राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
सुरक्षित
अपील सं0-१४५७/२०१०
(जिला मंच, मुजफ्फरनगर द्वारा परिवाद संख्या-०८/२००९ में पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश दिनांक ०२-०७-२०१० के विरूद्ध)
१. यूनियन आफ इण्डिया द्वारा सीनियर सुपरिण्टेण्डेण्ट आफ पोस्ट आफिसेज, मुजफ्फरनगर डिवीजन, मुजफ्फरनगर।
२. पोस्ट मास्टर, सब पोस्ट आफिस, सिविल लाइन्स, मुजफ्फरनगर।
.............अपीलार्थीगण/विपक्षीगण।
बनाम
१. डॉ0 विजेन्द्र सिंह बेनीवाल पुत्र श्री रघुवीर सिंह निवासी मकान नं0-१२४८/७२, रिशभ विहार, सर्कुलर रोड, मुजफ्फरनगर। ............ प्रत्यर्थी/परिवादी।
समक्ष:-
१- मा0 श्री उदय शंकर अवस्थी, पीठासीन सदस्य।
२- मा0 श्री गोवर्द्धन यादव, सदस्य।
अपीलार्थीगण की ओर से उपस्थित : श्री विशाल चौधरी विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित : श्री अजय कुमार सिंह विद्वान अधिवक्ता।
दिनांक :- २४-०७-२०१९.
मा0 श्री उदय शंकर अवस्थी, पीठासीन सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
प्रस्तुत अपील, जिला मंच, मुजफ्फरनगर द्वारा परिवाद संख्या-०८/२००९ में पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश दिनांक ०२-०७-२०१० के विरूद्ध योजित की गयी है।
संक्षेप में तथ्य इस प्रकार हैं कि प्रत्यर्थी/परिवादी के कथनानुसार उसके द्वारा परिवादी द्वारा दिनांक १७-१२-२००९ को एक स्पीड पोस्ट रजिस्ट्री शुल्क(२५=००) देकर रविता कुमारी पत्नी श्री राजमोहन द्वारा श्री सोहन लाल शर्मा, २३१, टीचर्स कालोनी, फरीदपुर जिला बरेली के सही पते पर की गई थी, जिसकी रसीद नं0-ई यू ३१०७७१६११ आई0एन0 है। यह रजिस्ट्री दिनांक १५-०१-२००९ सायं पॉंच बजे तक भी नहीं मिली। इस स्पीड पोस्ट द्वारा महत्वपूर्ण कागजात रविता कुमारी का आवेदन पत्र भेजा गया था, जिसे २६-१२-२००८ सायं ०५ बजे तक रजिस्टर्ड डाक द्वारा प्रचार्य, जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान बरेली को विशिष्ट बी0टी0सी0 चयन हेतु प्राप्त कराना था, क्योंकि
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२६-१२-२००८ तक प्रार्थना पत्र रजिस्टर्ड डाक द्वारा जमा कराने की अन्तिम तारीख थी एवं उक्त रजिस्ट्री दिनांक २३-१२-२००८ की सायं ०५ बजे तक भी फरीदपुर उक्त पते पर नहीं पहुँची तब परिवादी को अपने भतीजे के द्वारा उपरोक्त आवश्यक कागजात की दूसरी फोटो कापियॉं व अन्य कागजात सायं छ: बजे कार टैक्सी से फरीदपुर जिला बरेली भेजनी पड़ी। परिवादी का कथन है कि उसके द्वारा कार टैक्सी मालिक को दिनांक २४-१२-२००८ को ३१००/- रू० किराये का भुगतान किया गया। समय पर रजिस्ट्री न मिलने से परिवादी व उसकी रिश्तेदार रविता कुमारी को भारी मानसिक एवं आर्थिक कष्ट झेलना पड़ा। दिनांक ०९-०१-२००९ को एक प्रार्थना पत्र प्रभारी उप डाक घर द0सि0ला0 निकट प्रकाश चौक को यह जानने के लिए दिया कि परिवादी द्वारा सही पते पर भेजी गई स्पीड पोस्ट रजिस्ट्री सही पते पर क्यों नहीं पहुँची और उसकी सही स्थिति क्या है, किन्तु दिनांक १५-०१-२००९ तक अपीलार्थीगण द्वारा कोई जबाव नहीं दिया गया, तब बतौर हर्जाना २०,०००/- रू० अपीलार्थीगण से दिलाए जाने हेतु प्रश्नगत परिवाद योजित किया गया।
