जिला मंच, उपभोक्ता संरक्षण, अजमेर
श्रीमति सरोज देवी पत्नी श्री दीपक कुमार, निवासी- ईष्वर बस्ती, मकान नं. 402/34, श्रीनगर रोड, अजमेर ।
- प्रार्थिया
बनाम
1. डा. आलोक गर्ग(निदेषक)
2. डा.षिव कुमार धवन(कर्मचारी)
3. डा. अखिलेष भार्गव(कर्मचारी)
4. श्री मनोज दिवाकर(कम्पाउण्डर)
राजस्थान अस्पताल, अलवर गेट, नसीराबाद रोड, अजमेर ।
- अप्रार्थीगण
पुराना परिवाद संख्या 40/2005
नया परिवाद संख्या 72/2014
समक्ष
1. विनय कुमार गोस्वामी अध्यक्ष
2. श्रीमती ज्योति डोसी सदस्या
3. नवीन कुमार सदस्य
उपस्थिति
1.श्री जसपाल सिंह सोढी, अधिवक्ता, प्रार्थिया
2.श्री सूर्यप्रकाष गांधी, अधिवक्ता अप्रार्थी
मंच द्वारा :ः- निर्णय:ः- दिनांकः-31.08.2016
1. यहां यह उल्लेखनीय है कि इस मंच द्वारीा दिनंाक 30.11.2006 को पारित निर्णय के विरूद्व अपील किए जाने की स्थिति में माननीय राज्य आयोग सर्किट बैंच संख्या 2 , राजस्थान,जयपुर द्वारा अपील संख्या 107/07 में दिनंाक 17.7.2012 को निर्णय पारित करते हुए इस मंच के आदेष दिनंाक 30.11.2006 को अपास्त करते हुए प्रकरण इस निर्देष के साथ प्रतिप्रेषित किया गया है कि मंच परिवाद के गुण-दोषों पर यह निर्णित करेंकि क्या अप्रार्थीगण द्वारा दिए गए इंजेक्षन से विकास कुमार के हाथ में सेप्टीसेमिया व गैंगरीन हुआ ? तथा क्या इंजेक्षन देने की लापरवाही के कारण ऐसा हुआ है ? या यह एक स्वाभाविक प्रक्रिया है तथा यह भी निर्देष दिया है कि मंच यह भी तय करे कि क्या गैंगरीन के कारण विकास कुमार की मृत्यु हुई है ?
2. प्रार्थिया द्वारा प्रस्तुत परिवाद के तथ्य संक्षेप में इस प्रकार हंै कि अप्रार्थी अस्पताल के न्यूरो सर्जन डा. धवन से दूरभाष पर वार्ताकर उसे यह विष्वास दिलाए जाने पर की सिर की चोट का सुचारू रूप से उनके अस्पताल में इलाज किया जाता है तो उसने उसके पुत्र के दिनंाक 26.10.2004 सिर पर चोट आने पर उसे अप्रार्थी अस्पताल में भर्ती करवाया गया और रू. 1000/- जमा कराए । किन्तु अप्रार्थी अस्पताल में उसे कोई तुरन्त आपातकालीन चिकित्सा नहीं दी गई और डा. धवन अस्पताल में आधे घण्टे बाद पहुंचे तो उन्हें सिर में चोट किस तरह लगी बताया साथ ही यह भी बताया कि उसके पुत्र ने दो बार उल्टी भी की है । डा. धवन के निर्देषानुसार जब अस्पताल स्टाफ उसके पुत्र के टांके लगा रहा था तो उसे बीच में रोक कर प्रताप मेमोरियल रिसर्च सेन्टर से उसके सिर की सीटी स्केन करा कर लाने के लिए कहा गया । संबंधित अस्पताल से जब उसके पुत्र की सीटी स्केन करवाई गई । प्रार्थिया के सीटी स्केन करवाने इत्यादि में 2200/- खर्च हो गए । रिपोर्ट प्राप्त होने पर डा. धवन ने अन्य डाक्टर अखिलेष भार्गव को विचार विमर्ष के लिए बुलाया । इसी मध्य उसके पुत्र को होष आ जाने व दर्द से चिल्लाने पर डा. धवन ने प्रार्थिया को अवगत कराया कि सिर में मामूली सी खरोंच है, जो जल्दी ही ठीक हो जाएगी और कुछ दवाईयां लिख कर दी और अस्पताल स्टाफ को