Uttar Pradesh

StateCommission

A/2009/1728

Wipro Ge Medical System - Complainant(s)

Versus

Dr Sandeep Agarwal - Opp.Party(s)

Rohit Verma, V.S. Bisaria

02 Sep 2021

ORDER

STATE CONSUMER DISPUTES REDRESSAL COMMISSION, UP
C-1 Vikrant Khand 1 (Near Shaheed Path), Gomti Nagar Lucknow-226010
 
First Appeal No. A/2009/1728
( Date of Filing : 06 Oct 2009 )
(Arisen out of Order Dated in Case No. of District State Commission)
 
1. Wipro Ge Medical System
a
...........Appellant(s)
Versus
1. Dr Sandeep Agarwal
a
...........Respondent(s)
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. Rajendra Singh PRESIDING MEMBER
 HON'BLE MR. SUSHIL KUMAR JUDICIAL MEMBER
 
PRESENT:
 
Dated : 02 Sep 2021
Final Order / Judgement

राज्‍य उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।

सुरक्षित

अपील संख्‍या-1728/2009

(जिला उपभोक्‍ता फोरम, द्वितीय मुरादाबाद द्वारा परिवाद संख्‍या-173/2008 में पारित निर्णय दिनांक के विरूद्ध)

1.विप्रो जीई हेल्‍थ केयर प्रा0लि0, फर्स्‍ट फ्लोर 249 इंडस्ट्रियल इस्‍टेट

फेस ।।।, न्‍यू दिल्‍ली द्वारा मैनेजिंग डायरेक्‍टर।

2.विप्रो जीई हेल्‍थ केयर प्रा0लि0, ए-1 गोल्‍डन इन्‍क्‍लेव एयरपोर्ट

रोड, बैंगलेरू-560017                     .....अपीलार्थीगण@विपक्षीगण

बनाम

डा0 संदीप अग्रवाल निवासी बी-24, गांधी नगर, मुरादाबाद।

                                         .....प्रत्‍यर्थी/परिवादी

समक्ष:-

1. मा0 श्री राजेन्‍द्र सिंह, सदस्‍य।

2. मा0 श्री सुशील कुमार, सदस्‍य।

 

अपीलार्थी की ओर से उपस्थित  : श्री रोहित वर्मा, विद्वान

                            अधिवक्‍ता।

प्रत्‍यर्थी की ओर से उपस्थित   : श्री पियूषमणी त्रिपाठी, विद्वान

                             अधिवक्‍ता।

दिनांक 12.10.2021

मा0 श्री सुशील कुमार, सदस्‍य द्वारा उदघोषित

निर्णय

1.   परिवाद संख्‍या 173/2008 डा0 संदीप अग्रवाल बनाम विप्रो जीई हेल्‍थ केयर प्रा0लि0 तथा 1 अन्‍य में आयोग के दो सदस्‍यों द्वारा पारित निर्णय के विरूद्ध यह अपील प्रस्‍तुत की गई है। आयोग के 2 सदस्‍यों द्वारा रू. 345000/- तथा मानसिक प्रताड़ना के मद में दो लाख रूपये 8 प्रतिशत ब्‍याज अदा करने का आदेश पारित किया गया है, जबकि मंच के अध्‍यक्ष द्वारा यह परिवाद आंशिक रूप से स्‍वीकार करते हुए मात्र रू. 70000/- क्षतिपूर्ति अदा करने का आदेश दिया है। वाद व्‍यय के रूप में रू. 5000/- अदा करने का भी आदेश दिया गया है।

 

 