अपीलार्थी डाक विभाग की ओर से प्रतिवाद पत्र जिला मंच के समक्ष प्रस्तुत किया गया। अपीलार्थी का कथन है कि अपीलार्थी द्वारा भेजी गई डाक दिए गये पते पर न पहुँचने के सम्बन्ध में दिनांक ०९-०१-२००९ को परिवादी द्वारा शिकायत की गई जो दिनांक १२-०१-२००९ को कार्यालय में प्राप्त हुई। शिकायत प्राप्त होने के उपरान्त विभागीय नियमानुसार विभागीय अधिकारियों द्वारा कार्यवाही करते हुए परिवादी की शिकायत वेबसाइट पर दर्ज की गई। तत्पश्चात् खोज-पत्र जारी किया गया किन्तु उक्त स्पीड पोस्ट आर्टीकल का कोई निस्तारण नहीं मिल सका। अपीलार्थी का यह भी कथन है कि स्पीड पोस्ट सेवा नियमावली के अन्तर्गत स्पीड पोस्ट आर्टीकल के समय पर वितरण न होने पर अथवा निस्तारण न होने पर प्रेषक द्वारा भुगतान किये गये शुल्क का दो गुना अथवा १०००/- रू० जो भी कम हो वापस प्रेषक को भुगतान करने का प्राविधान है। परिवादी द्वारा प्रेषित स्पीड पोस्ट आर्टीकल पते पर न पहुँचने के कारण तथा उसका निस्तारण न मिलने के कारण नियमानुसार १०००/- रू० का एक्सग्रेसिया परिवादी को
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भुगतान करने के लिए विभाग द्वारा स्वीकृत किया गया। इससे अधिक धनराशि विभागीय नियमानुसार परिवादी अपीलार्थी विभाग से प्राप्त करने का अधिकारी नहीं है। अपीलार्थी का यह भी कथन है कि विभागीय नियमानुसार परिवादी को उपरोक्तानुसार १०००/- रू० प्राप्त करने के लिए दिनांक २०-०२-२००९ को सूचित किया गया किन्तु परिवादी द्वारा भुगतान लेने से इन्कार कर दिया गया। इस प्रकार परिवादी अपनी स्वयं की गलती का कोई लाभ अपीलार्थीगण से प्राप्त करने का अधिकारी नहीं है।
जिला मंच ने प्रश्नगत निर्णय द्वारा परिवादी का परिवाद आंशिक रूप से आज्ञप्त करते हुए अपीलार्थी को निर्देशित किया कि वह परिवादी को मानसिक सन्ताप के रूप में २५००/- रू० एवं वाद व्यय के रूप में २,०००/- रू० निर्णय के दिनांक से एक माह के अन्दर अदा करे।
इस निर्णय से क्षुब्ध होकर यह अपील योजित की गयी है।
हमने अपीर्थीगण की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री विशाल चौधरी तथा प्रत्यर्थी के विद्वान अधिवक्ता श्री अजय कुमार सिंह के तर्क सुने तथा अभिलेखों का अवलोकन किया।
