(मौखिक)
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
अपील संख्या-1603/2008
यूनियन आफ इण्डिया, द्वारा सेक्रेटरी, डिपार्टमेंट आफ पोस्ट एण्ड टेलीग्राफ, नई दिल्ली तथा तीन अन्य।
अपीलार्थीगण/विपक्षीगण
बनाम
डा0 जे.पी. सिंह पुत्र श्री देव नाथ सिंह, निवासी मोहल्ला पूरा गुलामी, तहसील सदर, आजमगढ़।
प्रत्यर्थी/परिवादी
समक्ष:-
1. माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य।
2. माननीय डा0 आभा गुप्ता, सदस्य।
अपीलार्थीगण की ओर से उपस्थित : डा0 यू.वी. सिंह, विद्वान अधिवक्ता के
सहयोगी अधिवक्ता श्री कृष्ण पाठक।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित : श्री ए0के0 मिश्रा, विद्वान अधिवक्ता।
दिनांक: 07.06.2022
माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य द्वारा उद्घोषित
निर्णय
परिवाद संख्या-144/2006, डा0 जे.पी. सिंह बनाम भारत सरकार द्वारा सचिव डाक विभाग तथा तीन अन्य में विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग, आजमगढ़ द्वारा पारित प्रश्नगत निर्णय/आदेश दिनांक 18.07.2008 को अपीलार्थीगण द्वारा इस आधार पर चुनौती दी गई है कि विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग ने एक अनियमित खाते पर ब्याज अदा करने का अवैधानिक रूप से आदेश दिया है, अत: यह आदेश अपास्त किया जाना चाहिए।
अपीलार्थीगण के विद्वान अधिवक्ता डा0 यू.वी. सिंह के सहयोगी अधिवक्ता श्री श्रीकृष्ण पाठक तथा प्रत्यर्थी के विद्वान अधिवक्ता
-2-
श्री अनिल कुमार मिश्रा को सुना गया तथा प्रश्नगत निर्णय/आदेश एवं पत्रावली का अवलोकन किया गया।
अपीलार्थीगण के विद्वान अधिवक्ता को यह स्थिति स्वीकार है कि परिवादी द्वारा उनके संस्थान में एक भविष्य निधि खाता खोला गया, जिसकी अवधि 15 वर्ष थी। 15 वर्ष की अवधि में परिवादी द्वारा नियमित रूप से खाते में धनराशि जमा की गई, परन्तु 15 वर्ष पूर्ण होने के पश्चात अपीलार्थीगण के विद्वान अधिवक्ता के तर्क के अनुसार निर्धारित प्रपत्र एच को भरकर संस्थान को उपलब्ध नहीं कराया गया और यह प्रपत्र वर्ष 2004 में परिवादी को उपलब्ध करा दिया गया था, इसलिए परिवादी के खाते में जो राशि जमा थी, उस पर 15 वर्ष की अवधि के पश्चात रू0 1,10,350.70 पैसे का ब्याज जोड़ दिया गया था, जिसे वापस लेते हुए शेष राशि अदा कर दी गई।
उपभोक्ता द्वारा प्रस्तुत किए गए परिवाद पर विचार करने के पश्चात विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा यह निष्कर्ष दिया गया कि प्रपत्र एच का भरा जाना मात्र औपचारिकता है, जिसे अवधि पूर्ण होने के पश्चात एक वर्ष होने के पश्चात कभी भी भरा जा सकता है और खाताधारक अवधि खत्म होने के पश्चात भी धनराशि जमा कर सकता है। प्रस्तुत केस में परिवादी द्वारा 15 वर्ष की अवधि खत्म होने के पश्चात नियमित रूप से धन जमा किया गया है और इस धन को जमा की स्वीकारोक्ति अपीलार्थीगण द्वारा की गई है, इसलिए एक औपचारिक कार्यवाही के अभाव में परिवादी द्वारा जमा की गई राशि पर ब्याज छोड़ दिया गया है, इस ब्याज को जोड़ने के पश्चात वापस लेने का कोई विधिसम्मत आधार नहीं है। विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा पारित निर्णय/आदेश में हस्तक्षेप करने का कोई विधिसम्मत आधार नहीं है। अपीलार्थीगण की ओर से नजीर Arulmighu Dhandayudhapaniswamy
-3-
Vs Director General of Post Offices, Department of Posts & ors. प्रस्तुत की गई है, जिसके तथ्यों के अवलोकन से ज्ञात होता है कि परिवादी द्वारा खाता नियमित रूप से संचालित नहीं किया गया, इसलिए खाता बन्द कर दिया गया। अत: इस राशि पर खाता बन्द करने के बाद ब्याज देय नहीं माना गया। प्रस्तुत केस में यह स्थिति मौजूद नहीं है कि परिवादी का खाता कभी भी अनियमित नहीं है और खाता कभी भी बन्द नहीं किया गया, इसलिए परिवादी का खाता अनियमित नहीं माना जा सकता। इस नजीर में दी गई व्यवस्था प्रस्तुत केस में लागू नहीं मानी जा सकती। अपील तदनुसार खारिज होने योग्य है।
आदेश
प्रस्तुत अपील खारिज की जाती है।
पक्षकार अपना व्यय स्वंय वहन करेंगे।
पत्रावली दाखिल दफ्तर की जाए।
अपीलार्थीगण द्वारा धारा-15 के अन्तर्गत जमा धनराशि मय अर्जित ब्याज सहित विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग को विधि अनुसार एक माह के अन्दर प्रेषित की जाए।
आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दे।
(सुशील कुमार) (डा0 आभा गुप्ता)
सदस्य सदस्य
लक्ष्मन, आशु0,
कोर्ट-2