जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष मंच, नागौर
परिवाद सं. 217/2015
रामावतार पुत्र श्री देवीचन्द, जाति-षर्मा, निवासी-मेघवालों का बास, माताजी मंदिर रोड, मेडतारोड, तहसील- मेडता, जिला-नागौर (राज.)। -परिवादी
बनाम
1. डीएलएफ प्रमेरिका लाइफ इंष्योरेंस कम्पनी लिमिटेड, 4 फ्लोर, बिल्डिंग नम्बर 9, टावर बी, साईबर सिटी, डीएलएफ सिटी, फेस 3 गुडगांव-122002 जरिये प्रभारी अधिकारी।
2. मरूधर बोहरा पुत्र श्रीधर बोहरा, राजकीय पषु चिकित्सालय के पीछे, अधिकृत प्रतिनिधि, डीएलएफ प्रमेरिका लाइफ इंष्योरेंस कम्पनी लिमिटेड, नागौर।
3. डीएलएफ प्रमेरिका लाइफ इंष्योरेंस कम्पनी लिमिटेड द्वारा षाखा प्रबन्धक, जोधपुर।
-अप्रार्थीगण
समक्षः
1. श्री ईष्वर जयपाल, अध्यक्ष।
2. श्रीमती राजलक्ष्मी आचार्य।
3. श्री बलवीर खुडखुडिया, सदस्य।
उपस्थितः
1. श्री विक्रम जोषी, अधिवक्ता, वास्ते प्रार्थी।
2. श्री हनुमान फिडौदा, अधिवक्ता, वास्ते अप्रार्थीगण।
अंतर्गत धारा 12 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम ,1986
निर्णय दिनांक 27.04.2016
1. यह परिवाद अन्तर्गत धारा-12 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 संक्षिप्ततः इन सुसंगत तथ्यों के साथ प्रस्तुत किया गया कि परिवादी ने अप्रार्थी संख्या 2 से प्रेरित होकर अप्रार्थी संख्या 1 डीएलएफ प्रमेरिका लाइफ इंष्योरेंस कम्पनी की बैंकिंग इन्वेस्टमेंट योजना के तहत खुद के नाम 1,00,000/- रूपये की एफडीआर करवाने के लिए एक आईसीआईसीआई बैंक का चैक डीएलएफ प्रमेरिका लाइफ इंष्योरेंस कम्पनी लिमिटेड के नाम जारी कर अप्रार्थी संख्या 2 को सुपुर्द किया। अप्रार्थी संख्या 1 डीएलएफ प्रमेरिका इंष्योरेंस लिमिटेड है, जो देषभर में विभिन्न बैंकिंग इन्वेस्टमेंट व इंष्योरेंस का कारोबार अपने अधिकृत प्रतिनिधियों के माध्यम से करती है। अप्रार्थी संख्या 2 इंष्यारेंस कम्पनी का प्रतिनिधि है। जिसने परिवादी को विभिन्न प्रकार की बैंकिंग इन्वेस्टमेंट योजनाओं से अवगत कराते हुए 1,00,000/- रूपये की एफडीआर करवाने के लिए प्रेरित किया। जिस पर परिवादी ने बचत के उद्देष्य से अप्रार्थी संख्या 2 के कथन पर विष्वास कर अप्रार्थी संख्या 1 डीएलएफ प्रमेरिका लाइफ इंष्योरेंस कम्पनी लिमिटेड के नाम से आईसीआईसीआई बैंक का चैक संख्या 000669 जारी कर दिया। उस वक्त अप्रार्थी संख्या 2 ने एफडीआर में नाॅमिनेषन की सुविधा प्राप्त करने के लिए नाॅमिनी के रूप में उसके पुत्र के पहचान पत्र तथा उसके भी पहचान पत्र ले लिये तथा कहा कि इस चैक के द्वारा 1,00,000/- रूपये की एफडीआर षीघ्र ही आपके पास जरिये डाक आ जायेगी। कुछ समय पष्चात् परिवादी को डाक मिली, जिसमें अप्रार्थी द्वारा जारी एक पाॅलिसी संख्या 000270170 थी। पाॅलिसी देखने पर पता चला कि अप्रार्थी की ओर से जो पाॅलिसी जारी की गई उसमें बीमित व्यक्ति का नाम परिवादी के पुत्र