न्यायालय जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम, चन्दौली।
परिवाद संख्या 01 सन् 2016ई0
दुरदेशी राम पुत्र स्व0 चितामन निवासी सेरूका जिला चन्दौली।
...........परिवादी बनाम
डा0 अजीत कुमार सिंह मैनेजिंग डायरेक्टर आयुष हेल्थ केयर मल्टी स्पेशियलिटी हास्पिटल चकिया रोड मुगलसराय जिला चन्दौली।
.............................विपक्षी
उपस्थितिः-
रामजीत सिंह यादव, अध्यक्ष
लक्ष्मण स्वरूप, सदस्य
निर्णय
द्वारा श्री रामजीत सिंह यादव,अध्यक्ष
1- परिवादी ने यह परिवाद विपक्षी से इलाज के व्यय की क्षतिपूर्ति हेतु रू0 39750/- दिलाये जाने हेतु प्रस्तुत किया है।
2- परिवादी द्वारा परिवाद प्रस्तुत करके संक्षेप में कथन किया गया है कि परिवादी उपरोक्त पते का स्थायी निवासी है। परिवादी अपनी खांसी का इलाज कराने के लिए विपक्षी के हास्पिटल में गया जहॉं पर विपक्षी परिवादी से रू0 12250/-लेकर खांसी का इलाज करने लगा। इलाज के दौरान परिवादी की तबियत में कुछ सुधार हुआ तो विपक्षी ने दवा देकर परिवादी को घर भेज दिया। परिवादी अपने घर पर आकर विपक्षी द्वारा दी गयी दवाओं का सेवन करने लगा किन्तु परिवादी की तबियत में कोई सुधार न होने पर परिवादी दिनांक 1-11-2014 को विपक्षी के हास्पिटल में गया तो विपक्षी ने परिवादी को अपने हास्पिटल में भर्ती कर दिनांक1-11-2014 से 30-11-2014 तक इलाज किये और इलाज के दौरान याची से रू0 11250/-लेकर पेशाब की नली का आपरेशन करके एक सप्ताह तक अपने हास्पिटल में भर्ती किये रहे और एक सप्ताह के बाद परिवादी को दवा देकर अपने हास्पिटल से निकाल दिया। परिवादी विपक्षी के द्वारा दी गयी दवाओं का सेवन करता रहा किन्तु कोई लाभ न होने पर पुनः विपक्षी के हास्पिटल में गया तो विपक्षी ने परिवादी को दिनांक 19-11-2014 को अपने हास्पिटल में भर्ती कर लिया तथा दिनांक 22-11-2014 तक दवा इलाज करता रहा। इस दौरान विपक्षी ने परिवादी के स्मार्ट कार्ड से रू0 14250/- निकाल लिया और कहा कि आप पूर्ण रूपेण स्वस्थ है अब दवा की कोई आवश्यकता नहीं है ऐसा कह विपक्षी ने परिवादी को घर भेज दिया। किन्तु विपक्षी द्वारा किये गये आपरेशन से परिवादी को कोई लाभ नहीं हुआ और परिवादी बराबर विपक्षी के हास्पिटल का चक्कर लगाता रहा और विपक्षी ने दिनांक 20-6-2015 को इलाज करने से साफ तौर से मना कर दिया । विपक्षी ने परिवादी का दवा इलाज करने से इन्कार कर देने के बाद परिवादी ने विपक्षी को एक मियादी नोटिस दिया किन्तु विपक्षी को नोटिस प्राप्त होने के बाद भी आपरेशन एवं दवा इलाज न करने से क्षुब्ध होकर परिवादी ने दिनांक 30-11-2015 को जिलाधिकारी एवं पुलिस अधीक्षक चन्दौली को प्रार्थना पत्र दिया लेकिन परिवादी के प्रार्थना पत्र पर कोई विचार नहीं किया गया जिससे क्षुब्ध होकर परिवादी ने परिवाद दाखिल किया है।
