राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
सुरक्षित
अपील सं0-६५६/२०१३
(जिला उपभोक्ता फोरम, द्वितीय लखनऊ द्वारा परिवाद संख्या-१२५२/२०११ में पारित निर्णय/आदेश दिनांक-०९/०१/२०१३ के विरूद्ध)
- सरस्वती मेडिकल एवं डेंटल कालेज २३३ तिवारी गंज फैजाबाद रोड जुग्गौर (वाया चिनहट) लखनऊ द्वारा अध्यक्ष।
- वाईस चेयर परसन सरस्वती मेडिकल एवं डेंटल कालेज २३३ तिवारी गंज फैजाबाद रोड जुग्गौर (वाया चिनहट) लखनऊ।
- प्रेसीडेंट सरस्वती मेडिकल एवं डेंटल कालेज २३३ तिवारी गंज फैजाबाद रोड जुग्गौर (वाया चिनहट) लखनऊ।
.............अपीलार्थीगण.
बनाम
डा0 पुनीत साहू उम्र लगभग ३६ वर्ष पुत्र डा0 कमल किशोर निवासी मकान नं0 ३९३/१ सीपी मिशन कम्पाण्ड ग्वालियर रोड झांसी।
..............प्रत्यर्थी
समक्ष:-
- माननीय श्री राज कमल गुप्ता, पीठा0सदस्य।
- माननीय श्री महेश चन्द, सदस्य।
अपीलार्थीगण की ओर से उपस्थित : श्री प्रसून कुमार राय विद्वान अधिवक्ता ।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित: श्री टी0एच0 नकवी विद्वान अधिवक्ता।
दिनांक:.15/05/2017
माननीय श्री महेश चन्द, सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
प्रस्तुत अपील जिला उपभोक्ता फोरम, द्वितीय लखनऊ द्वारा परिवाद संख्या-१२५२/२०११ में पारित निर्णय/आदेश दिनांक-०९/०१/२०१३ के विरूद्ध योजित की गयी है । उक्त प्रश्नगत आदेश निम्नानुसार है-
‘’ परिवादी का परिवाद विपक्षीगण के विरूद्ध एकल व संयुक्त रूप से निर्णीत किया जाता है और आदेश दिया जाता है कि विपक्षीगण परिवादी को निर्णय से दो माह के भीतर १०००००/-रू0 अकेडमिक रिफन्डेबुल सिक्योरिटी मनी और १००००/-रू0 रिफन्डेबुल हास्टल सिक्योरिटी मनी यानी कुल ११००००/-रू0 अदा करेंगे। इसके अतिरिक्त विपक्षीगण परिवादी को १००००/-रू0 मानसिक कष्ट भी अदा करेंगे। अगर विपक्षीगण परिवादी को निर्णय से दो माह के भीतर उपरोक्त धनराशि अदा नहीं करते हैं तो वह परिवादी को उपरोक्त धनराशि पर ०६ प्रतिशत साधारण वार्षिक ब्याज भी अदा करेंगे। ‘’
संक्षेप में विवाद के तथ्य इस प्रकार हैं कि परिवादी ने सरस्वती मेडिकल एवं डेंटल कालेज में शिक्षा सत्र २००५ में बी0डी0एस0 की पढ़ाई के लिए प्रवेश लिया और उसने एकेडमिक फीस के मद में रू0 २०७०००/-, हास्टल फीस के मद में रू0 ५००००/-, एकेडमिक सिक्योरिटी रू0 १०००००/- हास्टल सिक्योरिटी रू0 १००००/- जमा की। बी0डी0एस0 की परीक्षा वर्ष २०११ में उत्तीर्ण करने के बाद परिवादी ने विपक्षी/अपीलार्थी से एकेडमिक सिक्योरिटी मनी के रूप में जमा किए गए रू0 १०००००/- तथा हास्टल सिक्योरिटी के रूप में जमा किए गए रू0 १००००/- वापस करने की प्रार्थना की किन्तु उक्त धनराशि उनके द्वारा वापस नहीं की गयी। अत: परिवादी ने जिला मंच द्वितीय लखनऊ के समक्ष परिवाद सं0-१२५२/२०११ दायर किया।
जिला मंच द्वारा प्रत्यर्थी को नोटिस भेजा गया किन्तु विपक्षी द्वारा नोटिस लेने से इनकार कर दिया गया और विपक्षी पर तामीला पर्याप्त मानकर विद्वान जिला मंच द्वारा एकपक्षीय सुनवाई की गयी और प्रत्यर्थी/परिवादी का परिवाद स्वीकार करते हुए उपरोक्त उल्लिखित प्रश्नगत आदेश दिनांक ०९/०१/२०१३ पारित किया गया।
इस आदेश से क्षुब्ध होकर अपीलार्थी द्वारा यह अपील योजित की गयी है।
अपीलार्थीगण ने अपील में जो आधार लिये है उसमें यह कहा गया है कि प्रश्नगत आदेश दिनांक ०९/०१/२०१३ एकपक्षीय आदेश है और विद्वान जिला मंच द्वारा तथ्यों को नजरअंदाज कर उक्त आदेश पारित किया गया है। परिवादी को परिवाद दायर करने का कोई कारण नहीं था। परिवादी ने अपीलार्थीगण/विपक्षीगण को जो नोटिस भेजा गया था उस नोटिस में दी गयी समयावधि समाप्त होने से पहले ही प्रश्गनत परिवाद दायर कर दिया। विद्वान जिला मंच ने इस तथ्य पर भी विचार नहीं किया कि परिवादी ने अपनी प्रतिभूति की धनराशि वापस करने के लिए वांछित औपचारिकताएं पूरी की है अथवा नहीं ।विद्वान जिला मंच ने यह भी तथ्य नहीं देखा कि नोटिस की तामीला विपक्षीगण/अपीलार्थीगणपर हुई या नहीं और एकपक्षीय आदेश पारित कर दिया । विद्वान जिला मंच ने विधिक कानूनी प्राविधान को नजरअंदाज करके निर्णय पारित किया है।
