राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0 प्र0 लखनऊ
अपील संख्या 1097 सन् 2011
सुरक्षित
(जिला उपभोक्ता फोरम, मुजफ्फरनगर के द्वारा परिवाद केस संख्या- 48/2007 में पारित निर्णय/आदेश दिनांक- 25-03-2011 के विरूद्ध)
लाइफ इंश्योरेंस कारपोरेशन आफ इंडिया द्वारा मैनेजर लीगल ला विभाग, डिवीजनल आफिस, एल0आई0सी0 बिल्डिंग, हजरतगंज, लखनऊ।
...अपीलार्थी/विपक्षी
बनाम
श्रीमती शिक्षा देवी पत्नी रनवीर सिंह निवासी- ग्राम खटौली, जिला- मुजफ्फरनगर।
....प्रत्यर्थी /परिवादिनी
समक्ष:-
1-मा0 श्री आर0सी0 चौधरी, पीठासीन सदस्य।
2-मा0 संजय कुमार, सदस्य।
अधिवक्ता अपीलार्थी : श्री वी0एस0 बिसारिया, विद्वान अधिवक्ता।
अधिवक्ता प्रत्यर्थी : श्री आलोक कुमार सिंह, विद्वान अधिवक्ता।
दिनांक-06-02-2015
मा0 श्री आर0सी0 चौधरी, पीठासीन सदस्य, द्वारा उदघोषित।
निर्णय
मौजूदा अपील जिला उपभोक्ता फोरम मुजफ्फरनगर के द्वारा परिवाद केस संख्या- 48/2007 में पारित निर्णय/आदेश दिनांक- 25-03-2011 के विरूद्ध प्रस्तुत किया गया है। उपरोक्त निर्णय में यह आदेश किया गया है कि परिवादिनी का परिवाद आंशिक रूप से आज्ञप्त करते हुए विपक्षी बीमा कम्पनी को निर्देश दिया जाता है कि वह परिवादिनी को मृतक उमेश पाल की मृत्यु से सम्बन्धित दुर्घटना हित लाभ निर्णय से एक माह के अन्दर सम्पूर्ण लाभों सहित प्रदान करें, इसके अतिरिक्त मानसिक संताप के रूप में अंकन 5,000-00 रूपये तथा वाद व्यय के रूप में अंकन2500-00 रूपये भी निर्णय के दिनांक से एक माह के अन्दर अदा करें।
संक्षेप में केस के तथ्य इस प्रकार से है कि परिवादिनी के मृतक पुत्र ने अपने जीवन काल में एक पालिसी सं0-251043882 दिनांक-28-03-2001 को प्लान जीवन संचय के अन्तर्गत ली थी। परिवादिनी के पुत्र उमेश पाल की दिनांक- 20-02-2006 को देहान्त हो गया, जिसके बावत एक प्रथम सूचना रिपोर्ट परिवादिनी के पति रणवीर सिंह
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थाना कोतवाली दर्ज करायी, और मृतक उमेश पाल का पोस्टमार्टम हुआ। परिवादिनी जब बीमा कम्पनी से सम्पर्क की तो विपक्षी बीमा कम्पनी ने परिवादिनी को अंकन 1,28,000-00 रूपये का एक चेक दिया और शेष भुगतान के लिए कहा कि शीघ्र कर दिया जायेगा। परिवादिनी के बार-बार अनुरोध करने के बावजूद विपक्षी बीमा कम्पनी के द्वारा परिवादिनी को दुर्घटना हित लाभ नहीं दिया गया तो दिनांक 08-09-2006 को एक नोटिस भेजी, इसके बावजूद विपक्षी द्वारा न तो नोटिस का कोई जवाब दिया गया और न ही परिवादिनी को दुर्घटना हित लाभ दिया गया। अत: प्रस्तुत परिवाद की आवश्यकता हुई है।
विपक्षी के तरफ से प्रतिवाद पत्र दाखिल किया गया है, जिसमें परिवाद पत्रों का खण्डन करते हुए उत्तर पत्र 11 में कहा गया है कि परिवादिनी ने एक प्रार्थना पत्र व प्रपत्र 10-05-2005 को विपक्षी के कार्यालय में दिया, उसे मृतक की मृत्यु दुर्घटना से होना सिद्ध नहीं है और बीमा कम्पनी ने बीमा राशि का भुगतान बिना किसी देरी के तुरन्त बोनस सहित कर दिया है। इस प्रकार से विपक्षी की ओर से कोई सेवा में कमी नहीं की गई है। अत: परिवादिनी का परिवाद निरस्त होने योग्य है।
इस सम्बन्ध में जिला उपभोक्ता फोरम के निर्णय/आदेश दिनांकित 25-03-2011 का अवलोकन किया गया, अपील के आधार का अवलोकन किया गया तथा दोनों पक्षों के तरफ से दाखिल लिखित बहस का अवलोकन किया गया और अपीलकर्ता के विद्वान अधिवक्ता श्री वी0एस0 बिसारिया तथा प्रत्यर्थी के विद्वान अधिवक्ता श्री आलोक कुमार सिंह की मौखिक बहस को सुना गया।