-2-

2.   परिवाद के तथ्‍य संक्षेप में इस प्रकार है कि परिवादी चिकित्‍सक है तथा विपक्षीगण अल्‍ट्रासाउन्‍ड मशीन के निर्माता एवं विक्रेता हैं। परिवादी ने दिनांक 25.11.07 को अंकन रू. 2250000/- में मशीन खरीदने का आदेश निर्गत किया। दिनांक 08.03.08 को मशीन स्‍थापित की गई। स्‍थापित करते समय पाया गया कि Logiq 100 V 4(Portabe) with convex TV/TR probe and Black and white savy Thermal printer short shipped थी। इस उपकरण के बिना अल्‍ट्रासाउन्‍ड मशीन कार्य नहीं कर सकती थी। इंजीनियर द्वारा अवगत कराया गया कि मशीन के साथ थर्मल प्रिन्‍टर(सोनी) एल 100 नहीं है। दिनांक 06.03.2008 की रिपोर्ट में यह टिप्‍पणी अंकित की थी। पत्राचार के पश्‍चात यह उपकरण भेजा गया जो टूटा हुआ था। इसका उल्‍लेख भी अभियंता द्वारा अपनी आख्‍या में किया गया है। परिवादी ने एक विधिक नोटिस 10.07.08 को प्रेषित किया तब जुलाई 2008 में दोनों उपकरण प्रेषित किया। इस प्रकार अल्‍ट्रासाउन्‍ड मशीन दिनांक 06.03.2008 से जुलाई 2008 तक कार्यरत नहीं रही, जिसके कारण परिवादी का घोर मानसिक और आर्थिक क्षति कारित हुई है। वैधानिक नोटिस भेजते हुए अंकन रू. 250000/- क्ष्‍ातिपूर्ति की मांग की है, परन्‍तु इस नोटिस का कोई उत्‍तर नहीं दिया गया।  

3.   विपक्षीगण का कथन है कि परिवादी उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम की श्रेणी में नहीं आता है, जैसा कि धारा 2(1) डी के अंतर्गत परिभाषित किया गया है और इस कारण वह अधिनियम की धारा 2(1)सी के अंतर्गत परिवाद योजित नहीं कर सकता। परिवाद प्रगतिशील नहीं है और निरस्‍त किये जाने योग्‍य है। यह भी कहा गया कि प्रश्‍नगत अल्‍ट्रासाउन्‍ड मशीन वाणिज्यिक

 

-3-

उद्देश्‍य से खरीदी गयी है। इस दृष्टिकोण से भी परिवादी उपभोक्‍ता नहीं माना जायेगा। जवाबदावे में यह भी कहा गया है कि परिवादी ने अपने परचेज आर्डर दिनांक 24.11.07 की पुष्टि अपने पत्र दिनांक 09.02.08 के द्वारा किया। अपने पत्र दिनांक 09.02.08 के द्वारा आदेश की पुष्टि करते समय परिवादी ने एक pre-owned Logiq Alpha 100 with cinvex TV/TR probe. मुफ्त  (F.O.C) सप्‍लाई करने का आग्रह किया था, जो स्‍वीकार करते हुए उसे उपलब्‍ध कराया गया, अत: इस कम्‍पोनेन्‍ट के उपलब्‍ध कराने में सेल, परचेज व कंसीडीरेशन के इलीमेट का अभाव है, इस आधार पर भी परिवाद प्रगतिशील नहीं है। यह मूल एग्रीमेन्‍ट(अनुबंध) का हिस्‍सा भी नहीं था। कहा गया कि परिवादी ने प्रश्‍नगत Volusion 730 Pro V मशीन को 5 अन्‍य  Probes के साथ खरीदा था वे 4  CA) Abdominal probe, phased array probe, Linear Array probe, endoactivity probe and RAB2-5L4D-Abdiminal probe. परचेज आर्डर के अनुरूप विपक्षी ने परिवादी को यह सारे probes उपलब्‍ध कराये। जहां तक गोल्‍डनशील probe-L-100 probe उपलब्‍ध कराने का मामला है, वह बिना पैसा लिए मुफ्त (F.O.C) उपलब्‍ध करायी गयी। L-100 probe विपक्षी को किसी डाक्‍टर से खरीदना था जो उसे कंपनी को बेचने को तैयार हो और उसके पश्‍चात ही परिवादी को उपलब्‍ध कराया जा सकता है। इसे उपलब्‍ध कराने में कोई समय सीमा पक्षकारों के मध्‍य निर्धारित नहीं थी। परिवादी ने मा0 फोरम में इस तथ्‍य को छिपाया। यह भी कहा गया कि परिवादी ने अपने परचेज आदेश दिनांक 24.11.07 के द्वारा Colour Laser Printer (HP 2100) उपलब्‍ध कराने का आदेश दिया था। कंपनी ने उसी के अनुसार Colour Laser Printer (HP 2100) उपलब्‍ध कराया, परन्‍तु परिवादी ने केवल ब्‍लैक एण्‍ड व्‍हाइट थर्मल प्रिन्‍टर ही उपलब्‍ध कराने का आग्रह किया। परिवादी ने मा0 फोरम से इस तथ्‍य को छिपाया है कि वह कलर लेजर

