(मौखिक)
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
अपील संख्या-782/2009
शाहिना प्रवीण उर्फ शाहिना बेगम पुत्री शराफत अली
बनाम
डा0 एस.एस. गोयल, सर्जन, गोयल नर्सिंग होम एण्ड मैटरनिटी सेन्टर तथा तीन अन्य
समक्ष:-
1. माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य।
2. माननीय श्रीमती सुधा उपाध्याय, सदस्य।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : श्री एच.के. श्रीवास्तव एवं श्री
ए.के. पाण्डेय।
प्रत्यर्थी सं0-3 की ओर से उपस्थित : श्री ए.के. राय।
शेष प्रत्यर्थीगण की ओर से उपस्थित : कोई नहीं।
दिनांक : 27.03.2024
माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
1. परिवाद संख्या-26/2005, शाहिना प्रवीण बनाम डा0 एस.एस. गोयल तथा तीन अन्य में विद्वान जिला आयोग, सहारनपुर द्वारा पारित निर्णय/आदेश दिनांक 24.4.2009 के विरूद्ध परिवादिनी की ओर से प्रस्तुत की गयी अपील पर अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता श्री एच.के. श्रीवास्तव एवं श्री ए.के. पाण्डेय तथा प्रत्यर्थी सं0-3, बीमा कंपनी के विद्वान अधिवक्ता श्री ए.के. राय को सुना गया तथा प्रश्नगत निर्णय/ओदश एवं पत्रावली का अवलोकन किया गया। शेष प्रत्यर्थीगण की ओर से कोई उपस्थित नहीं है।
2. विद्वान जिला आयोग ने परिवाद इस आधार पर खारिज कर दिया कि इलाज के दौरान लापरवाही का तथ्य स्थापित नहीं है।
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3. परिवाद के तथ्यों के अनुसार परिवादिनी, शाहिना प्रवीण के पेट में दर्द था, जिन्हें विपक्षी सं0-1 को दिनांक 26.8.2004 को दिखाया गया, जिनके द्वारा विपक्षी सं0-2 से अल्ट्रासाउण्ड कराने के लिए कहा गया। दिनांक 27.8.2004 को अंकन 1200/-रू0 लेकर अल्ट्रासाउण्ड किया गया, जिसकी रिपोर्ट देखकर दवा से ठीक होना बताया गया, इसके बाद विपक्षी सं0-1 ने रिपोर्ट देखकर कहा कि लड़की की आंत काफी बढ गयी है, तुरंत आपरेशन करना पड़ेगा। विपक्षी सं0-2 ने आपरेशन से मना किया है। दोनों ने फोन पर वार्ता की तब विपक्षी सं0-2 ने कहा कि गलती से कह दिया था। विपक्षी सं0-1 ने इलाज का खर्च अंकन 15,000/-रू0 बताया और मरीज को भर्ती कर लिया। विपक्षी सं0-1, उसके पुत्र तथा पुत्र वधु ने आपस में वार्ता की कि अपेंडिक्स का केस नहीं है, अपितु आपरेशन तो करना ही पड़ेगा, इसके बाद मरीज का पेट सुन कर दिया गया और बीच से पेट काट कर टांके लगा दिये और 15-20 मिनट में ही आपरेशन ठेठर से बाहर आ गये। बढ़ी हुई आंत पेट से नहीं निकाली गयी और पेट का दर्द ज्यौं का त्यौं बना रहा। दिनांक 3.9.2004 को मरीज को छुट्टी दे दी गयी, परन्तु दर्द ज्यौं का त्यौं बना रहा। दिनांक 24.9.2004 को भी मरीज को दिखाया गया तब विपक्षी बदतमीजी से बात करने लगे और पुन: अल्ट्रासाउण्ड कराने के लिए कहा तथा अंकन 20,000/-रू0 खर्चा बताया। दिनांक 10.10.2004 को डा0 मोहन पाण्डेय द्वारा अल्ट्रासाउण्ड किया गया तब उन्होंने बताया कि लड़की के पेट में दाहिने तरफ रसौली है और इसी कारण पेट में दर्द हो रहा है। विपक्षी सं0-1 ने अपेंडिक्स का गलत आपरेशन किया है। विपक्षी सं0-2 की