ड्रिप चढ़ाने व इंजेक्षन लगाने का निर्देष दिया । इस प्रकार उसके पुत्र का षाम 8.00 बजे इलाज षुरू किया । दूसरे दिन दिनांक 27.10.2004 को जब उसके पुत्र को होष नहीं आया तो उसने डा. धवन को इस संबंध में अवगत कराया तो डाक्टर ने कहा कि सुबह तक होष जा जाएगा । किन्तु अगले दिन दिनंाक 28.10.2004 को भी होष नहीं आया । तत्पष्चात् डा. अखिलेष आए तब तक उसके पुत्र का षरीर बुरी तरह अकड़ गया था और जिस हाथ पर ड्रिप चढ़ रही थी, वह सूज गया और सूजी हुई जगह काली पड़ गई । डाक्टरों द्वारा उसे आष्वस्त किया गया कि इंजेक्षन की वजह से यह हुआ है और खतरें की कोई बात नहीं है । दिनांक 29.10.2004 व 30.10.2004 को उसके पुत्र की हालत में कोई सुधार नहीं हुआ । उसके पुत्र की हालत बिगड़ने पर डा. धवन ने इंजेक्षन देना ष्षुरू किया तब तक उसके पुत्र का षरीर ठण्डा पड़ चुका था और जिस हाथ पर ड्रिप चढ रही थी वह भी काला पड़ गया । प्रार्थिया ने डा. धवन को अवगत कराया कि पिछली रात को कम्पाउण्डर ने उसके पुत्र को इंजेक्षन लगाया था तब से उसके पुत्र का षरीर पीला पड़ गया है और ष्षरीर ठण्डा हो गया था तब डा. धवन ने अपने स्टाफ को उसके पुत्र को दिए गए इंजेक्षन के बारे में जानकारी प्राप्त की और स्टाफ को डांटा । प्रातः 9.00 बजे जब डाक्टर अखिलेष आए और उन्होने उसके पुत्र का निरीक्षण कर बताया कि दस्त के कारण ऐसा हुआ है और डीहाड्रेषन हो गया है । तत्पष्चात् डाक्टरों ने उसके पुत्र को एसएमएस अस्पताल ले जाने की सलाह दी और उसके पुत्र के साथ जयपुर तक उनके कम्पाउण्डर श्री मनोज दिवाकर को भेजा । जिसे उन्होने रू. 1800/- अदा किए । जयपुर जाते समय रास्ते में उसके पुत्र को ड्रिप चढ़ाई गई । किन्तु ड्रिप का लिक्विड नसों में जाने के बजाय खून के जरिए वापस सिरिंज में आने लगा । अप्रार्थी के कम्पाउण्ड को इस स्थिति से अवगत कराने पर उसने बताया कि एम्बुलेंस की उंचाई कम होने के कारण ऐसा हो रहा है । जब वे एसएमएस अस्पताल, जयपुर पहुंचे और वहां डाक्टरों को दिखाया तो उन्होने बताया कि मरीज अद्र्वमृत अवस्था की स्थिति में पहुंच गया है और उसके बचने की कोई उम्मीद नहीं है । डाक्टरों ने अप्रार्थी के कम्पाउण्डर से सारी स्थिति की जानकारी चाही । किन्तु उसने अनभिज्ञता प्रकट की और अपने रू. 1800/- लेकर चला गया । उसके पुत्र की गम्भीर हालत को देख कर उसे एसएमएस अस्पताल, जयपुर में भर्ती कर लिया गया । अप्रार्थी व उसके स्टाफ की लापरवाही के कारण उसके पुत्र के हाथ में गेंगरीन से इन्फेक्षन हो गया है और इन्हीं सब कारणों से प्रार्थिया के पुत्र की दिनांक 5..11.2004 को मृत्यु हो गई । प्रार्थिया का कथन है कि अप्रार्थीगण की लापरवाही के कारण उसके इकलौते पुत्र की मृत्यु हुई है और उनका यह कृत्य सेवा में कमी व घोर लापरवाही का द्योतक है । प्रार्थिया ने परिवाद प्रस्तुत कर उसमें वर्णित अनुतोष दिलाए जाने की प्रार्थना की है ।
