Smt. Neeru filed a consumer case on 07 Feb 2018 against Dr. Indriwar Upadhayay in the Muradabad-II Consumer Court. The case no is CC/11/2012 and the judgment uploaded on 14 Mar 2018.
परिवाद प्रस्तुतिकरण की तिथि: 16-01-2012
निर्णय की तिथि: 07.02.2018
कुल पृष्ठ-8(1ता8)
न्यायालय जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम-द्वितीय, मुरादाबाद
उपस्थिति
श्री पवन कुमार जैन, अध्यक्ष
श्री सत्यवीर सिंह, सदस्य
परिवाद संख्या- 11/2012
श्रीमती नीरू पत्नी श्री कुलदीप चौहान निवासी चाउ की बस्ती थाना मझोला लाइनपार मुरादाबाद। ….......परिवादनी
बनाम
डा. इन्दीवर उपाध्याय, प्लास्टिक सर्जन, निवासी मौहल्ला ए-29 जिगर कालोनी थाना सिविल लाइन्स, मुरादाबाद। ….......विपक्षी
(श्री पवन कुमार जैन, अध्यक्ष द्वारा उद्घोषित)
निर्णय
संक्षेप में परिवाद कथन इस प्रकार हैं कि दिनांक 28-9-2005 को अपने सवा माह के पुत्र अंकित के कटे हुए होठ का इलाज कराने के लिए विपक्षी के अस्पताल में आयी थी, उसे देखकर विपक्षी ने कहा कि होठ का आपरेशन करके टांके भर दिये जायेंगे और यह जल्दी ही ठीक हो जायेगा। परिवादनी के अनुसार उसके बेटे का ऊपर का होठ जन्म से ही कटा हुआ था। विपक्षी ने दिनांक 18-10-2005 को अपने अस्पताल में अंकित का आपरेशन किया और दवायीं इत्यादि हेतु परिवादनी ने विपक्षी को अंकन-35000/-रूपये दिये, अगले दिन परिवादनी के बेटे को विपक्षी ने छुट्टी दे दी और घर भेज दिया, उसकी दवायी दिख दी। परिवादनी, विपक्षी के बताये अनुसार अंकित को दवायें और पीने वाले खाद्य पदार्थ जैसे दूध, जूस इत्यादि देती रही। परिवादनी डेढ़ साल तक बीच-बीच में अपने बेटे को विपक्षी को दिखाती रही और उनकी सलाह के अनुसार उसे दवाइयां खिलाती रही किन्तु बेटे की हालत में कोई सुधार नहीं हुआ। तब परिवादनी ने विपक्षी से कहा कि आपसे यदि ठीक नहीं हो
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सकता तो बताओं, इस पर विपक्षी ने बेटे का एक और आपरेशन बताया और दूसरा आपरेशन उसने दिनांक 08-02-2008 को किया, जिसके लिए उसने अंकन-50,000/-रूपये परिवादनी से लिये। दूसरे आपरेशन के दो साल बाद तक परिवादनी, विपक्षी से इलाज कराती रही किन्तु उसके बेटे को कोई फायदा नहीं हुआ बल्कि बेटे की नाक और मुह का छेद विपक्षी ने और खोल दिया, जिससे बच्चे को खाने के लिए कुछ दिया जाता तो मुह के बजाय वह नाक में अटक जाता था और बच्चे का सांस रूक जाता था। विपक्षी ने बच्चे का चेहरा भी बिगाड़ दिया। दिनांक 17-9-2009 को परिवादनी ने अपने बच्चे को ऐम्स अस्पताल, नई दिल्ली में दिखाया। वहां डाक्टर ने कहा कि इसका आपरेशन गलत किया गया है, अब हम कुछ नहीं कर सकते। इसके बाद बच्चे को पविादनी ने सफदरजंग अस्पताल, नई दिल्ली में दिखाया, वहां भी डाक्टर ने हाथ खड़े कर दिये। इसके बाद बच्चे को परिवादनी ने हिमालय इंस्टीट्यूट आफ मेडिकल साइंसेस, जौली ग्रान्ड, देहरादून में दिखाया। वहां बच्चे को कुछ फायदा हुआ है। परिवादनी के अनुसार उसके इलाज में लगभग चार-पाँच लाख रूपये खर्च होने की संभावना है। परिवादनी ने विपक्षी द्वारा बच्चे के इलाज में बरती गई लापरवाही के लिए उससे क्षतिपूर्ति की मांग की। इस हेतु उसने अपने अधिवक्ता के माध्यम से विपक्षी को नोटिस भी भिजवाया किन्तु विपक्षी सुनवा नहीं हुए। परिवादनी के अनुसार विपक्षी से उसे आर्थिक, शारीरिक व मानसिक कष्ट हेतु क्षतिपूर्ति के रूप में चार लाख रूपये दिलाये जायें।
विपक्षी ने अपना प्रतिवाद पत्र कागज सं.-10/1 लगायत 10/4 दाखिल किया, जिसमें उसने दिनांक 28-9-2005 को अपने बेटे को दिखाने के लिए परिवादनी को उसके अस्पताल में आना और दिनांक 18-10-2005 को परिवादनी के बेटे अंकित के कटे
