Madhya Pradesh

Seoni

CC/08/2014

DINESH - Complainant(s)

Versus

DR. JAGDISH - Opp.Party(s)

17 Apr 2014

ORDER

जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोषण फोरम, सिवनी(म0प्र0)


  प्रकरण क्रमांक -08-2014                               प्रस्तुति दिनांक-13.01.2014


समक्ष :-
अध्यक्ष - रवि कुमार नायक
सदस्य - श्री वीरेन्द्र सिंह राजपूत,

दिनेष पिता प्रेमसिंह बहादुर, उम्र 28 वर्श,
निवासी-सूफी नगर सिवनी, तहसील व
जिला सिवनी (म0प्र0)।.................................................आवेदकपरिवादी।


                :-विरूद्ध-: 
डाक्टर जगदीष प्रसाद (सर्जरी)
एल0टी0टी0 सर्जन 
पता-लखनादौन, थाना-लखनादौन,
तहसील-लखनादौन, जिला सिवनी
(म0प्र0)।.........................................................................अनावेदकविपक्षी।    


                 :-आदेश-:
     (आज दिनांक- 17.04.2014 को पारित)
द्वारा-अध्यक्ष:-
(1)        परिवादी ने यह परिवाद उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम की धारा 12 के तहत, अनावेदक षल्य चिकित्सक के द्वारा, परिवादी के 5-6 माह के पुत्र के नाभी में मांसछाला के आपरेषन व उपचार में चिकित्सकीय उपेक्षा किया जाना कहते हुये और उक्त के फलस्वरूप, पुत्र की मृत्यु होना कहते हुये, हर्जाना दिलाने के अनुतोश हेतु यह परिवाद पेष किया है।
(2)        यह स्वीकृत तथ्य है कि-अनावेदक ने परिवादी के पुत्र की नाभी में लालिमा व छाला बाबद दिनांक-02.05.2013 को अपने क्लीनिक में षल्यक्रिया किया था व उसका इलाज करता रहा, जो कि-दिनांक-07.05.2013 को परिवादी के पुत्र की मृत्यु हो गर्इ। 
(3)        स्वीकृत तथ्यों के अलावा, परिवाद का सार यह है कि-परिवादी के पुत्र को नाभी के पास लाल छाला का दाग था, जो कि-परिचितों के सुझाव पर अपने पुत्र राकेष को इलाज के लिए दिनांक-01.05.2013 को अनावेदक की क्लीनिक में दिखाया गया था, जिन्होंने नाभी का छोटा आपरेषन करने की आवष्यकता बतार्इ थी, जो कि-दूसरे दिन अनावेदक ने अपनी क्लीनिक में बिना कोर्इ एक्सरे जांच किये परिवादी के पुत्र का आपरेषन कर दिया और कहा कि-दो-तीन दिन तक नियमित जांच के लिए आना पड़ेगा। जो कि-निरंतर तीन दिनों तक परिवादी, अनावेदक की क्लीनिक में पुत्र को इलाज के लिए ले जाता रहा, पर उसे आराम नहीं लगा, निरंतर हालत खराब होने लगी, तो परिवादी ने अन्य डाक्टर से सलाह लेना चाही, जो दिनांक-06.05.2013 को लखनादौन ले जाकर दीपक पाण्डे को दिखाया था, जिन्होंने जांच के बाद कहा था कि-आपरेषन करने वाले डाक्टर की ही सलाह से इलाज करायें, तो बेहतर होगा और संतुशिट के लिए दो दवायें लिख दी थीं, तो परिवादी और उसके साथी ने पुन: अनावेदक से आराम न लगने बाबद चर्चा किया, तो उन्होंने जांचकर उसे इंजेक्षन लगा दिया और इंजेक्षन लगाने से भी कोर्इ फायदा न होने से रात तक परिवादी के पुत्र की हालत ज्यादा खराब हो गर्इ, नाभी का भाग पकने लगा, लेटि्रंग बंद हो गर्इ, और उल्टी होने लगी, तो रात में ही अनावेदक के क्लीनिक में लाये थे, तो उन्होंने उल्टी बंद करने की दवा लिख दी, फिर भी परिवादी के पुत्र को