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प्रिन्‍टर के स्‍थान पर ब्‍लैक एण्‍ड व्‍हाइट थर्मल प्रिन्‍टर बदलकर लेना चाहता है। अत: प्रश्‍नगत प्रिन्‍टर को उपलब्‍ध कराने में जो देरी हुई उसके लिए परिवादी स्‍वयं जिम्‍मेदार है। परिवाद के पैरा 8 के जवाब में इस बात से इंकार किया गया कि विपक्षी की कोई नोटिस दिनांक 10.07.08 भेजा गया या उस पर तामील हुआ। परिवाद के पैरा 9 व 10 के जवाब में कहा गया कि Volusion 730 Pro V मशीन का कार्य B/W printer व L-100 probe पर आधारित नहीं है। पांच लाख रूपये क्षतिपूर्ति की अत्‍यधिक राशि की मांग की गई है, क्‍योंकि उपभोक्‍ता मामलों में फीस देय नहीं है।

4.   दोनों पक्षकारों के साक्ष्‍य पर विचार करने के पश्‍चात जिला उपभोक्‍ता  मंच के अध्‍यक्ष द्वारा यह निष्‍कर्ष दिया गया कि 4-5 महीने तक अल्‍ट्रासाउन्‍ड मशीन बंद रही, इस कारण परिवादी को मानसिक पीड़ा हुई तथा आर्थिक क्षति भी उठानी पड़ी। दोनों मदों में कुल रू. 70000/- अदा करने का आदेश देना उचित पाया। तदनुसार उपरोक्‍त वर्णित आदेश पारित किया गया, जबकि जिला उपभोक्‍ता मंच के 2 सदस्‍यों द्वारा जिस आदेश के विरूद्ध यह अपील प्रस्‍तुत की गई है यह पाया गया कि परिवादी खराब हुए उपकरण की कीमत वापस पाने एवं मानसिक कष्‍ट, आर्थिक हानि की क्षतिपूर्ति के लिए अधिकृत है। तदनुसार उपरोक्‍त वर्णित आदेश पारित किया गया।

5.   इस निर्णय व आदेश को इन आधारों पर चुनौती दी गई है कि जिला उपभोक्‍ता मंच के 2 सदस्‍यों द्वारा तथ्‍य एवं विधि के विपरीत निर्णय पारित किया गया है। मशीन तथा कलर प्रिन्‍टर दिनांक 06.03.2008 को परिवादी को प्राप्‍त कराए गए थे, जिन पर 12 माह की वारण्‍टी अवधि थी, जो दिनांक 05.03.09 को समाप्‍त हो गई। परिवादी व्‍यापार करता है,

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इसलिए उपभोक्‍ता की श्रेणी में नहीं आता, इस बिन्‍दु पर जिला उपभोक्‍ता मंच द्वारा कोई निष्‍कर्ष नहीं दिया गया है।

6.   दोनों पक्षकारों के विद्वान अधिवक्‍ताओं को सुना। प्रश्‍नगत निर्णय/आदेश व पत्रावली का अवलोकन किया गया।