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हुए होठ का आपरेशन किया जाना तो स्वीकार किया है किन्तु शेष परिवाद कथनों और परिवाद में अपने विरूद्ध लगाये गये आरोपों से इंकार किया। विशेष कथनों में विपक्षी ने कहा कि परिवादनी से उसके बेटे के आपरेशन हेतु अंकन-35000 अथवा अंकन-50000/-रूपये फीस नहीं ली। वास्तविकता यह है कि माह सितम्बर, 2005 में जब परिवादनी अपने पुत्र अंकित के जन्म से कटे हुए ऊपर के होठ के संबंध में उसके पास सलाह लेने हेतु आयी थी तो परिवादनी को उसने बताया था कि उसके बेटे के होठ और तालू का आपरेशन करना होगा। प्रथम चरण में कटे हुए होठ का आपरेशन किया जायेगा और उसके एक से डेढ़ साल के मध्य तालू का आपरेशन करना होगा। परिवादनी की सहमति पर उसने अक्टूबर, 2005 में अंकित के होठ का आपरेशन किया। एक वर्ष बाद परिवादनी अपने बेटे के तालू का आपरेशन कराने के लिए उसके पास आयी, उसके तालू का आपरेशन कर दिया। विपक्षी के अनुसार उसने आपरेशन करने के उपरान्त परिवादनी को बताया था कि उसे अपने बेटे की स्पीच थैरेपी भी करानी पड़ेगी। विपक्षी ने यह भी कहा कि आपरेशन और इलाज में उसने किसी प्रकार की कोई कमी अथवा लापरवाही नहीं की। यदि ऐसा होता तो लगभग 4 वर्षों तक परिवादनी अपने पुत्र का उससे इलाज नहीं कराती। ऐम्स अस्पताल, नई दिल्ली, सफदरजंग अस्पताल, नई दिल्ली जौलीग्रान्ड अस्पताल, देहरादून के किसी डाक्टर की उसने कोई रिपोर्ट दाखिल नहीं की, जिसमें कहा गया हो कि विपक्षी ने परिवादनी के बेटे के इलाज अथवा आपरेशन में कोई कमी अथवा लापरवाही की थी। उसने इस संदर्भ में कोई विशेषज्ञ साक्ष्य भी दाखिल नहीं किया। अन्त में विपक्षी ने यह कहते हुए कि परिवादनी द्वारा उसके विरूद्ध लगाये गये आरोप मिथ्या एवं आधारहीन है, परिवाद को सव्यय खारिज किये जाने की प्रार्थना की।
परिवादनी ने प्रतिउत्तर कथन कागज सं.-19/1 लगायत 19/3 और उसके समर्थन में शपथपत्र कागज सं.-20/4 लगायत 20/6 दाखिल किया। उसने हिमालय इंस्टीट्यूट आफ मेडिकल साइंसेस जौलीग्रान्ड अस्पताल के चिकित्सीय पर्चों की छायाप्रतियां कागज सं.-22/1 लगायत 22/6 भी दाखिल कीं।
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परिवादनी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि वर्ष 2005 में परिवादनी ने एक पुत्र को जन्म दिया, जिसका नाम अंकित रखा गया। अंकित का ऊपर का होठ जन्म से ही कटा हुआ था, उसके इलाज हेतु परिवादनी उसे दिनांक 28-9-2005 को लेकर विपक्षी के अस्पताल में गई, उस समय अंकित की उम्र लगभग सवा महीने की थी। अंकित को देखकर विपक्षी ने उसके होठ का ऑपरेशन करने की सलाह दी और बताया कि कुछ महीनों में वह ठीक हो जायेगा। परिवादनी के अधिवक्ता का अग्रेत्तर तर्क है कि दिनांक 18-10-2005 को परिवादनी के पुत्र अंकित के होठ का आपरेशन विपक्षी ने किया, उसके बाद वर्ष 2008 में उसका दूसरा ऑपरेशन विपक्षी ने किया। लगभग 4 साल तक विपक्षी से इलाज कराने के बावजूद अंकित को कोई फायदा नहीं हुआ। विपक्षी ने अंकित का आपरेशन करने के दौरान उसके तालू में छेद भी कर दिया, जिससे नाक और मुह का छेद और खोल दिया, जिससे अंकित को जब कुछ खाने के लिए दिया जाता था तो मुह के बजाय वह नाम में अटक जाता था और अंकित की सांस रूक जाती थी। चिकित्सीय लापरवाही करके विपक्षी ने अंकित का चेहरा भी बिगाड़ दिया। पत्रावली पर उपलब्ध चिकित्सीय प्रपत्रों की ओर हमारा ध्यान आकर्षित करते हुए परिवादनी के अधिवक्ता ने यह भी कहा कि वर्ष 2009 में अंकित को परिवादनी ने ऐम्स और सफदरजंग अस्पताल, नई दिल्ली में दिखाया, जहां अंकित को देखकर चिकित्सकों ने बताया कि उसका गलत आपरेशन कर दिया गया है, अब बच्चा ठीक नहीं हो सकता। परिवादनी की ओर से यह तर्क देते हुए कि विपक्षी द्वारा बरती गई चिकित्सीय लापरवाही के कारण परिवादनी के पुत्र अंकित की यह हालत हुई है, परिवाद में अनुरोधित अनुतोष परिवादनी को दिलाये जाने की प्रार्थना की। विपक्षी के विद्वान अधिवक्ता ने प्रतिउत्तर तर्कों में कहा कि परिवादनी के पुत्र अंकित