बचाया नहीं जा सका और दिनांक-07.05.2013 को उसकी मृत्यु हो गर्इ, जो कि-मानक स्तर के आपरेषन कक्ष, पर्याप्त सावधानी और विषेशज्ञों के आभाव में बगैर सक्षम जांच के आपरेषन कर, घोर उपेक्षा बरती गर्इ। और अनावेदक की लापरवाही के फलस्वरूप, परिवादी के पुत्र की मृत्यु हुर्इ है, इस संबंध में पुलिस थाना लखनादौन में षिकायत किये जाने पर पुत्र का पोस्टमार्टम भी हुआ, जो कि-विभिन्न मदों में ढार्इ लाख रूपये हर्जाना चाहा गया।
(4)        अनावेदक के जवाब का सार यह है कि-परिवादी के पुत्र की सामान्य जांच किये जाने पर नाभी के पास मसूर के दाने के बराबर मांस (एडोलोमा) पाया था, जिसे निकालने की सलाह दी थी, सामान्यत: ऐसा मांस हटाने के लिए एक्सरे जांच की आवष्यकता नहीं थी व दिनांक-02 मर्इ-2013 को मांस के निकाले जाने के बाद ड्रेसिंग की थी और उक्त प्रक्रिया का उल्लेख परची में करते हुये, उसी में एन्टीबायोटिक सीरप, सिफाकांइड, आर्इब्रोप्रोम सीरप एक-एक चम्मच सुबह-षाम देने की सलाह दिया था और उक्त मांस निकाले जाने के बाद दो-तीन दिन तक नियमित जांच के लिए लाये जाने की सलाह दी गर्इ थी, मरीज को दिनांक-05 मर्इ-2013 को लाया गया, उस समय बच्चे को मामूली बुखार था, इसलिए खून की जांच करार्इ गर्इ थी, ड्रेसिंग भी की गर्इ थी, उसमें किसी प्रकार का इंफेक्षन नहीं पाया था, तो एन्टीबायोटिक नेटापार्इन तथा लोडिक बुखार व दर्द के इलाज के लिए इंजेक्षन लगाये थे, जो कि-नियमित मापदंड के अनुसार ही परिवादी के पुत्र का इलाज किया है, उस समय तीव्र गरमी का प्रकोप था, जब बच्चे का मांस निकाला था, तो उस समय बच्चे को कोर्इ बुखार या अन्य कोर्इ विकार नहीं था और दिनांक-05.05.2013 तक जांच के दौरान बच्चे को किसी भी तरह का इंफेक्षन नहीं था, मात्र बुखार था, जिसके लिये अनावेदक ने एन्टीबायोटिक दवायें व इंजेक्षन दिये थे और डाक्टर पाण्डे की कथित परची दिनांक-06.05.2013 के अनुसार ही उन्होंने बुखार के लिए  फलैवसान सीरप व हाजमा के लिए डार्इजोन सीरप देने की ही सलाह दी थी, जो कि-इलाज के पष्चात मृत्यु का कारण, परिवादी की षिकायत पर पुलिस द्वारा कराये गये पोस्टमार्टम के प्रतिवेदन में भी परिवाद में आरोपित परिसिथतियां व कारण नहीं बताये गये और मात्र निहित स्वार्थवष परिवाद पेष किया गया है, जो निरस्त योग्य है।                            
(5)        मामले में निम्न विचारणीय प्रष्न यह हैं कि:-
        (अ)    क्या अनावेदक ने, परिवादी के पुत्र के षल्य व
            उपचार में चिकित्सकीय उपेक्षा किया? और क्या
            उक्त चिकित्सकीय उपेक्षा के फलस्वरूप, परिवादी 
            के पुत्र राकेष की मृत्यु हुर्इ?
        (ब)    क्या परिवादी, अनावेदक से हर्जाना पाने का 
            अधिकारी है?
        (ब)    सहायता एवं व्यय?
                -:सकारण निष्कर्ष:-
        विचारणीय प्रष्न क्रमांक-(अ) :-