2. अप्रार्थी संख्या 1 नेे जवाब प्रस्तुत करते हुए कथन किया है कि वह राजस्थान अस्पताल का निदेषक है । उत्तरदाता के अस्पताल में न्यूरोसर्जन की न तो कोई सुविधा है और ना ही डा. धवन से प्रार्थिया के पुत्र के इलाज के संबंध में वार्ता की गई । प्रार्थिया के पुत्र को दिनंाक 29.10.2004 को दोपहर
12.30 बजे उनके अस्पताल में लाया गया । प्रार्थिया ने रू. 1000/- जमा कराए। प्रार्थिया के पुत्र के अस्पताल पहुंचने पर डा. अखिलेख भारद्वाज ने चिकित्सकीय परीक्षण किया । चूंकि मरीज मिर्गी का रोगी था और उसे हैड इन्जरी थी इसलिए डाक्टर के निर्देष पर मरीज के सिर के घाव की सफाई करके आवष्यक टांके लगा कर पट्टी कर व दवा देकर सीटी स्केन जो उनके यहां उपलब्ध नहीं थी, कराने के लिए प्रताप मेमोरियल अस्पताल भेजा गया । सीटी स्केन में अंकित रिपोर्ट भ्मउवततींहपब ब्वतजपबंस ब्वदजनेपवद त्जण् थ्तवदजंस स्वइम के आधार पर डाक्टर भारद्वाज ने अस्पताल के वरिष्ठ सर्जन डा. पी. प्रसाद को सर्जिकल ओपनियन के लिए रैफर किया । प्रार्थिया के पुत्र के अस्पताल में भर्ती होने के दौरान बी. पी व पल्स सही चल रही थी और डा. पी. प्रसाद ने भी यही पाया और डा. भारद्वाज द्वारा दी गई दवाईयों को ही चालू रखने का निर्देष दिया । मरीज की हालत के संबंध में उसके परिजनों को अवगत करा दिया गया था । दिनंाक 20.10.2014 को भी मरीज की दोनों आंखों की पुतली दोनों तरफ रिएक्ट कर रही थी और मरीज डाक्टर के मौखिक कमाण्ड को समझ रहा था । मरीज द्वारा दस्त की षिकायत करने पर डाक्टर द्वारा लिखी गई दवाई दी गई । जिससे मरीज की हालत में सुधार हुआ था किन्तु मरीज के रिष्तेदारों के निवेदन पर डा. भारद्वाज ने मरीज को एमएसएम अस्पताल, जयपुर के लिए रैफर कर दिया और डा. धवन ने इसका डिस्चार्ज टिकिट बनाया । प्रार्थिया के पति के निवेदन पर उनके यहां कार्यरत नर्सिग स्टाफ को मरीज की देखभाल करने हेतु रू. 300/- के चार्ज पर एम्बुलेंस के साथ भेजा गया । उनके यहां से रवाना होते समय मरीज की हाल स्थिर थी । अप्रार्थी या उसके अस्पताल के किसी भी डाक्टर या नर्सिग स्टाफ की गलती से प्रार्थिया के पुत्र की मृत्यु नहीं हुई है । प्रार्थिया ने डा. पी. प्रसाद को जो परिवाद में आवष्यक पक्षकार है, को पक्षकार नहीं बनाया है । प्रार्थिया द्वारा प्रस्तुत परिवाद में चिकित्सकीय लापरवाही के ऐसे तथ्य निहित हंै जो बिना साक्ष्य निर्णित नहीं किए जा सकते । परिवाद में किसी भी मेडिकल एक्सपर्ट की राय या साक्ष्य प्रस्तुत नहीं की है, जिससे यह साबित हो सके कि अप्रार्थी उत्तरदाता के यहां कार्यरत किसी डाक्टर या नर्सिग स्टाफ की लापरवाही से प्रार्थिया के पुत्र की मृत्यु हुई है । मंच को परिवाद सुनने का श्रवणाधिकार नही ंहै । परिवाद सिविल न्यायालय में चलने योग्य है । अन्त में परिवाद सव्यय निरस्त किए जाने की प्रार्थना करते हुए जवाब परिवाद के समर्थन में डा. आलोक गर्ग ने अपना ष्षपथपत्र पेष किया है ।