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3- विपक्षी ने जबाबदावा प्रस्तुत करके परिवादी के परिवाद के कथनों से इन्कार करते हुए संक्षेप में अतिरिक्त कथन किया है कि परिवादी अपने खांसी के इलाज हेतु दिनांक 30-10-2014 को विपक्षी के हास्पिटल में आया और रू0 50/- परामर्श शुल्क जमा कर परामर्श लेकर उसी दिन चला गया किन्तु किसी अन्य बीमारी का जिक्र नहीं किया और न ही खांसी के अतिरिक्त किसी अन्य बीमारी का इलाज हुआ। दिनांक 1-11-2014 को परिवादी विपक्षी के हास्पिटल में आया और टट्टी के रास्ते से खुन आने एवं टट्टी करते समय दर्द की बात बताया तो इसकी जांच की गयी और जांच के उपरान्त पाया गया कि परिवादी को फिसर एवं हेमराइट की बीमारी है जिसके आपरेशन के लिए उसे भर्ती किया और आपरेशन सफल होने के दो दिन बाद दिनांक 3-11-2014 को परिवादी की छुट्टी हो गयी। परिवादी को रू0 100/- किराया एवं 5 दिन की निःशुल्क दवा दी गयी और यह इलाज पूर्णतया कैशलेस था। परिवादी के स्मार्ट कार्ड द्वारा रू0 11250/- निकाला गया। दिनांक 19-12-2014 को परिवादी पुनः पेशाब में रूकावट सम्बन्धित बीमारी के लिए हास्पिटल में आया और जांचोपरान्त प्रोस्टेट की बीमारी का पता चला तो उस बीमारी के लिए परिवादी पुनः अस्पताल में भर्ती हुआ एवं सफल आपरेशन के उपरान्त दिनांक 22-12-2014 को घर चला गया। इस दौरान भी परिवादी को रू0 100/- नगद एवं 5 दिन की निःशुल्क दवा दी गयी, एवं दोनों भर्ती के समय परिवादी मरीज को निःशुल्क भोजन दिया गया। परिवादी को अस्पताल से छुट्टी देते समय दिनांक 28-12-2014 को आकर दिखाने के लिए कहा गया लेकिन परिवादी 31-12-2014 को आया और सब कुछ ठीक बताया और उस दिन उसे 10 दिन दवा खाकर दवा बन्द करने का परामर्श दिया गया और परिवादी के स्मार्ट कार्ड से रू0 14250/- लिया गया। यदि परिवादी पहले दिन दोनों आपरेशन का जिक्र किया होता तो स्मार्ट कार्ड से इलाज होना सम्भव नहीं था। खांसी का इलाज भी स्मार्ट कार्ड से सम्भव नहीं है। परिवादी बदनीयती से जानबूझकर अपना रोग छिपाकर बार-बार अलग-अलग आकर अपना इलाज कराया ताकि स्मार्ट कार्ड द्वारा इलाज हो सके। परिवादी अपनी बीमारी छिपाकर स्वयं अस्पताल एवं बीमा कम्पनी को धोखा दिया है। परिवादी से एक रूपया भी नगद नहीं लिया गया और यदि कोई समस्या होती है तो बीमा कम्पनी की जिम्मेदारी होती है न कि हास्पिटल की। परिवादी ने बीमा कम्पनी को जानबूझकर पक्षकार नहीं बनाया है तथा गलत नीयत से दावा दाखिल किया है जो निरस्त किये जाने योग्य है।
4- परिवादी की ओर से स्वयं परिवादी दुरदेशी राम का शपथ पत्र दाखिल किया गया है। इसके अतिरिक्त दस्तावेजी साक्ष्य के रूप में विपक्षी डाक्टर अजीत कुमार सिंह को प्रेषित नोटिस की कार्बन प्रति,रजिस्ट्री की रसीद,रजिस्ट्रेशन स्लिप,ब्लाकिग स्लिप,आयुष हेल्थ केयर के डिस्चार्ज समरी दिनांक 3-11-2014 की छायाप्रति तथा डिस्चार्ज स्लिप की छायाप्रति,आयुष हेल्थ केयर में ओ0पी0डी0 में 50/-रू0 जमा किये जाने की रसीद,आयुष हेल्थ केयर का दवा का पर्चा,डिस्चार्ज स्लिप दिनांक 22-12-2014 तथा ब्लाकिंग स्लिप की छायाप्रति,आयुष हेल्थ केयर का ओ0पी0डी0
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कार्ड तथा आयुष हेल्थ केयर का डिस्चार्ज समरी की छायाप्रति दाखिल की गयी है। विपक्षी की ओर से स्वयं विपक्षी का शपथ पत्र दाखिल किया गया है तथा अन्य कोई दस्तावेजी साक्ष्य दाखिल नही है।