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के होठ के दो आपरेशन परिवादनी की सहमति से किये गये हैं किन्तु उसने अंकित के आपरेशन में कोई चिकित्सीय लापरवाही नहीं बरती। चिकित्सा शास्त्र के अनुसार उसने यथासंभव अंकित को ठीक करने का प्रयास किया था। विपक्षी के अधिवक्ता ने पत्रावली पर उपलब्ध चिकित्सीय प्रपत्रों को इंगित करते हुए तर्क दिया कि परिवादनी का पुत्र अंकित पैदायश से ही Bilatural Cleft lip with Palate से पीडि़त था। परिवादनी को सब कुछ बता और समझाकर, उसकी सहमति से दिनांक 18-10-2005 को और फिर उसके लगभग एक वर्ष बाद विपक्षी ने परिवादनी के पुत्र के ऊपर के होठ का आपरेशन किया था, जिसमें उसने कोई लापरवाही नहीं बरती। विपक्षी के अधिवक्ता ने यह भी कहा कि अंकित का ऊपर का होठ बचपन से ही कटा हुआ था और यह कुरूपता उसके ऊपरी तालू में भी थी और उसके ऊपरी तालू तथा नाक आरपार खुले थे। परिवादनी का यह कथन नितान्त असत्य है कि विपक्षी ने इलाज एवं आपरेशन के दौरान अंकित के नाक और मुह का छेद खोल दिया था।
परिवादनी के स्वयं के अनुसार उसने अपने पुत्र अंकित को सबसे पहले दिनांक 28-9-2005 को विपक्षी को दिखाया था। विपक्षी के दिनांक 28-9-2005 के इस चिकित्सीय पर्चे की छायाप्रति पत्रावली का कागज सं.-3/40 है। विपक्षी ने इस पर्चे में चित्र सहित यह उल्लेख कर रखा है कि परिवादनी के पुत्र अंकित को Bilatural Cleft lip with Palate है। कहने का आशय यह है कि जब अपने एक माह के पुत्र अंकित को लेकर दिनांक 28-9-2005 को परिवादनी विपक्षी के अस्पताल में गई थी, उस समय अंकित के ऊपरी होठ में Bilatural Cleft तो था ही, यह Cleft उसके ऊपरी तालू तक Extended था। 6....
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सफदरजंग अस्पताल,नई दिल्ली के चिकित्सीय पर्चे कागज सं.-3/42 लगायत 3/44 हैं। ऐम्स अस्पताल, नई दिल्ली के चिकित्सीय प्रपत्र कागज सं.-3/45 लगायत 3/49 हैं। जौलीग्रान्ड अस्पताल देहरादून के चिकित्सीय प्रपत्र कागज सं.-3/12 लगायत 3/16 हैं। सफदरजंग, ऐम्स तथा जौलीग्रान्ड अस्पताल के चिकित्सीय प्रपत्रों में भी अंकित के Cleft Palate से ग्रसित होने का उल्लेख है। इस प्रकार पत्रावली पर उपलब्ध चिकित्सीय प्रपत्रों से यह भली-भॉति प्रमाणित है कि परिवादनी का पुत्र अंकित जन्म से ही Bilatural Cleft lip with Palate से पीडि़त था। परिवादनी द्वारा विपक्षी पर लगाया गया यह अरोप कि विपक्षी ने चिकित्सीय लापरवाही करके अंकित के नाक और मुह के छेद को खोल दिया था, मिथ्या एवं आधारहीन है। यहां यह उल्लेख करना भी समीचीन होगा कि परिवादनी ने ऐसी कोई विशेषज्ञ ओपिनियन भी दाखिल नहीं की है, जिससे यह प्रकट हो कि विपक्षी ने अंकित का इलाज एवं आपरेशन करने में किसी प्रकार की कोई चिकित्सीय लापरवाही बरती थी। उपरोक्त विवेचन के आधार पर हम इस निष्कर्ष पर पहुंचते हैं कि परिवाद खारिज होने योग्य है।
परिवादनी का परिवाद विरूद्ध विपक्षी खारिज किया जाता है। मामले के तथ्यों एवं परिस्थितियों के दृष्टिगत उभयपक्ष अपना परिवाद व्यय स्वयं वहन करेंगे।
(सत्यवीर सिंह)(पवन कुमार जैन)
आज यह निर्णय एवं आदेश हमारे द्वारा हस्ताक्षरित तथा दिनांकित होकर खुले न्यायालय में उद्घोषित किया गया।
(सत्यवीर सिंह)(पवन कुमार जैन)
दिनांक: 07-02-2018
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