अपीलार्थी की ओर से यह तर्क प्रस्तुत किया गया कि प्रत्यर्थी/परिवादी ने जिला मंच के समक्ष प्रश्नगत परिवाद दिनांक १६-०१-२००९ को इस अभिकथन के साथ प्रस्तुत किया कि उसने एक स्पीड पोस्ट पत्र, जिसमें कुछ महत्वपूर्ण प्रपत्र थे, दिनांक १७-१२-२००८ को श्रीमती रविता कुमारी निसासी २३१, टीचर्स कालोनी, फरीदपुर जिला बरेली को प्रेषित किया किन्तु उपरोक्त स्पीड पोस्ट आर्टीकल नियत तिथि तक दिए गये पते पर वितरित नहीं हुआ। अपीलार्थी की ओर से यह तर्क भी प्रस्तुत किया गया कि अपीलार्थी विभाग की ओर से प्रतिवाद पत्र जिला मंच के समक्ष इस अभिकथन के साथ प्रस्तुत किया गया कि कथित स्पीड पोस्ट आर्टीकल के वितरण न होने के सन्दर्भ में प्रत्यर्थी/परिवादी से शिकायत प्राप्त होने पर अपीलार्थी द्वारा जांच करवाई गई। जांच के मध्य यह पाया गया कि कथित स्पीड पोस्ट आर्टीकल का निस्तारण नहीं हो सका तथा प्रेषण प्रक्रिया के मध्य कहीं गुम हो गया। फलस्वरूप, अपीलार्थी द्वारा विभागीय
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नियमानुसार अधिकतम देय क्षतिपूर्ति के रूप में १,०००/- रू० की प्राप्ति हेतु प्रत्यर्थी/परिवादी को प्रस्तावित किया गया किन्तु परिवादी द्वारा अपने पत्र दिनांकित २०-०२-२००९ द्वारा उपरोक्त प्रस्तावित १,०००/- रू० की धनराशि की प्राप्ति किए जाने से इन्कार कर दिया गया। अपीलार्थी की ओर से यह तर्क भी प्रस्तुत किया गया कि जिला मंच द्वारा पत्रावली पर उपलब्ध साक्ष्य का उचित परिशीलन न करते हुए प्रश्नगत निर्णय द्वारा २५००/- रू० क्षतिपूर्ति के रूप में तथा २,०००/- रू० वाद व्यय के रूप में अदायगी हेतु आदेशित किया गया, जो विधि सम्मत न होने के कारण अपास्त किए जाने योग्य है। अपीलार्थी का यह भी कथन है प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा कथित स्पीड पोस्ट लैटर में कुछ महत्वपूर्ण प्रपत्र प्रेषित किया जाना अभिकथित किया गया है, जो कि नियमानुसार अविधिक है, क्योंकि यदि प्रत्यर्थी/परिवादी को कथित स्पीड पोस्ट लैटर द्वारा कुछ महत्वपूर्ण प्रपत्र प्रेषित करने थे तो उस पत्र को डाक विभाग के सक्षम प्राधिकारी से बीमित कराने के पश्चात् भेजना चाहिए था।
अपीलार्थी की ओर से यह तर्क भी प्रस्तुत किया गया कि इण्डियन पोस्ट आफिस एक्ट १८९८ की धारा-६ के अन्तर्गत अपीलार्थीगण को क्षतिपूर्ति की अदायगी हेतु उत्तरदायी नहीं माना जा सकता। अपीलार्थी द्वारा प्रकरण को भारतीय डाक अधिनियम १८९८ की धारा-६ से बाधित होना भी अभिकथित किया गया है।
इस सन्दर्भ में निर्विवाद रूप से पक्षकारों के मध्य यह स्वीकारोक्ति है कि परिवादी द्वारा प्रेषित कथित स्पीड पोस्ट आर्टीकल पाने वाले को नहीं मिला किन्तु भारतीय डाक अधिनियम १८९८ की धारा-६ के अनुसार-
“6. Exemption from liability for loss, misdelivery, delay or damage The Government shall not incur any liability by reason of the loss, misdelivery or delay of, or damage to, any postal article in course of transmission by post, except insofar as such liability may in express terms be undertaken by the Central Government as hereinafter provided and no officer of the Post Office shall incur any liability by reason of any such loss, misdelivery, delay or damage, unless he has caused the same fraudulently or
by his willful act or default.”