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अल्ट्रासाउण्ड की रिपोर्ट भी गलत थी। इस प्रकार लड़की के जीवन से खिलवाड़ किया गया है। तदनुसार क्षतिपूर्ति के लिए परिवाद प्रस्तुत किया गया।
4. विपक्षी सं0-1 का कथन है कि मरीज की स्थिति के अनुसार उसका आपरेशन करना जरूरी था, इसलिए बेहोश करने वाले डा0 मधु जैन को बुलवाया गया और उनकी राय के अनुसार ही आपेरशन किया गया तथा आपरेशन करने की सहमति मरीज के मामा से प्राप्त की गयी थी, क्योंकि उस समय मरीज के पिता मौजूद नहीं थे। आपरेशन करने पर पेट के अन्दर पस पाया गया था, जिसे निकाला गया था और आपेरशन सफलतापूर्वक किया गया था। आपरेशन के बाद कोई शिकायत नहीं की गयी थी। स्वस्थ अवस्था में दिनांक 3.9.2004 को टांके काटकर मरीज को डिसचार्ज किया गया था। मरीज ने दिनांक 6.9.2004 को पुन: उपस्थित होकर पीठ में दर्द की शिकायत बतायी। पेट में दर्द की शिकायत नहीं बतायी। दिनांक 24.9.2004 को मरीज तथा पैरोकार ने अभद्र व्यवहार किया और बदनाम करने के लिए गलत हठकण्डे अपनाये। पेट में दर्द के कई कारण हो सकते हैं, इसलिए उसे आपरेशन से नहीं जोड़ा जा सकता। यह भी कथन किया गया कि बीमा कंपनी से बीमा पालिसी प्राप्त की गयी है, इसलिए प्रतिकर की राशि यदि कोई हो, की प्रतिपूर्ति के लिए बीमा कंपनी उत्तरदायी है।
5. विपक्षी सं0-2 का कथन है कि जनपद सहारनपुर के वरिष्ठ एवं अनुभवी अल्ट्रासोनोलाजिस्ट की जांच रिपोर्ट के अनुसार अपेंडिक्स में द्रव्य तथा डेबरीज दिखायी दिया था, जिसका उल्लेख
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रिपोर्ट में किया गया था, इस रिपोर्ट के आधार पर ही इलाज के संबंध में निर्णय लेने का अधिकार संबंधित डा0 का था। उनके स्तर से कोई त्रुटि कारित नहीं की गयी है। बीमा कंपनी द्वारा अपने दायित्व से इंकार किया गया है। यद्यपि बीमा पालिसी जारी करने से इंकार नहीं किया गया है।
6. सभी पक्षकारों की साक्ष्य पर विचार करने के पश्चात विद्वान जिला आयोग द्वारा यह निष्कर्ष दिया गया है कि विपक्षी सं0-2 की रिपोर्ट के अनुसार मरीज के पेट में गंभीर इंफेक्शन था, इसिलए उसके द्वारा सही रिपोर्ट दी गयी और इसी रिपोर्ट के आधार पर विपक्षी डा0 द्वारा सही आपरेशन किया गया। डा0 ममता पाण्डेय द्वारा जो अल्ट्रासाउण्ड रिपोर्ट तैयार की गयी है, उस पर प्रश्नचिन्ह लगाया गया है यानी कि वह रिपोर्ट की अन्य स्रोतो से पुष्टि कराना चाहती थी। पेट में रसौली के बारे में डा0 ममता पाण्डेय पूर्ण रूप से संतुष्ट नहीं थी, इसलिए लापरवाही का कोई तथ्य साबित नहीं है। तदनुसार विद्वान जिला आयोग ने परिवाद खारिज कर दिया।