(6)        अनावेदक-पक्ष की ओर से पेष न्यायदृश्टांत-2000 (भाग-3) सी0पी0जे0 79 निरमलिन पाल बनाम डाक्टर पी0के0बक्षी व अन्य (राज्य आयोग कलकत्ता) और 2000 (भाग-2) सी0पी0जे0 502 अब्दुल्ला मोदीबाला व अन्य बनाम जी0डी0 बिरला मेमोरियल हेल्थ सेन्टर व अन्य (म0प्र0 राज्य आयोग) की प्रतिपादना पेष करते हुये, यह तर्क किया गया है कि- परिवादी-पक्ष की ओर से अनावेदक की चिकित्सकीय उपेक्षा दर्षाने कोर्इ चिकित्सा विषेशज्ञ की साक्ष्यरिपोर्ट या कोर्इ चिकित्सकीय साहित्य पेष नहीं किया गया है और आधारहीन मौखिक अविषिश्ट लांछन परिवादी-पक्ष की ओर से लगाया गया है। और अनावेदक ने अपने षपथ-पत्र में भी यह स्पश्ट कर दिया है कि-मरीज की सावधानी से जांच कर, नाभी के उपर का मांस हटाकर मवाद निकाला गया है और एन्टीबायोटिक दवार्इयां और इंजेक्षन देने के बाद इलाज किया गया है और दिनांक-05.05.2013 को जब मरीज अस्पताल लाया गया, तब भी कोर्इ इंफेक्षन नहीं पाया गया, तब दिनांक-05.05.2013 को मरीज की खून की जांच भी करार्इ गर्इ थी, उसमें कोर्इ असामान्यता नहीं पार्इ गर्इ थी, इसलिए मरीज के इलाज के कारण कोर्इ प्रतिकूल प्रभाव पड़ना या उसे कोर्इ हानि होना संभव नहीं तथा बाहरी भाग के आपरेषन से मवाद निकाला जाना संक्रमण को नियंत्रण करने के लिए प्राथमिक उपाय है, जो आवष्यक रहा है और मेडिकल प्रेकिटस में स्वीकार योग्य है, इसमें कोर्इ जोखिम का तत्व नहीं है और मात्र काटकर मवाद निकाले जाने की जो प्रक्रिया अपनार्इ गर्इ थी, उसके पूर्व पैथोलाजी परीक्षण आदि आवष्यक नहीं था। और मरीज के षरीर के किसी भी अंदरूनी हिस्से को टच नहीं किया गया था, मात्र नाभी के पास का मसूर के दाने के बाराबर का मवादी मांस जिसे एमलार्इकर एफसिस कहते हैं, उसे ही आपरेषन कर हटाया गया था।
(7)        प्रदर्ष सी-11 के मर्ग इंटीमेषन की प्रति जो परिवादी-पक्ष की ओर से पेष हुर्इ है, उसमें ही परिवादी के द्वारा पुलिस को यह सूचना दिया जाना लेख है कि-उसका लड़का राकेष 5 माह का था, जिसे पैदार्इष के समय से ही नाभी में तकलीफ थी और उसका ही इलाज लखनादौन में डाक्टर जगदीष प्रसाद के यहां करवाया था। यह उपभयपक्ष के अभिवचनों में स्वीकृत सिथति है कि-उक्त षिषु राकेष को अनावेदक ने प्रथम बार दिनांक-01.05.2013 को जांच किया और उक्त जांच के परचा की प्रति प्रदर्ष सी-8 में अम्बीलिकस एडीलोमा होना ही अनावेदक ने लेख किया है, जिसे डाक्टर एल0सी0 गुप्ता की मेडिकल डिक्सनरी में इस प्रकार वर्णित किया गया है कि-यह विटीली इन्टेस्टाइनल डक्ट के दूरस्थ पेटेंट खण्ड में उत्पन्न पैथालाजिक कंडीषन है, जिसमें पेटेंट डक्ट का म्यूकस अम्बीलिकस होकर बाहर बढ़ा होता है और मुलायम गुलाबी रंग का टयूमर उत्पन्न करता है, जो रेसबेरी के समान दिखता है, इसलिए इसे रेसबेरी टयूमर भी कहते हैं, जो सामान्यत: मात्र षिषु अवस्था में ही उत्पन्न होता है, उसमें मुलायम गुलाबी रंग का मांस का पदार्थ होता है और उक्त अम्बीलिकस से सराव भी हो सकता है, आंत में रूकावट उत्पन्न भी हो सकती है और उक्त की जड़ को यदि धागे आदि से कस कर बांध दिया जाये, तो कुछ समय में मवाद बहना बंद हो जाता है, लेकिन बार-बार जारी रहता है, तो अम्बीलिकटामी (मांस निकालने का आपरेषन) करना आवष्यक होता हैं।
(8)        दिनांक-02.05.2013 के इलाज परचा प्रदर्ष सी-2 में जांच कर, आपरेषन व मल्लहम-पटटी के बाद 5 दिन के लिये एन्टीबायोटिक सीरप व दर्द-सूजन के लिए सीरप अनावेदक द्वारा लेख किया गया है।
