राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
सुरक्षित
परिवाद सं0-२९/२००९
राजेन्द्र कुमार गुप्ता पुत्र स्व0 आ0जी0 गुप्ता निवासी ६१, त्रिवेणी नगर, कानपुर।
............ परिवादी।
बनाम
१. डॉ0 वीरेन्द्र स्वरूप पब्लिक स्कूल, ७५, कैण्टूनमेण्ट, कानपुर द्वारा मैनेजर/प्रौपराइटर।
२. श्रीमती जी0 ज्योति, प्रिन्सिपल, वीरेन्द्र स्वरूप पब्लिक स्कूल, ७५, कैण्टूनमेण्ट, कानपुर
............ विपक्षीगण।
समक्ष:-
1- मा0 श्री उदय शंकर अवस्थी, पीठासीन सदस्य ।
2- मा0 श्री महेश चन्द, सदस्य।
परिवादी की ओर से उपस्थित :- श्री आलोक सिन्हा विद्वान अधिवक्ता।
विपक्षीगण की ओर से उपस्थित :- श्री विकास अग्रवाल विद्वान अधिवक्ता।
दिनांक : ०३-०६-२०१६.
मा0 श्री उदय शंकर अवस्थी, पीठासीन सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
प्रस्तुत परिवाद, परिवादी श्री राजेन्द्र कुमार गुप्ता ने विपक्षीगण के विरूद्ध इस अनुतोष के साथ योजित किया है कि परिवादी को विपक्षीगण से २०.०० लाख रू० परिवादी के पुत्र की मृत्यु पर बतौर क्षतिपूर्ति, ०२.०० लाख रू० मानसिक संताप एवं ५५,०००/- रू० परिवाद व्यय स्वरूप दिलाया जाऐं। इसके अतिरिक्त सम्पूर्ण धनराशि पर कथित घटना के दिनांक २८-०५-२००७ से १८ प्रतिशत वार्षिक की दर से ब्याज भी दिलाये जाने हेतु परिवादी द्वारा परिवाद में प्रार्थना की गयी है।
संक्षेप में तथ्य इस प्रकार हैं कि परिवादी के कथनानुसार परिवादी का पुत्र रौनक गुप्ता का जन्म दिनांक ३१-१०-१९९० को हुआ था तथा वह बुद्धिमान एवं प्रतिभाशाली छात्र था। उसने सेकेण्ड्री एजूकेशन में ए-ग्रेड प्राप्त किया था। उसका भविष्य उज्ज्वल था। परिवादी ने अपने पुत्र को वीरेन्द्र स्वरूप पब्लिक स्कूल में बड़ी ही आशा एवं उम्मीद से प्रवेश दिलाया था कि वहॉं पर उसे अच्छी शिक्षा मिलेगी एवं खेल आदि में अच्छी उलब्धि हॉंसिल करेगा। विपक्षीगण ने ०३ मई २००७ से गर्मी के अवकाश काल में शिविर का आयोजन किया जिसके अन्तर्गत विद्यार्थियों तैराकी में भी प्रशिक्षण दिया जाना था। परिवादी ने १०००/- रू० फीस जमा करके अपने पुत्र को
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उपरोक्त समर कैम्प में प्रवेश दिलाया। दिनांक २८-०५-२००७ को रौनक गुप्ता ने समर कैम्प में भाग लिया। उसी दिन लगभग ९.३० प्रात:काल परिवादी को अन्य विद्यार्थियों से सूचना प्राप्त हुई कि रौनक गुप्ता का स्वास्थ्य ठीक नहीं है। स्कूल में पहुँचने पर परिवादी को ज्ञात हुआ कि उसे ओ.ई.एफ. हास्पिटल में ले जाया गया है और वह स्वीमिंग पूल में डूब गया था। वहॉं से परिवादी तत्काल ओ.ई.एफ. हास्पिटल पहुँचा तब ज्ञात हुआ कि उसके पुत्र की मृत्यु हो चुकी है। परिवादी के पुत्र का पोस्टमार्टम भी किया गया। परिवादी द्वारा सम्बन्धित थाने में प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज करायी गयी। बाद में परिवादी को ज्ञात हुआ कि जब दिनांक २८-०५-२००७ को जब विद्यार्थी स्वीमिंग पूल में तैराकी कर रहे थे तब वहॉं न तो कोई कोच और न ही कोई लाइफगार्ड उपस्थित था, जिनके अभाव में विपक्षीगण की लापरवाही एवं सेवा में कमी के कारण यह दु:खद दुर्घटना घटित हो गयी। तब परिवादी द्वारा यह परिवाद योजित किया गया।
विपक्षीगण की ओर से लिखित कथन प्रस्तुत किया गया। विपक्षीगण की ओर अभिकथित किया गया कि रौनक गुप्ता जब स्वीमिंग पूल में तैराकी कर रहा था तथा जब वह गहरे पानी में गया तब वहॉं पर श्री रमेश सिंह कोच एवं श्री राजेश कुमार लाइफगार्ड उपस्थित थे। श्री अमित मेहरोत्रा (स्पोर्ट्स टीचर) भी उपस्थित थे। दुर्घटना घटित होते ही उपरोक्त व्यक्तियों ने रौनक गुप्ता को बचाने के लिए पूर्ण प्रयास किया तथा तत्काल अस्पताल पहुँचाया, किन्तु दुर्भाग्य से उसका जीवन नहीं रहा। विपक्षीगण की ओर से कोई लापरवाही एवं सेवा में कमी नहीं की गयी। विपक्षीगण की ओर से यह भी अभिकथित किया गया कि प्रस्तुत प्रकरण उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम १९८६ के अन्तर्गत सेवा में कमी का मामला नहीं है और न ही विपक्षीगण सेवा प्रदाता की श्रेणी में आते हैं। अत: परिवाद निरस्त होने योग्य है।