मुकुट का दर्ज किया गया है। जबकि परिवादी ने अप्रार्थीगण से कभी भी बीमा पाॅलिसी के लिए कोई निवेदन नहीं किया। इसके बावजूद अप्रार्थीगण ने उसके द्वारा दिये गये 1,00,000/- रूपयों पर एफडीआर नहीं करके एक जीवन बीमा पाॅलिसी जारी कर दी। जिसमें प्रतिवर्श 1,00,000/- रूपये प्रीमियम देय है। इस तरह परिवादी की बिना मर्जी के ही उसे जीवन बीमा पाॅलिसी जारी कर दी जिसके लिए उसने कोई प्रस्ताव ही नहीं किया। बीमा पाॅलिसी के दस्तावेजात के अनुसार परिवादी व उसके पुत्र के दिनांक 05.10.2013 को उदयपुर में हस्ताक्षर किये जाने दर्षाये हैं जबकि वो उदयपुर कभी गये ही नहीं। दस्तावेज भी 07.10.2013 को जयपुर कार्यालय से प्राप्त होना दर्षाया जबकि परिवादी व उसका पुत्र कभी भी जयपुर नहीं गये। इस तरह अप्रार्थीगण ने मनमाने ढग से बिना परिवादी की जानकारी के एफडीआर हेतु प्राप्त की गई राषि से जीवन बीमा पाॅलिसी जारी कर दी। अप्रार्थीगण का उक्त कृत्य सेवा दोश एवं अनफेयर ट्रेड प्रेक्टिस की श्रेणी में आता है।
परिवादी को एफडीआर के बदले बीमा पाॅलिसी मिलने पर उसने अप्रार्थी संख्या 2 से सम्पर्क किया तो उसने गलती मानते हुए कहा कि वे उसे पाॅलिसी केंसिल करने का लिखते हुए एक आवेदन दे दे तो उसे प्राप्त की गई राषि जरिये चैक लौटा दी जायेगी। इस पर परिवादी ने दिनांक 23.10.2013 को अप्रार्थी संख्या 2 को एक आवेदन पाॅलिसी निरस्त करते हुए पैसा लौटाने का लिखते हुए दे दिया। अप्रार्थी संख्या 2 ने उक्त आवेदन 24.01.2013 को बीमा कम्पनी के जोधपुर कार्यालय में जमा करवाकर इसकी रसीद परिवादी को दे दी तथा कहा कि बीमा कम्पनी की ओर से आपको षीघ्र ही एक लाख रूपये की राषि मय ब्याज डाक से उपलब्ध करवा दी जायेगी। इसके बाद दिनांक 17.01.2014 को परिवादी को एक पत्र मिला जिसमें बीमा कम्पनी ने उसे अवगत कराया कि तथाकथित पाॅलिसी के सम्बन्ध में फ्रीलुक केन्सिलेषन अवधि के पष्चात् उक्त रिक्वेस्ट प्राप्त हुई है, इसलिए कोई कार्यवाही नहीं की जावेगी। इस तरह बीमा कम्पनी ने एक लम्बी अवधि के बाद परिवादी की रिक्वेस्ट को अवधि पार बताकर राषि लौटाने से इन्कार कर दिया जो अनफेयर टेªड प्रेक्टिस एवं सेवा दोश की श्रेणी में आता है। अतः परिवादी को 1,00,000/- रूपये की राषि मय 24 प्रतिषत ब्याज से दिलाये जावे। साथ ही परिवादी को परिवाद में अंकितानुसार अन्य अनुतोश दिलाये जावे।
2. अप्रार्थी संख्या 2 बावजूद तामिल उपस्थित नहीं आया तथा न ही उसकी तरफ से कोई जवाब प्रस्तुत हुआ। अप्रार्थी संख्या 1 व 3 की तरफ से दिनांक 05.11.2015 को उनके अधिवक्ता ने उपस्थित दी व जवाब हेतु समय चाहा लेकिन निर्धारित समयावधि में कोई जवाब पेष नहीं हुआ तथा न ही परिवाद के खण्डन में अन्य कोई तथ्य पत्रावली पर लाया गया।