अपीलकर्ता के विद्वान अधिवक्ता श्री वी0एस0 बिसारिया द्वारा अपने बहस में कहा गया कि परिवादिनी को बीमा की रकम 1,28,000-00 दिनांक11-05-2006 को बीमा कम्पनी द्वारा मिल चुका है और यह भी कहा गया कि चूंकि मौजूदा केस में दुर्घटना नहीं थी, इसलिए दुर्घटना हित लाभ परिवादिनी को नहीं मिलना चाहिए और दुर्घटना हित लाभ जो जिला उपभोक्ता फोरम के द्वारा दिया गया है, वह मानने योग्य नही है। यह भी कहा गया कि पत्रावली में शामिल कागज सं0-13 सूचना जो शाखा प्रबन्धक, एल0आई0सी0 को दिया गया था, जिसमें यह कहा गया है कि प्रार्थी का पुत्र
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उमेश पाल परिचालक के पद पर कार्यरत था, जिसकी दिनांक 20-02-2006 को पालीवाल पेट्रोल पम्प के पास अचानक मृत्यु हो गई और इस पत्र में दुर्घटना के बारे में कुछ नहीं कहा गया है और यह भी कहा गया है कि कागज सं0-14 दावेदार का बयान है, जिसके बारे में भारतीय जीवन बीमा निगम में फार्म जमा किया गया था, उसके कालम सं0-2 य में मृत्यु का तत्कालीन कारण अज्ञात दर्शाया गया है और यह भी कहा गया है कि कागज सं0-21 जो पत्रावली में शामिल है, पोस्टमार्टम रिपोर्ट है, उसमें भी मृत्यु का कारण नहीं पता चल सका है और कागज सं0-19 जो पंचायतनामा है, उसमें भी मृत्यु के सम्बन्ध में कुछ नहीं कहा गया है कि मृत्यु दुर्घटना से हुई है।
प्रत्यर्थी/परिवादिनी के तरफ से विद्वान अधिवक्ता द्वारा कहा गया है कि बिसरा रिपोर्ट पेश नहीं किया गया है और उसकी जहरखुरानी जैसी स्थिति थी। यह हत्या का केस नहीं था। यह भी कहा गया कि जहर खुरानी का केस था, इसलिए यह दुर्घटना थी और इसलिए दुर्घटना बेनीफिट मिलना चाहिए। प्रत्यर्थी के तरफ से यह भी कहा गया कि अपील देरी से दायर किया गया है, जिसका कोई उचित कारण नहीं दर्शाया गया है। इस सम्बन्ध में अपील देरी से दायर किये जाने का प्रार्थना पत्र व शपथ पत्र प्रस्तुत किया गया है, जिसमें कहा गया है कि जिला उपभोक्ता फोरम के निर्णय की कापी दिनांक 31-03-2011 को प्राप्त किया गया है और लखनऊ डिवीजनल आफिस में भेजा गया और इसके साथ एक पत्र मेरठ डिवीजनल आफिस में दिनांक 26-05-2011 को भेजा गया। जो भी देरी देरी हुआ है, वह जानबूझकर नहीं हुआ है और उसे क्षमा किया जाय। अपीलार्थी के उपरोक्त कथनों को देखते हुए हम यह पाते है कि अपील देरी से योजित किये जाने का प्रार्थना पत्र स्वीकार किये जाने योग्य है। अत: इस सम्बन्ध में देरी माफी का प्रार्थना पत्र स्वीकार किया जाता है। इस प्रकार से अपील खारिज होने योग्य नहीं है।
उपरोक्त सारे कथनों केस के तथ्यों परिस्थितियों को देखते हुए, सारे पहुलओं को देखते हुए हम यह पाते है कि प्रथम सूचना रिपोर्ट, पंचायत नामा तथा शाखा प्रबन्धक, को दिये गये प्रार्थना पत्र दिनांकित10-05-2006 व दावेदार का बयान फार्म में मृत्यु का कोई कारण नहीं दर्शाया गया है और जहर खुरानी की भी बात नहीं कहीं गई है और किसी भी हालत में एक्सीडेन्ट से मृत्यु होना स्पष्ट नहीं है और यह भी तथ्य स्पष्ट है
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कि बीमा कम्पनी ने बीमा धारक का 1,28,000-00 रूपये दिनांक 11-05-2006 को परिवादिनी को दिया जा चुका है और इस प्रकार से उपरोक्त तर्को से हम यह पाते है कि परिवादिनी दुर्घटना हित लाभ अलग से पाने की हकदार नहीं है और इस सम्बन्ध में जिला उपभोक्ता फोरम द्वारा जो निर्णय/आदेश पारित किया गया है, वह विधि सम्मत नहीं है तथा अपीलकर्ता की अपील स्वीकार होने योग्य है।
आदेश
अपीलकर्ता की अपील स्वीकार की जाती है तथा जिला उपभोक्ता फोरम मुजफ्फरनगर के द्वारा परिवाद केस संख्या- 48/2007 में पारित निर्णय/आदेश दिनांक- 25-03-2011 को निरस्त किया जाता है।
उभय पक्ष अपना-अपना अपील व्यय स्वयं वहन करेगें।
( आर0सी0 चौधरी ) ( संजय कुमार )
पीठासीन सदस्य सदस्य
आर0सी0वर्मा आशु0-ग्रेड-2
कोर्ट नं. 5