3. अप्रार्थी संख्या 2 लगायत 4 ने जवाब पेष करते हुए कथन किया है कि डा. धवन राजस्थान अस्पताल के प्रबन्धक व मैनेजमेंट के रूप में कार्य करते हंै । अप्रार्थी अस्पताल की चिकित्सकीय विषेषज्ञ सूची ओपीडी की पर्ची में डा. धवन का नाम कहीं भी अंकित नहीं है । अप्रार्थी अस्पताल में न्यूरों सर्जन की सुविधा उपलब्ध नहीं है इसलिए प्रार्थिया का यह कथन गलत है कि डा. धवन से फोन पर बात करके उसे यह विष्वास दिलाया गया हो कि उसके पुत्र की सिर के चोट का इलाज सम्पूर्ण रूप से उनके यहां हो जाएगा । प्रार्थिया के पुत्र को दिनंाक 26.10.2004 को दोपहर 12.15 बजे अस्पताल लाया गया और ओपीडी रिकार्ड के अनुसार 3181 पर उसे आपतकालीन कक्ष में भर्ती किया गया और उस समय ड्यूटी पर उपस्थित फिजीषियन डा. अखिलेख भारद्वाज को दिखाया गया । मरीज के पिता ने तत्समय अवगत कराया कि उसका पुत्र पिछले 10वर्षो से मिर्गी का मरीज है और आज प्रातः 7.30 बजे दीवार से गिर जाने के कारण उसके सिर में चोट आई और इसके बाद उसे पांच बार मिर्गी के दौरे भी आए हैं । स्थानीय डाक्टर को दिखा कर प्रारम्भिक उपचार लिया गया है और टिटनेस का इंजेक्षन भी लगवाया गया है और उन्होने मरीज को 12.00 बजे तक घर पर रखा है । तबियत ज्यादा खराब होने पर अप्रार्थी के अस्पताल लाया गया है । आगे अप्रार्थी संख्या 1 द्वारा दिए गए जवाब को दोहराते हुए यथा मरीज के सिर के घाव पर टांके लगाना, तत्पष्चात् सीटी स्केन करवाना, डा. पी. प्रसाद को दिखाना इत्यादि का कथन करते हुए दर्षाया है कि दिनंाक 27.10.2004 की षाम को ही डा. भारद्वाज ने रोगी के परिवार के सदस्यों को रोगी की बीमारी के बारे में सब कुछ समझा दिया गया और यह भी समझा दिया गया था कि वे चाहे तो मरीज को इलाज के लिए उच्च सुविधा केन्द्र पर ले जा सकते है । दिनंाक 29.10.2004 को डा. प्रसाद ने च्नचपस त्त्त् पाया जिससे इस बात की पुष्टि होती है कि मरीज की स्थिति ठीक है और उसी दिन मरीज की बीपी व पल्स को सामान्य पाया और दवाओं को चालू रखने का निर्देष दिया गया । दिनंाक 29.10.2004 को मरीज की स्थिति सही थी और वह अपने परिजनों को पहचान रहा था । दिनांक 30.10.2004 की प्रातः 8..00 बजे मरीज का रक्तदबाव कम होने पर उसके इलाज में परिवर्तन किया गया । तत्पष्चात् मरीज के रिष्तेदारों के चाहने पर उसे एसएमएस अस्पताल, जयपुर भेजेने हेतु डिस्चार्ज किया गया था । अस्पताल का बिल रू. 1525/- हुआ जिसमें से प्रार्थिया के द्वारा जमा कराए गए रू. 1000/- समायोजित कर ष्षेष राषि वसूल की गई । मरीज के परिजनों द्वारा ही मनोज दिवाकर को रू. 300/- व खाने पीने का खर्च देकर अपने साथ ले कर जयपुर गए थे । जयपुर जाते समय रास्ते में मरीज को पुनः मिर्गी का दौरा पडा और हाथ झटकने के कारण ड्रिप आउट हो गई थी, जिसे दूसरे हाथ में लगा दिया गया था । जयपुर पहुंचने पर मरीज एसएमएस अस्पताल में 5 दिन तक भर्ती रहा और उसके बाद उसका निधन हुआ है । इस प्रकार उनके स्तर पर कोई इलाज में लापरवाही नहीं की गई थी । अन्त में परिवाद सव्यय निरस्त करने की प्रार्थना करते हुए जवाब के समर्थन में श्री षिव कुमार धवन, डा. भारद्वाज, मनोज दिवाकर के षपथपत्र पेष हुए है ।