7.   अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्‍ता द्वारा यह बहस की गई है कि अपीलार्थी व्‍यापारिक कार्यों में सलग्‍न है, इसलिए उपभोक्‍ता की श्रेणी में नहीं आता, परन्‍तु यह तर्क ग्राह्य नहीं है, क्‍योंकि स्‍वयं की अजीविकोपार्जन के लिए तथा अपने पेशे को उत्‍तम रूप प्रदान करने के लिए अल्‍ट्रासाउन्‍ड मशीन क्रय की गई है। इस मशीन का क्रय करना व्‍यापारिक कार्यों की श्रेणी में नहीं आता। यदि परिवादी द्वारा अनेक अल्‍ट्रासाउन्‍ड मशीन क्रय की गई होती और क्रय करने के पश्‍चात अन्‍य व्‍यक्तियों को लाभ कमाने के उद्देश्‍य से विक्रय की गई होती तब परिवादी को व्‍यापारिक गतिविधियों में शामिल माना जा सकता था, अत: जिला उपभोक्‍ता मंच को उपभोक्‍ता अधिनियम के अंतर्गत परिवाद को सुनने का क्षेत्राधिकार प्राप्‍त है।

8.   अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्‍ता द्वारा यह बहस की गई है कि प्रश्‍नगत मशीन के उपकरण बदल दिए गए हैं, इसलिए उपकरण बदलने के पश्‍चात जिला उपभोक्‍ता मंच के 2 सदस्‍यों द्वारा बदले गए उपकरण की कीमत रू. 345000/- तथा मानसिक प्रताड़ना के मद में अंकन दो लाख रूपये का आदेश विधि विरूद्ध तरीके से पारित किया है।

9.   परिवादी/प्रत्‍यर्थी के विद्वान अधिवक्‍ता का तर्क है कि यह आदेश विधिसम्‍मत है, परिवादी का कार्य प्रभावित हुआ है, इसलिए उसे कार्य की क्षति हुई है तथा मशीन को दुरूस्‍त कराने में मानसिक पीड़ा कारित हुई है।

 

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10.  परिवाद पत्र के अवलोकन से स्‍पष्‍ट होता है कि परिवादी ने आर्थिक क्षतिपूर्ति एवं मानसिक उत्‍पीड़न की मद में रू. 250000/- की मांग की थी और विपक्षीगण द्वारा अपनाई गई अनुचित व्‍यापार पद्धति के कारण रू. 250000/- की मांग की थी। परिवादी द्वारा अपने अनुतोष में कभी भी यह मांग नहीं की गई कि दिनांक 02.06.09 को बदले गए उपकरण की कीमत अंकन रू. 345000/- कंपनी द्वारा अदा किया जाए, अत: इस मद में जिला उपभोक्‍ता मंच ने निश्चित रूप से तथ्‍य और विधि के विपरीत जाकर अपना निष्‍कर्ष दिया है।

11.  परिवादी द्वारा वाद का मूल्‍यांकन अंकन पांच लाख रूपये के लिए किया गया, जिसमें उपरोक्‍त वर्णित दोनों क्षतिपूर्ति की मांग की गई। बदले हुए उपकरण की कीमत की कभी भी मांग नहीं की गई, अत: अब इस बिन्‍दु पर विचार करना है कि आर्थिक एवं मानसिक प्रताड़ना के मद में जिला उपभोक्‍ता मंच द्वारा अंकन दो लाख रूपये की क्षतिपूर्ति का आदेश विधिसम्‍मत है या नहीं। यहां यह स्‍पष्‍ट किया जाता है कि अनुचित व्‍यापार पद्धति की मद में कोई आदेश अध्‍यक्ष या सदस्‍य द्वारा पारित नहीं किया गया है, अत: इस पीठ द्वारा भी इस बिन्‍दु पर कोई विचार नहीं किया जा रहा है। इस पीठ द्वारा केवल आर्थिक क्षति की मांग व प्रताड़ना के मद में दी जाने वाली विधिसम्‍मत क्षतिपूर्ति के बिन्‍दु पर विचार किया जा रहा है।

12.  यह तथ्‍य स्‍थापित है कि दिनांक 06.03.2008 से 11.07.2008 के मध्‍य कोई उपकरण परिवादी को विपक्षी द्वारा उपलब्‍ध नहीं कराए गए, अत: यह तथ्‍य विपक्षी की सेवा में कमी की ओर इशारा करता है। बिना प्रिन्‍टर के परिवादी अपने मरीजों को जांच रिपोर्ट उपलब्‍ध नहीं करा सकते थे, इसलिए मशीन गतिशील नहीं रह सकी, अत: इस अवधि में परिवादी को

