिक क्षति के मद में रू0 1000.00 व रू0 500.00 वाद व्‍यय के रूप में अदा करेगा।”

जिला फोरम के निर्णय व आदेश से क्षुब्‍ध होकर परिवाद के विपक्षीगण ने यह अपील प्रस्‍तुत की है।

अपील की सुनवाई के समय अपीलार्थीगण की ओर से विद्वान अधिवक्‍ता श्री सर्वेश कुमार शर्मा और प्रत्‍यर्थी की ओर से विद्वान अधिवक्‍ता श्री शिव प्रताप दि्ववेदी उपस्थित आये हैं।

मैंने उभय पक्ष के विद्वान अधिवक्‍तागण के तर्क को सुना है और आक्षेपित निर्णय एवं आदेश तथा पत्रावली का अवलोकन किया है।

अपील के निर्णय हेतु संक्षिप्‍त सुसंगत तथ्‍य इस प्रकार है कि प्रत्‍यर्थी/परिवादी ने परिवाद जिला फोरम के समक्ष अपीलार्थी/विपक्षीगण के विरूद्ध इस कथन के साथ प्रस्‍तुत किया है कि उसका एस0बी0 एकाउण्‍ट सं0-1749101058722 केनरा बैंक शाखा सुलतानपुर में है और दिनांक 22.01.2014 को जब वह अपने इस खाते की पासबुक अपडेट कराने गया तो पता चला कि उसके

-3-

उपरोक्‍त खाते से किसी व्‍यक्ति ने ए0टी0एम0 का प्रयोग करते हुए दिनांक 24.12.2013 को दस-दस हजार रूपये दो बार में, दिनांक 01.01.2014 को दस-दस हजार रूपये दो बार में और दिनांक 07.01.2014 को नौ हजार रूपये एक बार में कुल 49,000.00 रू0 निकाल लिया है। जबकि उसे ए0टी0एम0 कार्ड बैंक द्वारा जारी ही नहीं किया गया है और न ही उसे इस प्रकार के विड्रॉल की आवश्‍यकता थी।

परिवाद पत्र के अनुसार प्रत्‍यर्थी/परिवादी ने सूचना केनरा बैंक की शाखा सुलतानपुर के शाखा प्रबन्‍धक को दी और उनसे सी.सी.टी.वी. फुटेज की मॉग की। परन्‍तु अपीलार्थी/विपक्षी बैंक द्वारा कोई कार्यवाही नहीं की गई। तब दिनांक 27.12.2014 को उसने रजिस्‍टर्ड डाक से घटना की पूरी सूचना पुलिस अधीक्षक सुलतानपुर को प्रेषित किया।

परिवाद पत्र के अनुसार प्रत्‍यर्थी/परिवादी का कथन है कि उपरोक्‍त घटना के बाद वह लगातार अपीलार्थी/विपक्षी बैंक की शाखा सुलतानपुर के प्रबन्‍धक के सम्‍पर्क में रहा। इस बीच दिनांक 30.01.2014 को शाखा प्रबन्‍धक ने बताया कि उसके खाते में दिनांक 07.01.2014 को आहरित 9,000.00 रू0 वापस आ गया है। उन्‍होंने बताया कि ए0टी0एम0 के असफल संचालन के कारण यह रूपया निकल नहीं पाया था, इसलिए वापस आ गया है। उसके बाद भी प्रत्‍यर्थी/परिवादी बैंक से आवश्‍यक पूंछताछ करता रहा। परन्‍तु उसे

-4-

कोई सी0सी0टी0वी0 फुटेज उपलब्‍ध नहीं कराया गया और कोई जानकारी नहीं दी गई।  उसने बैंक लोकपाल कानपुर को फैक्‍स किया और अपीलार्थी बैंक के हैड ऑफिस बंगलूर को रजिस्‍टर्ड डाक से सूचित किया परन्‍तु कोई परिणाम नहीं मिला। बैकिंग लोकपाल ने पत्र दिनांक 11.3.2015 के द्वारा दिनांक 10.01.2014 के 20,000.00 रू0 के विड्राल को प्रत्‍यर्थी/परिवादी के पक्ष में अवार्ड किया और दिनांक 07.01.2014 को आहरित धनराशि 9,000.00 रू0 असफल संचाल के कारण उसके खाते में क्रेडिट किया जा चुका है, परन्‍तु शेष धनराशि 20,000.00 रू0 का भुगतान अपीलार्थी/विपक्षीगण के बैंक ने उसे नहीं किया है। अत: क्षुब्‍ध होकर उसने परिवाद जिला फोरम के समक्ष प्रस्‍तुत किया है।