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जिला मंच के समक्ष प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा ऐसी कोई साक्ष्य प्रस्तुत नहीं की गयी जिससे यह निष्कर्ष निकाला जा सके कि प्रश्नगत डाक अपीलार्थी के कर्मचारी ने कपटपूर्वक वितरित नहीं की अथवा जानबूझकर वितरित नहीं की। ऐसी परिस्थिति में भारतीय डाक अधिनियम की धारा-६ के आलोक में अपीलार्थीगण को क्षतिपूर्ति की अदायगी का उत्तरदायी नहीं माना जा सकता।
उल्लेखनीय है कि इण्डियन पोस्ट आफिस रूल्स १९३३ में संशोधित करते हुए दिनांक ०१-०८-१९८६ को नियम ६६ (बी) को जोड़ा गया। तत्पश्चात् विभाग द्वारा सर्कुलर सं0-एफ.नं० ४३-४/८७-डी/बीडीडी दिनांक २२-०१-१९९९ जारी किया गया जिसके अनुसार स्पीड पोस्ट के दिये गये पते पर न पहुँचने पर लगाये गये टिकट का दोगुना कम्पोजिट फीस के रूप में अथवा १०००/- रू० जो भी कम हो देय होना माना गया है। इस सम्बन्ध में मा0 राष्ट्रीय आयोग द्वारा स्पीड पोस्ट द्वारा मैनेजर स्पीड पोस्ट आफिस, जीपीओ बिल्डिंग, जयपुर बनाम लक्ष्मण सिंह २०१० एनसीजे ३०९ (एनसी) में स्पष्ट विधिक सिद्धान्त प्रतिपादित किया गया है। जिला मंच द्वारा नियम ६६ (बी) तथा उपरोक्त सर्कुलर दिनांकित २२-०१-१९९९ पर बिना विचार विमर्श किये ही प्रत्यर्थी/परिवादी के पक्ष में क्षतिपूर्ति अदा करने हेतु आदेश पारित किया गया है जो विधि सम्मत नहीं है, किन्तु यहॉं यह स्पष्ट किया जाना न्यायोचित होगा कि अपीलार्थी द्वारा जांच कराये जाने पर जांच के मध्य यह पाया गया कि कथित स्पीड पोस्ट आर्टीकल का समय से निस्तारण नहीं हो सका तथा अपीलार्थी द्वारा विभागीय नियमानुसार अनुमन्य देय अधिकतम क्षतिपूर्ति की धनराशि १,०००/- रू० की प्राप्ति हेतु प्रत्यर्थी/परिवादी को प्रस्तावित किया गया, जिसे प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा प्राप्त किए जाने से इन्कार कर दिया गया, अत: प्रत्यर्थी/परिवादी अपीलार्थी विभाग द्वारा प्रस्तावित उपरोक्त १,०००/- रू० की धनराशि अपीलार्थी से प्राप्त करने हेतु स्वतन्त्र होगा। अपील तद्नुसार स्वीकार किए जाने योग्य है।
आदेश
प्रस्तुत अपील स्वीकार की जाती है। जिला मंच, मुजफ्फरनगर द्वारा परिवाद संख्या-०८/२००९ में पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश दिनांक ०२-०७-२०१० अपास्त किया
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जाता है किन्तु यह स्पष्ट किया जाता है कि प्रत्यर्थी/परिवादी अपीलार्थी विभाग द्वारा प्रस्तावित उपरोक्त १,०००/- रू० की धनराशि अपीलार्थी से प्राप्त करने हेतु स्वतन्त्र होगा।
इस अपील का व्यय-भार उभय पक्ष अपना-अपना स्वयं वहन करेंगे।
उभय पक्ष को इस निर्णय की प्रमाणित प्रति नियमानुसार उपलब्ध करायी जाय।
(उदय शंकर अवस्थी)
पीठासीन सदस्य
(गोवर्द्धन यादव)
सदस्य
प्रमोद कुमार,
वैय0सहा0ग्रेड-१,
कोर्ट नं.-२.