4. प्रार्थिया पक्ष का प्रमुख रूप से तर्क रहा है कि उसके पुत्र के हाथ में गेंगरीन व सेप्टीसिमिया अप्रार्थीगण के असावधनीपूर्ण कृत्य के परिणामस्वरूप हुआ है तथा मेडिकल ओपिनियन के अनुसार यह सेप्टीसिमिया इन्जेक्षन देने के कारण हुआ है । पत्रावली में विषेषज्ञ की राय, अस्पताल की पर्चियां, मेडिकल बोर्ड की राय भी उपलब्ध है । निम्नलिखित विनिष्चय प्रस्तुत किए गए है:-
1ण् 2010;2द्ध ब्च्श्र68 ;छब्द्ध त्ंरपअ ैींतउं - व्ते टे भ्मसअमजपं ब्सपदपब च्अज स्जक - व्तेण्
प्द जीपे बंेम भ्वदष्इसम छंजपवदंस ब्वउउपेेपवद ीमसक जींज जीम कमपिबपमदबल पद ेमतअपबमए उमकपबंस दमहसपहमदबम ूंे चतवअमक ंे जीमतम ूंे कमसंल पद ेीपजिपदह व िजीम कमबमंेमक जव निससल मुनपचचमक ीवेचपजंस ंदक जतनम उमकपबंस बवदकपजपवद ूंे दवज उमदजपवदमक पद कपेबींतहम ेनउउमतल ंदक ंसेव ीमसक जींज ीवेचपजंस पे रवपदजसल ंदक ेमतबमतंससल सपंइसम पद उमकपबंस दमहसपहमदबम इल मउचसवलममेण्
2ण् 2008;1द्धब्च्श्र 360 ;छब्द्ध ज्ंहवतम ीवेचपजंस - ंदत टे भ्ंतदंउ ैपदही -ंदतण्
प्द जीपे बंेम भ्वदष्इसम छंजपवदंस ब्वउउपेेपवद ीमसक जींज जीम चंजपमदज ूीव ूंे ेनििमतपदह तिवउ मिअमत ूंे दवज हपअमद दमबमेेंतल ंदक जपउमसल जतमंजउमदज ंदक ूंे कपेबींतहमक तिवउ जीम ीवेचपजंस वितबपइसल ूीव मगचपतमक समजजमत ीवेचपजंस तमबवतके ूमतम ंिइतपबंजमक संउम मगबनेमे ूमतम हपअमद ूीपबी ब्समंतल ेीवूे ेीममत दमहसपहमदबम ंदक ंसेव ीमसक जींज चंजपमदज ूंे ंससवूमक जव ेपदा तिवउ बतपजपबंस जव ंिजंस बवदकपजपवद ंदक ंूंतकमक जीम बवउचमदेंजपवद व ि10ए80ए000ध्.त्े चसने उमकपबंस मगचमदेमे ंदक बवेजण्
3ण् 2002;3द्धब्च्श्र8 ;ैब्द्ध क्तण् श्रण्श्रण्डमतबींदज - व्ते टे ेीतपदंजी ब्ींजनतअमकप
प्द जीपे बंेम भ्वदष्इसम ैनचतमउम ब्वनतज ीमसक जींज ूीमतम जीम बंेमे पदअवसअपदह ुनमेजपवद व िंिबज वत संू बवउचमजमदबल जव कमबपकम छंजपवदंस ब्वउउपेेपवद ीमंकमक इल तमजपतमक रनकहम व िजीपे बवनतज ंदक ैजंजम ब्वउउपेेपवद ीमंकमक इल त्मजपतम भ्पही ब्वनतज श्रनकहम जीमल ंक बवउचमजमदज जव कमबपकम बवउचसपबंजमक पेेनम व िसंू वत ंिबजे ंदक पज पे दवज चतवचमत जव ूीवसम ूीमतम दमहसपहमदबम व िमगचमतज पे ंससमहमक जीम बवदेनउमत ेीवनसक ंचचतवंबी ब्पअपस ब्वनतज
4ण् 1998;1द्धब्च्श्र 181 ज्ञींपतंजप स्ंस टे ज्ञमूंस ज्ञतपेीदं
प्द जीपे बंेम ज्ंतम थ्वतनउ ीमसक जींज ूीमतम जीम पदरमबजपवद ूंे ंकउपदपेजमतमक पद ंतजमतल पदेजमंक व िमअपद ंदक जीम सवेे व िपिदहमत वद ंबबवनदज व िकमअमसवचउमदज व िहंदहतमदम दमहसपहमदबम ूंे चतवअमक ंदक बवउचमदेंजपवद ूंे हतंदजमकण्
5ण् 1996;3द्धब्च्श्र300 ळनतेमूंा ैपदही टे क्तए श्रंेांतंद ैपदही
प्द जीपे बंेम भ्वदष्इसम ैजंजम थ्वतनउ जींज ूीमतम जीम पदरमबजपवद ूंे ंकउपदपेजमतमक दमहसपहमदजसल ूीपबी तमेनसजमक पद बवउचसमजम सवेे व ितपहीज समह व िबवउचसंपदंदज जीम दमहसपहमदबम ूंे चतवअमक ंदक बवउचमदेंजपवद हतंदजमक ंसवदह ूपजी 18ः पदजमतमेजण्