7. इस निर्णय/आदेश के विरूद्ध अपील इन आधारों पर प्रस्तुत की गयी है कि विद्वान जिला आयोग ने साक्ष्य के विपरीत निर्णय पारित किया है। ममता पैथोलॉजी एण्ड अल्ट्रासाउण्ड सेन्टर ने ओवेरियन ट्यूमर की रिपोर्ट दी है, इसी के आधार पर डा0 मोहन पाण्डेय ने बताया है कि पुराना आपेरशन गलत किया गया है। डा0 ईश चड्ढा द्वारा डा0 मोहन पाण्डेय के कथन की पुष्टि की गयी है। विपक्षी सं0-1 एवं 2 की लापरवाही के कारण ही मरीज बालिका की
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तबियत खराब हुई तथा उसके पिता को आर्थिक क्षति कारित हुई, इसलिए विद्वान जिला आयोग द्वारा पारित निर्णय/आदेश अपास्त होने योग्य है।
8. अपील में वर्णित तथ्यों को ही बहस में अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता द्वारा दोहराया गया है। अत: पुन: उल्लेख करने की आवश्यकता नहीं है।
9. बीमा कंपनी की ओर से यह कथन किया गया है कि इलाज के दौरान लापरवाही का तथ्य स्थापित नहीं है।
10. प्रस्तुत अपील के विनिश्चय के लिए महत्वपूर्ण विनिश्चायक बिन्दु यह है कि क्या विपक्षी सं0-2 द्वारा गलत रिपोर्ट तैयार की गयी, जिसके आधार पर विपक्षी सं0-1 द्वारा मरीज के पेट के इंफेक्शन का गलत आपरेशन किया गया। इन दोनों प्रश्नों का उत्तर नकारात्मक है, क्योंकि विद्वान जिला आयोग द्वारा साक्ष्य की व्याख्या करते हुए यह निष्कर्ष दिया गया है कि अल्ट्रासाउण्ड की रिपोर्ट तैयार करने में विपक्षी सं0-2 के स्तर से कोई लापरवाही कारित नहीं हुई है। इस पीठ के समक्ष भी अल्ट्रासाउण्ड रिपोर्ट तैयार करते समय लापरवाही का कोई तथ्य जाहिर नहीं किया गया है। अल्ट्रासाउण्ड रिपोर्ट तैयार करते समय यदि पेट में मौजूद बीमारी के सभी तथ्य प्रकट नहीं होते तब सूक्ष्म मशीनों द्वारा एमआईआर करायी जाती है, इसीलिए डा0 ममता पाण्डेय द्वारा रसौली के संबंध में प्रश्नसूचक चिन्ह लगाया गया यानी अभी डा0 ममता पाण्डेय की रिपोर्ट की भी पुष्टि होनी है कि मरीज के पेट में रसौली मौजूद थी या नहीं। अल्ट्रासाउण्ड रिपोर्ट के अनुसार पेल्विक रीजन में द्रव्य तथा
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डेबरीज दिखाया गया। इस रिपोर्ट के आधार पर डा0 द्वारा पेट का आपरेशन किया गया और द्रव्य तथा डेबरीज को निकाला गया, इसके बाद मरीज को अस्पताल से छुट्टी दे दी गयी, इसलिए विपक्षी संख्या-1 एवं 2 की लापरवाही के संबंध में विद्वान जिला आयोग द्वारा दिये गये निष्कर्ष में हस्तक्षेप करने का कोई आधार प्रतीत नहीं होता है। तदनुसार प्रस्तुत अपील निरस्त होने योग्य है।
आदेश
11. प्रस्तुत अपील निरस्त की जाती है।
प्रस्तुत अपील में अपीलार्थी द्वारा यदि कोई धनराशि जमा की गई हो तो उक्त जमा धनराशि अर्जित ब्याज सहित संबंधित जिला आयोग को यथाशीघ्र विधि के अनुसार निस्तारण हेतु प्रेषित की जाए।
आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दे।
(सुधा उपाध्याय) (सुशील कुमार(
सदस्य सदस्य
लक्ष्मन, आशु0,
कोर्ट-3