(9)        सामान्य प्रेकिटस के अनुसार किया यह जाना चाहिये था कि- पहले दिन के ही इलाज पर्चे में आगे प्रतिदिन कौन, क्या-क्या इलाज व दवा जो दी जानी थी वे उल्लेख की जानी चाहिये थी, लेकिन अनावेदक के द्वारा ऐसा नहीं किया गया, जो कि-प्रदर्ष सी-3 से लेकर प्रदर्ष सी-7 और प्रदर्ष सी-9 तक की दवार्इइंजेक्षन की परचियां जो बाजार से दवा लाने के लिए परिवादी को दी गर्इं, जो कि-पेष हुर्इ हैं, उनमें से किसी में भी दिनांक का कोर्इ उल्लेख नहीं है। और यह प्रतीत होता है कि- दिनांक-05.05.2013 को मरीज को अनावेदक के पास लाया जाना अनावेदक के जवाब व षपथ-पत्र में इसलिए स्वीकार किया गया, क्योंकि प्रदर्ष सी- 10 का रक्त की पैथालाजी जांच की रिपोर्ट दिनांक-05.05.2013 की रही है, तो स्पश्ट है कि-अनावेदक-पक्ष के द्वारा स्वयं किये गये इलाज के प्रमाण सें बचने के लिए संपूर्ण इलाज का पर्चा परिवादी को नहीं दिया गया और संबंधित इलाज, उपचार व आपरेषन का जो भी रिकार्ड है पेष करने का आदेष-पत्रिका में निर्देष करने के बावजूद, अनावेदक के द्वारा ऐसा कोर्इ अभिलेख अपने चिकित्सालय का संबंधित मरीज के इलाज बाबद पेष ही नहीं किया गया। अनावेदक के द्वारा जानबूझकर संबंधित मरीज के उपचार संबंधी अभिलेख इस फोरम के आदेष के बावजूद इसलिए पेष नहीं किये गये, तो अवधारणा है कि-यदि वे पेष किये जाते, तो अनावेदक के बचाव का समर्थन नहीं करते, जो कि-प्रतिदिन के जांच इलाज का पर्चा व अभिलेख पेष न किया जाना स्वयं में परिवादी के प्रति-अनावेदक द्वारा अपनार्इ गर्इ अनुचित प्रथा है।
(10)        पुलिस द्वारा जो परिवादी के द्वारा उल्लेख करार्इ गर्इ मर्ग सूचना के पष्चात षव का पोस्टमार्टम डाक्टर से कराया गया, तो उसमें पोस्टमार्टम करने वाले चिकित्सक द्वारा नाभी की पटटी को खोलकर देखा नहीं गया और उक्त घाव कैसा था, इस संबंध में कोर्इ उल्लेख नहीं किया गया और मृत्यु के कारण के संबंध में कोर्इ राय न देते हुये केमिकल की रिपोर्ट प्राप्त करने की सलाह दी गर्इ। जैसा प्रदर्ष सी-13 के षव परीक्षण आवेदन, पोस्टमार्टम रिपोर्ट से स्पश्ट है। और विधि विज्ञान प्रयोगषाला की रिपोर्ट प्रदर्ष सी-14 से स्पश्ट है कि-उक्त जांच मृतक के आंतरिक अंगों में कोर्इ रसायनिक बिश की उपसिथति के संबंध में रही है, जो कि-रिपोर्ट में कोर्इ रसायनिक बिश नहीं पाया गया। तो पुलिस द्वारा कराया गया पोस्टमार्टम मात्र मृत्यु के कारण के संबंध में रहा है, उसमें षरीर में इंफेक्षन रहे होने की कोर्इ जांच करार्इ नहीं गर्इ और रसायनिक बिश का कोर्इ मामला या षिकायत रही नहीं है, तो उक्त पोस्टमार्टम रिपोर्ट व विधि-विज्ञान प्रयोगषाला का प्रतिवेदन इलाज करने वाले चिकित्सक की चिकित्सकीय उपेक्षा के संबंध में कतर्इ नहीं, तो अनावेदक को उससे कोर्इ बचाव प्राप्त नहीं होता। 