उभय पक्ष की ओर से अपने-अपने कथनों के समर्थन में शपथ पत्र तथा अभिलेखीय साक्ष्य प्रस्तुत किए गये।
हमारे द्वारा परिवादी की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री आलोक सिन्हा एवं विपक्षीगण की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री विकास अग्रवाल के तर्क सुने गये तथा अभिलेखों का अवलोकन किया गया।
परिवादी के विद्वान अधिवक्ता का मुख्य तर्क यह है कि विपक्षीगण ने परिवादी के पुत्र द्वारा स्वीमिंग किए जाने के समय किसी कोच एवं लाइफगार्ड की व्यवस्था नहीं की, जिसके
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कारण परिवादी के पुत्र की स्वीमिंग पूल में डूबने के कारण मृत्यु हो गयी। चूँकि परिवादी से विपक्षीगण ने समर कैम्प के लिए १,०००/- रू० शुल्क प्राप्त किया था, अत: विपक्षीगण सेवा प्रदाता की श्रेणी में आते हैं और उनकी घोर लापरवाही व सेवा में कमी के कारण परिवादी के पुत्र की मृत्यु हुई, जिसके लिए विपक्षीगण पूर्णत: उत्तरदायी हैं। अधिवक्ता परिवादी ने अपने तर्क के समर्थन में माननीय राष्ट्रीय आयोग द्वारा के.एम.इन्दोरिया व अन्य बनाम जिला कृदा परिषद जयपुर, I (2010) CPJ 504 के मामले में दिए गये निर्णय पर विश्वास व्यक्त किया।
विपक्षीगण की ओर से यह तर्क प्रस्तुत किया गया कि यह मामला उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम १९८६ के अन्तर्गत आच्छादित नहीं है और न ही इस मामले में सेवा में कमी का मामला बनता है। विपक्षीगण सेवा प्रदाता की श्रेणी में नहीं आते हैं। विपक्षीगण द्वारा समर कैम्प के दौरान् कोई लापरवाही नहीं बरती गयी। स्वीमिंग करने वाले छात्रों के प्रशिक्षण हेतु कुशल/प्रशिक्षित कोच व लाइफगार्ड की व्यवस्था की गयी थी। विपक्षीगण की ओर से अपने तर्क के समर्थन में मा0 राष्ट्रीय आयोग द्वारा रीजनल इन्स्टीट्यूट आफ कोपरेटिव मैनेजमेण्ट बनाम नवीन कुमार चौधरी व अन्य, III (2004) CPJ (NC) के मामले में दिए गये निर्णय पर विश्वास व्यक्त किया गया है।
हमारे समक्ष मुख्य विचारणीय बिन्दु यह है कि क्या परिवादी/विद्यार्थी को विपक्षीगण का उपभोक्ता माना जा सकता है अथवा नहीं ?
निर्विवाद रूप से विपक्षी वीरेन्द्र स्वरूप पब्लिक स्कूल एक शैक्षणिक संस्था है। विपक्षीगण की ओर से सन्दर्भित उपरोक्त निर्णय III (2004) CPJ (NC) के अवलोकन से यह विदित होता है कि माननीय राष्ट्रीय आयोग द्वारा अपने निर्णय में मा0 उच्चतम न्यायालय द्वारा निर्णीत किए गये विभिन्न निर्णयों पर विचार करने के उपरान्त यह निर्णीत किया गया है कि विद्यार्थी को उपभोक्ता की श्रेणी में नहीं माना जा सकता और न ही शैक्षणिक संस्थान को सेवा प्रदाता की श्रेणी में माना जा सकता है। परिवादी के विद्वान अधिवक्ता द्वारा सन्दर्भित उपरोक्त निर्णय किसी शैक्षणिक संस्थान से सम्बन्धित नहीं है। अत: परिवादी के विद्वान अधिवक्ता द्वारा सन्दर्भित उपरोक्त निर्णय का लाभ प्रस्तुत मामले के सन्दर्भ में परिवादी को नहीं दिया जा सकता।
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उपरोक्त वर्णित परिस्थतियों में हम इस निष्कर्ष पर पहुँचे हैं कि स्पष्टत: परिवादी, विपक्षीगण का उपभोक्ता नहीं है और प्रश्नगत परिवाद उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम १९८६ के अन्तर्गत आच्छादित न होने के कारण परिवाद पोषणीय नहीं है। परिणामत: परिवाद निरस्त होने योग्य है।
आदेश
प्रस्तुत परिवाद निरस्त किया जाता है।
इस परिवाद के व्यय-भार के सम्बन्ध में कोई आदेश पारित नहीं किया जा रहा है।
उभय पक्ष को इस निर्णय की प्रमाणित प्रतिलिपि नियमानुसार उपलब्ध करायी जाय।
(उदय शंकर अवस्थी)
पीठासीन सदस्य
(महेश चन्द)
सदस्य
प्रमोद कुमार
वैय0सहा0ग्रेड-१,
कोर्ट-५.