3. बहस सुनी जाकर पत्रावली का अवलोकन किया गया। बहस के दौरान परिवादी के विद्वान अधिवक्ता ने अप्रार्थी पक्ष द्वारा जारी एक चैक की फोटो प्रति पेष कर निवेदन किया कि अप्रार्थी बीमा कम्पनी द्वारा विवादित पाॅलिसी निरस्त कर दिनांक 13.11.2015 को जारी एक चैक परिवादी को प्रेशित कर दिया है, जो प्राप्त होने पर परिवादी द्वारा चैक में अंकित 99,522/- रूपये विड्राॅल कर लिये गये हैं। परिवादी के विद्वान अधिवक्ता का निवेदन रहा है कि परिवादी द्वारा जमा कराई गई राषि पर अप्रार्थीगण द्वारा ब्याज नहीं दिया गया है एवं परिवादी द्वारा यह परिवाद प्रस्तुत करने के पष्चात् अप्रार्थीगण की ओर से जरिये चैक उपर्युक्त राषि लौटाई गई है। ऐसी स्थिति में परिवादी को परिवाद व्यय एवं मानसिक संताप बाबत् पर्याप्त राषि दिलायी जावे।
4. परिवादी के विद्वान अधिवक्ता द्वारा दिये गये उपर्युक्त तर्क पर मनन कर पत्रावली का अवलोकन करें तो स्पश्ट है कि परिवादी ने विवादित पाॅलिसी/एफडीआर बाबत् दिनांक 08.10.2013 को अप्रार्थी संख्या 1 के नाम से 1,00,000/- रूपये का चैक प्रदान किया था एवं बाद में परिवादी द्वारा यह परिवाद प्रस्तुत किये जाने के पष्चात् अप्रार्थी पक्ष की ओर से दिनांक 13.12.2015 को परिवादी के नाम से जारी चैक अनुसार 99,522/- रूपये परिवादी को लौटाये हैं लेकिन दिनांक 08.10.2013 से लेकर दिनांक 13.12.2015 की अवधि बाबत् कोई ब्याज परिवादी को अदा नहीं किया है जबकि मामले के तथ्यों को देखते हुए स्पश्ट है कि परिवादी उपर्युक्त अवधि हेतु न्यायोचित ब्याज प्राप्त करने का अधिकारी है। इसी प्रकार यह भी स्पश्ट है कि अप्रार्थी पक्ष द्वारा उपर्युक्त राषि का चैक परिवाद प्रस्तुत होने के पष्चात् जारी किया गया है। ऐसी स्थिति में परिवादी को मानसिक रूप से हुई परेषानी की क्षतिपूर्ति हेतु 5,000/- रूपये दिलाये जाने के साथ ही परिवाद व्यय भी दिलाया जाना न्यायोचित होगा।
आदेश
5. परिवादी रामावतार द्वारा प्रस्तुत परिवाद अन्तर्गत धारा-12 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 खिलाफ अप्रार्थीगण आंषिक रूप से स्वीकार किया जाकर अप्रार्थी संख्या 1 व 3 को आदेष दिया जाता है कि विवादित बीमा पाॅलिसी/एफडीआर बाबत् परिवादी द्वारा दिनांक 08.10.2013 को जमा करवाई गई राषि कुल 1,00,000/- रूपये पर दिनांक 08.10.2013 से दिनांक 13.12.2015 तक की अवधि बाबत् परिवादी को 9 प्रतिषत वार्शिक साधारण ब्याजदर की दर से ब्याज अदा करें। यह भी आदेष दिया जाता है कि परिवादी को मानसिक रूप से हुई परेषानी बाबत् 5,000/- रूपये एवं परिवाद व्यय के 3,000/- रूपये भी अदा करें।
6. निर्णय व आदेष आज दिनांक 27.04.2016 को लिखाया जाकर खुले मंच में सुनाया गया।
नोटः- आदेष की पालना नहीं किया जाना उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 की धारा 27 के तहत तीन वर्श तक के कारावास या 10,000/- रूपये तक के जुर्माने से दण्डनीय अपराध है।
।बलवीर खुडखुडिया। ।ईष्वर जयपाल। ।राजलक्ष्मी आचार्य।
सदस्य अध्यक्ष सदस्या