जिला फोरम के समक्ष अपीलार्थी/विपक्षीगण की ओर से कोई उपस्थित नहीं हुआ है और लिखित कथन प्रस्‍तुत नहीं किया गया है।  अत: जिला फोरम ने एक पक्षीय रूप से कार्यवाही अपीलार्थी/विपक्षीगण के विरूद्ध की है और आक्षेपित निर्णय और आदेश पारित किया है।

अपीलार्थीगण के विद्वान अधिवक्‍ता का तर्क है कि जिला फोरम द्वारा पारित निर्णय और आदेश एक पक्षीय रूप से अपीलार्थीगण पर नो‍टिस का तामीला पर्याप्‍त हुए बिना पारित किया गया है। अपीलार्थीगण के विद्वान अधिवक्‍ता का यह भी तर्क है कि बैकिंग लोकपाल ने अवार्ड दिनांक 11.3.2015 एक पक्षीय रूप से

-5-

पारित किया है। फिर भी बैंक ने लोकपाल द्वारा आदेशित धनराशि प्रत्‍यर्थी/परिवादी के खाते में जमा कर दी है। 

अपीलार्थीगण के विद्वान अधिवक्‍ता का तर्क है कि जिला फोरम ने मात्र परिवाद पत्र के कथन के आधार पर यह स्‍वीकार कर लिया है कि ए0टी0एम0 कार्ड प्रत्‍यर्थी/परिवादी को जारी नहीं किया गया है। ए0टी0एम0 कार्ड प्रत्‍यर्थी/परिवादी को जारी न किये जाने का कोई साक्ष्‍य नहीं है। जिला फोरम का निर्णय दोषपूर्ण है और निरस्‍त किये जाने योग्‍य है।

अपीलार्थीगण के विद्वान अधिवक्‍ता का तर्क है कि वर्तमान परिवाद में स्‍टेट बैंक ऑफ इण्डिया आवश्‍यक पक्षकार है क्‍योंकि ए0टी0एम0 भारतीय स्‍टेट बैंक ऑफ इण्डिया का रहा है। अत: वर्तमान परिवाद में आवश्‍यक पक्षकार न बनाये जाने का दोष भी है। अपीलार्थीगण के विद्वान अधिवक्‍ता का यह भी तर्क है कि प्रत्‍यर्थी/परिवादी उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनिमय के अन्‍तर्गत अपीलार्थी बैंक का उपभोक्‍ता नहीं है।

अपीलार्थीगण के विद्वान अधिवक्‍ता का यह भी तर्क है कि विवाद में तथ्‍य और विधि के जटिल प्रश्‍न निहित है। अत: इस आधार पर भी विवाद उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम के अन्‍तर्गत चलने योग्‍य नहीं है।

प्रत्‍यर्थी/परिवादी के विद्वान अधिवक्‍ता का तर्क है कि जिला फोरम द्वारा पारित निर्णय और आदेश तथ्‍य और विधि के अनुकूल

-6-

है। अपीलार्थी द्वारा प्रस्‍तुत अपील बलरहित है और निरस्‍त किये जाने योग्‍य है।

मैंने उभय पक्ष के तर्क पर विचार किया है।

प्रत्‍यर्थी/परिवादी का अपीलार्थी बैंक में परिवाद पत्र  में कथित सेविंग बैंक एकाउण्‍ट है इस बात से अपीलार्थी बैंक ने इंकार नहीं किया है। अत: प्रत्‍यर्थी/परिवादी अपीलार्थी बैंक का उपभोक्‍ता है यह तथ्‍य अविवादित है। प्रत्‍यर्थी/परिवादी का कथन है कि अपलार्थी बैंक के उसके परिवाद पत्र में कथित खाते का ए0टी0एम0 कार्ड जारी नहीं किया गया है, फिर भी उसके खाते से प्रश्‍नगत 20,000.00 रू0 की धनराशि ए0टी0एम0 कार्ड के द्वारा निकाली गई है। प्रत्‍यर्थी/परिवादी को ए0टी0एम0 कार्ड जारी नहीं किया गया है प्रत्‍यर्थी/परिवादी ने इस संदर्भ में सशपथ कथन शपथपत्र के माध्‍यम से किया है और परिवाद पत्र में भी यह कथन किया है। अत: प्रत्‍यर्थी/परिवादी को ए0टी0एम0 कार्ड जारी किया गया है यह साबित करने का भार अपीलार्थी बैंक पर है। बैंक के पास ही उसके बचत खाते व उससे सम्‍बन्धित ए0टी0एम0 कार्ड का अभिलेख हो सकता है। अत: बैंक अपने अभिलेख के माध्‍यम से यह प्रमाणित कर सकता है कि प्रत्‍यर्थी/परिवादी को ए0टी0एम0 कार्ड जारी किया गया है, परन्‍तु अपीलार्थी बैंक ने न तो स्‍पष्‍ट रूप से कहा है कि प्रत्‍यर्थी/परिवादी को ए0टी0एम0 कार्ड जारी किया गया है न ही इस सम्‍बन्‍ध में बैंक का कोई ऐसा अभिलेख प्रस्‍तुत किया है जिससे यह कहा जा सके कि

