Rajasthan

Kota

CC/223/2008

Maina gupta - Complainant(s)

Versus

Dr. Deepak Gohadkar, Rajdeep Fertiliti Research Centre - Opp.Party(s)

Puranmal sharma

10 Feb 2016

ORDER

जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोश मंच, झालावाड,केम्प कोटा।
पीठासीन अधिकारी:-श्री नन्दलाल षर्मा,अध्यक्ष व श्री महावीर तंवर सदस्य।

प्रकरण संख्या-223/2008
    
1    मैना पत्नि श्री लोकेष गुप्ता, निवासी-लुहार गली बून्दी तहसील एवं जिला बून्दी (राज0)।
2    लेाकेष गुप्ता पुत्र श्री गोपी लाल गुप्ता निवासी-लुहार गली बून्दी तहसील एवं जिला बून्दी (राज0)।
                                                                      -परिवादीगण।                                                                                        
                            
                         बनाम  

1    राजदीप फर्टीलिटी रिसर्च सेण्टर,सेण्ट्रल एकेडमी स्कूल के पास,अण्टाघर चैराहा सरस्वती काॅलोनी,कोटा (राज0)।
2    राजदीप मेटरनिटी एवं नर्सिंग होम छावनी मेनरोड, कोटा द्वारा डा0 देष दीपक।
3    डा0 राज श्री दीपक गोहदकर द्वारा राजदीप फर्टीलिटी रिसर्च सेण्टर,सेण्ट्रल एकेडमी स्कूल के पास,अण्टाघर चैराहा सरस्वती काॅलोनी,कोटा (राज0)।
4    डा0 देषदीपक द्वारा, राजदीप मेटरनिटी एवं नर्सिंग होम छावनी मेनरोड,कोटा।
5    नेषनल इंष्योरेंस कम्पनी लिमिटेड जर्ये मण्डलीय कार्यालय,झालावाड रोड,कोटा (राज0)।
                                                              -विपक्षीगण।

               परिवाद अन्तर्गत धारा 12 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986

उपस्थिति-

1    श्री पूरनमल षर्माअधिवक्ता ओर से परिवादीगण।
2    श्री दीपक बबलानी,अधिवक्ता ओर से विपक्षी संख्या-1 लगायत 4 ।
3    श्री भीमसिंह यादव,अधिवक्ता ओर से विपक्षी संख्या-5 ।                                        
                 
                              निर्णय                   दिनांक 10.02.2016    


यह पत्रावली जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोश मंच, कोटा में पेष की गई तथा निस्तारण हेतु जिला मंच, झालावाड केम्प, कोटा, को प्राप्त हुई है।

      प्रस्तुत परिवाद ब्वदेनउमत च्तवजमबजवद ।बज 1986 की धारा 12 के तहत दिनांक 27-09-2007 को परिवादी ने इन अभिवचनों के साथ प्रस्तुत किया है कि परिवादिनी-1 के गर्भाधान की आषंका होने पर दिनांक 18-02-2005 को विपक्षी-1 संस्थान में विपक्षी-3 को 
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दिखाया और गर्भवती होना पाये जाने पर परिवादीगण ने षुगर पेषेन्ट होना बता दिया था। विपक्षीगण ने प्रसव हेतु सम्भावित तारीख 12-10-2005 दी थी किन्तु प्रसव पीड़ा महसूस करने पर दिनंाक 27-09-2005 को विपक्षी-3 को दिखाया तो उसी दिन सोनोग्राफी करवायी और रात्रि 11 बजे प्रसव हेतु भर्ती किया। विपक्षी ने सोनोग्राफी व उसकी रिपोर्ट को परिवादीगण को नहीं दिया। सोनोग्राफी रिपोर्ट के अनुसार बच्चे का वजन सामान्य से ज्यादा होना पाया था जिसका उल्लेख विपक्षी-3 ने उपचार-पत्र में किया है। परिवादिनी-1 के सामान्य प्रसव हेतु विपक्षी-2 व उनके नर्सिंग स्टाफ ने लगभग ढाई घण्टे तक प्रयास किया जिसमें दबाव व बल का प्रयोग किया जिसके कारण काफी षारीरिक व मानसिक पीड़ा सहन करनी पड़ी। षुगर पेषेन्ट के सामान्य प्रसव में कई प्रकार की जटिलताओं की संभावना रहती है फिर भी विपक्षी-3 द्वारा अनावष्यक रूप से सामान्य प्रसव का प्रयास किया और इसमें सफल नहीं होने पर दिनांक 28-09-2005 को 2रू00।ड पर आॅपरेषन की सलाह दी तथा 2रू07।ड पर आॅपरेषन से प्रसव करा दिया गया। आॅपरेषन से पुत्र पैदा हुआ किन्तु बच्चे का रंग एकदम नीला पड़ा हुआ था एवं बच्चा वजन में भारी हो गया था तथा वह प्रसव के आधा घण्टे बाद तक नहीं रोया। प्रसव के समय अथवा उसके पष्चात् भी षिषु रोग विषेशज्ञ मौजूद नहीं थे। आॅपरेषन से पूर्व प्रसव हेतु किये गये प्रयास से बच्चे के हृदय पर भार पड़ने से हृदय विस्तारित हो गया था। आॅपरेषन से प्रसव कराये जाने के बाद बच्चे में असामान्य लक्षण पाये जाने पर परिवादी-2 ने विपक्षी-2 व 4 से सम्पर्क किया तो उन्होंने षिषु के षरीर में पानी चले जाने के कारण वजन बढ़ना बताया एवं देरी से आॅपरेषन होना कारण बताया तथा षिषु के नहीं रोने का कारण बच्चे के गर्भावस्था में सामान्य प्रसव के प्रयास करने पर मल त्याग करना बताया। विपक्षीगण ने विलम्ब से षिषु को अन्यत्र ले जाने हेतु कहा जिस पर तत्काल सुधा होस्पीटल में ले गये जहाँ बच्चे को मषीनों पर रखा जिसमें काफी व्यय हुआ किन्तु नवजात षिषु को नहीं बचाया जा सका। इस प्रकार विपक्षीगण द्वारा बरती गई लापरवाही के कारण परिवादिनी-1 के प्रसव में जटिलताऐं उत्पन्न हुई जिसके परिणामस्वरूप नवजात षिषु की मृत्यु कारित हो गई। विपक्षीगण का यह कृत्य चिकित्सीय सेवादोश की श्रेणी में आता है। परिवादीगण ने विपक्षीगण से कुल राषि 13,50,00/-रूपये क्षतिपूर्ति के रूप में दिलाये जाने का अनुतोष चाहा है।