5- परिवादी की ओर से तर्क दिया गया है कि याची जब पहली बार विपक्षी के यहॉं इलाज के लिए गया तो एक सप्ताह बाद उसे डिस्चार्ज कर दिया गया और यह कहा गया कि याची बिल्कुल स्वस्थ है। याची अपने घर आकर विपक्षी द्वारा दी गयी दवा का सेवन करने लगा लेकिन उसकी तबियत में कोई सुधार नहीं हुआ तब पुनः वह विपक्षी के अस्पताल में गया जहॉं विपक्षी के अस्पताल के डाक्टर द्वारा यह कहा गया कि याची के पेशाब के नली का आपरेशन करना होगा। विपक्षी ने याची के पेशाब की नली का आपरेशन करने के बाद याची को एक सप्ताह तक अपने अस्पताल में भर्ती किये रहा और उसके बाद अस्पताल से निकाल दिये तथा कुछ दवा देकर घर भेज दिया। घर पर याची विपक्षी द्वारा दी गयी दवा का सेवन करने लगा लेकिन इस दवा से उसे कोई लाभ नहीं हुआ तब वह पुनः विपक्षी के यहॉं आकर उससे अपना इलाज करने के लिए कहा तब विपक्षी ने दिनांक 19-11-2014 को याची को अपने अस्पताल में भर्ती किया और दिनांक 22-11-2014 तक उसका इलाज करता रहा। इस दौरान याची के स्मार्ट कार्ड से 14250/- रू0 निकाल लिया गया और याची से कहा गया कि वह अब पूर्ण स्वस्थ है उसे किसी दवा की आवश्यकता नहीं है ऐसा कहकर याची को घर भेज दिया गया लेकिन विपक्षी द्वारा किये गये आपरेशन व इलाज से याची को कोई लाभ नहीं हुआ और वह बराबर अस्पताल का चक्कर काटता रहा और अन्ततः दिनांक 20-11-2015 को विपक्षी ने साफ तौर पर कह दिया कि वे अब याची का इलाज नहीं करेगे इस प्रकार विपक्षी ने याची के इलाज व आपरेशन में घोर लापरवाही किया है तथा स्मार्ट कार्ड से एवं नकद रूप से विभिन्न तिथियों पर परिवादी से कुल रू0 39750/- ले लिया है अतः उक्त धनराशि परिवादी को व्याज सहित वापस दिलायी जाय।
इसके विपरीत विपक्षी की ओर से यह तर्क दिया गया है कि याची/परिवादी दिनांक 30-10-2014 को खांसी के इलाज के लिए विपक्षी के अस्पताल में आया था और उसे परामर्श शुल्क लेकर परामर्श दिया गया था। दिनांक 1-11-2014 को परिवादी पुनः विपक्षी के अस्पताल में आया और टट्टी के रास्ते में खून आने तथा टट्टी के समय दर्द होने की शिकायत किया। जांच में परिवादी को ’’फिसर एवं हेमराइट’’ की बीमारी पायी गयी। अतः उसे आपरेशन हेतु अस्पताल में भर्ती किया गया और सफल आपरेशन के बाद दिनांक 3-11-2014 को परिवादी को अस्पताल से छुट्टी दे दी गयी। छुट्टी के समय परिवादी को 5 दिन की दवा निःशुल्क दी गयी थी तथा किराया भाडा के लिए 100/-रू0 दिया गया था। यह इलाज पूर्णतया कैशलेस हुआ था और परिवादी के स्मार्ट कार्ड से रू0 11250/- निकाला गया था इसके बाद दिनांक 19-12-2014 को परिवादी फिर विपक्षी के अस्पताल में आया और पेशाब में रूकावट होने की बात बताया। जांच के उपरान्त परिवादी को
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पोस्टेट की बीमारी पायी गयी। अतः उसे अस्पताल में भर्ती करके सफल आपरेशन किया गया और दिनांक 22-12-2014 को परिवादी डिस्चार्ज होकर अपने घर चला गया इस बार भी उसे 100/-रू0 नकद तथा 5 दिन की निःशुल्क दवा दी गयी और दोनों बार आपरेशन के दौरान वादी को अस्पताल की ओर से भोजन आदि दिया गया था। दिनांक 22-12-2014 को डिस्चार्ज करते समय परिवादी से कहा गया था कि वह दिनांक 28-12-2014 को अस्पताल में आकर दिखावे लेकिन परिवादी उस दिन न आकर दिनांक 31-12-2014 को अस्पताल आया और उस दिन उसने अपने को पूरी तरह से ठीक बताया अतः उसे सलाह दी गयी कि वह 10 दिन और दवा खाकर दवा बन्द कर दें। इस बार परिवादी के स्मार्ट कार्ड से रू0 14250/- लिया गया था हालांकि अभीतक बीमा कम्पनी द्वारा यह पेमेन्ट विपक्षी को प्राप्त नहीं हुआ है और पेमेन्ट विचाराधीन है।