-7-

प्रत्‍यर्थी/परिवादी को ए0टी0एम0 कार्ड जारी किया गया है। प्रश्‍नगत 20,000.00 रू0 की धनराशि प्रत्‍यर्थी/परिवादी के खाते से ए0टी0एम0 कार्ड के माध्‍यम से निकाले जाने की घटना से भी अपीलार्थी बैंक ने स्‍पष्‍टता इंकार नहीं किया है। जब प्रत्‍यर्थी/परिवादी को ए0टी0एम0 कार्ड जारी ही नहीं किया गया है तो उसके खाते से ए0टी0एम0 कार्ड से कैसे धनराशि निकाली जा सकती है। ऐसी स्थिति में प्रत्‍यर्थी/परिवादी के खाते से ए0टी0एम0 कार्ड के माध्‍यम से प्रश्‍नगत 20,000.00 रू0 की गई निकासी अपने आप में बैंक की सेवा में त्रुटि मानने हेतु उचित आधार है। अत: अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्‍ता का यह तर्क मान्‍यता प्रदान किये जाने योग्‍य नहीं है कि वर्तमान परिवाद में तथ्‍य और विधि का जटिल प्रश्‍न निहित है, जो व्‍यवहार न्‍यायालय द्वारा ही निर्णीत किया जा सकता है।

जिला फोरम ने अपने निर्णय में उल्‍लेख किय है रजिस्‍टर्ड डाक से परिवाद के विपक्षीगण अर्थात अपीलार्थी विपक्षीगण को सूचना भेजी गई है। अत: अपीलार्थी/विपक्षीगण पर नोटिस का तामीला पर्याप्‍त मानने हेतु उचित आधार है फिर भी वे जिला फोरम के समक्ष उपस्थित नहीं हुए है। जिला फोरम के निर्णय को मात्र एक पक्षीय रूप से पारित किये जाने के आधार पर अपास्‍त किया जाना उचित नहीं है।

वर्तमान परिवाद में आवश्‍यक पक्षकार न बनाये जाने का दोष नहीं दिखता है।

-8-

उपरोक्‍त सम्‍पूर्ण विवेचना को दृष्टिगत रखते हुए मैं इस मत का हॅू कि जिला फोरम ने जो प्रश्‍नगत 20,000.00 रू0 की धनराशि प्रत्‍यर्थी/परिवादी को वापस करने हेतु बैंक को आदेशित किया है, वह उचित है परन्‍तु जिला फोरम ने जो 07 प्रतिशत वार्षिक की दर से ब्‍याज दिया है उसे संशोधित कर ब्‍याज दर प्रत्‍यर्थी/परिवादी के खाते में जमा धनराशि पर देय ब्‍याज दर के अनुसार किया जाना उचित है।

जिला फोरम ने जो 1,000.00 रू0 मानसिक व आर्थिक कष्‍ट हेतु क्षतिपूर्ति और 500.00 रू0 वाद व्‍यय दिलाया है वह उचित है उसमें किसी हस्‍तक्षेप की आवश्‍यकता नहीं है।

उपरोक्‍त निष्‍कर्ष के आधार पर अपील आंशिक रूप से स्‍वीकार की जाती है और जिला फोरम द्वारा आदेशित निर्णय को इस प्रकार संशोधित किया जाता है कि प्रत्‍यर्थी/परिवादी के प्रश्‍नगत खाते में जमा धनराशि पर देय ब्‍याज की दर से आदेशित धनराशि पर ब्‍याज देय होगा। जिला फोरम के आदेश का शेष अंश यथावत कायम रहेगा। जिला फोरम के आदेश को उपरोक्‍त संशोधन के साथ पढ़ा जायेगा।

अपील में उभय पक्ष अपना अपना वाद व्‍यय स्‍वयं बहन करेगें।

धारा-15 उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनिमय, 1986 के अन्‍तर्गत अपील में जमा धनराशि अर्जित ब्‍याज सहित जिला फोरम को निस्‍तारण हेतु प्रेषित की जायेगी।

                        (न्‍यायमूर्ति अख्‍तर हुसैन खान)               

                                  अध्‍यक्ष                           

हरीश आशु.,

कोर्ट सं0-1

 
 
[HON'BLE MR. JUSTICE AKHTAR HUSAIN KHAN]
PRESIDENT
 

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