6ण् 2004;3द्धब्च्श्र 257 क्तए छममजं ैीतपकींत टे क्नतंप त्ंरमदकतंद
प्द जीपे बंेम भ्वदष्इसम ैजंजम थ्वतनउ ीमसक जींज ूीमतम ं ीमंसजील चंजपमदज व ि20 लमंते व िंहम ूंे ंकउपजजमक वित वचमतंजपवद ंदक जीम बवदकपजपवद इमबंउम ूवतेम ंदक वद ंकअपेम व िजीम कवबजवते चंजपमदज ूंे ेीपजिमक जव ंदवजीमत ीवेचपजंस ंदक कपमक जीम उमकपबंस दमहसपहमदबम ूंे चतवअमक ंदक ंसेव ीमसक जींज ंिबजे व िबंेम ेचमंा वित जीमउेमसअमे दव मगचमतज मअपकमदबम तमुनपतमकण्
7ण् 2004;1द्धब्च्श्र 329 च्ण्ैनकींांत टे ळवूतप ळवचंस भ्वेचपजंस
प्द जीपे बंेम भ्वदष्इसम ैजंजम थ्वतनउ ीमसक जींज ूीमतम ूीमतम जीम बवउचसंपदंदजष्े ेवद ंहमक 14 लमंते ूंे ंकउपजजमक ंदक जीम ेपेजमत व िजीम ीवेचपजंस ंकउपदपेजमतमक ूतवदह पदरमबजपवद ेीममत दमहसपहमदबम ूंे चतवअमक ंदक जीम व्चे;भ्वेचपजंसए क्वबजवतए ैपेजमतेद्ध ूमतम रवपदजसल ंदक ेमअमतंससल सपंइसम जव चंल बवउचमदेंजपवद
8ण् 1994;3द्ध ब्च्श्र 43 ैीपअंरप ळमदकमव ब्ींअंद टे ब्ीपम िक्पतमकजवत ए ॅंदसमेे भ्वेचपजंस - ।दतण्
प्द जीपे बंेम भ्वदष्इसम ैजंजम थ्वतनउ ीमसक जींज ूीमतम जीम बवउचसंपदंदजष्े 18 लमंते ेवद ूंे ंकउपजजमक पद ीवेचपजंस वित ापकदमल वचमतंजपवद ूंे हपअमद जतपबा इल दममकसम पद जीम हतवपद तिवउ ूीमतम इसववक ंदक चनेे ूंे बवउपदह वनत ंदक ीपे तपहीज समह ूंे ंउचनजंजमक ंदक संजमत कपमक पद ूीपबी दमहसपहमदबम ूंे चतवअमक ंदक बवउचमदेंजपवद ूंे हतंदजमकण्
उक्त विनिष्चयों में प्रतिपादित सिद्वान्तों पर अवलम्ब लेते हुए उनकी बहस रही है कि जहां दस्तावेजी साक्ष्य से यह सिद्व होता हो कि पक्षकार की छमहसपहमदबम रहीं है वहां विषेषज्ञ की राय आवष्यक नहीं है । सिविल न्यायालय में मामलें को भिजवाने का आदेष त्रुटिपूर्ण है । परिवाद स्वीकार की जानी चाहिए
5. अप्रार्थीगण की खण्डन में प्रमुख रूप से बहस रही है कि प्रार्थिया के पुत्र को चिकित्सक द्वारा अपनी कुषलता से इलाज दिया गया था व उनकी योग्यता व दक्षता से रोगी का इलाज किया गया । इलाज में कोई कोताही नही ंबरती गई । उसे तत्परता से सर्वश्रेष्ठ इलाज उपलब्ध करवाया गया । इलाज के दौरान आवष्यकता अनुसार उचित दवाईयां दी गई किसी प्रकार की कोई कोताही नहीं बरती गई । परिवाद खारिज होने योग्य है ।
6. हमने परस्पर तर्क सुने है एवं पत्रावली में उपलब्ध अभिलेखों के साथ साथ प्रस्तुत विनिष्चयों में प्रतिपादित सिद्वान्तों का भी आदरपूर्वक अवलोकन कर लिया है ।
7. इस मंच को माननीय राज्य आयेाग के निर्णय में पारित दिषा निर्देषों के अनुरूप इस बात पर विचार करना है कि क्या चिकित्सकों (अप्रार्थीगण) द्वारा दिए गए इंजेक्षन से विकास कुमार के हाथ में सेप्टीसीमिया व गेंगरीन हुआ ? तथा क्या इंजेक्षन देने की लापरवाही के कारण ऐसा हुआ या यह स्वाभाविक प्रक्रिया है ? क्या गेंगरीन के कारण विकास कुमार की मृत्यु हुई है ?