     विपक्षी-1 व 3 की ओर सेे परिवाद के जवाब में परिवादिनी-1 को दिखाने आना स्वीकार किया है किन्तु उसकी सोनोग्राफी नहीं की गई थी। परिवादिनी के षुगर पेषेन्ट होने 
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की जानकारी होना स्वीकार किया है। परिवादिनी को विपक्षी-1 के संस्थान में दिनंाक 27-09-2005 को रात्रि के 11रू30.12रू00 बजे के करीब भर्ती हुई थी। जवाब की विषेश आपत्तियों में उल्लेख किया है कि परिवादिनी-1 षुगर पेषेण्ट होने से उसके सातवें महीने में गर्भ में ही बच्चा खत्म हो गया था जिसकी नाॅर्मल डिलेवरी की गई थी। षुगर होने से गर्भावस्था के दौरान हर तरह के काॅम्पलीकेषन्स उत्पन्न होना सम्भव रहता है। सोनोग्राफी या अन्य कोई जाँच बच्चे में उत्पन्न किसी भी विकृति को षत प्रतिषत नहीं बता सकती है, खासकर षुगर पेषेण्ट में ब्वदहमदपजंस उंसजवतउंजपवदे जैसे भ्मंतज कपेमंेमएज्ञपकदमल कपेमंेम मजबण्होना अधिक पाया जाता है। प्रसव आॅपरेषन से पूर्व पेषेण्ट पर कोई बल प्रयोग नहीं किया गया न ही यह बल गर्भ में षिषु के सीधे हृदय तक पहुँच सकता है। यदि षिषु के नहीं रोने का कारण मल त्यागना होता तो जब षिषु के चारों तरफ पानी की थैली फटी,उस समय उसका रंग हरा होता जो नहीं था। नवजात षिषु में कोई जटिलता नहीं हुई। षिषु की मृत्यु उसके परिजनों द्वारा अन्य संस्थान में ले जाने पर तीन दिन बाद हुई है और विपक्षीगण पर जो आरोप लगाये हैं, उस सम्बन्ध में कोई दस्तावेजी साक्ष्य पेष नहीं की है। परिवादीगण ने सुधा होस्पीटल को पक्षकार नहीं बनाया है, जो कि आवष्यक पक्षकार है। परिवादीगण का षिषु एब्नोर्मल पैदा नहीं हुआ था और न ही आॅपरेषन के दौरान विपक्षीगण ने कोई लापरवाही बरती है। परिवादीगण कोई अनुतोश प्राप्त करने के अधिकारी नहीं हैं। परिवाद सव्यय निरस्त किये जाने की प्रार्थना की है। 

    विपक्षी संख्या-2 व 4 की ओर से परिवाद का यह जवाब दिया है कि उनको परिवाद में अनावष्यक ही पक्षकार बनाया गया है, परिवादीगण ने अपने परिवाद में उनकी कोई नेग्लीजेन्सी नहीं बतायी है। परिवाद सव्यय निरस्त किये जाने की प्रार्थना की है।
 
