राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग उ0प्र0, लखनऊ
(मौखिक)
परिवाद सं0- 43/2022
Neha Agarwal, aged about 38 years, D/o Shri S.K. Agarwal, R/0 C-110, Sector-A, Mahanagar Lucknow, Through its Power of Attorney Holder/Father Shri S.K. Agarwal.
Versus
DLF Home Developers Ltd., 2nd Floor, DLF My Pad, TCG-6/6, Vibhuti Khand, Gomti Nagar, Lucknow, Through its Project Manager. & Ors.
दिनांक:- 24.05.2023
माननीय न्यायमूर्ति श्री अशोक कुमार, अध्यक्ष द्वारा उदघोषित निर्णय
1. यह परिवाद, परिवादिनी श्रीमती नेहा अग्रवाल द्वारा विपक्षीगण डी0एल0एफ0 होम डेवलपर्स लिमिटेड व दो अन्य के विरुद्ध प्रस्तुत किया गया है।
2. परिवादिनी द्वारा परिवाद इन अभिकथनों के साथ योजित किया गया है कि विपक्षीगण द्वारा प्रकाशित एक विज्ञापन पर परिवादिनी से रू0 2,00,000/- एक फ्लैट खरीदने के लिए धनराशि ली गई। परिवादिनी को एक एलाटमेंट लेटर फ्लैट नं0-08, 10वें तल, ब्लाक-बी-1 के लिए जारी किया गया। विपक्षी द्वारा दिए गए शिड्यूल के अनुसार परिवादिनी ने विभिन्न तिथियों पर कुल धनराशि रू0 17,51,946/- की धनराशि जमा कर दी, जिसकी रसीद संलग्न है। नियम व शर्तों 18(a) के अनुसार विपक्षीगण ने आवेदन पत्र के 48 महीने के अन्दर सम्पत्ति पर कब्जा देने का वायदा किया था। शर्तों के अनुसार 48 महीने समाप्त हो चुके हैं।
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विपक्षी अपनी शर्त के अनुसार सम्पत्ति का कब्जा देने में असफल रहे। यह प्रोजेक्ट मार्च 2017 तक समाप्त हो जाना था, किन्तु इतने वर्ष गुजरने के बाद भी कोई प्रगति नहीं हुई। परिवादिनी के अनुसार अब वह 18 प्रतिशत चक्रवृद्धि ब्याज की दर से धनराशि वापस प्राप्त करने की अधिकारिणी हैं। परिवादिनी द्वारा उक्त यूनिट उसने अपनी जीविकोपार्जन के लिए स्वरोजगार के उद्देश्य से खरीदा था, किन्तु समय से कब्जा न दिए जाने पर उसे गम्भीर हानि हुई है। इस आधार पर परिवादिनी ने धनराशि की मांग की है।
3. विपक्षीगण सं0- 1 व 2 की ओर से वादोत्तर प्रस्तुत किया गया जिसमें उनका कथन मुख्य रूप से यह आया कि विपक्षीगण की ओर से प्रोजेक्ट को पूर्ण करने का प्रयास आरम्भ से किया गया। उभयपक्ष के मध्य तय हुई शर्तों एवं आवंटन पत्र में इस बात का उल्लेख था कि प्रोजेक्ट में देरी होने और परिवादिनी के द्वारा धनराशि अदा न किए जाने पर दोनों दशाओं में क्षतिपूर्ति के रूप में 107.64 प्रति स्क्वायर मी0 की दर से क्षतिपूर्ति दी जायेगी। उभयपक्ष के मध्य ऐसा कोई करार नहीं हुआ था कि प्रोजेक्ट का कार्य आरम्भ न होने के आधार पर परिवादिनी को क्षतिपूर्ति प्रदान की जायेगी। परिवादिनी की ओर से सम्पूर्ण कार्यवाही पूर्ण शीघ्रता से की जा रही है और प्रोजेक्ट को पूर्ण करने का पूरा प्रयास किया जा रहा है। विपक्षी द्वारा 107.64 प्रति स्क्वायर मी0 की दर से करार के अनुसार धनराशि वापस किए जाने हेतु वादोत्तर में शर्त का उल्लेख करते हुए धनराशि दिलाये जाने को स्वीकार किया है।