विपक्षी के अधिवक्ता का तर्क है कि यदि परिवादी पहले दिन ही दोनों बीमारियों का जिक्र किया होता तो स्मार्ट कार्ड से दोनों बीमारियों का इलाज सम्भव नहीं होता इसीलिये परिवादी ने जानबूझकर सही तथ्यों को छिपाते हुए अपनी बीमारियों का अलग-अलग इलाज कराया। परिवादी से नकद रूप से कोई पैसा नहीं लिया गया है। यदि कोई स्वास्थ्य समस्या याची को होती तो बीमा कम्पनी की भी जिम्मेदारी होती लेकिन परिवादी ने जानबूझकर बीमा कम्पनी को इस मुकदमें में पक्षकार नहीं बनाया है। अतः उसका दावा गलत है परिवादी ने कानूनी नोटिस में भी केवल स्मार्ट कार्ड द्वारा पैसा लेने का जिक्र किया है नकद लेन-देन का कोई जिक्र नहीं किया है जबकि अपने परिवाद में उसने नकद लेन-देन की भी बात कही है इससे भी यही स्पष्ट होता है कि परिवादी का परिवाद फर्जी एवं मनगढंत है। परिवादी ने नोटिस में 8 महीने बाद यह बताया है कि अस्पताल में इलाज नहीं किया गया और रोग पूरी तरह ठीक नहीं हुआ यदि इस बीच वास्तव में परिवादी को कोई रोग था तो उसने इसका इलाज कहा कराया इसका कोई प्रमाण पत्रावली पर उपलब्ध नहीं है। परिवादी 65 वर्षीय वृद्ध व्यक्ति है और उसका कौन सा रोग ठीक नहीं हुआ इसका स्पष्ट उल्लेख परिवाद में नहीं है। यदि जब परिवादी पहली बार विपक्षी के अस्पताल में आया उस समय उसका सही इलाज न हुआ होता तो वह दुबारा विपक्षी के अस्पताल में इलाज हेतु न आता। इस प्रकार परिवादी ने गलत तथ्यों के आधार पर दावा दाखिल किया है जो निरस्त किये जाने योग्य है।
6- उभय पक्ष के तर्को को सुनने तथा पत्रावली के अवलोकन से यह स्पष्ट होता है कि प्रस्तुत मामले में परिवादी द्वारा परिवाद में किये गये अभिकथन अस्पष्ट है। परिवादी ने अपने परिवाद में सबसे पहले यह कहा है कि वह खांसी का इलाज कराने के लिए सर्वप्रथम विपक्षी के अस्पताल में गया और विपक्षी ने उससे रू0 12250/- लेकर खांसी का इलाज किया। परिवादी का यह कथन विश्वास योग्य प्रतीत नहीं होता है कि खांसी के इलाज के लिए उससे रू0 12250/-लिया जाय। क्योंकि परिवादी ने अपने परिवाद में न तो यह बताया है कि वह किस तारीख को खांसी का इलाज कराने गया था और न ही उसने विपक्षी को रू0 12250/-देने
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की कोई रसीद दाखिल किया है और न ही इस बात की कोई वजह बताया है कि यदि उसने विपक्षी को रू0 12250/- दिया था तो उसकी रसीद क्यों नहीं लिया इसके विपरीत विपक्षी ने अपने जबाबदावा में स्पष्ट रूप से यह कहा है कि परिवादी दिनांक 30-10-2014 को खांसी के इलाज के लिए विपक्षी के अस्पताल में आया था और उससे रू0 50/- परामर्श शुल्क लेकर उसका इलाज किया गया था। विपक्षी के इस कथन की पुष्टि स्वयं परिवादी द्वारा दाखिल दस्तावेजी साक्ष्य कागज संख्या 4ग/7 से