8. विकास कुमार को दिए गए इंजेक्षन के सबंध में उसके अजमेर स्थित चिकित्सालय में इलाज हेतु दिखाने/भर्ती किए जाने व एसएमएस अस्पताल, जयपुर में पहुंचने से पूर्व ऐम्बुलेंस में इंजेक्षन दिए जाने बाबत् तथ्य सामने आए है । ऐम्बुलेंस में ले जाने से पूर्व अजमेर में उसे समय समय पर इलाज के दौरान दवाईयों के साथ इंजेक्षन भी लगाए गए हैं जैसा कि पक्षकारों के अभिवचनों से सामने आया है । प्रार्थिया की आपत्ति रही है कि ऐसे लगाए गए इंजेक्षन के बाद विकास कुमार की तबियत खराब हुई, हाथ में गेंगरीन हुआ और अन्त में सेप्टीसीमिया के कारण उसकी मृत्यु हो गई । जबकि अप्रार्थीगण (चिकित्सकों ) के प्रतिवाद के अनुसार विकास कुमार के इलाज के दौरान जो दवाईयां व इंजेक्षन दिए गए हंै वे समुचित चिकित्सकीय देखरेख में आवष्यकता अनुसार दिए गए हंै । मंच के समक्ष परस्पर आई स्थिति को परखने में उभय पक्षकारों की सषपथ साक्ष्य नहीं है अपितु सर्वश्रेष्ठ साक्ष्य के रूप में विषेषज्ञ चिकित्सकों के मेडिकल बोर्ड की राय है, जिसको ध्यान में रखते हुए माननीय राज्य आयोग ने इस बिन्दु को निस्तारण करने के दिषा निर्देष प्रदान किए है । विषेषज्ञों की राय/मेडिकल बोर्ड के अनुसार राजस्थान हाॅस्पिटल , अजमेर द्वारा मरीज को दी गई दवाईयां व इंजेक्षन इलाज के लिए सही थे । इसका अर्थ यह है कि इस चिकित्सकीय विषेषज्ञ बोर्ड की राय में अजमेर में भर्ती रहने के दौरान मरीज को जो दवाईयां व इंजेक्षन दिए गए थे वे इलाज के लिए तत्सयम सही थे । अतः मंच की राय में अजमेर में भर्ती रहने के दौरान मरीज को जो भी चिकित्सकों द्वारा इलाज के दौरान इंजेक्षन दिए गए थे वे उनकी राय के अनुसार उचित एवं सही थे ।
9. अब प्रष्न यह उत्पन्न होता है कि क्या मरीज को अजमेर से जयपुर स्थित एसएमएस अस्पताल में ले जाते समय ऐम्बुलेंस में दिए गए इंजेक्षन के कारण उसे सेप्टीसीमिया हुआ ? अथवा क्या ऐसा इंजेक्षन दिया जाना आवष्यक था ? प्रार्थिया का कथन है कि चलती ऐम्बुलेंस में मरीज की ड्रिप हटा कर सीरिंज के द्वारा बार बार इंजेक्षन दिया जा रहा था जबकि अप्रार्थीगण का कथन यहीं है कि यदि लो ब्लडप्रेषर के दौरान मरीज की जान बचाई जानी हो तो इसके लिए डोपामीन नाम का इंजेक्षन दिया जाना सही था । इस बिन्दु पर भी विषेषज्ञ चिकित्सकों की मेडिकल टीम ने राय दी है कि मरीज को चलती ऐम्बुलेंस में लो ब्लड प्रेषर के कारण उसकी ड्रिप हटा कर जान बचाने के लिए डोपामीन इंजेक्षन दिया जाना सहीं था । इन चिकित्सकों (मेडिकल बोर्ड ) की राय पर गौर करें तो यह स्थिति सामने आती है कि तत्समय मरीज के लो ब्लड प्रेषर होने की स्थिति में जो इंजेक्षन दिया गया वह उसकी जान बचाने के लिए आवष्यक था । यदि उक्त डोपामीन इंजेक्षन तत्समय नहीं लगाया जाता तो सम्भव था कि मरीज की मृत्यु तक हो सकती थी । कहा जा सकता है कि उक्त समय विद्यमान परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए जो डोपामीन इंजेक्षन लगाया गया, में किसी प्रकार की कोई लापरवाही नहीं बरती गई थी ।