(11)        कैमिस्ट की दुकान से खरीदकर लाने के लिए दवाइंजेक्षन के नाम लेखकर जो परचियां परिवादी को दी जाती रहीं वे ही परिवादी के पास रहीं, जो उसने पेष की हैं, लेकिन किये गये इलाज के रिकार्ड का मुख्य परचा, जिसमें प्रतिदिन के मरीज का स्वास्थ्य की सिथति और की गर्इ जांच व दिये गये इलाज का क्रमवार पूर्ण विवरण रहता है, वह मुख्य पर्चा न तो अनावेदक ने परिवादी को उपलब्ध कराया और बार-बार इस पीठ के द्वारा निर्देष देने के बावजूद, अनावेदक ने उसे पेष भी नहीं किया और इलाज का उक्त अभिलेख पेष न करने का कोर्इ समुचित कारण भी अनावेदक-पक्ष के द्वारा दर्षाया नहीं गया, जो कि-किये गये जांच व इलाज की कार्यवाही के उक्त अभिलेख के बिना न तो किसी विषेशज्ञ का समुचित अभिमत प्राप्त किया जा सकता था और न ही कोर्इ चिकित्सकीय साहित्य, उक्त तथ्यात्मक सिथति के बिना पेष हो पाना संभव रहा है। और उक्त छिपाव अनावेदक-पक्ष द्वारा, मात्र इसलिए किया गया, ताकि उसके द्वारा की गर्इ जांच व इलाज की पर्याप्तता को प्रषिनत न किया जा सके। और इसलिए अनावेदक को उसकी ओर से पेष न्यायदृश्टांतों का कोर्इ लाभ प्राप्त हो पाना संभव नहीं है।
(12)        ऐसे में अनावेदक के द्वारा पेष जवाब व षपथ-पत्र में लिया गया बचाव उसके किसी इलाज अभिलेख पर आधारित नहीं है और मात्र परिवादी-पक्ष की ओर से पेष दस्तावेजों के आधार पर, बाद के सोच के रूप में एक बचाव का कथानक अनावेदक के द्वारा निर्मित किया जाना स्पश्ट है।
(13)        परिवादी-पक्ष की ओर से पेष अभिलेख के आधार पर ही विचार किया जाये, तो प्रदर्ष सी-2 और स्वयं अनावेदक के षपथ-पत्र से स्पश्ट है कि-दिनांक-02.05.2013 को जब आपरेषन कर, अम्बीलिकल एफसिस को अनावेदक ने हटाया और उसमें मल्लहम-पटटी कर पांच दिन के लिए एन्टीबायोटिक सीरप व सिफाकांइड, आर्इब्रोप्रोम सीरप भी लिखे थे, उस दिन कोर्इ एन्टीबायोटिक इंजेक्षन नहीं दिया गया था। अब यदि उक्त आपरेषन किये गये स्थान पर आगे कोर्इ मवाद या इन्फेक्षन वास्तव में नहीं पाया गया होता, तो आगे प्रतिदिन मात्र 5 माह के बच्चे के लिए 250 मिलीग्राम षकित के एन्टीबायोटिक इन्जेक्षन भी देने की आवष्यकता क्यों होती, जो कि-प्रदर्ष सी-4 से प्रदर्ष सी-7 व सी-9 की पर्चियां यह दर्षाती हैं कि-दिनांक 3 से 6 मर्इ के बीच 250 एम0जी0 षकित के पांच बार एन्टीबायोटिक नेटापार्इन इंजेक्षन भी अनावेदक के द्वारा, उक्त पांच माह के बच्चे को लगाये गये। प्रदर्ष सी-6 की पर्ची से स्पश्ट है कि- बुखार के लिए क्रोसिन व उल्टी के लिए अन्य कोर्इ सीरप लिखा गया था। प्रदर्ष सी-9 की पर्ची से स्पश्ट है कि-बुखार के लिए लोडी इंजेक्षन भी लगाना आवष्यक पाया। और प्रदर्ष सी-5 की पर्ची से स्पश्ट है कि-उल्टी रोकने के लिए स्टेमटिल का इंजेक्षन भी लगाया गया था, ऐसे में अनावेदक के जवाब के अनुसार यदि उसने मात्र 5 मर्इ तक ही उपचार किया था, तो दिनांक-3 से 5 मर्इ के तीन दिन में 250 एम0जी0 षकित के पांच एन्टीबायोटिक इन्जेक्षन, वह भी एन्टीबायोटिक सीरप दिये जाने के अतिरिक्त 5 माह के बच्चे को आपरेषन के बाद बिना कोर्इ इंफेक्षन निर्मित हुये दिया जाना किसी भी तरह उचित नहीं हो सकता। तो अनावेदक के जवाब व षपथ-पत्र में लेख किया गया यह बचाव कि-5 मर्इ-2013 को भी ड्रेसिंग किये जाते समय भी कोर्इ इंफेक्षन नहीं पाया गया था, आधारहीन और असत्य बचाव होना दर्षित है और इसलिए संपूर्ण इलाज की कार्यवाही के पर्चे का अभिलेख अनावेदक-पक्ष की ओर से छिपा लिया गया और यह प्रबल अवधारणा है कि-वह पेष होता, तो अनावेदक के बचाव का समर्थन नहीं करता।