होती है यह दस्तावेज विपक्षी हास्पिटल में परिवादी द्वारा ओ0पी0डी0 में इलाज हेतु रू0 50/- जमा करने की रसीद है। इसी प्रकार कागज संख्या 4ग/8 के रूप में स्वयं परिवादी ने दवा का पर्चा दाखिल किया है। इस प्रकार स्वयं परिवादी द्वारा दाखिल उपरोक्त दस्तावेजी साक्ष्य से यह बात सिद्ध हो जाती है कि परिवादी दिनांक 30-10-2014 को खांसी के इलाज हेतु विपक्षी के अस्पताल में आया था और उससे केवल रू0 50/- बतौर शुल्क लिया गया था। खांसी के इलाज हेतु परिवादी से रू0 12250/- लिये जाने का तथ्य सिद्ध करने में परिवादी पूर्णतः विफल रहा है। इसी प्रकार परिवादी ने विपक्षी को जो कानूनी नोटिस भेजा है उसमे भी इस बात का कोई जिक्र नहीं है कि परिवादी ने विपक्षी को खांसी के इलाज के लिए रू0 12250/- दिया था। अतः इस आधार पर भी परिवादी के परिवाद का उपरोक्त अभिकथन असत्य सिद्ध हो जाता है।
7- परिवादी द्वारा अपने परिवाद में यह नहीं बताया गया है कि दिनांक 1-11-2014 को वह किस बीमारी का इलाज कराने के लिए विपक्षी के अस्पताल में गया था, उसने अपने परिवाद के पैरा-4 में यह कहा है कि वह दिनांक 1-11-2014 को विपक्षी के अस्पताल में गया तो उसे अस्पताल में भर्ती कर लिया गया तथा दिनांक 1-11-2014 से 30-11-2014 तक इलाज किया गया और इस दौरान उसके पेशाब की नली का आपरेशन कर दिया गया और उससे 11250/-लिया गया। पुनः परिवाद पत्र के पैरा-5 में परिवादी ने यह कहा है कि पेशाब की नली का आपरेशन करने के बाद उसे एक सप्ताह तक अस्पताल में भर्ती किया गया। इस प्रकार परिवादी के परिवाद पत्र के पैरा 4 व 5 में किये गये अभिकथन परस्पर विरोधी है। परिवादी ने विपक्षी के अस्पताल के ब्लाकिंग स्लिप की प्रतिलिपि तथा डिस्चार्ज समरी की जो छायाप्रति दाखिल की है उसके अवलोकन से यह स्पष्ट होता है कि विपक्षी के अस्पताल में परिवादी को दिनांक 1-11-2014 को भर्ती किया गया था और दिनांक 3-11-2014 को डिस्चार्ज कर दिया गया था। इस प्रकार परिवादी केवल 3 दिन विपक्षी के अस्पताल में भर्ती रहा । अतः इस सम्बन्ध में परिवाद पत्र में परिवादी द्वारा किये गये अभिकथन गलत सिद्ध हो जाते है। इसी प्रकार परिवादी द्वारा किया गया यह अभिकथन भी गलत सिद्ध हो जाता है कि दिनांक 1-11-2014 को जब उसे विपक्षी के अस्पताल में भर्ती किया गया था तो उसके पेशाब की नली का आपरेशन किया गया था क्योंकि विपक्षी ने अपने जबाबदावा में यह कहा है कि दिनांक 1-11-2014 को जब परिवादी विपक्षी के अस्पताल में आया तो उसने यह बताया कि उसके टट्टी के रास्ते से खून आता है
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और टट्टी करते समय उसको दर्द होता है तब उसकी जांच की गयी तब उसे ’’फिशर एवं हेमराइट’’ की बीमारी पाई गयी और उसका सफल आपरेशन किया गया स्वयं परिवादी की ओर से इस सम्बन्ध में जो अभिलेख कागज संख्या 4ग/4 व 4ग/5 दाखिल किये गये है इससे भी विपक्षी के अभिकथनों की पुष्टि होती है।