10. अब अगला प्रष्न यह है कि क्या गेंगरीन के कारण मरीज विकास कुमार की मृत्यु हुई ? पत्रावली में उपलब्ध पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार विकास कमार की मृत्यु सेप्टीसीमिया के साथ साथ गेंगरीन के कारण भी हुई है । मेडिकल बोर्ड की रिपोर्ट के अनुसार मरीज के हाथ में गेंगरीन डोपामीन इंजेक्षन देने के कारण होना प्रतीत होता है । इसका अर्थ यह हुआ कि उसके हाथ में गंेगगरीन इलाज के दौरान हुआ व सेप्टीसीमिया डोपामीन इंजेक्षन दिए जाने के कारण हुआ था । चूंकि यह बिन्दु उपर तय किया जा चुका है कि मरीज के लो ब्लड प्रेषर के कारण उसे डोपामीन दिया जाना आवयष्यक था और यदि डोपामीन के कारण गेंगरीन हुआ है तो इसमें चिकित्सकों की किसी प्रकार की कोई लापरवाही नहीं मानी जा सकती । चिकित्सकों की राय के अनुसार डोपामीन से गेंगरीन होना मेडिकल साहित्य में भी बताया गया हे । मंच की राय में इस बिन्दु पर विषेषज्ञों की राय वजन रखती है । चूंकि मेडिकल बोर्ड ने उपरोक्त अनुसार पाया है कि डोपामीन के कारण गेंगरीन हो सकता है । अतः यदि मरीज के गेंगरीन हुआ है तो ऐसे में चिकित्सकों की लापरवाही नहीं मानी जा सकती ।
11. इस प्रकार दोनो बिन्दुओं के संदर्भ में मेडिकल बोर्ड की राय को ध्यान में रखते हुए मंच की राय में यह स्थिति सामने आई है कि मरीज को डोपामीन इंजेक्षन उसकी लो ब्लड प्रेषर होने की स्थिति में दिया गया जो सम्भवतः डोपामीन की वजह से गेंगरीन हुआ । इस प्रकार दोनों ही अवस्थाओं में मौत होना, नहीं होना सम्भव बताया गया है जैसा कि मेडिकल बोर्ड की राय है । इसके अलावा पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार सिर की चोट के साथ साथ दोनों ही अवस्थाओं के कारण मृत्य सम्मिलित रूप से हुई है । इन हालात में अप्रार्थीगण की किसी प्रकार की कोई लापरवाही अथवा सेवा में दोष रहा हो, यह नहीं माना जा सकता । जो विनिष्चय प्रार्थियों की ओर से उपरोक्त अनुसार प्रस्तुत हुए हंै, में भी विषेषज्ञ की राय को सर्वोपरि माना गया है व सक्षम साक्ष्य के अनुसार छमहसपहमदबम को सिद्व नहीं माना गया है ।
12. सार यह है कि प्राथिया का परिवाद मंच की राय में स्वीकार किए जाने योग्य नहीं है एवं आदेष है कि
-ःः आदेष:ः-
13.. प्रार्थिया का परिवाद स्वीकार होने योग्य नहीं होने से अस्वीकार किया जाकर खारिज किया जाता है । खर्चा पक्षकारान अपना अपना स्वयं वहन करें ।
आदेष दिनांक 31.08.2016 को लिखाया जाकर सुनाया गया ।
(नवीन कुमार ) (श्रीमती ज्योति डोसी) (विनय कुमार गोस्वामी )
सदस्य सदस्या अध्यक्ष