    विपक्षी-5 ने परिवाद का यह जवाब दिया है कि विपक्षी बीमा कम्पनी ने राजदीप फर्टिलिटी रिसर्च सेंटर के लिए किसी प्रकार की कोई बीमा पाॅलिसी जारी नहीं की है न ही सम्बन्धित चिकित्सकों के बाबत् व उनके द्वारा किये गये इलाज से सम्बन्धित किसी प्रकार का जोखिम बीमा पाॅलिसी में आवरित किया गया। विपक्षी ने कोई लापरवाही नहीं बरती है, परिवादीगण कोई अनुतोश प्राप्त करने के अधिकारी नहीं हैं। परिवाद सव्यय निरस्त किये जाने की प्रार्थना की है।
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     परिवाद के समर्थन में परिवादी ने स्वयं का षपथ पत्र तथा प्रलेखीय साक्ष्य में म्ग.1 लगायत म्ग.16 दस्तावेज तथा विपक्षी की ओर से जवाब के समर्थन में श्री ओमप्रकाश मीणा लेखाधिकारी का शपथपत्र तथा प्रलेखीय साक्ष्य में एक म्गक.1 लगायत म्गक.10 दस्तावेज प्रस्तुत किये हैं।  
    उपरोक्त अभिवचनों के आधार पर बिन्दुवार निर्णय निम्न प्रकार है:-
1    क्या परिवादीगण विपक्षीगण के उपभोक्ता हैं ?

    परिवादीगण का परिवाद,षपथ-पत्र तथा प्रस्तुत दस्तावेजात के आधार पर परिवादी विपक्षी का उपभोक्ता होना प्रमाणित पाया जाता है। 
2    आया परिवाद अवधि बाधित है ?

     उभयपक्षों को सुना गया पत्रावली का अवलोकन किया तो स्पश्ट हुआ कि परिवादिनी-1 का आॅपरेषन दिनंाक 28-09-2005 को हुआ और विपक्षी संख्या-5 नेषनल इंष्योरेंस कम्पनी को दिनंाक 20-05-2009 को नोटिस जारी किया गया है। इस प्रकार विपक्षी-5 के खिलाफ चार वर्श बाद परिवाद पेष किया है जो अवधि बाधित है। षेश विपक्षीगण के बारे में तर्क है कि घटना 2005 की है और परिवाद वर्श 2008 में पेष किया गया है परन्तु विपक्षीगण का यह तर्क मानने योग्य नहीं है क्योंकि परिवादिनी संख्या-1 का आॅपरेषन 28-09-2005 को हुआ है और मंच में परिवाद दिनंाक 27-09-2007 को पेष किया है। इस प्रकार विपक्षी संख्या-1 से 4 के सम्बन्ध में परिवाद अवधि बाधित नहीं माना जा सकता है।

3    क्या विपक्षीगण ने सेवामें कमी की है ?


  उभयपक्षों को सुना गया, पत्रावली का अवलोकन किया तो स्पश्ट हुआ कि परिवादिनी संख्या-1 डायबिटीज की पेषेण्ट थी, वह गर्भवती थी। विपक्षीगण ने प्रसव की संभावित तारीख 12-10-2005 दी परन्तु परिवादिनी को प्रसव पीड़ा महसूस होने पर दिनंाक 27-09-2005 को विपक्षी-3 को दिखाया और उसी दिन भर्ती करके सोनोग्राफी करवायी गई और अन्त में दिनंाक 28-09-2005 को दो बजे के आसपास आॅपरेषन द्वारा प्रसव कराया गया। इन तथ्यों से विपक्षीगण भी असहमत नहीं है। इसके बाद परिवादीगण का कहना है कि विपक्षीगण ने नियत तारीख से पूर्व ही आॅपरेषन कर डाला। लेकिन यह तर्क परिवादीगण का मानने योग्य
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नहीं है क्योंकि प्रसव जैसे मामलों में चिकित्सक की मनमानी नहीं चलती बल्कि प्रसव की पीड़ा झेल रही औरत के भले के लिए कार्य किया जाता है।