(14)        दिनांक-2 मर्इ-2013 को आपरेषन किये जाने के दिन तक मरीज को कोर्इ बुखार या उल्टी की षिकायत नहीं थी और आपरेषन किये जाने के संभवत: एक दिन पष्चात से स्वास्थ्य की उक्त सिथति निर्मित हुर्इ, वह इस आधार पर, क्योंकि प्रदर्ष सी-4 और प्रदर्ष सी-7 की दवा पर्चियों में कोर्इ बुखार या उल्टी की दवा लेख नहीं की गर्इ। और इस तरह एक दिन पष्चात, संभवत: 4 मर्इ से मरीज को बुखार, उल्टी आदि की षिकायत हो जाने पर उक्त संबंध में ही दवा लेख की गर्इ है और जो खून की जांच करार्इ गर्इ उसकी रिपोर्ट दिनांक-05.05.2013 प्रदर्ष सी-10 से स्पश्ट है कि-खून की जांच मात्र मलेरिया पैरासार्इड की जांच के लिए करार्इ गर्इ थी। षरीर में इंफेक्षन के संबंध में कोर्इ जांच वास्तव में नहीं करार्इ गर्इ और ऐसे में अनावेदक के जवाब और षपथ-पत्र में यह लेख किया गया कि-दिनांक-05.05.2013 को मरीज की खून की जांच करार्इ गर्इ, जिसमें कोर्इ असमानता नहीं पार्इ थी, चिकित्सक द्वारा गलत रूप से भ्रमित करने के लिए किया गया उल्लेख है, जबकि-यह स्पश्ट हो रहा है कि-ष्वेत रक्त कणिका व इन्फेक्षन की जांच बाबद वास्तव में कोर्इ रक्त परीक्षण अनावेदक के द्वारा कराया नहीं गया, जो कि-बुखार व उल्टी होने के लक्षण व अन्य कारणों के अतिरिक्त इंफेक्षन का स्तर बढ़ने से भी हो सकना संभाव्य होता है।
(15)        ऐसे में यह तो ठीक है कि-संक्रमण के नियंत्रण के लिए आपरेषन कर देना प्राथमिक उपाय रहा है, लेकिन ऐसे आपरेषन का एक दिन बाद से जब वास्तव में इंफेक्षन नियंत्रित नहीं हो रहा था और अनावेदक यह जानता था कि-परिवादी गरीब तबके का अपढ़ व्यकित है, अपने घर सिवनी से बाहर आकर, लखनादौन में बच्चे का इलाज करा रहा है और मर्इ माह के गरम मौसम में घाव का संक्रमण बढ़ने की संभावना अधिक रहती है और अनावेदक की क्लीनिक में मरीज को भरती करके समुचित जांच व एडवांस इलाज की सुविधायें नहीं है, तो बजाय आखिरी तक इलाज करते रहने के मरीज को बेहतर स्वास्थ्य केन्द्र में भरती कराकर आगे के इलाज हेतु रिफर किया जाना निषिचत रूप से समुचित होता। और जब मरीज को बेहतर जांच व इलाज की आवष्यकता थी, तब अपने क्लीनिक में जांच व इलाज के समुचित साधन व बेहतर चिकित्सा विषेशज्ञ के न होते देख भी बिना समुचित जांच के किसी एक हेवी इन्टीवायोटिक से इलाज करते रहना सामान्य चिकित्सकीय निर्देषों का स्पश्ट उल्लघंन दर्षित होता है, जो चिकित्सकीय उपेक्षा के अंतर्गत आता है।
(16)        क्योंकि मृत्यु के वास्तविक कारण के संबंध में कोर्इ समुचित जांच नहीं हुर्इ, इसलिए परिवादी के पुत्र की मृत्यु का वास्तविक कारण क्या रहा है, यह स्थापित नहीं, इसलिए अनावेदक द्वारा की गर्इ चिकित्सकीय उपेक्षा के फलस्वरूप ही परिवादी के पुत्र की मृत्यु हुर्इ थी यह स्थापित नहीं, लेकिन अनावेदक चिकित्सक के द्वारा, परिवादी के पुत्र के आपरेषन के पष्चात इंफेक्षन नियंत्रित न होने पर भी समुचित जांच व पैथालाजी परीक्षण कराये बिना ही 5 माह के बच्चे को अधिक मात्रा में एक ही एन्टीबायोटिक दवायें व इंजेक्षन दिये जाते रहना सामान्य चिकित्सा निर्देषों की उपेक्षा है और इस तरह मरीज के प्रति चिकित्सकीय उपेक्षा किया जाना स्थापित पाया जाता है। और किये गये जांच व इलाज के कार्यवाही का पर्चा मुख्य अभिलेख को छिपाया जाकर, असत्य बचाव लिया जाना स्वयं में भी परिवादी के प्रति-की गर्इ सेवा में कमी है। तदानुसार विचारणीय प्रष्न क्रमांक-'अ को निश्कर्शित किया जाता है।