4. हमने परिवादिनी के विद्वान अधिवक्ता श्री विकास अग्रवाल एवं विपक्षी सं0-1 व 2 के विद्वान अधिवक्ता श्री टी0जे0एस0 मक्कड़ को सुना तथा पत्रावली पर उपलब्ध अभिलेखों का सम्यक परिशीलन किया। विपक्षी सं0- 3 की ओर से कोई उपस्थित नहीं है।
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5. यह तथ्य दोनों पक्षों को स्वीकार है कि परिवादिनी द्वारा 17,51,946/-रू0 की धनराशि प्रदान की जा चुकी है, किन्तु वाद योजन की तिथि तक प्रोजेक्ट पूरा नहीं हुआ था एवं चार वर्ष से अधिक का समय जैसा कि करार में किया गया था समाप्त हो चुका है, किन्तु शर्तों के अनुसार कब्जा नहीं दिया जा सका, जिस कारण परिवादिनी ने धनराशि की मांग की है।
6. मा0 सर्वोच्च न्यायालय द्वारा फार्चून इंडस्ट्रीज व अन्य बनाम ट्रेवेल डी लीमा व अन्य प्रकाशित II(2018)CPJ पेज 1(80) में पारित निर्णय का उल्लेख करना उचित होगा, जिसमें मा0 सर्वोच्च न्यायालय द्वारा स्पष्ट रूप से आधारित किया गया है कि सम्पत्ति का उपभोक्ता एक लम्बे समय तक प्रतीक्षा नहीं कर सकता है। फ्लैट के क्रय-विक्रय में उपभोक्ता असीमित समय तक प्रतीक्षा नहीं कर सकता है और एक युक्त-युक्त समय निकल जाने के उपरांत उसको यह अधिकार है कि जमा धनराशि को वापस ले सकता है।
7. मा0 सर्वोच्च न्यायालय द्वारा पारित एक अन्य निर्णय बंगलौर डेवलपमेंट अथारिटी बनाम सिंडीकेट बैंक प्रकाशित (2007) वाल्यूम 6 S.C.C. पृष्ठ 711 में यह निर्णीत किया गया है कि यदि करार के अनुसार प्रदान किए गए समय-सीमा में बिल्डर द्वारा सम्पत्ति प्रदान नहीं की जा सकती है तो आवंटी को यह अधिकार है कि वह धनराशि की वापसी की मांग कर सकता है।
8. मा0 सर्वोच्च न्यायालय के उपरोक्त निर्णयों को देखते हुए इस मामले में यह उचित प्रतीत होता है कि विपक्षी, परिवादिनी को जमा धनराशि मय 08 प्रतिशत वार्षिक साधारण ब्याज जमा की तिथि से वास्तविक अदायगी तक प्रदान करे। इसके अतिरिक्त वाद व्यय के रूप में 10,000/-रू0 भी दिलाया जाना उचित प्रतीत होता है। तदनुसार परिवाद आंशिक रूप से स्वीकार किए जाने योग्य है।
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आदेश
9. परिवाद आंशिक रूप से स्वीकार किया जाता है। विपक्षीगण सं0- 1 व 2 को निर्देशित किया जाता है कि वे परिवादिनी द्वारा जमा धनराशि 17,51,946/-रू0 मय 08 प्रतिशत वार्षिक साधारण ब्याज जमा की तिथि से वास्तविक अदायगी तक परिवादिनी को अदा करें। विपक्षीगण सं0- 1 व 2 को यह भी आदेशित किया जाता है कि परिवादिनी को वाद व्यय के रूप में 10,000/-रू0 अदा करें।
आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय एवं आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।
(न्यायमूर्ति अशोक कुमार) (सुशील कुमार)
अध्यक्ष सदस्य
प्रदीप मिश्रा, आशु0 कोर्ट नं0-1