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निश्चित रूप से आर्थिक क्षति कारित हुई है। इस आर्थिक क्षति का आंकलन किस प्रकार किया जाना चाहिए ? क्षति का आंकलन परिवाद पत्र में वर्णित तथ्‍यों के आधार पर ही किया जा सकता है। यदि परिवादी द्वारा परिवाद पत्र में प्रतिदिन की आय का उल्‍लेख किया होता तब प्रतिदिन की आय x मशीन के कार्यरत न रहने की अवधि के बराबर क्षतिपूर्ति की राशि सुगमता से सुनिश्चित की जा सकती थी, परन्‍तु परिवादी ने मशीन के कारण अपनी आय का कोई विवरण परिवाद पत्र में प्रस्‍तुत नहीं किया है, इसलिए केवल अनुमानित क्षति ही सुनिश्चित की जा सकती है।

13.  परिवादी एक डाक्‍टर है, अत: मरीजों का समय पर डायग्‍नोसिस न करने के कारण निश्चित रूप से मानसिक प्रताड़ना कारित हुई है, अत: परिवादी इस मद में भी क्षतिपूर्ति प्राप्‍त करने के लिए अधिकृत है। पुन: यह प्रश्‍न उठता है कि इस मद में क्षतिपूर्ति का आंकलन किस आधार पर किया जाए। जिला उपभोक्‍ता मंच के अध्‍यक्ष द्वारा क्रमश: रू. 50000/- एवं रू. 20000/- कुल रू. 70000/- की क्षतिपूर्ति प्रदत्‍त किए जाने का आदेश दिया है। इस पीठ को भी यह आदेश विधिसम्‍मत प्रतीत होता है। अपीलार्थी द्वारा इस निर्णय में कोई चुनौती भी नहीं की गई है क्‍योंकि यह अपील केवल 2 सदस्‍यों द्वारा पारित दिनांक 02.09.09 के विरूद्ध प्रस्‍तुत की गई है। प्रस्‍तुत केस में अध्‍यक्ष द्वारा पारित निर्णय के अनुसार ही प्रतिकर की राशि सुनिश्चित करना विधिसम्‍मत करना प्रतीत होता है, अत: अपील तदनुसार स्‍वीकार होने योग्‍य है।

आदेश

14.  अपील आंशिक रूप से स्‍वीकार की जाती है। जिला उपभोक्‍ता मंच के 2 सदस्‍यों द्वारा पारित निर्णय इस प्रकार परिवर्तित किया जाता है कि

 

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उपकरण बदलने की मद में परिवादी को किसी प्रकार की क्षतिपूर्ति देय नहीं है। आर्थिक हानि तथा मानसिक प्रताड़ना के मद में क्रमश: रू. 50000/- एवं

रू. 20000/- कुल रू. 70000/- की क्षतिपूर्ति का आदेश दिया जाना उचित है। इस राशि पर परिवाद प्रस्‍तुत करने की तिथि से भुगतान की तिथि तक 07 प्रतिशत साधारण ब्‍याज भी देय होगा तथा परिवाद व्‍यय के रूप में रू. 5000/- देय होगा।

     आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस आदेश को आयोग की

 वेबसाइड पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।

 

         

       (राजेन्‍द्र सिंह)                      (सुशील कुमार)                                                                                                                                                 सदस्‍य                             सदस्‍य

 

निर्णय आज खुले न्‍यायालय में हस्‍ताक्षरित, दिनांकित होकर उद्घोषित किया गया।

 

        (राजेन्‍द्र सिंह)                      (सुशील कुमार)                                                                                                                                                  सदस्‍य                             सदस्‍य         

राकेश, पी0ए0-2

कोर्ट-2

 

 

 
 
[HON'BLE MR. Rajendra Singh]
PRESIDING MEMBER
 
 
[HON'BLE MR. SUSHIL KUMAR]
JUDICIAL MEMBER
 

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