        विचारणीय प्रष्न क्रमांक-(ब):-
(17)        अनावेदक के द्वारा, परिवादी के पुत्र के प्रति की गर्इ चिकित्सकीय उपेक्षा और मामले में झूठा बचाव लेकर की गर्इ सेवा में कमी से परिवादी को हुर्इ असुविधा, मानसिक कश्ट व परेषानी के संबंध में परिवादी, अनावेदक से 50,000-रूपये हर्जाना पाने का पात्र होना पाया जाता है। तदानुसार विचारणीय प्रष्न क्रमांक-'ब को निश्कर्शित किया जाता है।
        विचारणीय प्रष्न क्रमांक-(स):-
(18)        विचारणीय प्रष्न क्रमांक-'अ और 'ब के निश्कर्शों के आधार पर, मामले में निम्न आदेष पारित किया जाता है:-
        (अ)    अनावेदक, परिवादी के पुत्र के इलाज में की गर्इ                 चिकित्सकीय उपेक्षा व मामले में झूठा बचाव लेकर,                 परिवादी के प्रति की गर्इ सेवा में कमी से परिवादी को             हुर्इ असुविधा व मानसिक कश्ट बाबद परिवादी को                 50,000-रूपये (पचास हजार रूपये) हर्जाना आदेष             दिनांक से तीन माह की अवधि के अंदर अनावेदक अदा             करेगा और उक्त अवधि में अदायगी न किये जाने पर,             अपालन हेतु अन्य परिणामों के अतिरिक्त उक्त अवधि             के पष्चात हर्जाना राषि पर 9 प्रतिषत ब्याज की दर से             ब्याज भी देय होगा।
        (ब)    अनावेदक स्वयं का कार्यवाही-व्यय वहन करेगा और
            परिवादी को कार्यवाही-व्यय के रूप में 2,000-रूपये
            (दो हजार रूपये) अदा करे।

   मैं सहमत हूँ।                              मेरे द्वारा लिखवाया गया।

        

(श्री वीरेन्द्र सिंह राजपूत)                          (रवि कुमार नायक)
      सदस्य                                                  अध्यक्ष
जिला उपभोक्ता विवाद                           जिला उपभोक्ता विवाद
प्रतितोषण फोरम,सिवनी                         प्रतितोषण फोरम,सिवनी                  

        (म0प्र0)                                                 (म0प्र0)

                        

 

 

 

 

        
            

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

Consumer Court Lawyer

Best Law Firm for all your Consumer Court related cases.

Bhanu Pratap

Featured Recomended
Highly recommended!
5.0 (615)

Bhanu Pratap

Featured Recomended
Highly recommended!

Experties

Consumer Court | Cheque Bounce | Civil Cases | Criminal Cases | Matrimonial Disputes

Phone Number

7982270319

Dedicated team of best lawyers for all your legal queries. Our lawyers can help you for you Consumer Court related cases at very affordable fee.