8- परिवादी ने अपने परिवाद में यह कहा है कि उसकी तबियत में कोई सुधार नहीं हुआ तो वह पुनः विपक्षी के अस्पताल में इलाज हेतु गया जहॉं दिनांक 19-11-2014 से 22-11-2014 तक अस्पताल में भर्ती करके उसका इलाज किया गया लेकिन इस दौरान किस बीमारी का इलाज हुआ इसका कोई उल्लेख परिवाद में नहीं किया गया है। इस सम्बन्ध में विपक्षी द्वारा अपने जबाबदावा में स्पष्ट रूप से यह कहा गया है कि परिवादी जब दिनांक 19-12-2014 को विपक्षी के अस्पताल में गया तो उसने पेशाब में रूकावट सम्बन्धी बीमारी बताया और जांच के बाद उसे प्रोस्टेट की बीमारी पायी गयी और उसका आपरेशन किया गया। स्वयं परिवादी ने जो अभिलेख कागज संख्या 4ग/9 व 4ग/10 दाखिल किया है उससे भी यही सिद्ध होता है कि दिनांक 19-12-2014 से दिनांक 22-12-2014 तक परिवादी को विपक्षी के अस्पताल में भर्ती करके पेशाब से सम्बन्धित बीमारी का इलाज किया गया था अतः इन अभिलेखों से भी परिवादी के अभिकथन गलत सिद्ध हो जाते है और विपक्षी द्वारा किये गये अभिकथन सही पाये जाते है।
9- परिवादी ने अपने परिवाद में स्पष्ट रूप से यह नहीं बताया है कि विपक्षी के यहॉं उसने किस-किस रोग का इलाज करवाया था और उसे किस रोग में फायदा नहीं हुआ और क्या परेशानी हुई,उसने यह भी नहीं बताया है कि विपक्षी ने किस तरह से उसका गलत इलाज कर दिया या इलाज में कौन सी लापरवाही की गयी। परिवादी ने ऐसा कोई अभिलेख दाखिल नहीं किया है जिससे यह सिद्ध हो सके कि उसने विपक्षी के यहॉं इलाज कराने के बाद अन्य किसी डाक्टर से अपना इलाज कराया हो इससे भी यही निष्कर्ष निकलता है कि विपक्षी द्वारा परिवादी के इलाज में कोई गलती या लापरवाही नहीं की गयी थी क्योंकि यदि विपक्षी ने परिवादी का सही इलाज न किया होता तो परिवादी निश्चित रूप से किसी दूसरे डाक्टर के पास जाकर अपनी बीमारी का इलाज कराता। परिवादी ने यह परिवाद दिनांक 4-1-2016 को दाखिल किया है अर्थात विपक्षी के अस्पताल से दिनांक 22-11-2014 को डिस्चार्ज होने के एक वर्ष से भी अधिक समय बाद परिवादी ने यह परिवाद दाखिल किया है और इस दौरान कही इलाज कराये जाने का कोई साक्ष्य उसने दाखिल नहीं किया है यह विश्वास योग्य प्रतीत नहीं होता कि परिवादी की बीमारी ठीक न हो इसके बावजूद वह एक वर्ष से अधिक समय तक अपना कहीं इलाज न करावे। यहां यह तथ्य भी उल्लेखनीय है कि पत्रावली पर उपलब्ध साक्ष्य से यह स्पष्ट है कि परिवादी यह सिद्ध करने में विफल रहा है कि विपक्षी ने इलाज हेतु रू0 12250/- परिवादी से नगद लिया था। पत्रावली पर उपलब्ध साक्ष्य से यहीं सिद्ध होता है कि परिवादी का इलाज कैशलेस हुआ है और जो पैसे का भुगतान हुआ है वह परिवादी के स्मार्टकार्ड से हुआ है इसप्रकार परिवादी यह
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सिद्ध करने में विफल रहा है कि विपक्षी ने उससे इलाज हेतु कुल रू0 39750/-लिया था वह यह सिद्ध करने में भी विफल रहा है कि विपक्षी ने परिवादी के इलाज में कोई गलती या लापरवाही की है ऐसी स्थिति में परिवादी कोई क्षतिपूर्ति प्राप्त करने का अधिकारी नहीं पाया जाता है और उसका परिवाद निरस्त किये जाने योग्य है।
आदेश
परिवादी का परिवाद निरस्त किया जाता है। परिवाद के तथ्यों एवं परिस्थितियों को देखते हुए पक्षकार अपना-अपना वाद व्यय स्वयं वहन करेगे।
(लक्ष्मण स्वरूप) (रामजीत सिंह यादव)
सदस्य अध्यक्ष
दिनांकः 14-6-2017