अपील में बहस के समय अपीलकर्ता के विद्वान अधिवक्ता श्री प्रसून कुमार राय उपस्थित हुए। प्रत्यर्थी के विद्वान अधिवक्ता श्री टी0एच0 नकवी उपस्थित हुए उनके तर्क सुने गए एंव अभिलेखों का अवलोकन किया गया।
अपीलार्थीगण को यह तथ्य स्वीकार है कि परिवादी/प्रत्यर्थी ने एकेडमिक प्रतिभूति के मद में रू0 १०००००/-तथा हास्टल प्रतिभूति के मद में रू0 १००००/-जमा की थी। अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता ने तर्क प्रस्तुत करते हुए कहा कि औपचारिकताएं पूरी किए बगैर परिवादी को प्रतिभूति वापस करना संभव नहीं था। प्रत्यर्थी ने वांछित औपचारिकताएं पूर्ण नहीं की, इसीलिए प्रतिभूतियां वापस नहीं हुई। इससे यह तो स्पष्ट है कि प्रतिभूति की धनराशि अपीलार्थीगण के पास जमा है और वह अपीलार्थी द्वारा प्रत्यर्थी को वापस की जानी है। प्रत्यर्थी के विद्वान अधिवक्ता ने तर्क प्रस्तुत करते हुए कहा कि अपीलार्थीगण के कार्यालय में अनेकों चक्कर लगाए किन्तु उसे प्रतिभूति की धनराशि वापस नहीं की गयी। परेशान होने के बाद प्रत्यर्थी ने परिवाद जिला मंच के समक्ष दायर किया। जिला मंच द्वारा नोटिस भेजा गया। जिला मंच ने अपने निर्णय में यह टिप्पणी अंकित की है कि उक्त नोटिस भी अपीलार्थीगण/विपक्षीगण द्वारा लेने से इनकार कर दिया गया । इस स्थिति में विद्वान जिला मंच के पास और कोई विकल्प नहीं था कि उक्त नोटिस की तामीला पर्याप्त मानकर एकपक्षीय आदेश गुण-दोष के आधार करे।
जहां तक प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा कतिपय औपचारिकताएं पूर्ण करने का प्रश्न है अपीलार्थी द्वारा परिवादी/प्रत्यर्थी को यह कभी नहीं बताया गया कि क्या औपचारिकताएं पूर्ण करनी है। अपील के स्तर पर भी आपैचारिकताओं का कोई विवरण नहीं दिया गया है जिन्हेंपूर्ण किया जाना था। हमारे विचार से समस्त विभागीय सूचनायें जो प्रत्यर्थी/परिवादी के संबंध में सिक्योरिटी वापिस करने के लिए आवश्यक होती हैं वह अपीलार्थी स्वयं संकलित कर सकता है क्योंकि सभी आंतरिक विभाग उसके नियंत्रण में होते हैं। अपीलार्थी ने यह भी नहीं कहा कि उक्त परिवादी पर अपीलार्थी का कोई बकाया धनराशि अवशेष है। पत्रावली पर उपलब्ध अभिलेखीय साक्ष्यों का परिशीलन करने तथा उभयपक्षों के विद्वान अधिवक्ताओं के तर्क सुनने के बाद पीठ इस निष्कर्ष पर पहुंचती है कि अपीलार्थी की नियत उक्त सिक्योरिटी वापिस करने की नहीं है।
इन परिस्थितियों में विद्वान जिला मंच ने प्रश्नगत प्रतिभूति वापस करने का आदेश पारित करके कोई त्रुटि नहीं की है। चूंकि प्रत्यर्थी/परिवादी को उक्त धनराशि वापस लेने में अत्यधिक मानसिक कष्ट भी उठाना पड़ा है। अत: मानसिक कष्ट के मद में रू0 १००००/- की धनराशि वापस करने का आदेश भी औचित्यपूर्ण है। प्रश्नगत आदेश में किसी प्रकार की कोई त्रुटि नहीं है। तदनुसार अपील निरस्त किए जाने योग्य है।
आदेश
अपील निरस्त की जाती है। जिला उपभोक्ता फोरम, द्वितीय लखनऊ द्वारा परिवाद संख्या-१२५२/२०११ में पारित निर्णय/आदेश दिनांक-०९/०१/२०१३ की पुष्टि की जाती है।
उभयपक्ष अपना-अपना वाद व्यय स्वयं वहन करेंगे।
उभयपक्षों को इस निर्णय की प्रमाणित प्रतिलिपि नियमानुसार नि:शुल्क उपलब्ध कराई जाए।
(राज कमल गुप्ता) (महेश चन्द)
पीठा0सदस्य सदस्य
सत्येन्द्र, आशु0 कोर्ट नं0-5