    जहाँ तक परिवादीगण का कहना है कि बच्चे का वजन ज्यादा था च्तमउंजनत कमसपअमतल के कारण दबाव ज्यादा पड़ा इसलिए षिषु नीला पड़ गया, परिवादीगण का यह तर्क भी मानने योग्य नहीं है क्योंकि मेडीकल साइन्स के अनुसार षिषु का वजन 4 ज्ञहण्से ज्यादा होता तो व्अमत ूंपज माना जा सकता था लेकिन षिषु का वजन किया तो वह 3ण्7 ज्ञहण् का पाया गया जो पत्रावली में उपलब्ध दस्तावेज से प्रमाणित है। परिवादीगण ने परिवाद के पैरा नंबर 9 के अनुसार यह आरोप लगाया है कि षिषु को षिफ्ट करने के लिए विलम्ब से सूचना दी। सुधा अस्पताल में कब भर्ती किया और कब षिषु की मृत्यु हुई, ऐसा स्पश्ट अंकन नहीं है जबकि विपक्षीगण ने बताया है कि जच्चा और बच्चा की सुरक्षा के लिए षिषु को अन्य अस्पताल में ले जाने की सूचना तुरन्त दे दी गई थी और सुधा अस्पताल में भर्ती होने के बाद षिषु की मृत्युु तीन दिन बाद हुई, इस तथ्य का खण्डन परिवादीगण ने नहीं किया है इसलिए यह माना जायेगा कि सूचना तुरन्त दे दी। सुधा अस्पताल में दाखिल होने के बाद षिषु की मृत्यु तीन दिन बाद हुई। जब विपक्षीगण के संस्थान से षिषु कुषलपूर्वक ट्रान्सफर हुआ और सुधा अस्पताल में तीन दिन बाद षिषु की मृत्यु हुई तो सुधा अस्पताल के चिकित्सकों के बारे में परिवादीगण द्वारा कोई रिलीफ नहीं माँगना और सुधा अस्पताल के संबंधित चिकित्सकों को पक्षकार नहीं बनाना, सुधा अस्पताल में एडमिट होना और कितने दिन बाद षिषु की मृत्यु होना स्पश्ट नहीं करने से परिवादीगण का स्वच्छ हस्त से मंच में आना संदिग्ध प्रतीत होता है।
    विपक्षीगण की सेवामें क्या कमी रही, उन्होंने क्या लापरवाही बरती, यह स्पश्ट रूप से साबित नहीं किया है क्योंकि च्तमउंजनत कमसपअमतलए षिषु का नीला पड़ना, व्अमत ूंपज होना,  ये सभी तथ्य विपक्षीगण ने खण्डित कर दिये हैं। 

    परिवादीगण ने विपक्षीगण की लापरवाही के सन्दर्भ में किसी विषेशज्ञ की रिपोर्ट पेष नहीं की है जबकि विपक्षीगण ने डाॅक्टर मोहन आर्य, षिषु विषेशज्ञ, का षपथपत्र पेष किया है जिसने तत्समय षिषु का चिकित्सीय परीक्षण किया था और अपनी राय का साक्ष्य के रूप में षपथ पत्र भी प्रस्तुत किया है कि प्रार्थिया डायबिटीज रोग से ग्रसित थी, ऐसी माँ के बच्चे में 
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जन्म-जात विकृति होना संभव है। चिकित्सक द्वारा किसी प्रकार की कोई लापरवाही नहीं बरती गई। इस प्रकार प्रार्थिया के बजाय विपक्षीगण के तथ्य ज्यादा विष्वसनीय हैं। इस बिन्दु पर विपक्षीगण द्वारा प्रस्तुत न्यायिक दृश्टान्त बलवन्त कौर बनाम डाॅक्टर कंवलजीत कौर 1998 ब्च्श्र ;1द्ध  से प्रकाष प्राप्त होता है। 
    इस प्रकार उपरोक्त तथ्यों के विवेचन और विष्लेशण के आधार पर परिवादीगण विपक्षीगण के खिलाफ किसी प्रकार का सेवादोश प्रमाणित करने में सफल नहीं रहे हैं। 
4    अनुतोश ?

    परिवादीगण का परिवाद खिलाफ विपक्षीगण खारिज किया जाता है।                                             
                           आदेष  
       परिणामतः परिवादीगण का परिवाद खिलाफ विपक्षीगण खारिज किया जाता है। प्रकरण के तथ्यों एवं परिस्थितियों को दृश्टिगत रखते हुए उभयपक्ष अपना अपना परिवाद का खर्चा वहन करेंगे।

         (महावीर तंवर)                                       (नन्द लाल षर्मा)
      सदस्य                                   अध्यक्ष
   जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोश मंच                          जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोश मंच
      झालावाड केम्प,कोटा (राज0)                                झालावाड केम्प,कोटा (राज0)
                               


  निर्णय आज दिनंाक 10.02.2016 को लिखाया जाकर खुले मंच में सुनाया गया। 


         (महावीर तंवर)                                       (नन्द लाल षर्मा)
      सदस्य                                   अध्यक्ष
   जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोश मंच                          जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोश मंच
      झालावाड केम्प,कोटा (राज0)                                झालावाड केम्प,कोटा (राज0)
                               

 

 

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